कुम्भ 2019 की इकोनॉमिक्स


आजकल प्रयागराज में अर्ध कुंभ लगा हुआ है और चूँकि उस सूबे के मुखिया सर्वप्रथम एक ऐसे सीएम के हाथ में हैं जो स्वतः नाथ सम्प्रदाय के गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर हैं अतः पुरे देश के साथ विश्व के लोगों का ध्यान इस कुंभ की व्यवस्था पर है और उस कसौटी पर खरा उतरने की चुनौती सीएम को भी है.

खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में स्पष्ट कर दिया था कि कुंभ भारतीय परंपरा के तहत एक सामाजिक आयोजन है धार्मिक आयोजन तक ही सीमित नहीं है, कुंभ में आने , स्नान करने पर किसी भी धर्म मजहब के लोगों को रोक नहीं है, अतः यह सबका आयोजन है इसे सिर्फ हिन्दुवों के आयोजन से जोड़कर ना देखें . बात सच भी है कुंभ में सामाजिक समरसता के रूप भी देखने को मिल रहें हैं जिसमें जहाँ एक और दलित महामंडलेश्वर भाग ले रहें है वहीँ महिला मंडलेश्वर एवं किन्नरों के भी अखाड़ा भाग ले रहें हैं. यह उन लोगों को भी सन्देश दे रहा है जो ये कहते हैं की हिन्दू धर्म में दलितों महिलाओं को उचित स्थान नहीं दिया गया है. यदि पुरे भारतीय सनातन संस्कृति का विहंगम दृश्य आपको देखना है तो वह कुंभ में दिख जायेगा.

कुंभ कब शुरू हुआ इसका तो बहुत पुराना इतिहास है जो अमृत मंथन से शुरू होता है और इस् पर कई विद्वानों के अलग अलग राय हैं, लेकिन एक सामाजिक एवं आर्थिक आयोजन को लेकर जो ऐतिहासिक प्रमाण और एक आर्थिक दृष्टि देखने को मिलती है वह ब्रिटिश काल से मिलती है. अंग्रेजों ने इस आयोजन के आर्थिक और सामाजिक निहितार्थ समझ लिए थे और उस समय की अंग्रेजी सरकार ने इस आयोजन के लिए शुल्क लेने की व्यवस्था चालू की थी. इस आय का कुंभ में हुए कुल खर्च से मिलान किया जाता था, इसके साथ ही खर्च नियंत्रण एवं जांच के लिए पिछले कुंभ में हुए खर्च से मिलान भी किया जाता था और इन खर्चों पे किसी घोटाले की सम्भावना को ख़त्म करने हेतु ऑडिट की व्यवस्था अंग्रेजों के द्वारा की गई थी. रिकॉर्ड के अनुसार अंग्रेजों ने १८९३-९४ के कुंभ में ५९४२७, १८९४-95 के माघ मेले में १२०७७ रूपये और १८९५ के माघ मेले में ११६१३ रूपये खर्च किये थे.

इस बार यूपी सरकार ने अब तक का सबसे बड़ा बजट ४२०० करोड़ रूपये कुंभ के लिए आवंटित किया है जो अब तक के हुए सभी बजट आवंटनों से अधिक है. सरकारी खर्च के अलावा लोगों के आवागमन के कारण जो वहां पे मुद्रा खर्च होगी और आर्थिक गतिविधियाँ होंगी अब उसका भी आकलन शुरू हो गया है. 15 जनवरी २०१९ को शुरू हुए और 4 मार्च तक चलने वाले इस अर्ध कुंभ मेले में होने वाले खर्च-बाजार को लेकर भी आर्थिक बाजार में खूब चर्चा हो रही है। इस बीच इंडस्ट्री बॉडी कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) ने एक अध्ययन किया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि इस आयोजन से उत्तर प्रदेश को करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न होगा। CII की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुंभ हालाँकि एक एक आध्यात्मिक और धार्मिक आयोजन है, लेकिन इससे जुड़ी आर्थिक गतिविधियों के कारण करीब करीब 6 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा।

CII के अध्ययन में बताया गया है कि  केवल हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में ही 2.50 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा, इससे जुडी एयरलाइन्स और एयरपोर्ट्स सेक्टर पर लगभग 1.50 लाख लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इसके अलावा टूर ऑपरेटर्स क्षेत्र में 45 हजार लोग तो उधर इको टूरिजम और मेडिकल टूरिजम में भी 85 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। टूर गाइड्स, टैक्सी ड्राइवर्स, उद्यमी सहित अन्य असंगठित क्षेत्र में भी लगभग 50 हजार नई नौकरियां पैदा होंगी। जिसके कारण सरकारी एजेंसियों सहित व्यापार की भी कमाई बढ़ेगी।

इस कुंभ मेले के आकर्षण के कारण दुनिया भर से लोग आ रहें हैं और प्रवासी दिवस की तिथि इसी बीच पड़ने के कारण बड़े पैमाने पर पुरे दुनिया में फैले भारतवंशी भी भारत में आ रहें हैं, आलम यह है की मॉरिशस से तो मॉरिशस एयरलाइन के जहाज ने अपने इतिहास में पहली बार वाराणसी के एअरपोर्ट पर लैंडिंग की. डायस्पोरा देशों के अलावा बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक भी यूके, कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, मलयेशिया, सिंगापुर, साउथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, जिम्बावे और श्रीलंका जैसे देशों से आ रहे हैं। कुंभ अब भारत का मेला नहीं इस सोशल मीडिया के ज़माने में एक वैश्विक मेला बन चुका है।

इस मेले से सिर्फ उत्तर प्रदेश की सरकार या उत्तर प्रदेश के व्यापारियों को ही फायदा नहीं हो रहा है इससे देश के टूरिज्म सेक्टर को भी बहुत फायदा हो रहा है, भारत आये लोग इसी बहाने भारत भ्रमण का भी प्लान बना कर आये हैं. मेले से सिर्फ उत्तर प्रदेश को तो 1.2 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिलने की उम्मीद है साथ ही साथ इसके पड़ोसी राज्यों जैसे राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के राजस्व में भी वृद्धि की सम्भावना है.

CII के अनुमान में सच्चाई दिखती है क्यूँ की इस कुंभ में करीब १५ करोड़ लोगों के आने की सम्भावना है और इतना बड़ा जमावड़ा पुरे दुनिया में इतने कम दिनों के अंतराल में कहीं संभव नहीं है. यह जमावड़ा खर्च के माध्यम से तो आर्थिक योगदान देगा ही, विज्ञापन कम्पनियों और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर के लिए वरदान साबित होगा. बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य होने पर इन्फ्रा व्यापार को भी बड़े लाभ होने की सम्भावना है तो इसी कुंभ के बहाने प्रयागराज के वर्षों से लंबित विकास कार्य भी संपन्न हो गए.

दुनिया का बड़ा से बड़ा फेयर भी इतने लोगों को इकट्ठा नहीं कर सकता जितना भारत के कुंभ मेले में हो जाता है, अतः जितनी मार्केटिंग कम्पनियां हैं उन्होंने भी अपना रूख भारत के लिए कर लिया है. इतनी बड़ी आबादी का प्रयाग की तरफ रूख देखकर कई प्रदेशों की सरकारी और निजी परिवहन व्यवस्थाओं ने प्रयाग के लिए विशेष परिवहन रूट निर्धारित किया है.

कुल मिला कर कुंभ भारत के आर्थिक धार्मिक और सामाजिक मजबूती के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन है और इस आयोजन के बहाने भारत को फिर से दुनिया में एक सबसे सुयोग्य टूरिस्ट स्पॉट के साथ एक सुयोग्य व्यापारिक अवसरों वाले देश के रूप में स्थापित किया जा सकता है.

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