2019 का बजट कैसा हो


जबसे ट्विटर ने लकड़ी के सूचना पट की जगह ली है तब से आधिकारिक सूचनाएं त्वरित गति से पब्लिक डोमेन में आ रही हैं, देर से ही सही पहली बार बजट पूर्व वित्त मंत्रालय ने बजट की शब्दावली और बारीकियों से ऑनलाइन वर्ल्ड में रहने वाले लोगों के लिए KNOW YOUR BUDGET कर के सीरीज ला रही है ताकि लोग इसकी शब्दावली और बारीकियों से परिचित हो सके उम्मीद है ऑफलाइन वालों के लिए भी ऐसी कोई सीरीज शुरू होगी. यह सीरीज आम बजट के महत्व को और इसकी प्रक्रिया को समझाएगी और यह सिलसिला पूरे पखवाड़े चलेगा।

इस बार वित्त मंत्रालय एक फरवरी को वित्त वर्ष 2019-20 के लिए अंतरिम बजट ही पेश कर पायेगी। अंतरिम बजट इसलिए पेश हो रहा है क्यों कि आने वाले कुछ ही महीनों मेंनई गठित सरकार द्वारा आम बजट पेश किया जायेगा जो किपूर्ण बजट होगा। मंगलवार को वित्त मंत्रालय के ट्विटर हैंडल से शुरु की गई यह सीरीज बताएगी कि कि बजट की बारीकियां क्या होती है, आम बजट क्या होता है, लेखानुदान क्या होता है, आर्थिक सर्वेक्षण क्या होता है आदि आदि।

 

अभी बजट को लेकर मंत्रालय ने बताया है कि बजट केंद्रीयसरकार के वित्तीय लेनदेने की जानकारी देने वाली विस्तृत रिपोर्ट है। बजट में सरकार के सभी स्रोतों से प्राप्त होने वाले राजस्व एवं विभिन्न मदों के लिए आवंटित व्यय की जानकारी होती है।"

 

मंत्रालय ने फिर आगे भी बताया है कि "इसमें सरकार के अगले आने वाले वित्त वर्ष के आय-व्यय के अनुमान भी दिए जाते हैं, जिन्हें बजट अनुमान के नाम से जाना जाता है।" वोट ऑन अकाउंट जिसे लेखानुदान भी कहते हैं, के बारे मेंसरकार ने जानकारी देते हुए बताया कि यह संसद की ओर से अगले वित्त वर्ष के कुछ समय में किए जाने वाले खर्च की अग्रिम अनुमति देता है।

 

हालाँकि सरकार बजट को लेकर जितना प्रचार प्रसार करती है मुझे लगता है उससे ज्यादे उसे इकनोमिक सर्वे जिसे आर्थिक सर्वेक्षण बोलते हैं उसका करना चाहिए. असल में यह सर्वे ही सरकार का रिपोर्ट कार्ड होता है. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से देश में, मीडिया में आम जनमानस में कभी भी इकोनोमिक सर्वे को लेकर उतनी उत्सुकता नहीं दिखती है जितनी उत्सुकता और चर्चा आप बजट को लेकर देखते हैं. दरअसल सबसे अधिक बहस और मीडिया में जगह इकोनोमिक सर्वे का ही होना चाहिए. बजट तो अगले वर्ष की एक रूप रेखा होती है और वह ज्यादे करदातावों और सरकारी मशीनरी के लिए महत्वपूर्ण होती है ताकि वो अपने आय और उसपे लगने वाले कर के भार और मशीनरी अपने खर्चे की योजना बना सके.

 

इकनोमिक सर्वे और बजट भी मेरे ख्याल से आगे पीछे एक साथ पेश करने की जरुरत नहीं है क्यूँ की बजट के मीडिया ग्लैमर के कारण इकनोमिक सर्वे पे ठीक से बहस नहीं हो पाती है और देश हमेशा आगे के बजट में ही उलझा रहता है. जब आप देश की एक एक फर्मों से सालाना आर्थिक चिटठा हिसाब किताब मांगते हैंउस सालाना हिसाब किताब का कई बार आप स्क्रूटिनी भी कराते हैं तो ऐसी व्यवस्था देश के हिसाब के साथ होनी ही चाहिए.

 

इसके तहत पहले इसके रिपोर्टिंग पीरियड को ठीक करना चाहिए, जो पुरे देश का वित्तीय वर्ष हो उसी आधार पे इकनोमिक सर्वे भी लेना चाहिए, उससे इतर अवधि का नहीं , अन्यथा तुलनात्मक अध्ययन नहीं हो पाता है . ऐसा करने से देश के आंकड़े तुलनात्मक अध्ययन के लिए प्रभावकारी और विश्वसनीय रहेंगे. इसके लिए वित्तीय वर्ष को जनवरी से दिसम्बर भी कर देना चाहिए यह विश्व के अधिकतम देशों के वित्तीय वर्षों से संगत भी रहेगा . सर्वे पे ज्यादे फोकस करने से वार्षिक परफॉरमेंस के वार्षिक रिपोर्ट इकोनोमिक सर्वे पे ज्यादे गंभीर और प्रभावकारी चर्चा हो सकेगी और उसी आधार पर संसद में मंथन के बाद अगले महीने पेश हो रहा बजट भी प्रभावशाली हो सकेगाइसके लिए विशेष सत्र के प्रावधान करने पड़ें तो सरकार को करना चाहिए.

 

लोगों को जानना चाहिए, अब सरकार ने GST लागू कर दिया है और उपभोग आधारित इस व्यवस्था में सरकार को पहली बार उपभोग और HSN कोड के आधार पर पता चलेगा की अमुक राज्य के नागरिक कर के रूप में कितना योगदान करते हैं और यह आंकड़ा जिला स्तर तक उपलब्ध होगा जिससे इसबार सरकार को जिलावार योजना बनाने में भी सहूलियत रहेगी.

 

इस बार करदाता जानना चाहता है कि उसे इस चुनावी साल में क्या तोहफा मिलने वाला हैजैसी कि खबर आ रही है उम्मीद है की सरकार करमुक्त आय की सीमा 5 लाख कर दे .  इस स्लैब सुधार के साथ ही जो वेतन भोगी जिनका टीडीएस काटा जाता है और वे अपने समस्त आय की जानकारी अपने नियोक्ता को दे ही देते हैं उनको आयकर रिटर्न भरने से मुक्त करना चाहिए यदि उनकी कोई अन्य आय न हो.

 

इस बार कॉर्पोरेट वर्ल्ड भी जानना चाहता है कि कार्पोरेट टैक्स की दर और घटाई जाएगी या नहीं, उसकी तो मंशा है कि MAT को कम किया जाये और DDT को तो ख़त्म ही किया जाये. हालाँकि इसमें से DDT तो ख़त्म होनी ही चाहिए या एक सीमा तक का लाभांश DDT मुक्त होना ही चाहिए.

 

इन सब के अलावा मैं तीन मुद्दे और उठाना चाहता हूँ । पहला जैसे नोटबंदी से पहले IDS जैसी स्कीम आई थी अब भारतव्यापी GST लागू के बाद पुराने सारे खत्म हुए अप्रत्यक्ष करों के लिए वन टाइम एमनेस्टी स्कीम लाई जाए ताकि विभाग पर भी ज्यादे कार्य का भार न पड़े और पुराने करों के जाल में फिर पड़ने से अच्छा देश का व्यापारी वर्ग पुराने मसले एक साथ निपटाकर देश में GST के साथ फ्रेश शुरुवात करे। जब तक पुरानी कर प्रक्रिया को क्लीन एग्जिट नही देंगे GST को पूर्णतया अडॉप्ट और लागू करने में समस्या होगी विभाग के स्तर पर भी और जनता के स्तर पर भी।

 

दूसरा इनकम टैक्स में एक अनुमानित आय की एक स्कीम है जिसके तहत करोड़ तक टर्नओवर में व्यापारी 8% लाभ घोषित कर उसपे आने वाला आयकर भर सकता है और उसके ख़र्चे की कोई जांच पड़ताल नही होगी। यदि वह 8% से कम आय घोषित करना चाहता है तो ऑडिट करा लें। फुटकर व्यापार के लिए यह प्रतिशत 5% है। अगर औसत निकालें तो टैक्स लगभग टर्नओवर के 1.5% से 2.४% के आसपास पड़ेगा और जब GST आने के बाद एक व्यवसाय के HSN कोड आधारित टर्नओवर को सत्यापित करने की जिम्मेदारी एक सरकारी मशीनरी ले ही रही है तो उसी HSN कोड आधारित टर्नओवर को आधार मानकर बिना किसी लिमिट के,  2% से ३% तक इनकम टैक्स भी वसूल ले। स्क्रूटिनी का झंझट ही खत्म। अब तो व्यापार में हर चीज का HSN कोड है उसी हिसाब से प्रगतिशील आयकर दर टर्नओवर के साथ वसूल लें। कम GST वाले पे कम आयकर का दर और ज्यादे पे ज्यादे। इसको लागू करने के बाद सैलरी पे आयकर ख़त्म ही कर देनी चाहिए क्यों कि खर्च के माध्यम से वसूल ही रही है सरकार । हां यदि वह वेतनभोगी विदेश में पैसा भेज रहा है मतलब भारत मे खर्च नही होने वाली तो उसपे भेजते समय टैक्स लगा लें।

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