कृषि का कटोरा है पूर्वांचल



 


अभी पिछले दिनों सूचना आई की कुशीनगर इंटरनेशनल एअरपोर्ट चालू होने वाला है जुलाई २०१९ से और शुरू में दो उड़ानों का रूट चार्ट एअरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने जारी कर दिया है, तथा दूसरी एक और खबर थी की अयोध्या इंटरनेशनल एअरपोर्ट के लिए योगी आदित्यनाथ की सरकार ने २०० करोड़ रुपये जारी कर दिए हैं. सुनने में शायद यह एक साधारण खबर लगे,लेकिन जो उस क्षेत्र के और खासकर के आर्थिक जानकार हैं उनको मालूम होगा की आर्थिक लिहाज से यह कितनी बड़ी खबर है और यह पुरे पूर्वांचल ही नहीं पुरे देश के विकास रक्त धमनी के ब्लॉकेज खुलने जैसा है. पूर्वांचल की पूरी जमीन सोना उगलती है. शायद ही आपको कोई जमीन ऐसी मिले जो बंजर है. मौसम भी यहाँ पे सोना बरसता है, हर तरह के मौसम, प्रचुर नदियाँ,उपजाऊ मिटटी, मेहनतकश लोग, सामाजिक जीवन यहाँ की संपत्ति है. लोजिस्टिक सुविधाओं के आभाव में इस संपत्ति का उचित प्रतिफल नहीं प्राप्त किया जा सका था. बहुत पहले इस मूल्यवान संपत्ति के दोहन क्षमता की पहचान की अंग्रेजों ने और इसे चीनी का कटोरा बनाया. पूर्वांचल में अंग्रेजों ने और अभी कुछ दशक पहले तक आपको हर १० किलोमीटर तक चीनी मिलें मिल जाया करती थी. अंग्रेज कच्चा काम नहीं किया करते थे, इन लोगों ने सिर्फ चीनी मिल नहीं लगवाई, जहाँ जहाँ चीनी मिलें लगीं थी उससे लगते हुए रेलवे लाइन बिछवाई ताकि लोजिस्टिक आसान हो सके, गन्ना और चीनी दोनों का परिवहन हो सके, जिस कारण माल परिवहन तो आसान हुआ ही, यात्री परिवहन भी बहुत सुगम हो गया जिससे चीनी मिल के साथ कस्बों का विकास प्रारंभ हुआ और यही क़स्बे आसपास के गाँव के पोषण के केंद्र बने. आज़ादी के बाद भी ये चीनी मिलें गुलजार रहीं,लेकिन कुछ सरकारी नीतियाँ और चीनी मिल के कुप्रबंधन के कारण एक के बाद के चीनी मिलें बंद होती गईं और बीच की कुछ सरकारों द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिए जाने के कारण गन्ना और चीनी मिलें दोनों घाटा का सौदा होने लगीं. बीच में कुछ सरकारों ने तो इन चीनी मीलों को औने पौने दामों पर बेचने लगीं, और खरीदने वाला भी मिल चलाने के लिए नहीं उसका कबाड़ बेचने के लिए उसे खरीदने लगा.

अंग्रेजों ने ऐसा नहीं है सिर्फ चीनी उद्योग पे ही पूर्वांचल पे ध्यान दिया था, डेढ़ सौ वर्ष पूर्व बर्डपुर क्षेत्र के तत्कालीन अंग्रेज जमींदार मिस्टर बर्ड ने नेपाल सीमा से सटे क्षेत्रों में जमींदारी नहर प्रणाली नामक परियोजना के तहत श्रमदान के माध्यम से मरथी, मझौली, बजहा,बटुआ, सिसवा, मोती, महली, मसई, सेमरा, मेखड़ा,शिवपति व जानकीनगर नामक एक दर्जन जलाशयों का निर्माण कराया था। बरसात के मौसम में नेपाल से आने वाला 806.8 मिलियन घन फुट पानी इन्हीं फाटकों के माध्यम से जलाशयों में इकट्ठा होता था, जिससे क्षेत्र में बाढ़ पर काबू पाया जाता था। बाद में इस पानी का उपयोग 242 किलोमीटर लम्बी 40 नहरों के माध्यम से बर्डपुर क्षेत्र के हर खेत तक पहुंचाया जाता था। इस कारण यहाँ का विश्व प्रसिद्ध काला नमक धान का प्रचार प्रसार और विस्तार भी बहुत हुआ और हजारों किसान लाभान्वित हुए, तथा जलमार्ग से इसे देश के अन्य हिस्सों में पहुँचाया गया जिसके माध्यम से ये विदेशों में भी गए.

बाद में तराई के किसानों के लिये अमृत वर्षा का काम करने वाली देश की अनोखी सिंचाई परियोजना शासन व जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते दम तोड़ने के कगार पर थी। जमींदारी नहर प्रणाली और इस जैसी अन्य नहर प्रणाली को बचाने के लिए योगी आदित्यनाथ से पूर्व न तो शासन ने ध्यान दिया और नहीं इस विषय में किसी स्थानीय सांसद अथवा विधायक ने आवाज उठाई। पूर्वांचल में कृषि पत्रकारिता में वर्षों से काम करने वाले वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पाण्डेय के अनुसार चार दशक से अधर में लटकी हुई सरयू नहर परियोजना इस वर्ष के अंत तक पूरी हो जाएगी, सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे गंभीरता से लेते हुए इसे अपने मुख्य अजेंडे में शामिल किया है और इसकी प्रति सप्ताह निगरानी भी कर रहें हैं. इस नहर के पुरे होने से पूर्वांचल के लाखों किसानों को राहत मिलेगी और १४.०४ लाख हेक्टेयर रकबे में सिंचाई सुविधा मिलेगी और बाढ़ पे नियंत्रण हासिल होगा. इस परियोजना के तहत  घाघरा,सरयू, राप्ती, वाणगंगा व रोहिन नदी पर वैराज बनाकर इससे मुख्य एवं सहायक नहरें निकालीं जाएँगी.

यह सत्य है की पूर्वांचल के कृषि कटोरे की जो क्षमता थी उसे अंग्रेजों ने पहचानी थी और आजादी के बाद और योगी सरकार से पहले पूर्व की किसी भी सरकार ने इस तरह की दूर दृष्टि नहीं दिखाई. आज़ादी के बाद शिब्बन लाल सक्सेना के आमरण अनशन और जवाहर लाल नेहरु द्वारा भारत नेपाल समझौते के द्वारा बने गंडक नहर परियोजना के बाद कोई बड़ी नहर परियोजना या चीनी मिल से सटी लोजिस्टिक को ध्यान में रखकर कोई रेल पटरी योजना कोई सरकार नहीं ला सकी. मौजूदा उत्तर प्रदेश सरकार की इस मसले में तारीफ़ करनी पड़ेगी की उसने इस क्षेत्र की कृषि का कटोरा होने की सम्भावना को पहचानते हुए कई मोर्चे पर काम किया. सबसे पहले उसने इस क्षेत्र की पहचान एक लैंड लॉक भूमि के रूप में की और इस चीज को महसूस किया कि यूपी का विकास तटीय प्रदेशों की तुलना में क्यूँ धीमी है,बीमारी को पहचानने के बाद कि यदि इस लैंड लॉक को तोड़ दिया जाए तो प्रदेश के तरक्की के द्वार खुल जायेंगे,यहाँ के किसान जिनके पास बेचने के बहुत सीमित विकल्प हैं, लोजिस्टिक सुविधा विकसित होने के बाद कई चीजों का उत्पादन करने लगेंगे जो की अभी विकल्पों के अभाव में या तो करते नहीं थे या कम करते थे. इसके तहत सबसे पहले मौजूदा सरकार ने सबसे पहले प्रदेश को लोजिस्टिक हब बनाने की प्रक्रिया शुरू की और जल मार्ग कार्गो,एयर कार्गो एवं रेल कार्गो तीनों पर काम किया. वाराणसी में लोजिस्टिक हब प्रस्तावित किया तो पुरे प्रदेश में कहीं भी सप्लाई चेन इन्फ्रा खड़ा करने पर कई इंसेंटिव दिए. एयर कार्गो और मूवमेंट प्रदेश की ओर बढे ताकि देश विदेश के व्यापारी और सैलानी भारत आ सकें उसके लिए गोरखपुर एअरपोर्ट का सुन्दरीकरण किया, वहां से कई शहरों की फ्लाइट चालू करवाई, लखनऊ से कई देशों की फ्लाइट चालू करवाई वहीँ दूसरी तरफ वाराणसी से जल मार्ग माल परिवहन की भी शुरुवात की जो कई दशक पहले यहाँ का मुख्य माल परिवहन मार्ग था. वाराणसी का लोजिस्टिक हब बनना, सरयू नहर परियोजना बनना,कुशीनगर एअरपोर्ट का कुछ समय में चालू होना, एयर कार्गो के क्षेत्र में काम करना, अयोध्या एअरपोर्ट के लिए २०० करोड़ जारी करना, बंद पड़ी पिपराइच और मुंडेरवा चीनी मिल को चालू करना, लुधियाना कोलकाता औद्योगिक कोरिडोर के एक बड़े हिस्से को यूपी से गुजारना, ये सब ऐसे मौजूदा सरकार के ऐसे कदम हैं जो पूर्वांचल के इस सम्भावना जो की कृषि कटोरे के रूप में हैं को साकार करेगी.   

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