अनिवार्य कार क्रशिंग नीति आवश्यक



विकास का जो मौजूदा दौर चल रहा है यदि उसमें विकास के समकक्ष दूसरा उदाहरण निकाला जाय तो वह उम्र होगी। जैसे जैसे उम्र कम होती जाती है हम उसके कम होने का जश्न मनाते रहते हैं, ठीक वही विकास के साथ है, मौजूदा विकास,पृथ्वी पे संकट का वातावरण दिन प्रतिदिन का निर्माण कर रहा है और हम अपने आपको विकास के पैमाने पर आगे बढ़ा हुआ मान रहें हैं। हमारा ग्रह इस अनजान अन्तरिक्ष में लटका हुआ है और अपने आसपास के ग्रह के खगोलीय संतुलन से बंधा हुआ है, यह अपने उत्पत्ति के सूत्र से भटका हुआ है और गुरुत्वीय बल के कारण चिपककर हम भी इस अन्तरिक्ष में लटके हुए हैं। हम सब इस अनिश्चित वातावरण मे एक काल को निश्चित मानकर अपना जीवनचर्या और सामाजिक व्यवहार का निर्माण और विकास कर रहें हैं, लेकिन हमें नहीं मालूम कि इस लटके हुए ग्रह के अनिश्चित वातावरण में कुछ अनिश्चित खतरों को हम निश्चित खतरों में बदल रहें हैं। जरा सोचिए यदि ओज़ोन परत का छेद बढ़ता जाता है, पृथ्वी का वायुमंडल गरम हो जाता है, पृथ्वी पे जनसंख्या और मशीनों का भार बढ़ता जाता है, ये सब सिर्फ पृथ्वी पर ही संकट नहीं पैदा करेंगे ये सब खगोलीय संतुलन को भी छेड़ सकते हैं,ऐसा मेरा मानना है, हालांकि मैं गलत भी हो सकता हू, लेकिन ये मेरी आशंका है, और यह बात तो माननी पड़ेगी कि पृथ्वी के पारिस्थिकी संतुलन के साथ साथ हमें खगोलीय संतुलन को भी साधना होगा अगर लंबा चलना है तो।

इस संतुलन साधने के कड़ी में जो सबसे पहला विषय मैं उठाना चाहता हूँ उसमें ग्लोबल वार्मिंग और कचरा है, और उसके अनेक कारणों में से जो पहले कारण पे विश्लेषण के साथ, हल क्या हो सकता है कि चर्चा करना चाहता हू, वह है गाड़ियों के द्वारा प्रदूषण और उनके स्क्रैप, क्यूँ कि इस जाड़े के महीने में स्मोग भारत के दिल्ली एवं अन्य उत्तर भारत के शहरों में एक बड़ा खतरा बन के सामने आ रहा है। हालांकि सरकार सोच रही है फिर भी त्वरित गति से सरकार को डीजल गाड़ियों की बिक्री पूर्णतः बंद करवा देनी चाहिए एक चरणबद्ध कार्यक्रम के तहत, और सिर्फ सीएनजी गाड़ियों की खरीद एक तय सीमा के बाद अनिवार्य कर देना चाहिए, तथा इलैक्ट्रिक वेहिकल को बढ़ावा देते हुए चहुंओर से उसे प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि जनमानस इलैक्ट्रिक वेहिकल और सीएनजी पर शिफ्ट हो। 5 वर्ष के बाद पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों का भी उत्पादन बंद करवा के सिर्फ सीएनजी एवं इलैक्ट्रिक वेहिकल का ही उत्पादन करना चाहिए। जिस तरह से पृथ्वी और जीवन पे आसन्न संकट के ये प्रमुख कारण हैं ईसपे इसी कड़ाई से मंथन और इसको लागू करना चाहिए। इसके साथ ही इन गाड़ियों कि अनिवार्य क्रशिंग पॉलिसी भी जल्द लानी चाहिए, जिसके तहत यदि कोई व्यक्ति नया कार खरीदने जाता है चाहे वो किसी भी टाइप कि कार हो उसका 10 वर्ष या 15 वर्ष मे अनिवार्य क्रशिंग हो, क्यूँ की पृथ्वी और सड़कों की एक सीमा है बढ़ते हुए कारों की संख्या को संभालने की, इसलिए जीवन की तरह इनके अभी से ही अंतिम संस्कार की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए नई गाड़ी बेचते वक़्त ही इनके 10/15 साल बाद होने वाले मूल्य का आज की तारीख में शुद्ध वर्तमान मूल्य ( Net Present Value ) के आधार पर कार बेचते वक़्त ही उसे कार कि लागत के साथ वसूल लिया जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि आप आज 10 लाख कि कार खरीदते हैं और 15 साल के बाद यदि उसका मूल्य 1 लाख रह जाता है तो 2033 में तो उस 1 लाख का आज कि तारीख मे क्या मूल्य होगा, लाज़मी है 30000 के आसपास होगा, उसे उस गाड़ी के साथ वसूलकर कार स्क्रैप फंड मे जमा कर देना चाहिए और जब 15 साल बाद जो भी व्यक्ति इस कार को क्रशिंग सेंटर मे लाता है उसे वह 1 लाख रुपया दे देना चाहिए, बीच में भी यदि कोई कार किसी तीसरे को बेचता है तो इस वसूली जा सकने वाली राशि का शुद्ध वर्तमान मूल्य के आधार पर गणना कर खरीदने वाले से पैसा ले सकता है। और यदि कोई पुरानी कार ले जाता है तो इसके स्क्रैप जेनेरेशन के हिसाब से जो मूल्य होता है उसे वो मिल जाये और उसपे उसे जीएसटी एवं आयकर मे छूट भी मिले ताकि वह अपनी पुरानी कार क्रशिंग को लेकर प्रोत्साहित हो।

देखा जाय तो कार क्रशिंग एक उभरता हुआ व्यापारिक सेगमेंट हैं जिसका भारत में बहुत स्कोप है और बढ़ती हुई गाड़ियों की संख्या को देखते हुए वक़्त की जरूरत भी है, यह सड़कों पे जगह के निर्माण के साथ, कचरे का प्रबंधन और प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों को खत्म करेगा।

पुरानी कारों के स्क्रैप कि बिक्री ऑटो रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री कि इकॉनमी को समझने के लिए सिर्फ एक छोटा हिस्सा है, क्यूँ की इसके अन्य और फायदे भी हैं जो क्रशिंग इंडस्ट्री को मिलते हैं। एक स्क्रैप होने वाली वाली कार का लगभग 65 प्रतिशत इस्पात से बना होता है  और शेष अन्य धातुओं से बना होता है जैसे कि  ग्लास, रबड़ और और अन्य। स्क्रैप स्टील और लौह के लिए कीमत, हालांकि बदलती रहती है लेकिन यह  अक्सर प्रति टन के हिसाब से अक्सर अच्छा मूल्य होता है जो नई स्टील बनाने कि लागत से सस्ती पड़ती है । एक अनुमान के मुताबिक प्रत्येक वर्ष कारों से ही 14 मिलियन टन स्टील क्रश होते हैं  और इस स्टील क्रशिंग उद्योग के जो कि 76 मिलियन टन का है उसमे यह 14 टन एक बड़े हिस्से के रूप मे योगदान करते हैं। इस तरह से पुनः बनाए गए  स्टील और लौह के साथ यह देखना आसान है कि ऑटो स्क्रैप रीसाइक्लिंग अब अरब डॉलर का उद्योग बन गया है।पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मुताबिक, धातु को रीसाइक्लिंग करने से नई स्टील बनाने की तुलना में 74 प्रतिशत कम ऊर्जा का उपयोग होता है। पुनः इस तरह से बनाई गई स्टील और आयरन भी सस्ता होता है, क्योंकि इसे बनाने के लिए नए अयस्क को खनन नहीं करना पड़ता है । आज उत्पादित सभी स्टील में कम से कम 25 प्रतिशत पुनर्नवीनीकृत स्टील है, और तो और कुछ उत्पाद तो पूरी तरह से पुनर्नवीनीकृत स्टील से बने होते हैं। यह उद्योग पुरानी कारों मे प्रयुक्त पारा को भी हटाता है और 75% आइटम को पुनः प्रयोग मे लाकर लैंड फिल को भी कम करता है , और ऊर्जा बचत के माध्यम से तेल उपयोग को भी काफी कम करता है।  इस प्रकार आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ के अलावा, कारों को रीसाइक्लिंग करना दुनिया के औद्योगिक आधारभूत संरचना में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है । हालांकि सरकार इसके बारे मे सोच रही है और नीति निर्माण पर काम हो रहा है लेकिन इसे जितना जल्दी लाये इस धरा और देश के लिए उतना अच्छा है।   

Comments