हथेलियों में सिमटता बाजार


शनैः शनैः हमें अहसास ही नहीं हो रहा है लेकिन तेज गति से बदलते तकनीक ने पुरे बाजार को अभी अपने हथेलियों के बीच ला दिया है. अभी कुछ सालों पहले हम ईमेल के लिए डेस्कटॉप या लैपटॉप ही ढूंढते थे, आज हथेलियों में फंसे मोबाइल से ही ईमेल कर देते हैं, नई तकनीक के सभी मोबाइल आजकल के किसी भी तरह के अटैचमेंट खोलने के लिए अनुकूल होते हैं, अब ईमेल के लिए ऑफिस या साइबर कैफ़े जाने की जरुरत नहीं पड़ती है.

कुछ सालों पहले यदि हमें मोबाइल या कोई इलेक्ट्रॉनिक सामान खरीदना होता था तो हम अपने घर से निकलकर दुकान या मॉल जाते ही जाते थे, लेकिन जबसे अमेज़न और फ्लिप्कार्ट जैसी कम्पनियां आईं है मोबाइल या कोई इलेक्ट्रॉनिक सामान खरीदने का ट्रेंड ही बदल गया है लोग अब घर बैठे ही आर्डर कर देते हैं.

मुम्बई में तो घर से बाहर निकलने के एक मुख्य कारणों में डी-मार्ट या बिग बाजार से शौपिंग करना था अब वहां पेमेंट के लिए लग रही लम्बी लाइन से आजिज आकर लोग अब उनके या अन्य मिलते जुलते कम्पनियों जैसे की ग्रोफर्स, बिग बास्केट, डी-मार्ट आदि से मोबाइल एप से ही आर्डर मंगा ले रहें हैं.

घर से बाहर निकलने के एक अन्य कारणों में थिएटर में मूवी देखने जाना भी था अब वह भी युवा youtube या नई रिलीज मूवी को को अमेज़न प्राइम या Netflix पे देख ले रहा है और कई मूवी तो आजकल थिएटर की जगह मोबाइल मूवी अमेज़न प्राइम, Netflix, Zee 5 या youtube पे ही रिलीज हो रहीं है. ये नए प्लेटफार्म नवोदित एवं आधुनिक फिल्म निर्माताओं के लिए एक नए मौके और बाजार के रूप में सामने आये हैं जिनका कि एक टार्गेटेड ऑडियंस हैं और उसके लिए इनका अपना एक गणित है.

पढने के लिए कोचिंग, सीखने के लिए या ट्रेनिंग सेण्टर के लिये लोग पहले बाहर निकलते थे लेकिन अब यह भी कई लोग youtube से ही सीख ले रहें हैं. कई महिला अपने सिलाई कढाई का काम या खाने की नई नई रेसिपी इन ऑनलाइन प्लेटफार्म से ही सीख रहें हैं. अब दादा जी को फ़ोन या बिजली के बिल भरने के लिए भी बाहर नहीं जाना पड़ता उनका पोता फ़ोन से ही भर देता है.

बैंक भी अब हथेलियों में सिमट आया है लोग अब किसी को पेमेंट करने के लिए बैंकों का चक्कर या चेकबुक का इस्तेमाल कम कर दिए हैं और अब ज्यादेतर लोग शहरों में मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल करने लगे हैं तो गावों में फ़ोन पे और भीम जैसे प्लेटफार्म का. सरकार ने बहुउद्देशीय सेवाओं के एप उमंग के अलावा अन्य एप भी लांच करने लगी है.

फुटकर किराना और सब्जी के भुगतान लिए भी अब नगदी की जगह मोबाइल का इस्तेमाल होने लगा है. रेलवे का टिकट हो या आपका फ्लाइट का टिकट हो अब लाइन में लगने की जरुरत नहीं सब मोबाइल से ही हो जा रहा है. लोग पहले घर से बाहर निकल कर ऑटो टैक्सी को हाथ देते थे, उतरने पे फुटकर की भी समस्या होती थी लेकिन आजकल कार के साथ साथ ऑटो तक एप बेस्ड हो गए हैं और आप अपनी इच्छानुसार अपनी जगह बुला ले रहें हैं इसके लिए बाहर निकलने के लिए जरुरत नहीं है और यदि वालेट पेमेंट विकल्प है तो छुट्टे की भी समस्या खत्म. कम्पनी से इस खर्चे का क्लेम लेना भी आसान हो गया है क्यों की सबका ऑनलाइन रसीद मिल जाती है.

घर से बाहर जाकर खाना खाने का एक अवसर था, लेकिन जब से ज़ोमैटो स्विगी फ़ूडपांडा और उबरइट्स जैसी कम्पनियां आई हैं अब बड़ी संख्या में ऑनलाइन फ़ूड आर्डर हो रहें हैं घर बैठे.

पहले जो बाजार ऑफलाइन था वो वेबसाइट आधारित बिजनेस में बदला और अब एप बेस्ड बिजनेस में बदल रहा है. अब बदलते माहौल को देखते हुए व्यापार वर्ग भी इस प्लेटफार्म का हिस्सा बनने लगा है. अमेज़न फ्लिप्कार्ट ज़ोमैटो स्विगी जैसी अग्रीगेटर संस्थाओं ने अपने यहाँ बहुत से व्यापारियों का पंजीयन किया हुआ है और जिसके माध्यम से वह मौजूदा व्यापारिओं को टेक्नोलॉजी सपोर्ट देते हैं और बदले में अपना रेवेन्यु शेयर रखते हैं और इसके बदले में इन व्यापारिओं को अपना व्यापार बढ़ाने के लिए एक नया अवसर और विंडो मिल जाता है.

ओला और उबर जैसी कम्पनियों ने ड्राइविंग में भी उद्यमिता का एक नया विंडो खोला है. और ये सारे व्यापार जो हो रहें हैं वो मोबाइल के अन्दर बसे मोबाइल एप से हो रहें हैं तो बाजार में अब मोबाइल एप बनाने वाली कम्पनियों की संख्या बढ़ गई है. हथेलियों में बाजार का प्रभाव देखकर फेसबुक ट्विटर और इन्स्ताग्राम ने अपने यहाँ इनके प्लेटफार्म को यूज कर के कैसे आप अपना व्यापार बढ़ाएंगे इसके लिए पूरा एक सिस्टम बनाया हुआ है जहाँ आप अपने प्रोडक्ट या सेवा का प्रचार,विस्तार, पोस्ट बूस्ट, पेज प्रमोशन आदि कर सकते हैं इसके अलावा फेसबुक के पेज से आप बाकायदा आर्डर कर सकते हैं. फेसबुक ने बाकायदा मार्केटप्लेस प्लेटफार्म बना दिया है क्यूँ की इसको मालूम है की दुनिया की बड़ी आबादी और उनका वित्तीय व्यवहार अब मोबाइल में समा चूका है और उसका एक बड़ा हिस्सा उसके पास है.

हथेलियों में सिमटते बाजार से इकॉनमी और बाजार की तस्वीर तो बदल रही है लेकिन एक और चीज की तस्वीर बदल रही है वह है सामाजिक सरंचना और स्वास्थ्य की. लोगों के संवाद और उनका आपस में मिलना जुलना कम हो गया है. लोग एक कमरे में एक जगह पास पास होते हुए भी अपने अपने मोबाइल में खोये रहते हैं. समाज का एक बड़ा तबका अवसाद से घिर रहा है, फ़ोन काल आपके बेडरूम में और आप २४ घंटे एप्रोच में हैं, आपका अपना खुद का समय और खुद के लोगों के लिए समय पर मोबाइल ने कब्ज़ा कर लिया है, भावनाओं और संवादों ने व्हात्सप्प के इमोजी तस्वीरों की जगह ले ली है. अब लोग किसी के मरने पर मोबाइल पर,व्हात्सप्प ग्रुप में या फेसबुक पर RIP लिखकर ही छुटकारा पा जाते हैं अंतिम यात्रा तक जाने की जहमत नहीं उठाते हैं. त्योहारों पर मिलने जुलने या फ़ोन पर भौतिक बातचीत की जगह अब ब्रॉडकास्ट मेसेज भेजकर ही संवाद को सम्पूर्ण मान लेते हैं.

तकनीक ने हथेलियों में सिमटे एक नए बाजार और रोजगार के नए अवसर को तो पैदा किया ही है साथ में स्वास्थ्य उद्योग के लिए भी एक नया विंडो खोल दिया है जहाँ अब लोगों को लाइफ स्टाइल से जुडी समस्याएं बढ़ रहीं है. दोनों में संतुलन साधना आवश्यक है क्यूँ की ये बदलाव बड़ी तेजी से और अचानक हुआ है अन्यथा समाज और व्यापार को इस परिवर्तन की प्रसव पीड़ा को लम्बा झेलना पड़ सकता है.  

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