एक गवर्नर का इस्तीफा

एक गवर्नर का इस्तीफा

बीते १० तारीख को रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के गवर्नर ने अप्रत्याशित रूप से इस्तीफा दे दिया जिससे यकायक बाजार और देश चौंक गया. हालाँकि उनके इस्तीफा देने के तुरंत बाद ही जैसे प्रधानमन्त्री मोदी और वित्त मंत्री जेटली ने उनके तारीफ़ में कसीदे गढ़े और उन्हें उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें दी उससे लगता था कि उन्हें इस निर्णय की पहले से जानकारी थी और उन्हें 5 राज्यों के चुनाव तक रुकने को कहा था, और चुनाव खत्म होते और परिणाम से १ दिन पहले और रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के आगामी बैठक से ठीक कुछ दिन पहले ही उर्जित पटेल ने दोनों की पूर्वजानकारी और सहमति से इस्तीफा दे दिया.  शायद वह आगामी बोर्ड की बैठक में न जाना चाहते हों या उनके निजी कारण उस बैठक से ज्यादे महत्वपूर्ण हों, या उस बैठक में होने वाले निर्णय का उन्होंने पूर्वानुमान लगा खुद को स्वतः ही अलग कर लिया हो. हालाँकि ये कयास तो बोर्ड की बैठक के परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन समय उनके इस निजी कारण का हवाला देखकर दिए गए इस्तीफे को तर्कसंगत नहीं मानेगा. ऐसे समय में जब ग्लोबली क्रूड आयल के भाव गिर रहें हों, आयात सस्ता होने वाला हो, निवेश के तौर पर भारत एक आकर्षक स्थल बनने वाला हो उनका यह कदम विदेशी संस्थागत निवेशकों के मन में संशय पैदा कर सकता है और यदि उन्होंने पैसा निकालना चालू कर दिया तो भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लग सकता है.
कुछ भी हो उर्जित पटेल को आगामी बोर्ड की बैठक का सामना करना चाहिए था अगर कोई उनकी असहमति थी तो उसे दर्ज कराते या उस पर बृहद चर्चा कराते हो सकता इस चर्चा के मंथन से कोई अच्छी और नई चीज निकल के बाहर आती. जितना प्रयास वह देश के लिए वह सिस्टम में रह के कर सकते थे अब तो बाहर आने के बाद तो वो सिर्फ इंटरव्यू ही दे सकते हैं जिसका कि कोई मतलब नहीं, जब आप अन्दर रहकर कुछ नहीं कर पाए तो बाहर आकर न्यूज़ चैनलों को इंटरव्यू देने का कोई मतलब नहीं रह जायेगा.
हालाँकि जो मार्केट में चर्चा है की रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया पर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को तरलता प्रदान करने, ११ बैंकों के ऊपर प्रांप्ट करेक्टिव एक्शन के तहत जो प्रतिबन्ध लगे हुए हैं जिसके कारण ये ११ बैंक ना तो अपना विस्तार कर सकते हैं और ना तो लोन दे सकते हैं को ढील देने का दबाब था जिसके लिए रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया तैयार नहीं था. एक चर्चा और भी थी की रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के तीन लाख साठ हजार करोड़ पर सरकार की नजर थी जिसके लिए रिज़र्व बैंक तैयार नहीं था, हालाँकि सरकार ने इस पर अपना रुख साफ़ कर दिया था कि उसकी ऐसी कोई मंशा नहीं थी. अतः वास्तविक कारण क्या था ये तो आने वाला समय या अगली रिज़र्व बैंक की बोर्ड मीटिंग में ही पता चलेगा.
इस विवाद के संकेत तभी दिखाई देने लगे थे जब एक समारोह में डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपने उद्बोधन में इशारों इशारों में कहा था की अर्जेंटीना की सरकार जब वहां के रिज़र्व बैंक के खज़ाने को हथियाना चाहती थी, तब इसके गवर्नर ने इसके विरोध में इस्तीफा दे दिया था और कैसे इस इस्तीफे के बाद वहां तबाही आ गई. ऐसा लग रहा था विरल आचार्य यह घटना जो होने वाली है उसके तरफ इशारा कर रहें हों और उन्हें मालूम हो की उर्जित पटेल इस्तीफा देने वाले हैं ताकि सरकार की तरफ से संवाद कर करेक्टिव एक्शन लिया जा सके, लेकिन दुखद है की इसे रोका न जा सका. अगले साल सितंबर 2019 में उर्जित पटेल का कार्यकाल पूरा हो रहा था और उर्जित पटेल 5 सितंबर 2016 को रघुराम राजन के जाने के बाद गवर्नर बने थे. विरल आचार्य के इशारे और इसके तुरंत कुछ माह बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर का इस्तीफा देना देश के लिए सुखद एवं सामान्य खबर नहीं है.
इस इस्तीफे पर पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि 'आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल द्वारा इस्तीफा एक गंभीर चिंता का विषय है और एक सरकारी कर्मचारी द्वारा इस्तीफ़ा देना विरोध का प्रतीक होता है एवं पूरे देश को इसे लेकर चिन्तित होना चाहिए. ऐसे समय में जब उर्जित पटेल निजी कारण बताकर निकल लिए हैं रघुराम राजन जिस चिंता की तरफ इशारा कर रहें है उसे और साफ करना चाहिए कि क्यों उर्जित पटेल के इस्तीफे को लेकर पूरे देश को चिन्तित होना चाहिए? जब  उर्जित पटेल का इस्तीफा विरोध का प्रतीक है तो उसके क्या मायने हैं? क्यूँ की ऐसी चीज़ों को साफ साफ देखने की जरुरत है, विरल आचार्य को भी अगली मीटिंग में इस बात पे स्पष्टीकरण देना चाहिए की क्या उन्हें इसकी निश्चित सूचना प्राप्त थी या बस एक पूर्वानुमान था जो संयोग से सच हो गया.
इस इस्तीफे पर रेटिंग एजेंसी फिच का मत है कि इस इस्तीफे ने सरकार के पॉलिसी प्राथमिकताओं के जोखिम को उजागर किया। फिच के अनुसार सरकार ने कुछ परेशान बैंकों को उधार देने की अनुमति देने के लिए तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) थ्रेसहोल्ड को आराम देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को असफल रूप से धक्का दिया है और यह खराब ऋण समस्याओं को हल करने के लिए आरबीआई के प्रयासों की प्रगति को कमजोर कर सकता है। अंतर्राष्ट्रीय संस्था मूडी ने भी प्रत्यक्ष तो नहीं इशारों इशारों में कहा है की सरकार द्वारा आरबीआई की आजादी को कम करने का कोई भी संकेत क्रेडिट रेटिंग को नेगेटिव करेगी और उसने विश्वास व्यक्त किया है कि आरबीआई मुल्यन और वित्तीय स्थिरता का का कार्य जारी रखेगा और इन लक्ष्यों के प्रति अपनी निर्धारित नीतियों को लागू करेगा।"

उर्जित पटेल का इस्तीफा खुद ही भारत के आर्थिक भविष्य को  बहुत बदलने वाला नहीं है लेकिन यह सिस्टम को एक फिसलन ढलान की तरफ ले जा सकता है जो एक पुराने विचार को बल देगा जिसमे कहा गया था कि एक केंद्रीय बैंक सिर्फ वित्त मंत्रालय का एक विभाग है, जो दिन की सरकार की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए मौजूद है, और जरुरत पर रुपये प्रिंट करता है। उनके इस्तीफे ने और उसके निजी कारण का सवाल एक व्यक्ति का सवाल नहीं है बल्कि एक गहन संस्थागत व्यवस्था का सवाल है, अच्छा होता यदि वह इसे पेशेवर कारण बता के जाते या बोर्ड अटेंड कर के जाते कम से कम वह सीना तान कर निकल तो सकते थे।

अबकी कमान विदेशों के प्रसिद्द विश्वविद्यालयों में पढ़े लिखे अर्थशास्त्रीयों की बजाय दिल्ली यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र नहीं इतिहास से एमए किए एक आईएएस शशिकांत दास पे सरकार ने भरोसा किया है, आशा है वह इतिहास के बहाने कम से कम कौटिल्य का अर्थशास्त्र तो पढ़े होंगे, और ऐसे जटिल मौके पे जब इस्तीफे से उपजे माहौल को पूरा विश्व और तरलता के दबाब में त्राहिमाम त्राहिमाम करता देश उनकी तरफ देख रहा है वह लॉन्ग टर्म इलाज के साथ साथ कुछ संजीवनी भी तुरंत देंगे ताकि अर्थव्यवस्था इतना तो जिन्दा रहे कि वह उसका लॉन्ग टर्म इलाज कर सकें. किताबी विशेषज्ञों की जगह देखते हैं अपने लम्बे प्रशासकीय जन अनुभवों का वह कैसा इस्तेमाल करते हैं.

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