सूदखोरों के आतंक में देश


४ फरवरी को टीवी चैनल पे एक छोटी सी खबर चली थी जो उस समय ममता बनर्जी के हो रहे धरने के कारण सुर्खियाँ नहीं बटोर सकी और कम लोगों का ध्यान गया अन्यथा इस खबर को आज राष्ट्रीय विमर्श बन जाना चाहिए था. अखबार की खबरों के अनुसार गोरखपुर का एक व्यापारी जिसके व्यवसाय में नुक्सान हो रहा था, और उसने अपने आय को बढ़ाने के लिए कई तरीके और व्यापार आजमाए लेकिन उसे नुक्सान होता गया और उसके ऊपर बाजार का बाकी और सूदखोरों का लोन बढ़ता चला गया, पैसा मांगने वाले आदमी उसके घर तक आने लगे, बुरा भला बेइज्जत करने लगे और मामला हाथापाई तक पहुँच जाता था. पैसे के इस दबाब को वह बर्दाश्त नहीं कर पाया और एक रात उसने अपनी पत्नी अपनी दो बेटियों और एक बेटे को जहर दे दिया और सुबह अपने खुद ट्रेन के आगे जाकर जान दे दी. उनमे से एक बेटी जिसने हॉस्पिटल में जाकर दम तोडा उसने पुलिस में बयान दिया कि यह सब उसके पिता ने सूदखोरों से आजिज आकर किया.
यह तो सिर्फ एक घटना है जिसमें एक पीडिता बयान देने के लिए उपलब्ध थी और जिसने इस घटना का कारण बताया. देश में ऐसी हजारों आत्महत्याएं होती है जिसकी तह में वित्तीय तनाव और सूदखोरों के तगादा करने का रवैया होता है जिसे एक सीधा शरीफ आदमी समाज में बनाये गए अपने खुद के रुतबे के कारण किसी से कह नहीं पाता है और अन्दर ही अंदर खुद और बाद में अपने परिवार के साथ इस दर्द को सहता चला जाता है और दर्द जब असहनीय हो जाता है तो आत्महत्या जैसा कदम उठाता है और कई बार अपने परिवार को भी इसमें शामिल कर लेता है. सूदखोरी की वजह से हुई आत्महत्या को आत्महत्या नहीं सूदखोरों द्वारा की गई हत्या माना जाना चाहिए.
देश में और प्रदेश में इसको लेकर कानून बहुत सख्त नहीं है जिसके कारण हर जगह सूद का कारोबार फल फूल रहा है, सूदखोर मूलधन से कई गुना ब्याज वसूल लेते हैं और मूलधन जस का तस पड़ा ही रहता. यह धंधा तब और फूलता है जब बाजार में मंदी रहता है ऐसे मौकों का सूदखोर अच्छा फायदा उठाकर लोन लेने वालों का दोहन कर लेते हैं. इस धंधे की एक और खासियत है कि ज्यादेतर लोग इसे नकदी में ही करना पसंद करते हैं अतः ब्लैक मनी का इस्तेमाल इसमें बड़ा होता है. वसूली के लिए ऋण देने वाला असामाजिक तत्वों का सहारा लेकर अपना ब्याज वसूलते हैं जिससे ऋण लेने वालों में डिफ़ॉल्ट होने के बाद बेइज्जत होने का डर बैठ जाता है.
सरकार को चाहिए की ऐसे अवैध सूदखोरों पर लगाम लगाये, इसके नियमन और रोकथाम के लिए नया कानून बनाये और अपने माइक्रो फाइनेंस के नेटवर्क को और व्यावहारिक बनाये और बढ़ाये ताकि आम लोग अपने ऋण के लिए ऐसे गलत महाजनों के चंगुल में न फंसे जिसकी नीयत साफ़ ना हो और जिसका वसूली तंत्र अपराधिक हो. किसानों के भी आत्महत्या के प्रमुख कारणों में से भी यह एक प्रमुख कारण है जिसके कारण उनकी कृषि की लागत भी बढ़ जाती है, कृषि में नुक्सान अलग होता है और महाजन का मीटर अलग चालू रहता है.
ऐसा नहीं है की वसूली तंत्र सिर्फ इन महाजनों का ही ख़राब है, बहुत सारे निजी बैंकों और एनबीएफसी के वसूली तंत्र भी इनसे कम नहीं है. अगर आपने अपनी कार की किश्त चुकाने में देरी की तो कार आपके घर से खिंचवा ली जाएगी और आप देखते रह जाते हैं, वसूली करने आने वाले भी ऐसे होते हैं जिनको देखकर एक शरीफ आदमी उलझता नहीं है. विजय माल्या नीरव मोदी जैसे डिफाल्टरों को तो पूरा मौका मिलता है उसके बाद उनके ऊपर कारवाई होती है लेकिन छोटे छोटे लोन लेने वाले , क्रेडिट कार्ड लेने वाले के पीछे, यदि उनकी एक डेडलाइन मिस हो जाये, कुछ ही दिनों के अन्दर ये कम्पनियां अपनी वसूली एजेंटों को ऐसे पीछे छोड़ देती हैं जैसे आपके पीछे पूरी फ़ौज छोड़ दी गई हो. सुबह दोपहर शाम ये इतना आपको फोन करते हैं, आपके घर और दफ्तर आकर ऐसा धमकाते हैं कि आपको सांस लेने की भी फुर्सत नहीं रहती है. इन वसूली एजेंटों की एक ही जिद्द रहती है कि आज ही पैसा चाहिए चाहे आप कहीं से लाओ, अब आप बताओ यदि उस लोन लेने वाले के पास पैसा रहता तो चुका ही देता, उसके बार बार घर दफ्तर धमकने और तुरंत पैसा देने के भीषण दबाब से उसके मानसिक हालात पे क्या बीतती होगी उसे किसी ऐसे भुक्तभोगी व्यक्ति से पूछिए तो पता चलेगा, जबकि RBI तो NPA घोषणा हेतु अभी ९० दिन की मोहलत देती है, लेकिन ये वसूली एजेंट,क्रेडिट कार्ड कम्पनियां और एनबीएफसी एक दिन का भी टाइम देने को तैयार नहीं रहती हैं.
रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया को इस तरह के विशेष केस में जहाँ वसूली एजेंटों के माध्यम से क्रेडिट कार्ड कंपनिया, बैंक एवं एनबीएफसी अपना वसूली कराती है के बारे में सख्त रूख अपनाते हुए एक तय मानक प्रक्रिया बनानी चाहिए, यदि कोई भी कम्पनी या वसूली एजेंट इस तय मानक प्रक्रिया का उल्लंघन करे तो उसे सख्त से सख्त सजा का भी प्रावधान होना चाहिए, यह सिर्फ एक ऋण वसूली का मसला नहीं बनता है यह एक व्यक्ति के गरिमा और उसके और उसके परिवार वालों के जिन्दा बने रहने का भी सवाल बनता है. फोन कालिंग के द्वारा जो वसूली फॉलोअप होता है उसकी भी रिकॉर्डिंग और मोनिटरिंग होनी चाहिए ताकि कभी जाँच के समय मानक वसूली प्रक्रिया का पालन हुआ की नहीं को जाना जा सके.
यदि समय रहते रिजर्व बैंक और सरकार दोनों ने इस दिशा में ध्यान नहीं दिया तो जिस तरह से एनबीएफसी में एक के बाद एक संकट आ रहा है देश में इस तरह की घटनाएँ सुनना आम हो जायेगा. यदि व्यवसायिक कारणों से बड़े लोन वाले डिफ़ॉल्ट करते हैं और राहत पा सकते हैं तो ऐसी स्थिति छोटे लोन वाले के साथ भी हो सकती है, तो वह सब अधिकारों का इस्तेमाल इन छोटे लोन लेने वालों को भी बताया जाना चाहिए बजायइनकी गाडी खिंचवा के, घर दफ्तर पर आदमी भिजवा के.

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