Littoo लिट्टी चोखा और भोजपुरी


भोजपुरी के संवर्धन विकास के लिए मैं कई वर्षों से लगा हूँ. पढ़ाई के दौरान भी जब शहर आया तो आसपास के लोग कई मौकों पर खड़ी बोली ही बोलने का प्रयास करते थे, लेकिन अपनों के साथ अपनों के बीच मुझे कभी भी भोजपुरी बोलने में संकोच नहीं हुआ. कुछ  दोस्त तो ऐसे हैं जिनसे मैं आज तक सिर्फ भोजपुरी में ही बात करता हूँ, अपने कस्बों और घर के लोगों से चाहे किसी भी मीटिंग में रहूँ भोजपुरी में ही बात करता हूँ.

जब पढाई पूरी करके सीए की प्रैक्टिस गोरखपुर में कर रहा था वहीँ पे मुझे सन २००४ में मेरे मित्र शशिकांत यादव मिले जो भोजपुरी थिएटर पर काफी समय से काम कर रहे थे. हम दोनों मिले तो हम लोगों को लगा की भोजपुरी को अगर आगे ले जाना है तो इसके कला साहित्य पर कार्य करना चाहिए और इसके लिए भोजपुरी रंगमंच को फिर से मेन स्ट्रीम में पुनःस्थापित करना चाहिए. इस सम्बन्ध में हमने फिल्म अभिनेता राजा बुंदेला जी से भी बात की और उनके ही सुझाये नाम पर हमने परदेसिया कला संगम ट्रस्ट की स्थापना की और भोजपुरी रंगमंच की प्रस्तुति को हमने बड़े स्तर पर लखनऊ वाराणसी गोरखपुर और मुंबई में कराये. भोजपुरी में ज्यादे से ज्यादे पब्लिक डिबेट हो इसके लिए हमने गोलमेज बतकही मंच की स्थापना सन २००५ में की जिसके तहत अब तक इस मंच के माध्यम से हमने ३० से ज्यादे बतकही भोजपुरी एवं अन्य सामाजिक मुद्दों पर गोरखपुर, आगरा,मुंबई और मॉरिशस में आयोजित किया. इस अभियान में लोग जुड़ते गए और टीम बनती चली गई.

मुंबई में रहते हुए, मैंने पाया की भोजपुरी को आंठवी अनुसूची के लिए कई आन्दोलन चलाये गए, यहाँ तक की BHAI (BHOJPURI ASSOCIATION OF INDIA ) जिसका की मैं फाउंडर मेम्बर भी हूँ के बैनर तले बहुत प्रयास किये गए लेकिन प्रयास सफल नहीं हुआ. फिर मैंने भोजपुरी के इस विकास, आंठवी अनुसूची में स्थान और मेन स्ट्रीम में नहीं आने के कारणों के लिए मिसिंग कनेक्ट ढूंढने का काम चालू किया तो पाया की भोजपुरी की कई ऐसी चीजें हैं जो पब्लिक डोमेन में नहीं आ पाई हैं, जिसे जो मुकाम मिलना चाहिए था वो नहीं मिल पाया है. लोग भोजपुरी को इसके एल्बम और फिल्मों से कनेक्ट कर के देखते हैं जबकि कला संस्कृति के मामले में भोजपुरी इससे कहीं आगे है. दक्षिण के प्रदेश में घूमते हुए यह महसूस किया की दक्षिण के खाने तो दक्षिण में मशहूर तो हैं ही उत्तर पूरब पश्चिम यहाँ तक की विदेश तक प्रसिद्ध हैं, जबकि हमारा भोजपुरी खाना जिसकी चर्चा तो सब करते हैं लेकिन अभी तक मेनस्ट्रीम में नहीं आ पाया है.

अपने इन २० से अधिक सालों से भोजपुरी के विकास में लगे रहने के निचोड़ में मैंने यह निश्चय किया कि यदि मुझे भोजपुरी पे कुछ करना है, अपने २० सालों की मेहनत को सफल बनाना है तो उसे एक ऐसा रूप देना पड़ेगा जिसे मेन स्ट्रीम हाथों हाथ ले और भोजपुरी की वह पहचान बाहर आये जो अभी मेन स्ट्रीम में नहीं आ पा रही है. अपने २० से अधिक सालों के मेहनत निचोड़ और अनुभव को मैंने Littoo में उतारा और भोजपुरी खान पान संस्कृति के लिए Littoo ब्रांड की स्थापना की. और इसमें इस बात का ख्याल रखा की इस ब्रांड के तहत वही खाने बिके जो शुद्ध रूप से खांटी भोजपुरिया हो और उसमें तमाम दबाब के बीच में मेनू और रेसिपी में कोई समझौता नहीं किया. आज Littoo ब्रांड के तहत भोजपुरी का सबसे मशहूर खाना मुंबई जैसे शहर में मशहूर हो रहा है और अपने स्थापना से ही यह कई लाख पीस लिट्टी चोखा बेच चूका है, लिट्टी चोखा के अलावा कई भोजपुरी खाने जो घरों में कैद थे और बाजार के हिस्से नहीं थे उसे भी Littoo ने बाहर निकाला और अब आप निमोना,तेहरी, दाल पीठा, चेउवां फरा, जलेबी, सत्तू पराठा, सत्तू लस्सी, दाल पराठा, बफौरी, लाई चना, कचालू, घुघनी, देसी घी हलवा, आलू भुजिया मिक्स राइस, देसी तड़का, बेसन फिश वेज, गट्टे की सब्जी, आलू गोभी तरकारी, दाल भात तरकारी, आलू परवल सब्जी, कुंदरू आदि आदि खाने इस ऑनलाइन चेन से मंगा सकते हैं. आज यह ब्रांड दो निर्माण मैनूफैक्च्रिंग यूनिट के साथ मुंबई में रन कर रहा और अपने आगे और नए फ्रैंचाइज़ी पार्टनर के साथ मुंबई के अन्य हिस्सों के साथ अब दक्षिण और गल्फ देशों की ओर प्रस्थान करने वाला है.

हमारा ऐसा विश्वास है कि Littoo के माध्यम से हम भोजपुरी खान पान की संस्कृति को बढ़ावा देकर भोजपुरी खाने को मेन स्ट्रीम में लाकर भोजपुरी को मजबूत और संरक्षित कर सकते हैं.

 

     

 

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