रघुराम का संघ और भारत का संघ


रघुराम राजन देश के और दुनिया के जानेमाने अर्थशास्त्री हैं और भारत में रिज़र्व बैंक के गवर्नर रह चुके हैं. एक अर्थशास्त्री के रूप में इनके विचार आते रहते हैं और कई बार इनसे सहमति भी होती है और असहमति भी. रघुराम राजन जिनके नाम में ही भारतीय सभ्यता की एक व्यवस्था की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति है जिसका मतलब होता है, रघुकुल के राम जो राम राज्य में एक राजन है का एक हाल का बयान जो कि उन्होंने The Week पत्रिका से बातचीत के दौरान दिया था उससे एक असहमति है.

राजन अपनी तीसरी पुस्तक ‘द थर्ड पिलर’ को प्रमोट करने के लिए भारत में आए थे. इस किताब के बारे में चर्चा के दौरान राजन का कहना था कि यह किताब आरएसएस जैसे राष्ट्रवादी संगठनों के उद्देश्यों के खिलाफ है. उनके अनुसार आरएसएस का संकीर्ण वैश्विक दृष्टिकोण भारत के लिए गतिरोध पैदा कर सकता है. और जो सबसे गौर करने वाली बात उन्होंने कही वह यह कि यह भारत देश हमारे संस्थापकों नेहरू, गांधी के विचारों और हमारे संविधान की बुनियाद पर खड़ा है. राजन ने कहा कि आरएसएस अपने संकीर्ण नजरिए के कारण बाहर के समुदायों के साथ भारत की विस्तृत भागीदारी को अधिक स्वतंत्रता नहीं देता और यह हमारे जैसी लोकतांत्रिक देश के लिए समस्या खड़ी करने वाली बात है. उन्होंने कहा कि यह आरएसएस का एक संगठनात्मक उद्देश्य है, जिससे वह सहमत नहीं हैं.
यहाँ राजन के बयान के संदर्भ में संघ के दर्शन की चर्चा करना चाहूँगा और राजन की एक बात को करेक्ट करना चाहूँगा वह यह कि यह यह देश हमारे संस्थापकों नेहरू, गांधी के विचारों और हमारे संविधान की बुनियाद पर ही सिर्फ नहीं खड़ा है इसके अन्य बुनियाद भी हैं जिसमें इसकी विविधता, यहाँ के लोग, यहाँ की हजारों साल की सभ्यता और संस्कृति, यहाँ का हजारों साल का इतिहास जिसमें हम रामायण काल से लेकर प्राचीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास और आधुनिक इतिहास को भी शामिल करते हैं और जिसमें तो कई व्यवस्थाएं और कानून अंग्रेजों ने दीये हैं, भी शामिल हैं.
संविधान के निर्माण के वक़्त इन सब बातों और इतिहास को दृष्टिगत रक्खा गया था अतः संविधान निर्माण में इन सब चीजों का मिश्रण और निचोड़ मिल जायेगा, लेकिन यह कह देना कि इस देश के बुनियाद में सिर्फ नेहरू और गांधी के विचार हैं गलत होगा, हां इनके भी विचार थे , लेकिन सिर्फ इनके विचार नहीं थे, बुनियाद में भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल एवं अनेकोनेक ज्ञात एवं अज्ञात महापुरुषों के भी विचार थे, संविधान सभा के बहस का निचोड़ था, भारत की विविधता, लोगों के सामाजिक एवं धार्मिक अभ्यास, असहमति अभिव्यक्ति और सहिष्णुता की स्वतंत्रता भी थी. संघ भारत जो आज बना है ऐसा नहीं है कि १९४७ से बना है इसको बनाने का प्रयास हजारों साल से किया गया, तब जाकर यह आज इतना बचा और संरक्षित है.
संघ के बारे में जो उन्होंने अन्य बातें कहीं हैं उसके बारे में यही कहना चाहूँगा की शायद उन्होंने यह किसी राजनैतिक इच्छा से यह बात कहीं है और संघ के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हासिल नहीं की है. संघ के बारे में संक्षेप में सारगर्भित उन्हें जानना हो तो उन्हें विमर्श प्रकाशन द्वारा संघ की एक पुस्तक “भविष्य का भारत” पढ़ना चाहिए, उन्हें उनके कई प्रश्नों का समाधान मिल जायेगा. संघ का कहना है की विविधताओं से डरने की कोई बात नहीं और इसे स्वीकार किया जाना चाहिए और इसका उत्सव मनाया जाना चाहिए, सबको अपनी अपनी विविधताओं और विशिष्टताओं पर पक्का रहना चाहिए और सबकी विविधता का सम्मान करते हुए मिलजुल कर रहना चाहिए. भारत जियो और जीनो दो के आधार पर चलता है, यहाँ “परिहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधिमाई” का विचार चलता है, जिसका आशय परहित से बड़ा धर्म कोई नहीं है और परपीड़ा जैसा अधर्म नहीं, फिर आरएसएस के उद्देश्य वैश्विक व्यवस्था में पीड़ा किसी को क्यूँ देंगे ?. पुस्तक के अनुसार संघ कभी संघ का प्रभुत्व नहीं चाहता, संघ का विचार इस प्रभुत्व वाले विचार से अलग है, यदि संघ के प्रभुत्व के कारण इस देश में कुछ अच्छा हुआ , ऐसा इतिहास में लिखा जाता है तो संघ इसे अपनी सबसे बड़ी पराजय मानेगा, तो फिर राजन इसे क्यूँ विस्तारवादी मानते हैं? या इसे ऐसा क्यूँ मानते हैं की संघ बाहर के समुदायों के साथ भारत की विस्तृत भागीदारी को अधिक स्वतंत्रता नहीं देता? यह समझ से परे है. संघ विस्तारवाद के साथ साथ व्यक्तिवाद को भी उचित नहीं मानता है, संघ के अनुसार महापुरुष, विचारधाराएँ, तत्वज्ञान ये सब सहायक हैं, देश का वैभव देश के सामान्य व्यक्ति के कृतृत्व से आना चाहिए किसी विशेष व्यक्ति के नहीं.
हिंदुत्व को लेकर कई आलोचनाएँ आरएसएस की की जाती है जिसके आधार पर राजन या कई लोग इसे संकीर्ण विचारधारा का संगठन कह देते हैं, जबकि आरएसएस के अनुसार विविधता में एकता, समन्वय, त्याग, संयम, कृतज्ञता जैसे “मूल्य समुच्चय” का नाम हिंदुत्व है. अपनी अपनी विविधता पर श्रद्धापूर्वक चलते रहो तथा सबकी विविधता का सम्मान करो, मिलजुल कर रहो यह सन्देश देने वाला “मूल्य समुच्चय” हिन्दू है, हिंदुत्व है. आरएसएस के अनुसार हिन्दू धर्म किसी एक विशेष देश या समाज की बपौती नहीं है, यह पुरे मानव का वैश्विक धर्म है, जिसको आज हिन्दू धर्म कहते हैं वो वास्तव में हिन्दू का धर्म नहीं है. हिन्दुओं का धर्म शास्त्र “हिन्दू धर्म शास्त्र के नाम से नहीं है, उसको मानव धर्म शास्त्र कहा जाता है और यह हिन्दू शब्द के आने से पहले रचा गया था, यह किसी एक समाज विशेष का नहीं है यह सबका है. सबको अपना कुटुंब मानना “वसुधैव कुटुम्बकम” के रूप में हमारा सूत्र वाक्य रहा है और सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया हमारा ध्येय रहा है. विभिन्न विविधताओं के आस्तित्व की एकता को जानने से ही भारत का उद्गम हुआ है और तभी हम एक समाज और एक राष्ट्र के रूप में चल रहें हैं. अन्य मत पन्थो के साथ तालमेल कर सकने वाला एकमात्र विचार जो भारत का विचार है वही हिंदुत्व का विचार है.
संघ डॉ आंबेडकर के उस सूत्र वाक्य पर विश्वास करती है जिसे हिन्दू कोड बिल की चर्चा के वक़्त उन्होंने विरोध करने वाले से पुछा था कि आप धर्म को क्या मानते हैं कोड या वैल्यू, यदि कोड तो कोड परिवर्तनशील है और वैल्यू तो मै वही रख रहा हूँ और संघ का भी यही मानना है की वैल्यू की कसौटी पर कोड जो कालांतर में जबरदस्ती घुस आये हैं उसे बदलना चाहिए. ऐसा जीवन जीने का अनुशासन और सबका कल्याण हो इसके लिए सबके हितों का एक संतुलित समन्यव ही हिंदुत्व है. भारत से निकलने वाले सभी सम्प्रदायों का यही सामूहिक मूल्यबोध है. देश काल परिस्थिति के अनुसार दर्शन विधि और आचार धर्म की व्याख्या सबने अलग अलग बताई इसलिए इस मूलभूत एकता को देखकर साथ चलने का नाम हिंदुत्व है.
संघ के अनुसार भारतीय जहाँ जहाँ गए, कोई लड़ाई नहीं की, किसी का राज्य नहीं जीता, किसी की अस्मत या सम्पति नहीं लूटी, हम जहाँ गए हमने वहां ज्ञान और सभ्यता दी इसलिए संघ के दर्शन  विस्तारवादी बनना या आक्रमणकारी बनना जैसी सोच ही नहीं है. हम जहाँ जहाँ गए दुनिया में हमें सुखद स्मृतियों में याद किया जाता है, विदेशों में लोगों ने पूजा की पध्वतियाँ बदल ली आज वो शैव वैष्णव या बौद्ध भी नहीं हैं मुसलमान हैं लेकिन रामलीलाएं होती हैं , राम को अपना पूर्वज मानते हैं और ऐसा इसलिए है की भारत विश्व कल्याण और विश्व बंधुत्व की भावना पे आगे बढ़ता है. संघ कहता है की डॉ आंबेडकर ने भी कहा है स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के आदर्श उन्होंने फ़्रांस से नहीं, इसी मिटटी में पैदा हुए तथागत बुद्ध से लिए हैं, जिसमे स्वतंत्रता एवं समता को एक साथ लाने के लिए बंधुत्व की जरुरत होती है, आरएसएस का मानना है यही बंधुत्व ही उसका और सबका धर्म है, और इस बंधुभाव का आधार एक ही है कि हम सबके पूर्वज एक हैं, हमारी सांस्कृतिक विरासत सांझी है और हमारी मातृभूमि  एक है. संघ इसी बंधुभाव के लिए काम करता है, इसलिए संघ के हिन्दू राष्ट्र का मतलब यह नहीं कि इसमें मुसलमान नहीं होना चाहिए, संघ के अनुसार जो भी सिद्धांत यह कहता है कि मुसलमान नहीं चाहिए वो हिंदुत्व हो ही नहीं सकता. संघ के हिंदुत्व दर्शन में सब शामिल हैं और वह विश्व कुटुंब में विश्वास करता है. उसके अनुसार जिस दिन यह कहा जायेगा की केवल वेद चलेंगे और इसे न मानने वाला मत नहीं चलेगा उस दिन वह दर्शन हिंदुत्व का दर्शन नहीं रहेगा. संघ इसी बंधुभाव वाले हिंदुत्व को लेकर चलता है और यही इसका वैचारिक आधार है. इसलिए ऐसा कहना की यह यह बाहर के समुदायों के साथ भारत की विस्तृत भागीदारी को अधिक स्वतंत्रता नहीं देता गलत है.
संघ ने कहा वह कभी यह अहंकार नहीं करता है की संघ ही भारत का उद्धार करेगा यह देश किसी एक व्यक्ति, संस्था, संगठन या सरकार के द्वारा आगे नहीं बढ़ सकता , जब सम्पूर्ण समाज जिसमे सब शामिल है गुणवान होकर संगठित होकर भेदों और स्वार्थों को भुलाकर उद्यम करता है तब देश का भाग्य बदलता है. 
देश के विजन डॉक्यूमेंट के बारे में संघ का मत है कि अगर दुसरे देश को उपदेश देना है तो पहले अपने देश का जीवन सर्वांग एवं सुन्दर होना चाहिए. हमारा विजन  डॉक्यूमेंट समतायुक्त, शोषणमुक्त, दुनिया में पिछड गए देश और समाज को बराबरी में लाने का होना चाहिए, जो किसी को हानि पहुंचाए बिना सबके कल्याण का हो और विश्व के प्रति सद्भावना लिए होना चाहिए तब वह साम्राज्य या आर्थिक विस्तारवादी नहीं कहा जायेगा.
संघ एक बंद एवं संकीर्ण संगठन नहीं है की डॉ हेडगेवार ने जो बोल दिया उसे ही पकड़कर चलना है, समय बदलता है, परिस्थिति बदलती है और वैसे ही हमारे सोच और सोच का तरीका भी बदलता है. इसलिए संघ को संकीर्ण कह देना ऐसा लगता है की राजन ने संघ के बारे में अध्ययन नहीं किया है और राजनैतिक निहितार्थ ये बयान दिया है.

Comments