रिकवरी एजेंट और कानून

आजकल अखबारों में विलफुल डिफाल्टर की लिस्ट छपने की बाढ़ आ गई है, ये वो लोग हैं जिन्होंने कुछ बड़े होने की प्रत्याशा में कुछ बड़े लोन ले लिए और किन्ही न किन्ही कारणों से फेल हो गए. लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अपने दैनिक जीवन में किसी न किसी कारण से लोन लिए हुए हैं, इसमें से जो पर्सनल और कार लोन हैं वह तो NBFC के आने के बाद तो पब्लिक को दौड़ा दौड़ा कर लोन दिया गया है. अब लोन बटने के बाद जब मार्किट में जॉब संकट और मंदी आई तो किश्तें आगे पीछे होने लगीं. इसका नतीजा हुआ की बैंकों और खासकर के NBFC ने लोन रिकवरी के लिए शार्टटर्म तरीके अपनाने शुरू किये. लोगों से बातचीत के आधार पर पता चलता है की राष्ट्रीयकृत बैंकों के बनिस्पत NBFC बैंकों का तरीका कष्टप्रद है. NBFC बैंक तो ९० दिन का इन्तेजार भी नहीं करते, किश्त बाउंस होने पर वह १५ दिन के अन्दर ही केस रिकवरी एजेंट को दे देते हैं. और रिकवरी एजेंट पूरा दबाब डालते हुए एक ही दिन में भुगतान के लिए ग्राहक को तनावग्रस्त कर देते हैं. एक ही किश्त के लिए कई कई लोग ग्राहक को फोन करने लगते हैं. हालाँकि मद्रास हाई कोर्ट द्वारा जी.पलानीसामी बनाम द ब्रांच मैनेजर के केस में वर्णित हालातों के आधार पर दिए गए आदेश में कहा गया की ऐसी कार्रवाई पूरी तरह से अवैध है और कानून में टिकाऊ नहीं है,  इसमें हाईकोर्ट ने आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड बनाम प्रकाश कौर और अन्य [(2007) केस को जो की वाहन रिकवरी से सम्बंधित था को उद्धृत और कहा की इस मामले में कुछ भी बोलने से पहले, हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि वाहन वापस लेने में बैंक द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया सही नहीं है, रिकवरी एजेंटों को मसलमैन के रूप में रखने की प्रक्रिया को  हतोत्साहित करने की जरुरत है। बैंक को वसूली हेतु कानून द्वारा मान्यता प्राप्त प्रक्रिया का सहारा लेना चाहिए जहां उधारकर्ता ने किस्तों के भुगतान में चूक की हो सकती है बजाय मसलमैन शक्ति के इस्तेमाल के । निष्कर्ष में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा की हम देश में कानून के शासन द्वारा शासित हैं,ऋण की वसूली या वाहनों की जब्ती कानूनी तरीकों से ही की जा सकती है। बल द्वारा कब्ज़ा करने के लिए बैंक गुंडों को नियुक्त नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा, हम बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को याद दिलाना उचित समझते हैं कि हम एक सभ्य देश में रहते हैं और कानून के शासन द्वारा संचालित होते हैं। इसी तरह के एक और मसले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा की बैंक डिफाल्टर से ऋण की वसूली के लिए मसलमैन को तैनात कर उन्हें अपने जीवन को समाप्त करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते । केरला हाई कोर्ट के एक जज ने तो यहाँ तक कहा की ऋण वसूली के लिए बैंक द्वारा बनाई गई एजेंसी प्रणाली पब्लिक पालिसी के खिलाफ एक समझौता है और यह लागू करने योग्य नहीं है और यह न केवल गैरकानूनी है, बल्कि अनैतिक भी है.

कोर्ट में ऐसे तमाम केस पड़े हैं जहाँ रिकवरी एजेंट से तंग आकर लोगों में आत्महत्याए की हैं और कोर्ट ने बैंक को और रिकवरी एजेंट को जिम्मेदार ठहराते हुए सजा भी दी है और सख्त से सख्त टिप्पणी की है, लेकिन आज भी ऐसे वाकये मिल जायेंगे जहाँNBFC अब मसलमैन और अनधिकृत तरीके से ऋण की वसूली में लग गई हैं वह भी ऐसे समय में जब देश में मंदी और रोजगार का संकट हो. यदि सरकार और RBI, समय से इस पर बनाये गए दिशानिर्देश को लागू नहीं कर पाई तो इस तरह के वाकये बढ़ जायेंगे. RBI ने इस तरह के प्रैक्टिस को रोकने के लिए दिशानिर्देश बनाये हैं जिसका की लगातार रिकवरी एजेंट द्वारा उल्लंघन किया जा रहा है और आम आदमी इन नियमों को न जानने के कारण पिसता जाता है. आरबीआई के अनुसार रिकवरी एजेंटों की नियुक्ति हेतु एक पूरी जाँच परख वाली प्रक्रिया होनी चाहिए जो की एजेंट तक कौन हो रहा है उसकी जांच परख तक को शामिल करे. इसके अलावा, बैंकों यह देखे कि रिकवरी प्रक्रिया में लगी एजेंसिया उनके द्वारा लगाये गए एजेंट या अन्य कर्मचारियों के पिछले जीवन का सत्यापन करें, जिसमें पुलिस सत्यापन भी शामिल हो। बैंक बीच बीच में भी पिछले जीवन का पुन: सत्यापन होता रहे यह भी देखे। किसी भी एजेंट या एजेंसी को रिकवरी के लिए भेजते वक़्त इन एजेंसी/एजेंट की उस विशेष रिकवरी की नियुक्ति की सूचना व इनका पूर्ण विवरण बैंकों को ग्राहकों को बतानी होगी. यदि किसी भी कारणवश यह सूचना ग्राहक तक नहीं पहुँच पाती है तो एजेंट को बैंक या एजेंसी फर्म / कंपनी द्वारा जारी किए गए पहचान पत्र के साथ बैंक से रिकवरी के लिए नोटिस और इसके लिए वह अधिकृत है इसका प्राधिकरण पत्र की एक प्रति, जिसमें एजेंसी का टेलीफोन नंबर तक हो उसे साथ रखनी चाहिए। बैंक यह देखें की ग्राहकों को रिकवरी एजेंटों द्वारा की गई कॉल्स / मेसेज की रिकॉर्डिंग हो. रीकवरी एजेंसी का विवरण भी बैंक की वेबसाइट पर पोस्ट होना चाहिए ताकि ग्राहक जान सके की यही प्राधिकृत हैं. जहां ग्राहक ने पहले से कोई शिकायत दर्ज की हो, तो बैंकों को एजेंसियों को तब तक नहीं भेजना चाहिए जब तक कि वे संबंधित शिकायत का निस्तारण नहीं कर लेते हों हाँ बशर्ते वह जानबूझकर की गई फर्जी शिकायत न हो। प्रत्येक बैंक के पास एक ऐसा तंत्र होना चाहिए जिससे वसूली प्रक्रिया के संबंध में उधारकर्ताओं की शिकायतों का समाधान किया जा सके और उस तंत्र का विवरण भी वेबसाइट पर होना चाहिए।


लगातार बढ़ रही घटनाओं को देखते हुए RBI ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यह समझ में आता है कि कुछ बैंक रिकवरी एजेंटों के लिए बहुत बड़ा लक्ष्य या उच्च प्रोत्साहन का लालच देते हैं जिसके चक्कर में  रिकवरी एजेंट वसूली के लिए डराने धमकाने और संदिग्ध तरीकों का इस्तेमाल करने लगते हैं। इसलिए, बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रिकवरी एजेंटों के साथ अनुबंध ऐसे हों की उससे असभ्य, गैरकानूनी और संदिग्ध व्यवहार या वसूली प्रक्रिया को अपनाने के लिए प्रेरित होने की कोई जगह न हों। ऐसा प्रायः पाया जाता है की रिकवरी एजेंटों को क्लोजिंग टारगेट दे दिया जाता है और उस दबाब में वह ग्राहकों से हर स्तर तक उतर आते हैं की आज उनका क्लोजिंग है उन्हें पेमेंट चाहिए ही चाहिए, यह क्लोजिंग का लक्ष्य जो की उनका अपना है इसके लिए वह ग्राहकों को मानसिक प्रताणित करने पे उतर आते हैं.  इसी के लिए RBI ने बोला है की कोई भी ऐसी चीज बैंकों को नहीं करना है जिससे एजेंट असभ्य तरीके के लिए प्रेरित हों. बैंक यह देखे वसूली एजेंट मर्यादा,संवेदनशीलता, उनकी जिम्मेदारियों, विशेष रूप से कॉलिंग के घंटे का ध्यान रखें. मौखिक या शारीरिक या किसी भी तरह की धमकी या उत्पीड़न का सहारा न लें , जैसे कि सार्वजनिक रूप से अपमानित या उधारकर्ताओं के परिवार की गोपनीयता भंग करना, दोस्तों रिश्तेदारों तक पहुँचना या सोसाइटी में जाकर हल्ला मचाना, अन्य तरीकों से धमकी देने आदि आदि। और इन सब पहलुओं से निपटने के लिए वह ठीक से प्रशिक्षित हों। बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऋण वसूली से बैंक की अखंडता और प्रतिष्ठा को नुकसान न पहुंचे.



रिज़र्व बैंक ने कहा की वसूली एजेंटों द्वारा अपमानजनक तरीकों की शिकायतें गंभीर हैं और वह उन बैंकों पर वसूली एजेंटों को नियुक्त न करने हेतु एक अस्थायी प्रतिबंध या लगातार मामले पाए जाने पर स्थायी प्रतिबंध लगाने पर विचार करेगा,  तथा वहां भी ऐसे प्रतिबन्ध लगाएगा जहाँ उन एजेंटों और बैंक के खिलाफ भी उच्च न्यायालय / सर्वोच्च न्यायालय द्वारा या एजेंसी के निदेशकों के खिलाफ सख्त दंड पारित किया गया है।


 यदि आपको लगता है कि एजेंट उपर्युक्त नियमों में से किसी का भी पालन नहीं कर रहा है, तो आपको बैंक के पास शिकायत दर्ज करनी चाहिए। और बैंक की कारवाई से संतुष्ट नहीं है  तो आपको बैंकिंग लोकपाल से संपर्क करना चाहिए।एजेंट अगर नियमों का पालन नहीं कर रहा है तो पहले उसकी पहचान सुनिश्चित करना चाहिए उससे प्राधिकृत पत्र की मांग करनी चाहिए और यदि वह अपमानित करने पर ही तुल जाये तो पुलिस में केस कर देना चाहिए और यदि पुलिस न तैयार हो तो मजिस्ट्रेट के पास केस करना चाहिए, कानून और RBI में इसके लिए पर्याप्त नियम कानून हैं बस हमें इसकी जानकारी नहीं है.

Comments

Anonymous said…
You are correct but the local police should aware about this. Police can prevent this musleman character to register a hinious crime against him.