रोजगार को कृषि से जोड़ना पड़ेगा

पुरे देश में कुल कृषि जोत लायक भूमि NSSO के अनुसार ९ करोड़ ५० लाख हेक्टेयर है जिसे एकड़ में २३ करोड़ ४७ लाख एकड़ कह सकते हैं और जो पुरे विश्व में कृषि जोत भूमि के लिहाज से एक बड़ा शेयर रखती है. दरअसल कृषि भूमि एक प्राकृतिक कारखाने की तरह है जो अपने आप में कारखाना भी है और प्लांट एवं मशीनरी भी है, यदि इस बिजनेस के भाषा में समझाया जाय तो. मौजूदा कृषि संकट के कई कारणों में से एक कारण किसान पुत्रों एवं युवाओं का कृषि से मोह भंग होकर रोजगार के दुसरे अवसरों की तरफ पलायन है जिससे किसान अपने पुत्र सहयोग से वंचित तो हो ही रहा है वह उस नवाचार तकनीक और ज्ञान और जोश से भी वंचित हो रहा है जो एक युवा से उसे मिल सकता है. किसान के पास उसकी एक पुरातन पध्वती है उसमें वह सुधार कर के कई बार तो अच्छा उत्पादन कर ले जाता है लेकिन बाजार का पूर्वानुमान और विपणन विशेषज्ञ नहीं होने के कारण वह कई बार लागत नहीं वसूल पाता है और उसका दिवाला निकल जाता है जिसकी परिणिति अवसाद एवं आत्महत्या के रूप में कई बार बाहर आता है.


सरकारों के लिए भी कृषि और रोजगार एक चुनौती के रूप में है. सरकार इस चुनौती से पार पा सकती है यदि वह रोजगार और कृषि को एक दुसरे का पूरक बना दे इससे वह कृषि एवं रोजगार दोनों समस्या को साध सकती है.


रोजगार के एक मुद्दे का बारीक अध्ययन करें तो सामान्यतया युवा सरकारी नौकरी के आकर्षण में होता है उसके बाद पेशेवर युवा कॉर्पोरेट नौकरियों के आकर्षण में होता है. यदि इन दोनों के बीच का मुख्य कारक पकड़ें तो वह है आकर्षण, मने युवा उसी तरफ झुकता है जिधर वह आकर्षित होता है,आकर्षण का मुख्य कारण उसे वहां आय और निश्चिन्तता दिखती है, जो सिर्फ आय के आकर्षण में होते हैं वह कॉर्पोरेट जॉब में जाते हैं और जो निश्चिन्तता को प्राथमिकता देते हैं वह सरकारी नौकरी में जाते हैं लेकिन मोटे तौर पर युवाओं का जो बड़ा तबका अपने आपको बेरोजगार कहता है मतलब कि वह उद्यमशीलता की तरफ नहीं मुड़ा है, और यदि उसका आकर्षण कृषि की तरफ मोड दिया जाए तो वह कृषि की तरफ मुड़ जायेगा, क्यूँ की आज की तारीख में ज्यादेतर युवा को आय पसंद है.


अगर उन्हें यह आंकड़ा पता चल जाए की कृषि में असीमित आय की सम्भावना है तो उन्हें कृषि की तरफ मोड़ा जा सकता है इससे कृषि और रोजगार दोनों मुद्दे का समाधान हो जायेगा. आय की क्या प्रबल सम्भावना है उसका पहला उदाहरण मै देता हूँ जो की केंद्र सरकार के कृषि रिपोर्ट में भी उल्लिखित है. श्री गोविंदराज, दंडनाहल्ली गाँव जिला रामनगर कर्नाटक के निवासी हैं और एकीकृत कृषि प्रणाली अपना कर यह अन्य के लिए रोल मॉडल बन गए हैं. ईन्होंने किसान विकास केंद्र की तकनीकी सहायता के साथ अपने 6 एकड़ खेत में उन्होंने विविधतापूर्ण खेती की शुरुवात की और जहाँ पहले यह वर्ष में शुद्ध आय इस ६ एकड़ खेत से १.५० लाख कमाते थे अब वह ७ लाख प्रति वर्ष कमाते हैं. दूसरा उदाहरण तमिलनाडु का है, श्री थंगारासू,  एक 62 वर्षीय प्रगतिशील किसान, गाँव कुवागाम, अरियालुर, तमिलनाडु के हैं, इनके पास १० एकड़ जमीन है, इन्होने भी किसान विकास केंद्र की सहायता से अपने एक एकड़ जमीन पर रजनीगंधा की खेती की शुरुवात की. उसके कुल खर्च ६०००० हुए जिसमे कीटनाशक, सिंचाई, उर्वरक, श्रम के खर्चे हैं. प्रति दिन वह ३० से ३५ किलों फूल बेचता था जिससे रेगुलर इनकम हो गई और शादी के मौसम में ज्यादे डिमांड होने पर अच्छी कमाई कर लेता था. अब वह तकनीक एवं किसान विकास केंद्र के सहयोग से ४२०००० रुपये प्रति एकड़ कमा लेता है. कहने का आशय है की इश्वर प्रदत्त विश्व का सबसे सफल भूमि रूपी कारखाना और भूमि रूपी प्लांट अपने पास है बस युवाओं की दृष्टि इस पर डलवाने का प्रयास करना चाहिए की भाई यह भी एक फैक्ट्री है, प्राकृतिक फैक्ट्री और इस्पे आय की अनंत संभावनाएं हैं, यदि इस पर वह अपने ज्ञान और जोश की दृष्टि डालें तो आय के साथ साथ ही वह अपने परिवार, समाज, गाँव और नगर को भी अपनी उपस्थिति से मार्गदर्शन दे सकते हैं. 

कृषि की तरफ युवाओं का आकर्षण न होने का दूसरा कारण, भारत मे पेशेवर शिक्षा के बाद युवा वर्ग गाँव मे रहना ही नहीं चाहता है कारण गाँव में उसे शहरों जैसी सुविधा नहीं मिलती है। बड़ी बारीकी से इन सुविधाओं का आप अध्ययन करेंगे तो इसमे इस नव युवा वर्ग को क्या चाहिए, बस 24 घंटे बिजली, इंटरनेट, बच्चों के लिए अच्छा स्कूल, अच्छी चिकित्सा सुविधा, परिवहन के लिए अच्छी सड़क और वीकेंड मनाने की जगह तो युवा खुद ब खुद खोज लेता है।

 

अगर इन समस्याओं को रेखांकित कर इसपर कार्य किया जाए तो युवाओं को गाँव में ही रोककर कृषि के प्रति आकर्षण विकसित कर सकते हैं. सरकार की तरफ से मौजूदा स्थानीय श्रम और ब्रेन पलायन को रोकने के लिए बुनियादी स्तर पर निम्न उपाय किए जा सकते हैं। रोजगार परक पाठ्यक्रम जैसे की एमबीए, इंजीनियरिंग, आईटीआई, आईआईटी मे कृषि को आवश्यक एवं रोचक एवं आकर्षक विषय के रूप मे प्रस्तुत करे। कृषि के लिए सर्वोत्तम सप्लाई चेन का विकास करे जिसमे कार्गो एयरपोर्ट से लेके अन्य क्षृंखला बद्ध चीजें हों । इन शिक्षावों के बाद इनके अनुप्रयोगों को विकसित कर के जैसे की इस तरह के कृषि, कृषि पूर्व और कृषि पश्चात एग्रो पार्क एवं स्थानीय ऐसे उद्यमों को विकसित करना जहां इस शिक्षा का उपयोग किया जा सके। कस्बों को विकसित कर शहरी पलायन कम करना और वहीँ पर मिनी औद्योगिक पार्क विकसित करना. रोजगार के विभिन्न विकल्पों के विकास के साथ साथ कृषि एंटरप्रेन्यूर को बढ़ावा देते हुए विशिष्ट वैज्ञानिक कृषि प्रबंधन को बढ़ावा देना एवं इसके फंडिंग को आसान बनाना। अगर सरकार शहरों की तरह पलायन रोककर इन मूलभूत और आधारभूत सुविधावों को गावों और गावों के आसपास बसे कस्बों के इर्द गिर्द विकसित कर दे तो इन युवाओं का शहरी पलायन रोका जा सकता है और इनका आकर्षण कृषि की तरफ बढ़ सकता है। इससे किसानों की समस्या को तो साधा जा सकता है रोजगार की समस्या को भी साधा जा सकता है.  

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