अर्थशास्त्र, गिर के शेर और अमिताभ बच्चन

अर्थशास्त्र, गिर के शेर और अमिताभ बच्चन

सनातन अर्थशास्त्र में सापेक्षता के नियम का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है । सनातन अर्थशास्त्र के अनुसार जब वह स्थैतिक से गतिमान की तरफ सफर करता है तो उसकी गतिमानशीलता का मूल्यांकन सापेक्षता के नियम से होता है। पूरे ज्ञात या अज्ञात ब्रह्मांड मे जितने भी साधन हैं वो एक दूसरे के लिए तभी आर्थिक कारक होंगे जब उनके सापेक्ष उनका कोई मूल्य होगा अन्यथा सर्व संभावनाएँ होते हुए , पूर्ण गतिमान होते हुए भी अर्थशास्त्र के पैमाने पर मापन नहीं हो पाएगा, हालांकि संभावनाएं और शक्तियाँ पूरी होंगी उस गतिमान कारक में।

इस विचार को मैं एक बहुत ही रोचक उदाहरण से समझाता हूँ और ये उदाहरण भी मुझे एफ़एम पर अमिताभ बच्चन का एक विज्ञापन  सुनते हुए आया था। गुजरात का प्रचार करते हुए एक जगह अमिताभ कहते हैं कि गिर के जंगल मे एक बार शेर को देखकर उनकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी, इस विज्ञापन में अर्थशास्त्र की सापेक्षता के सूत्र छुपे हुए हैं। मतलब शेर के सामने अमिताभ लाख चिल्लाएँ मैं अमिताभ , मैं अमिताभ बच्चन हूँ, बॉलीवुड का महानायक हूँ आदि आदि, लेकिन शेर के लिए इसका कोई मोल नहीं है। सर्व गतिमान, सर्व प्रतिभा सम्पन्न अमिताभ का शेर के सामने कोई मूल्य नहीं है, अमिताभ को अपना मूल्य पाने के लिए उनके सामने ऐसा साध्य रूपी सापेक्ष होना चाहिए जो उनका वाजिब मूल्य दे सके अन्यथा अमिताभ मतलब कुछ नहीं, शेर के लिए बस कुछ किलोग्राम के मीट।

सनातन अर्थशास्त्र सापेक्षता के नियम के साथ संतुलन की भी बात करता है अर्थात विकास के पैमाने पर अगर सापेक्षता में मूल्य का महत्व बढ़ता जाता है तो वो एक गोले की भांति एक दिन उसका मूल्य ऊंचाई से गिरते हुए शून्य होते जाता है। उदाहरण के लिए अमेरिका ने विश्व में आर्थिक और सामरिक दबदबा बनाने के लिए परमाणु बम बनाए, और अगर एक दिन उस परमाणु बम का उपयोग हो जाए और दुनिया मे कोई भी नहीं बचे सिवाय चंद अमेरिकियों के तो वो इस दुनिया में रह कर और परमाणु बम लेकर क्या करेंगे, ना तो उनके परमाणु बम के और ना तो उनके उत्पादों का कोई खरीददार होगा और वे वस्तुएं जो परमाणु बम के इस्तेमाल से पहले अति मूल्यवान माने जाते रहे होंगे वो अब सापेक्षता के चरम पर विकास के मूल्य के दोहन के कारण बिना मूल्य के हो गए क्यों की सापेक्षता का चक्र घूम के फिर उसी बिन्दु पर आ गया जहां से शुन्य मूल्य की शुरुवात हुई थी।

ठीक उसी तरह आप पर्यावरण का उदाहरण ले सकते हैं अंधाधुंध विकास की दौड़ मे पृथ्वी पर स्थित पर्यावरण एवं प्रकृति की उपेक्षा की जा रही है ताकि प्रत्येक क्षेत्र अपने को सबसे शक्तिशाली और विकसित घोषित कर सके, लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जब सापेक्षता के चरम पर विकास चला जाएगा और वहीं से उसकी उल्टी गिनती शुरू होगी और फिर शुरूआत होगी महा जीवविनाश की, फिर न तो जीव रहेंगे और न जन्तु और मानव, और फिर अब तक किए गए विकास का उपभोग करने वाला कोई नहीं रहेगा , मानव जाति सभ्यता के विनाश के कारण फिर अपनी यात्रा सभ्यता के शुरूआती विकास से करेगा, समय चक्र फिर से घूम जायेगा।

इसीलिए सापेक्षता के नियम का संतुलन और संतुलन बिन्दु का ज्ञान होना अति आवश्यक है साधनों के स्थैतिकता के गतिमान की यात्रा मे सापेक्षता का चरम बिंदु ही अर्थशास्त्र का चरम पड़ाव होता है।

ऊपर उदाहरण में आपने देखा कि गिर के शेर के लिए अमिताभ का मूल्य अभिनेता अमिताभ बच्चन नहीं है उनकी उपयोगिता उसके लिए एक आहार के रूप में कुछ किलोग्राम के मांस के रूप में हैं. अतः अर्थशास्त्र में किसी कारक का मूल्य सापेक्षता और इससे जुडी आवश्यकता समय स्थान एवं स्थिति ही निर्धारित करता है जिसमें यह शामिल होता है की कारक जहाँ जिस बाजार विस्तार में उपलब्ध हैं वहां उसके सापेक्ष उसका प्रयोग करने वाला क्या मूल्यांकन करता है. उसका जो मूल्यांकन वहां होता है वही उसका उस बाजार में मूल्य होता है ,हो सकता है कि एक समान उत्पाद का बाजार में अलग अलग मूल्य हो क्यूँ की यह सदैव निर्भर करता है की सापेक्षता के नियम के अनुसार दुसरे तरफ वाला उसका क्या मूल्यांकन करता है, कई बार ब्रांड के नाम पर भी एक समान उत्पाद का अलग अलग मूल्य होता है और खरीददार के लिए उपयोगिता सिर्फ उसके प्रयोग को लेकर नहीं होती है वह उसके ब्रांड वैल्यू को भी महसूस करता है और उसका भी मूल्य देता है. इसलिए सापेक्षता के नियम के तहत मूल्य रुपण में भौतिक और अभौतिक दोनों कारक काम करते हैं.

मूल्य वह होता है जो एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति को सौदे के तहत देने के लिए तैयार रहता है. यह मूल्य सापेक्षता और इससे जुडी आवश्यकता समय स्थान एवं स्थिति के हिसाब से परिवर्तनशील रहता है. हो सकता है कि एक ही वस्तु एक समय पर अन्य मूल्य का हो और अन्य समय पर दुसरे मूल्य का हो, एक स्थान में एक मूल्य का हो और दूसरे स्थान में दुसरे मूल्य का हो एक परिस्थिति में एक मूल्य का हो और दूसरी परिस्थिति में दुसरे मूल्य का हो. मूल्य को सापेक्षता, और सापेक्षता को आवश्यकता के अलावा समय स्थान स्थिति भी निर्धारित करती है.

जब सापेक्षता व्यक्तिगत स्तर की हो तो दो लोगों के बीच या दो घनिष्ठ समूहों के बीच इसके आवश्यकता की तीव्रता ही सापेक्षता का मापन करती है और यह सापेक्षता समय स्थान एवं स्थिति से मूल्य का मापन करती है. उदाहरण के तौर पर एक फल वाला जब आम मुंबई के चाल वाले इलाके में बेचता है तो ५० रुपये किलो और जब वही आम हीरानंदानी पवई इलाके में बेचता है तो 80 रुपये किलो बेचता है. आम तो वही है और सौदे भी दो लोगों के मध्य है लेकिन स्थान के कारण हुए इस सौदे में मूल्य बदल जाता है. इसी तरह के उदाहरण आपको समय एवं स्थिति को लेकर मिल जायेंगे. समय को लेकर तो सबसे सटीक उदाहरण रेलवे का तत्काल टिकट एवं समय एवं स्थिति का सटीक उदाहरण फ्लाइट का टिकट है. इसलिए मूल्य हमेशा सापेक्षता और इससे जुडी आवश्यकता समय स्थान एवं स्थिति के हिसाब से निर्णित होती है.

सर्वोत्तम मूल्य का मतलब उस सौदे, वस्तु या सेवा का महत्तम अनुकूल मूल्य प्राप्त करना. जरुरी नहीं महत्तम मूल्य ही सर्वोत्तम मूल्य हो इसे अनुकूलतम भी होना चाहिए. हर सौदे, वस्तु या सेवा का एक सर्वोत्तम मूल्य होता है, चूँकि मूल्य परिवर्तनशील होता है तो कई बार सापेक्षता और इससे जुडी आवश्यकता समय स्थान एवं स्थिति के अनुसार हम उस सौदे, वस्तु या सेवा का महत्तम मूल्य नहीं प्राप्त कर पाते हैं. मतलब यदि कोई व्यक्ति सर्व गुण संपन्न होते हुए भी उसके योग्यता के लायक कंपनी में जॉब नहीं पाने पर वह अपने योग्यता अनुसार वेतन नहीं प्राप्त कर सकेगा, यहाँ उस कंपनी की एवं देश की आर्थिक स्थिति से उसका मूल्य प्रभावित हो रहा है. उसकी योग्यता हो सकती है २ लाख रुपये महीने मूल्य प्राप्त करने की हो लेकिन वह प्राप्त कर रहा हो १ लाख रुपए जिसमें वह सुखी है, यदि वह सुखी है तो यहाँ २ लाख रुपये उसका महत्तम मूल्य है एवं १ लाख रुपये सर्वोत्तम मूल्य. लेकिन यदि वह १ लाख रुपये में स्थिति समय स्थान का कोई प्रभाव नहीं है और वो फिर भी १ लाख पा रहा है तो उसका सर्वोत्तम मूल्य होगा २ लाख रुपये जो उसे आसानी से जॉब चेंज करने पे मिल सकता है.

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