प्रश्न - राजमोहन जी आपने अपने करियर की शुरुवात कैसे की?
स्कूल जाने के वक़्त १६ साल के
उम्र में ही मेरा मन संगीत में लगने लगा था. भाई बहन दोस्त रिश्तेदारों से पैसे
लेकर मैं म्यूजिक रिकॉर्ड शॉप पे जाकर रिकॉर्ड खरीदता था. २० साल की उम्र में
संगीत की रूचि के चलते मैंने स्कूल छोड़ दिया, हालाँकि मम्मी ने कुछ बोला नहीं. भाई
और मम्मी से सहयोग लेकर मैं चुपचाप संगीत सीखता रहा, उन्हें ये नहीं पता था की मैं क्या कर रहा हूँ, बस यह पता था की राज मोहन कुछ अच्छा ही कर रहा होगा. 21
साल की उम्र में मैंने लिखना शुरू किया और ३ साल बाद मैंने छोटे मोटे प्रोग्राम
करना शुरू कर दिया. मै शुरू से गजल गायक बनना चाहता था और जब एमस्टरडम में हमारे
गुरु जी हमसे मिले तो हमको एक राह दिखी.
प्रश्न - इसमें आपके परिवारवालों का क्या योगदान किया हैं?
मेरे परिवार में मेरी मम्मी,
मेरी पत्नी और हम लोग सात भाई बहन हैं. ५ भाई और २ बहन, मेरा नंबर बीच में आता है ३ ऊपर हैं और ३ नीचे. पिता जी की
मृत्यु बहुत पहले ही हो गई थी , मुझे सहयोग मिला मेरी माँ, भाई लोग और रिश्तेदारों से. उन लोगों से मै पैसे लेता था
और संगीत सीखता रहता था. एक दिन मैंने अपनी माँ से बोला की मै संगीत सीखना चाहता
हूँ तो उन्होंने मना नहीं किया.
प्रश्न - आपने किन बातों को ध्यान में रखकर भोजपुरी गजल औऱ
रैप गीतों को गाने का नया तरीका निकाला?
मै १६ साल की उम्र से ही सोचता
था की मेरे भाषा सरनामी-भोजपुरी भाषा में गजल क्यूँ नहीं है, पॉप क्यूँ नहीं है, रैप क्यूँ नहीं है. जब मै दुकान पर जा के दूकानदार से
भोजपुरी गजल का कैसेट मांगता था तो वह भगा देते थे, बोलते थे हमारा भाषा उस लायक का नहीं है की उसमे गजल बन
सके. ये बात मुझे कचोटती थी, फिर लोगों से मिला और पूछा की क्या भोजपुरी में गजल
लिखा मिल सकता है ? या कोई लिख सकता है? तो लोगों ने मेरा मजाक उड़ाया. बोला जो गीत
वगैरह गाते हो वही गाओ. २८ साल की उम्र में मैंने निर्णय किया की मुझे भोजपुरी में
गजल पॉप और रैप गाना है. जब दुसरे भाषा में हो सकता है तो हमारे भाषा में क्यूँ
नहीं. मैंने कहा एक भाषा कमजोर कैसे हो सकती है कि उसमे नूतन विधा गजल, रैप और पॉप नहीं आ सकता है? शुरू में मैंने शेर लिखना चालू
किया रोमन में. गजल के रोमन भाषा में उर्दू की डिक्शनरी खरीदी. और ३४-३५ साल की
उम्र में खुद लिखना चालू किया. मुझे ४ साल लगा लिखने में. शुरू में गीत गजल में
कोशिश किया. फिर पहला एल्बम रिकॉर्ड किया “कंट्रकी”. कंट्रकी शब्द कॉन्ट्रैक्ट से
बना हुआ है क्यूँ की हमारा पलायन भारत से कॉन्ट्रैक्ट पर ही हुआ था. फिर मै क्या
करता था जब बड़े बड़े शो में जब मुझे गाने का मौका मिलता था तो उसमे मैं बीच में
भोजपुरी पॉप घुसा देता था, देखा की बहुत बढ़िया रिस्पांस
मिल रहा है. एक बार गोरे लोगों को कोई शो करना था, उन्होंने पोस्टर में मेरा फोटो
देख के मुझे ढूंढ के बुलाया और अपने एक इवेंट में गेस्ट सिंगर के रूप में मौका
दिया. जिसमे मेरा कॉन्सर्ट बहुत पसंद आया, जिसके बाद मुझे इस बात का प्रमाण मिल गया था की भोजपुरी
में भी पॉप रैप और गजल बन सकता है, एक भाषा नूतन प्रयोग से कभी हार नहीं सकती है. भोजपुरी गजल
के शब्द तो पहली बार अचानक ही मेरे मुंह में आ गए, एक बार अपनी बीबी के साथ बैठा था की मेरे मुंह से निकल पड़ा
“न जाने कईसे बोलूं तोसे, जान हमरा बाटू तू” फिर लगा गजल
तो हो गया, क्यूँ नहीं बन सकता भोजपुरी
में गजल.
प्रश्न - आपके गुरु कौन हैं और उन्होंने आपको कब से कब तक
सिखाया?
हमारे गुरु उस्ताद जमालुद्दीन भारतीय थे, उनसे मेरी
मुलाकात एमस्टरडम में एक कार्यक्रम के दौरान हुई थी. उन्होंने ही मुझे संगीत की
बारीकियां सिखाई. करीब १० साल तक मैं उनके सानिध्य में रहा, जिसमे करीब ४ साल तक प्रभावी रूप से उनसे मैंने सीखा. आज
जो भी मैं अच्छा गाता हूँ उनमे उनका श्रेय है. वह थे तो राजस्थान के , लेकिन मुंबई
के वर्सोवा में रहते थे.
प्रश्न - आपकी और रग्गा मन्नो की मुलाकात कैसे हुई?
रग्गा मन्नो एक भोजपुरी रैप सिंगर है. इनका असली नाम मनोज
है. इनकी पत्नी मुझे जानती थी और करीब २० साल पहले ये हमारे संपर्क में आये. और
तबसे हम लोग साथ में हैं. आज के यंग जनरेशन में इनका भोजपुरी रैप काफी लोकप्रिय है
और खासकर के बासी भात पे बना गाना भूजल भात जिसका मतलब होता हँ की जब बासी भात को
फ्राई कर के घर में दिया जाता है.
प्रश्न - आपके बैंड के बारे में कुछ बताइए?
हमारा दो बैंड है एक पॉप बैंड
जो कि मेरे नाम राज मोहन बैंड के नाम से जाना जाता है जिसमे मेरे अलावा ६ गोर लोग
हैं. मुझे बैंड बनाने में मेरे गोर मित्र Lourens Van Haften का बड़ा साथ मिला, इन्होने पहली बार अपने गोरे बैंड में मुझे शामिल किया और
बाद में मैंने इनके साथ मिलकर ही पॉप बैंड बनाया. और दूसरा बैंड है जिसका नाम BAISEKO (बैसेको), इसमें ८ लोग हैं इस बैंड का म्यूजिक तो क्रियोल
है लेकिन गाने सारे भोजपुरी हैं, आप इसे भोजपुरी क्रेयोल का फ्यूज़न
कह सकते हैं. पॉप बैंड शुरू किये ६ साल हो गए और बैसेको शुरू किये ३ साल हो गए. इस
बैंड के माध्यम से , सोलो भी करीब दक्षिण अमेरिकी देशों, यूरोप के कई देशों, बेल्जियम, जर्मनी, पोलैंड में कई शो हो चुके हैं. हमारे बैंड में गोरे लोग
म्यूजिक बजाते हैं और मैं गाता हूँ. भारत में भी प्रोग्राम दे चूका हूँ. भारत में
नितिन चंद्रा ने गिरमिटिया पर एक अल्बम मेरे साथ मिलकर बनाया था.
प्रश्न - आपके फेमस अल्बम्ब का नाम बताइए?
मेरा फेमस अल्बम दायरा है, गिरमिटिया के ऊपर बना “कंट्रकी” एल्बम है, दुई मुट्ठी है. दुई मिट्ठी तो इतना फेमस है की भारत में हर
जगह लोग इस गाने को सुनने की फरमाइश करते हैं जिसमे गिरमिटिया पलायन का दर्द बयां
है. अभी हम भारत हनुमान चालीसा पे एल्बम शूट करने आये हैं जिसकी शैली बहुत फ़ास्ट, रैप पर है और एकदम अलग है.
प्रश्न - फिर दोबारा हिंदुस्थान में आपको कैसे लग रहा हैं?
ऐसा लग रहा है कि अपने घर आ गया
हूँ, सूरीनाम और नीदरलैंड तो एक
मल्टी कल्चरल समाज है जिसमें क्रेयोल, इंडोनेसिया चाइना के लोग हैं. सूरीनाम में मेरा जन्म हुआ
था और १२ साल की उम्र में मै नीदरलैंड आ गया था. जब २४ साल की उम्र में मै जब भारत
आया तो जिधर भी देखता था तो भारतीय ही दिखते तो मेरे मुंह से निकला की अरे यहाँ तो
सब अपने ही दिख रहें हैं, रिक्शा वाला, दुकान वाला, कार वाला, बच्चे बूढ़े जिधर देखों सब अपने भारत के लोग हैं जबकि
सूरीनाम में नीदरलैंड में तो कई देशों का मल्टी कल्चरल समाज दीखता था. वो जो जीवन
की पहली अनुभूति मुझे हुई और आज तक होती है उसे मै शब्दों से बयां नहीं कर सकता, मतलब चारों ओर अपने लोगों के बीच. मै तो शुरू में आया तो
भारत के बड़े बड़े शहरों में जाता था दिल्ली, मुंबई, कोलकाता लेकिन जब पहली बार मै
यूपी बिहार के गाँव में गया तो लगा तो जो अनुभव और लगाव मुझे उन गाँवों से लगा
वैसी अनुभूति मुझे दुनिया में कहीं नहीं मिली. मुझे अब वहां के गाँव में रहना खाना
पीना ही अच्छा लगने लगा और हमरे मूंह से निकला “अरे ई त हमार घर बा”. जैसे एक घर
में आँगन, देहरी और घर के अन्दर के कमरा
होला वैसे हमके लागेला कि सूरीनाम नीदरलैंड हमार आँगन और देहरी ह “घर त हमार भारत
ही ह”. हम अपने पूर्वज के वजूद से कैसे इनकार कई सकीना. ई हमार सच्चाई ह की हमनीके
भारत से हइं.
प्रश्न - आप सूरीनाम और नीदरलैंड में गिरमिटिया पे कुछ
बताइए.
हम लोग यूपी बिहार से गए थे. मेरे पिता जी की तरफ बिहार के छपरा
के मंगलपुर थाने के एक गाँव से १९०८ में गए थे और माँ की तरफ से लोग १८९४ में यूपी
के बलिया जिले से गए थे. मुझे बड़ा गर्व है की मेरे अन्दर यूपी बिहार दोनों का खून
है. जहाँ से हमारे लोग गिरमिटिया के रूप में गए थे. थाने में लिखा पढ़ी के बाद
कलकत्ते में कुछ दिन एक ही डिपो में रक्खा जाता था, फिर सफाई खातिर एक ही रंग के कपडा सफ़ेद कपडा में ही
कलकत्ते के जहाज में चढ़ा दिया जाता. फिर त एक साथे रहना, खाना पहनना के साथ जात पात उस जहाज यात्रा में ही
खत्म हो गया था, वहां पर जात पात
जैसी कोई चीज नहीं है, धर्म है. वहां
पे हम लोग जुड़े हुए हैं, कोई पूछता है तो हम बोलते हैं भाई देखिये हम आपकी
अंग्रेजी व डच जो भाषा है बोलते हैं , आपको टैक्स देते हैं, लेकिन हमारी एक पहचान
भारतीय है जिसे हम नहीं खो सकते हैं. हमारी जड़ भारतीय है उसे हम कैसे भूल सकते
हैं.
प्रश्न - आप वहां से अपने पूर्वजों को कैसे खोजते हैं.
सूरीनाम के लोगों को अब अपने पूर्वज खोजने में आसानी हो गई
है क्यूँ की सूरीनाम सरकार ने गिरमिटिया के साथ उस समय हुए सारे कॉन्ट्रैक्ट को
डिजिटल कर दिया है अब हम घर बैठे अपने जड़ों और गाँवो के बारे में जान सकते हैं.
प्रश्न - सूरीनाम में भोजपुरी संस्कृति कैसे जीवित है
देखिए हम यहाँ से क्या ले गए थे, मजदूर बन के गए थे तो कोई शास्त्रीय संगीत तो सीखे नहीं थे
लोक गीत, खान पान और संस्कार गीत लेकर गए थे और वह आज भी वहां सबके जबान पर है.
वहां लोकगीत को बैठक गीत बोलते हैं शादी ब्याह और ख़ुशी के मौके पर बैठक गीत होता
है वहां पर. वहां लोकगीत और खानपान के रूप में आज भी भोजपुरी जिन्दा है और वहां के
80% लोग भोजपुरी बोलते हैं.
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