एनबीएफसी पर फिर गहराता संकट


कुछ दिन पहले IL&FS का संकट देश में आया था, अब दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड जिसे DHFL भी कहते हैं का संकट बाजार में आ गया है, हालत ये हो गई है की बाहर से बहुत अच्छी दिखने वाली कम्पनी जी मीडिया के चेयरमैन सुभाष चंद्रा को अपने कर्जदाताओं से भावुक अपील करनी पड़ी है. इन सब कारणों सेदोबारा देश की डेट फंड इंडस्ट्री को लेकर जोखिम बढ़ सकता है.
इन दोनों कम्पनियों को लेकर नकारात्मक खबर आने के बाद शेष गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ अब और वित्तीय संस्थाएं अब सतर्कता मोड में चली गई हैं, तरलता संकट के कारण या तो नए लोन दे नहीं रहें हैं या बहुत ही कम केस में दे रहें हैं. देश का यह सेक्टर पुरे तनाव से गुजर रहा है और कुछ दिन पहले शेयर मार्किट में इनके शेयरों के मूल्यों के गिरने का ट्रेंड चालू हो गया था.  आईएल एंड एफएस और दीवान हाउसिंग का संकट और एनपीए का बढ़ता दबाब देश में आर्थिक तनाव का माहौल पैदा कर रहा है. बाजार में किसी भी बैंक या NBFC के पास बड़े लोन के लिए एप्रोच के लिए जाने पर यही जबाब मिल रहा है कि ऊपर से अभी निर्देश है की सधे क़दमों से लोन देना है और कोई भी बड़ा निर्णय RBI के निर्णय को जानने के बाद लेना है. हालाँकि सरकार के तरफ से प्रयास जारी हैं और बजट से पहले ३ बैंकों को निगरानी सूची से बाहर रखने का फैसला कर तरलता को बढ़ाने का प्रयास किया गया लेकिन फिर भी बैंको और खासकर के एनबीएफसी के सतर्कता मोड वाले रवैये में कोई कमी नहीं आई है. इन संस्थाओं के इस रवैये से रियल एस्टेट और निर्माण कम्पनियों को अब गंभीर तरलता संकट का सामना करना पड़ रहा है जिसका क्रमिक प्रभाव इनसे जुड़े उद्योगों, श्रमिकों और रोजगार पर भी पड़ रहा है. NBFC में तो यह हालत हैं कि कई मामलों में जो ऋण पहले से ही  स्वीकृत हैं वह भी वितरित नहीं हो पा रहें हैं और निर्माण से जुड़ी ऋण योजनाओं के तहत जो ऋण पहले स्वीकृत हुए थे उसमें भी संस्थाओं ने हाथ टाइट कर लिया है.
 
पिछले दिनों आईएल एंड एफएस द्वारा पुनर्भुगतान की चूक और DHFL के सौदों की संदिग्धता की खबर जो बाहर आई से ऐसी स्थिति पैदा हुई की म्यूचुअल फंड और अन्य वित्तीय संस्थाओं ने भी  वाणिज्यिक पेपर (सीपी) बाजार में पैसा लगाने से पहले १० बार सोचना शुरू कर दिया , जबकि  वाणिज्यिक पेपर (सीपी) एनबीएफसी के लिए वित्त पोषण का एक प्रमुख स्रोत है, जिसके तहत वह पैसा उठाती हैं। तरलता के इस संकट के कारण इनके सम्पत्ति और दायित्व का अनुपात गड़बड़ हो रहा है जिसके कारण इन संस्थाओं के साथ साथ बाजार भी सहमा हुआ है। आजकल कई एनबीएफसी कम्पनियां अपना टारगेट व्यवसाय नहीं कर पा रहे हैं जो वो अमूमन आम तौर पर करती हैं. मौजूदा दौर की यह  समस्या और तरलता संकट तो छोटे एनबीएफसी के लिए तो और भी डरावनी हैं की वह अपने पेपर का भुगतान कैसे कर पाएंगी.
 
गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों में उत्साह आवास और निर्माण नीतियों के निर्माण से ही आया था, देश में जब पहली बार राष्ट्रीय आवास नीति बनी तो निजी संस्थाओं के द्वारा इनके वित्त पोषण की आवश्यकता महसूस की गई और इसके कारण ही आज कई हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां बाजार में हैं. इसी कारण रियल एस्टेट और निर्माण सेक्टर में उत्साह NBFC के उत्साह और सहयोग के कारण भी आया था. भारत में बैंक जब ज्यादा सख्त होते चले गए तो नए विकल्पों के रूप में इन संस्थाओं द्वारा वित्त पोषण करने से निर्माण, हाउसिंग, ऑटो मोबाइल, मशीनरी उद्योग  को पहले से ज्यादे सुगम गति से ऋण मिलने लगे और देश के इकॉनमी एवं जीडीपी की गति का पहिया तेज घुमने लगा, क्यों की ऋण देने के मामले में एनबीएफसी कम्पनियां बैंकों की तुलना में काफी उदार और  आक्रामक तरीके अपनाने लगीं और पहली बार बैंकों की तरह ग्राहक के आने का इन्तजार किए बिना  खुद ही वित्त पोषण करने के लिए ये संस्थाएं अपने ग्राहकों के पास जाने लगीं, जबकि इससे पहले माहौल ऐसा था कि ग्राहक को ही अपने वित्त प्रदाता बैंक के पास लाइन लगाने पड़ते थे. हाउसिंग , इन्फ्रा और ऑटो मोबाइल सेक्टर में जो हालिया बढ़ोत्तरी हुई है वह इन एनबीएफसी कम्पनियों द्वारा आक्रामक तरीके से बाजार में ऋण वितरण के कारण ही हो सकी हैं, जिसने इन उद्योगों की बिक्री और नगद संग्रह दोनों को मजबूत किया. 
 
मौजूदा बाजार के माहौल को देखते हुए यह आशंका उठ रही है कि क्या एनबीएफसी की ये आक्रामकता जिसके वित्त बाजार पे उनकी बढ़त थी, क्या अब खत्म होने वाली है? क्या अब वह पहले से ज्यादे सतर्क और कठोर नियमों वाली हो जाएँगी ? क्या २० साल पहले वाली स्थिति फिर आ जाएँगी, क्या इन्फ्रा एवं निर्माण सेक्टर की गति अब पहले से धीमी हो जाएगी ?  अब तक एनबीएफसी ने ऋण की बढ़ती मांग,  बैंकिंग के परम्परागत मॉडल की कमियां  आदि का फायदा उठाकर छोटी छोटी अवधि का ऋण उठाकर अपने आप को विस्तारित किया था, लेकिन अब उन्हें अपने इस वित्त पोषण मॉडल का फिर से पुनर्विचार करना पड़ रहा है और अपने संपत्ति और दायित्वों के बीच संतुलन बनाना पड़ रहा है , और अब वे छोटी अवधि के वित्त को लेकर लम्बे अवधि के ऋण वितरण से बच रहीं हैं. 
 
आज अधिकांश एनबीएफसी के पास अल्पकालिक ऋण हैं, जिससे वो दीर्घकालिक उधार देते रहें हैं और इधर की इन हालिया फंडिंग हालात ने अब इस सेगमेंट को केंद्रीय बैंक से कुछ विशेष रियायतों की जरुरत पैदा की है। पिछले कुछ वर्षों में अल्पकालिक उधारों का अनुपात बढ़ रहा था क्योंकि एनबीएफसी प्रायः लंबी अवधि के वित्त लेने में संकोच कर रहे थे, जो की इस मौजूदा हालात का एक कारण बन गया। इस हालात को देखते हुए RBI ने बैंक वित्त पोषण और अल्पकालिक उधार पर एनबीएफसी के निर्भरता को देखते हुए संपत्ति-दायित्व दिशानिर्देशों को और मजबूत करने की अब इस आवश्यकता को पहचाना है। अपनी तरलता संकट को मेंटेन करने के लिए हाउसिंग फाइनेंस कम्पनियां अपनी संपत्ति बैंकों को बेच रहीं है और कई बड़े बैंक एनबीएफसी से पोर्टफोलियो खरीद रहें हैं.
 
म्यूचुअल फंड निवेश भी इससे प्रभावित हो रहा है, म्यूच्यूअल फण्ड को जो प्रवाह एनबीएफसी या हाउसिंग फाइनेंस कम्पनियां से जाता था वो फिलहाल बाजार के आत्मविश्वास और प्रवाह पर निर्भर करेगा लेकिन हाल फिलहाल में इसे और आगे बढ़ने की संभावना नहीं है। इन मुश्किल हालातों के बीच एनबीएफसी के पास जो सबसे अच्छी और आशावान चीज है वह है उनकी ग्राहकों तक पहुँच और विपणन रणनीति, जो उन्हें बैंकों के तरीकों से अलग करता है और जिससे वो अपने मौजूदा स्व वित्त पोषण मॉडल और संपत्ति- दायित्व के अनुपात में मजबूती कर अपने बिजनेस को प्रॉफिट मॉडल में बदल सकती हैं. अब एनबीएफसी कम्पनियां अपनी सम्पति-दायित्व अनुपात के जोखिम को कम करने के लिए लम्बी अवधी के ऋण लेने की तरफ मुड़ रहीं हैं, ताकि अब इन्हें लौटाने के लिए पर्याप्त समय मिलता रहे और इसे वो वितरित कर पर्याप्त लाभ कमा लें जिससे इनके परिपक्वता के समय इसका आसानी से भुगतान हो जाये. 
 
 

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