NBFC और बाजार


आज की तारीख में सभी वित्तीय संस्थाएं सतर्कता मोड में चली गई हैं, और खासकर के गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनिया जिसे आम बोलचाल की भाषा में एनबीएफसी कहा जाता है. आईएल एंड एफएस संकट , एनपीए का बढ़ता दबाब और RBI और सरकार के बीच मीडिया में द्वन्द की ख़बरों के बीच सारी निगाहें दिसम्बर में होने वाली RBI की मीटिंग पर टिक गई हैं. बाजार में किसी भी बैंक के पास बड़े लोन के लिए एप्रोच के लिए जाने पर यही जबाब मिल रहा है कि ऊपर से अभी निर्देश है की सधे क़दमों से लोन देना है और कोई भी बड़ा निर्णय दिसम्बर की RBI की मीटिंग के बाद लेना है. बैंको और खासकर के एनबीएफसी के इस रवैये से रियल एस्टेट और निर्माण कम्पनियों को गंभीर तरलता संकट का सामना करना पड़ रहा है जिसका क्रमिक प्रभाव इनसे जुड़े उद्योगों पर भी पड़ रहा है. हालात ऐसे हो गए हैं की कई मामलों में  जो ऋण पहले से ही  स्वीकृत हैं वह भी वितरित नहीं हो पा रहें हैं और निर्माण से जुड़ी ऋण योजनाओं के तहत जो ऋण पहले स्वीकृत हुए थे उसमें भी संस्थाओं ने हाथ टाइट कर लिया है. पिछले माह में आईएल एंड एफएस द्वारा पुनर्भुगतान की चूक की श्रृंखला से जो स्थिति पैदा हुई और उसके क्रमिक प्रभाव के कारण  म्यूचुअल फंड और अन्य वित्तीय संस्थाओं ने  वाणिज्यिक पेपर (सीपी) बाजार में पैसा लगाना बंद कर दिया , जबकि  वाणिज्यिक पेपर (सीपी) एनबीएफसी के लिए वित्त पोषण का एक प्रमुख स्रोत है, जिसके तहत वह पैसा उठाती थीं। एक अनुमान के अनुसार 22 लाख करोड़ रुपये के एनबीएफसी कारोबार के लगभग 15% फण्ड एनबीएफसी कम्पनियां  वाणिज्यिक पेपर के माध्यम से ही जुटाती हैं। अनुमानित रूप से 50,000 करोड़ रुपये के वाणिज्यिक पेपर (सीपी) दिसम्बर में परिपक्वता के स्टेज पर हैं, और एनबीएफसी के पास पहले ही तरलता संकट पड़ा हुआ है ऐसे में इनके परिपक्वता की तिथि नजदीक आने से एनबीएफसी और बाजार दोनों में डर पैदा हो गया है, इनके सम्पत्ति और दायित्व का अनुपात गड़बड़ होने से एनबीएफसी के साथ साथ बाजार भी डरा हुआ है। आजकल कई एनबीएफसी कम्पनियां अपना टारगेट व्यवसाय नहीं कर पा रहे हैं जो वो अमूमन आम तौर पर करती हैं. मौजूदा दौर की यह  समस्या और तरलता संकट तो छोटे एनबीएफसी के लिए तो और भी डरावनी हैं की वह अपने पेपर का भुगतान कैसे कर पाएंगी. एनबीएफसी में उत्साह आवास नीति के निर्माण से ही आई थी, और देश में जब पहली बार राष्ट्रीय आवास नीति बनी तो निजी संस्थाओं के द्वारा इनके वित्त पोषण की आवश्यकता महसूस की गई और इसके कारण ही आज कई हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां बाजार में हैं और उनमें से तो कई कम्पनियां आज पब्लिक डिपाजिट भी स्वीकार करती हैं. भारत में बैंकों के अलावा नए विकल्पों के रूप में इन संस्थाओं द्वारा वित्त पोषण करने से निर्माण, हाउसिंग, ऑटो मोबाइल, मशीनरी उद्योग  को पहले से ज्यादे तीव्र गति से ऋण मिलने लगे और देश के इकॉनमी की गति का पहिया तेज घुमने लगा, क्यों की ऋण देने के मामले में एनबीएफसी कम्पनियां बैंकों की तुलना में काफी आक्रामक तरीके अपनाने लगीं और खुद ही यह वित्त पोषण करने वाली कम्पनियां अपने ग्राहकों के पास जाने लगीं, जबकि इससे पहले ग्राहक को ही अपने वित्त प्रदाता बैंक के पास लाइन लगाने पड़ते थे. हाउसिंग इंडस्ट्री और ऑटो मोबाइल उद्योग में जो हालिया बढ़ोत्तरी हुई है वह इन एनबीएफसी कम्पनियों द्वारा आक्रामक तरीके से बाजार में ऋण वितरण के कारण ही था, जिसने इन उद्योगों की बिक्री और नगद संग्रह को मजबूत किया.  मौजूदा तरलता संकट को देखते हुए यह आशंका उठ रही है कि क्या एनबीएफसी की ये आक्रामकता और वित्त बाजार पे उनकी यह बढ़त अब खत्म होने वाली है? क्या अब अब ज्यादे सतर्क हो जाएँगी, क्या २० साल पहले वाली स्थिति फिर आ जाएँगी, क्या उद्योगों की गति अब धीमी हो जाएगी?  अब तक एनबीएफसी ने ऋण की बढ़ती मांग,  बैंकिंग के परम्परागत मॉडल की कमियां  आदि का फायदा उठाकर छोटी छोटी अवधि का ऋण उठाकर अपने आप को विस्तारित किया है, लेकिन अब उन्हें अपने इस वित्त पोषण मॉडल का फिर से पुनर्विचार करना होगा अपने संपत्ति और दायित्वों के बीच संतुलन बनाना होगा, और छोटी अवधि के वित्त को लेकर लम्बे अवधि के ऋण वितरण से बचना होगा. पिछले पांच वर्षों में लगभग ऋण बाजार की आधी वृद्धि एनबीएफसी और हाउसिंग फाइनेंस कम्पनियों से आया है, और शीर्ष 10 पैरा बैंकों ने इसमें अपना लगभग 30% योगदान दिया है।  आज अधिकांश एनबीएफसी के पास अल्पकालिक ऋण हैं, जिससे वो दीर्घकालिक उधार देते रहें हैं और इधर की इन हालिया फंडिंग हालात ने अब इस सेगमेंट को केंद्रीय बैंक से कुछ विशेष रियायतों की दरकार पैदा की है। पिछले कुछ वर्षों में अल्पकालिक उधारों का अनुपात बढ़ रहा था क्योंकि एनबीएफसी प्रायः लंबी अवधि के वित्त लेने में संकोच कर रहे थे, जो की इस मौजूदा हालात का एक कारण भी है। इस हालात को देखते हुए RBI ने बैंक वित्त पोषण और अल्पकालिक उधार पर एनबीएफसी के निर्भरता को देखते हुए संपत्ति-दायित्व दिशानिर्देशों को और मजबूत करने की अब इस आवश्यकता को पहचाना है। अपनी तरलता संकट को मेंटेन करने के लिए हाउसिंग फाइनेंस कम्पनियां अपनी संपत्ति बैंकों को बेच रहीं है और कई बड़े बैंक एनबीएफसी से पोर्टफोलियो खरीद रहें हैं. म्यूचुअल फंड से जो प्रवाह एनबीएफसी या हाउसिंग फाइनेंस कम्पनियां  को जाता था वो फिलहाल बाजार के आत्मविश्वास और प्रवाह पर निर्भर करेगा लेकिन हाल फिलहाल में इसे और आगे बढ़ने की संभावना नहीं है। लेकिन इस दौर में भी एनबीएफसी के पास जो सबसे अच्छी आशावान चीज है वह है उनकी ग्राहकों तक पहुँच और विपणन रणनीति , जिसे वो अपने मौजूदा स्व वित्त पोषण मॉडल और संपत्ति- दायित्व के अनुपात में मजबूती कर अपने बिजनेस को प्रॉफिट मॉडल में बदल सकती हैं. एनबीएफसी कम्पनियां अपनी सम्पति-दायित्व अनुपात के जोखिम को कम करने के लिए लम्बी अवधी के ऋण लेने की तरफ मुड़ सकती हैं, ताकि इनके लौटाने के लिए पर्याप्त समय मिले और इसे वो बांटकर पर्याप्त लाभ कमा लें जिससे इनके परिपक्वता के समय इसका आसानी से भुगतान हो जाये.       

 

 

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