अयोध्या में राम मंदिर क्यों बनना चाहिए

आज पुरे विश्व में फैले व्यापक समाज ईस्लाम का मुख्य धार्मिक स्थल मक्का है और वह उन्ही का है, ईसाई का वेटिकन सिटी है, वह भी उन्ही का है, बुद्ध धर्म का लुम्बिनी और कुशीनगर है वह भी उन्ही का है, लेकिन इसी विश्व के सबसे पुराने और व्यापक समाज हिन्दू जो की ईस्लाम एवं ईसाई के आगमन से पूर्व से ही हैं, जिनकी संख्या आज १०० करोड़ के आसपास है, उनके धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से उनके दो सबसे महत्वपूर्ण अवतारी ईश्वर श्री राम और श्री कृष्ण और विश्व की सबसे प्राचीन नगरी काशी, उस पर किसी और का दावा फंसा दिया गया और आज उस समाज को उसके ईश्वर के मंदिर के आस्तित्व के लिए जूझना और लड़ना पड़ रहा है, यह इस देश के व्यापक समाज के हित में नहीं है.
जैसे विश्व के व्यापक समाज ईस्लाम के लिए मक्का, ईसाई के लिए वेटिकन सिटी और बौद्धों के लिए लुम्बिनी कुशीनगर है वैसे हिन्दुवों के लिए यह नेचुरल है कि वह अयोध्या, मथुरा और काशी को मानें, यह नेचुरल सत्य और अधिकार है और इससे यदि छेड़छाड़ हो रही है मतलब व्यापक समाज से छेड़छाड़ हो रही है और जिसकी प्रतिक्रिया होना भी नेचुरल है.
भारत का जो वर्तमान समाज है वो आजादी के बाद के ७० साल से यहाँ नहीं है या अरब व्यापारी के सन ६३० के आगमन के बाद, आठवीं सदी में मोहम्मद बिन कासिम या दसवीं सदी में गजनी के आक्रमणकारी आगमन के बाद या बुद्ध के आविर्भाव के २५०० साल से यहाँ नहीं है, भारत में जो भी १२५ करोड़ का व्यापक समाज निवास करता है उसका ९९% हिस्सा यहीं पर इसके भी हजारों साल पूर्व से निवास करता है, चाहे वो आज हिन्दू , मुसलमान, ईसाई या बौद्ध हो, वह हजारों साल से यहीं है, उसके पुरखे यहीं के हैं. उसी समाज में से जब बुद्ध का आगमन हुआ तो एक संख्या बुद्ध के उपदेशों पर चलने लगी, और जब अरबी व्यापारियों और इस्लामिक शासकों का आक्रमण हुआ तो एक संख्या बड़ी संख्या मुसलमान बनी, लेकिन जो परिवर्तन इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा हुआ वह एक टीस दे गई और जिसका कारण उस समय समाज में परिवर्तन बौद्धों की तरह ना होकर, परिस्थितियों के अलावा दबाब, भय, लालच के कारण हुआ, ठीक उसी तरह एक बड़ी संख्या ईसाई भी बनी और यह परिवर्तन भी बौद्धों की तरह न होकर योजनाबद्ध तरीके से हुआ. आज आप पाएंगे की भारत के इस व्यापक समाज में हिन्दू धर्म के लोगों का और बौद्धों का कोई वैसा संघर्ष नहीं पाएंगे, लेकिन हिन्दू-ईसाई और हिन्दू-मुसलमान के बीच आपको विवाद सुनाई देगा, उसका कारण ही यही है की जो भारत के व्यापक समाज का कम्पोजीशन २५०० साल से परिवर्तित हुआ उस कम्पोजीशन को ईसाई धर्माचार्यों और मुसलमान शासकों ने बौद्धों की तरह न करकर दबाब, भय, लालच और योजनाबद्ध तरीके से किया जिसमें स्वाभाविक परिवर्तन की मात्रा बहुत कम थी और तभी से एक सामाजिक विभिन्नता की नींव पड़ी. हालाँकि हजारों वर्षों के कारण साथ रहने से सामाजिक समरसता पे तो वह प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन मुस्लिम शासकों ने और उनके प्रशासन ने शासन में दोहरी नीति बना के रक्खी थी. इन मुस्लिम शासकों ने जो एक आक्रमणकारी के रूप में भारत में प्रवेश किए थे इन्होने न सिर्फ दबाब, भय, लालच से ईस्लाम का विस्तार किया बल्कि इन्होने यहाँ मंदिरों को भी तोड़ा, जिसकी टीस सैकड़ों साल से हिन्दू व्यापक समाज के अन्दर आज भी दबी पड़ी है.
इस टीस और मसले का हल यही है की भारत के मुस्लिम समाज को खुद आगे आकर अपने पूर्ववर्तियों द्वारा की गई गलतियों का करेक्शन कर देना चाहिये. इस मसले का हल मुस्लिम समाज को ही करना है जिसमें मुस्लिम समाज अब तक फेल रहा है, जिसके कारण जब तब दोनों समुदायों के मध्य तनाव पैदा हो जाता है. जो टीस मुस्लिम शासकों ने दी थी वह आज भी हस्तांतरित होते हुए अन्दर दबी पड़ी है. आज यदि मुस्लिम समाज आगे बढ़ कर, यह कहता है की उसके पूर्व के शासकों द्वारा जो गलतियाँ की गई हैं जिनमें प्रमुख रूप से यहाँ के व्यापक समाज के इश्वर के मंदिर का ध्वंस है उनमें जो सबसे पुण्य स्थल अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि है मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि है और काशी विश्वनाथ है वहां वह स्वतः मंदिर बनवाने में सहयोग करेंगे तो यह पुरे विश्व को भारत के १२५ करोड़ भारतीयों की तरफ से भारतीय दर्शन का एक परिचय होगा.
देश के मुसलमानों को यह समझना चाहिए बाबर के एक सेनापति मीर बांकी द्वारा बनाया मस्जिद और १०० करोड़ हिन्दुवों के इष्ट श्री राम के जन्मभूमि के बीच कोई तुलना ही नहीं है. ढांचा जो गिरा वह एक नेचुरल घटना थी जिसे उन्हें अपने स्वाभिमान से नहीं जोड़ना चाहिये और दूरदृष्टि दिखाते हुए अयोध्या मथुरा और काशी में आकर खुद करेक्शन करना चाहिये. उन्हें मंथन करना चाहिये की इस मसले का हल कैसे निकालें. इस देश में गाँधी द्वारा दिए गए मन्त्र प्रायश्चित का इस्तेमाल कर वो इस देश में शांति स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं.
वैसे भी मस्जिद और मंदिर की कोई तुलना ही नहीं है. मंदिर एक नियत धार्मिक स्थान होता है जहाँ इश्वर की प्राण प्रतिष्ठा होती है और जहाँ इश्वर का निवास स्थापित किया जाता है जबकि मस्जिद एक सामाजिक स्थान इबादतगाह के रूप में होता है जहाँ उनके समाज के लोग इकठ्ठा होकर अपने इश्वर की उपासना करते हैं और अपने समाज के मसले पे चर्चा करते हैं. मंदिर जहाँ इश्वर का निवास है वहीँ मस्जिद इश्वर के उपासना के लिए उस समाज के जन की जगह है इसलिए जन की जगह और इश्वर के निवास की वैसे भी कोई तुलना नहीं है जबकि यह तो श्री राम के जन्मभूमि के मंदिर का मसला है.
अयोध्या मसले में मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी कैमरे पे तो बोलते हैं की इस मसले का हल निकलना चाहिए मंदिर बनना चाहिए आदि आदि और कोर्ट फैसला करे. लेकिन इस मसले का हल उनको भी मालूम है कैसे निकलेगा और इसकी आसान चाभी भी उनके ही पास है, लेकिन समाधान का ताला उनके पास से ही नहीं खुल रहा है, कोर्ट ने तो रास्ता दिखा ही दिया है की यह दीवानी विवाद है और वह इसे उसी तरह सुलझाएगा, मतलब इसमें दोनों पक्ष अगर चाहें तो बाहर बैठकर सुलह कर सकते हैं. अब उनके पास एक जमीन है जो इस देश के व्यापक समाज के लिए उसके इष्ट श्री राम की जन्मस्थली है और अंसारी साहब कहते हैं कि इस पर उनका हक़ है और कई साल पहले मीर बांकी ने इस पर मस्जिद बनाई थी, अब उन्हें इस स्थान की महत्ता का खुद अनुमान लगाकर जमीन मंदिर के लिए समझौता कर दान कर देना चाहिए, इसके बदले में उन्हें यदि कोई क्षतिपूर्ति चाहिये तो इसकी भी मांग कर लें, टंगड़ी फंसा के वह खुद देश के हिन्दू मुसलमानों के बीच तनाव पैदा कर रहें है और कहते हैं की मसला बातचीत से हल हो और मंदिर बने वह यह भी चाहते हैं, तो बताएं बनेगा तो वहीँ न जहाँ जन्म हुआ है तो यह दोहरी बाते क्यूँ, किसके दबाब में में वो देश को प्राकृतिक विरोध की तरफ धकेल रहें हैं. एक छोटी सी पहल उनके तरफ से पुरे देश में सामाजिक सौहार्द्र की एक युगांतकारी मिसाल हो सकती है. इसपर निर्णय उनको लेना है, कि इस देश के व्यापक समाज और देश के १०० करोड़ हिन्दुवों के इष्ट श्री राम के जन्म भूमि जिसपर वह दावा कर रहें हैं उसमें वो आगे कैसे बढ़ते हैं.

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