जेट एयरवेज का इलाज है


जेट एविएशन बैंक एवं संकट


 

जब पुरे देश में जमीन पे मेट्रो का जाल बिठाया जा रहा हो ऐसे में आसमान में चल रहे दो एयरलाइन कम्पनियों का बैठ जाना भारतीय विमानन उद्योग के लिए झटका तो है ही यह औद्योगिक गतिविधियों को भी प्रभावित करेगा यदि किराये में बढ़ोत्तरी हो जाती है. ये दोनों संकट ऐसा नहीं था कि संभाला नहीं जा सकता था. हालाँकि ऐसा नहीं है की सिर्फ किंगफ़िशर और जेट के साथ ही यह संकट आया हो ऐसा आसन्न संकट एयर इंडिया के पास भी है. एयर इंडिया के साथ एक सुविधा है कि उसके साथ सरकार खड़ी है बाकी की दो निजी एयरलाइन्स में सरकार हाथ नहीं डालेगी क्यों की वह कोई नई परम्परा नहीं डालना चाहेगी जिससे वह एक मानक बन जाये इसीलिए विमानन मंत्री श्री सुरेश प्रभु ने सरकारी बेल आउट से इनकार किया. हालाँकि ये मसला थोडा अलग है, जेट का बंद होने से ऐसा नहीं है की एक कम्पनी बंद हो रही है या २०००० लोग बेरोजगार हो रहें है, इसके बंद होने से विमानन उद्योग का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हो रहा है अतः सरकार को इसमें हस्तक्षेप कर मामले को संभालना चाहिए. ये संकट इतना बड़ा नहीं था कि एक गोइंग कंसर्न बिजनेस को बंद होने दिया जाय. जेट के पास जहाज थे, कस्टमर थे, एडवांस बुकिंग थी, दिक्कत आ रही थी तो ब्याज या वेतन क्या भुगतान करें की का संकट आ गया था, ऐसे में बेहतर प्रबंधन के द्वारा इस मसले का हल किया जा सकता था, जब देश के और कर्मचारियों को स्वेच्छा से अपने वेतन रिव्यु का विकल्प देकर वेतन बिल को स्वेच्छा से काफी कम कर सकते थे, इस लाइन के कर्मचारियों को भी सोचना चाहिए कि वह अपने हाई वेतन का खुद रिव्यु कर उसे तर्कसंगत बनायें, उच्च वेतन कई उद्योगों के पतन का कारण बना . जेट भी अपनी प्रीमियम सर्विस को जेट ब्रांड के साथ ही रखकर इकॉनमी ब्रांड जेट लाइट का नाम बदलकर किसी और नाम से इकॉनमी ब्रांड चला सकते थे जैसे टाटा ने विस्तारा और एयर एशिया बना के किया है. जो बेवजह के खर्चे थे उसे इकॉनमी एयरलाइन्स वाली सर्विस से कम करकर उसे इंडिगो एवं गो एयर के खर्चे के पैटर्न पर ला सकते थे. बैंक को भी इसमें अपना कड़ा रुख छोड़कर जब उनके शर्तानुसार गोयल ने इस्तीफा दे दिया था तो नए प्रबंधन के नियुक्ति तक किसी पेशेवर की अंशकालिक नियुक्ति कर ब्रिज फंडिंग कर और अपने ऋण का पुनर्गठन कर कुछ मोरेटोरियम अवधी देकर इसे बचा सकते थे, लेकिन हमेशा की तरह बैंक फिर से व्यावहारिक नहीं बन पाए  .  इस मसले में जितना बड़ा दिल और जितने बड़े प्रयास की जरुरत थी उतनी नहीं हुई और सबने सुरक्षित खेला जिससे इसका संकट और बढ़ गया.हालाँकि जिस आदमी ने जेट को भारत का नंबर एक एयरलाइन बना दिया, वह भी इसके पतन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है, लेकिन एक व्यक्ति के कारण देश का विमानन उद्योग के हिस्से पे बड़ा संकट आ जाये तो व्यक्ति को दरकिनार कर इसका हल निकाला जाना चाहिए था, जिसका प्रयास अंत में नरेश गोएल ने अपने इस्तीफे से किया लेकिन इसपे जैसे आगे बैंको को और अन्य निवेशकों को तुरंत बढ़ना चाहिए था उसमें उन्होंने देरी कर दी. हालात ख़राब के संकेत तो बहुत पहले मिलने लगे थे लेकिन इन लम्बे अवधि में इसका हल नहीं निकल सका. मार्च २०१८ में जब जेट एयरवेज ने उस तिमाही में १०३६ करोड़ की हानि के कारण कंपनी के कुछ कर्मचारियों के वेतन को रोक दिया था तभी से इसके संकट ज्यादे तेजी से शुरू हुए। अप्रैल २०१८ में संकट और बढ़ गया जब जेट को इसके सहायक कंपनी जेटलाइट के साथ विलय को मंजूरी नहीं मिली। हालाँकि अपने प्रयासों में लगे जेट एयरवेज के सीईओ विनय दूबे ने हाल ही में कहा की  हम जेट पर विश्वास करते हैं और जेट को फिर से जीवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और वो लगातार ऋणदाताओं के संपर्क में हैं. मतलब संकट ऋणदाताओं की तरफ से ही है. एयरलाइन को कम से कम कुछ अंतरिम फंडिंग की जरुरत थी ताकि वह उसके कुछ विमान उड़ान भर सकें  जब तक कि ऋणदाताओं को खरीदार नहीं मिल जाता। लेकिन ऋणदाताओं ने उदासीनता दिखाई कि वे और अतिरिक्त पैसे नहीं डाल सकते हैं जब तक कि नकदी प्रवाह पर कुछ स्पष्टता ना हो, हालाँकि इसका भी हल निकल सकता था। ऋणदाताओं  ने आपातकालीन फंडिंग और एयरलाइन में 51% हिस्सेदारी लेने का प्रस्ताव भी अपने रेजोलुशन योजना में दिया था. मार्च में भी ,बैंकों ने, 1,500 करोड़ का निवेश करने के लिए बोला था जिसमे नरेश गोयल को बोर्ड से इस्तीफा देने की शर्त थी, लेकिन गोयल के बाहर निकलने के बाद भी, बैंकों ने  अपने वादा किए गए अतिरिक्त फंड को जारी नहीं किया। एयरलाइन को चालू करने की रेजोलुशन योजना का प्रयास अभी भी जारी है और यही एक आस बची है।इसी योजना के तहत जेट एयरवेज के अधिग्रहण के लिए अपनी वित्तीय बोली लगाने से पहले एतिहाद एयरवेज ने ड्यू डिलिजेंस की प्रक्रिया पूरी कर ली है तथा दो अन्य संभावित बोलीदाताओं- TPG कैपिटल और नेशनल इंवेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (NIIF) ने भी अपना ड्यू डिलिजेंस शुरू कर दिया है और हो सकता है कि वह एतिहाद के साथ एक संयुक्त बोली लगा सकते हैं। एसबीआई कैप्स ने सोमवार को संभावित बोली लगाने वालों के लिए जेट एयरवेज की के हिसाब किताब एवं अकाउंट देखने की अनुमति दे दी है। बैंकों ने बाध्यकारी वित्तीय बोलियां जमा करने की अंतिम तिथि के रूप में 10 मई की तारीख भी तय कर दी है। 

जेट एयरवेज ने भी अपनी तरफ से  डेटा रूम का पहुँच प्रदान कर दियाहै, जहां सभी आवश्यक दस्तावेज, जानकारी और एयरलाइन की संपत्ति, ऋण, लागत, शासन की जानकारी और वर्कफोर्स से संबंधित जानकारी अन्य चीजों की जानकारी बोली लगाने वालों के लिए खोल दी गई है.

 

नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने यह कहते हुए थोड़ी उम्मीद दिखाई है की कि जेट एयरवेज के हवाई अड्डे के स्लॉट अन्य एयरलाइनों को अस्थायी रूप से ही सिर्फ तीन महीने के लिए दिए जाएंगे और जब जेट एयरलाइन के संचालन शुरू होंगे तो उन्हें वापस कर दिया जाएगा।

 

जेट और किंगफ़िशर की यह घटना एक बड़ा उदाहरण है की भारतीय संस्करण के पूँजीवाद को भारतीय पूँजीपतियों से क्यों बचाया जाना चाहिए? जेट का जन्म 1990 के उस दशक की शुरुआत में हुआ था, जब सोवियत संघ ख़त्म हो रहा था भारत की बंद सोवियत शैली की नियोजित अर्थव्यवस्था ने उदारीकरण का रुख कर निजी उद्यम को गले लगाना शुरू किया था। उस समय सिर्फ कुछ ही भारतीय उड़ने का जोखिम उठा सकते थे, जिसे देश के प्रधानमंत्री ने ये कहकर इसे आम आदमी की पहुँच में बनाने का संकल्प लिया था कि इसमें चप्पल वाले भी चढ़ेंगे और यह क्षेत्र इस समय देश में दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता विमानन बाजार बन चला था। एक एयरलाइन जो एक समय में विमानन उद्योग की अग्रणी खिलाड़ी थी, सैद्धांतिक रूप से इसे फेल नहीं होना चाहिए था लेकिन व्यवहार में यह फेल हो गई, अगर गोयल के साथ साथ बैंक या अन्य वित्त प्रदाताओं का पहले से अंकुश रहता तो शायद बेहतर वित्तीय प्रबंधन हो पाता। हालाँकि नई बोली लगाने वालों से उम्मीद तो बंधी है , जेट अब भी बच सकता है अगर बैंक गोयल निवेशक और सरकार सब मिल के कोशिश करें. 

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