हर हर मंदिर घर घर मंदिर

पुरे विश्व में फैले १०० करोड़ से भी ज्यादे हिन्दुवों के इष्ट श्री राम के जन्मभूमि में ही उनका मंदिर न बन पाना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. इसका एक कारण इसके अन्दर राजनीती का आ जाना तो दूसरा कारण हमारे द्वारा श्रीराम को विस्मृत कर दिया जाना है. आप प्रति दिन हनुमान चालीसा का पाठ करते हो, हर हफ्ते हनुमान जी का व्रत रहते हो, आरती पढ़ते हो , चालीसा पढ़ते हो , ऐसे अन्य भगवान की स्तुति भी आप करते हो, तुलसीदास जी ने अगर राम चरित मानस नहीं लिखा होता तो रामायण, राम कथा या मानस पाठ जो प्रतिदिन के दिन चर्या में अभी भी किसी के नहीं है का और आयोजन की तरह होता है , का पालन भी दुर्लभ होता.

श्रीराम का मंदिर नहीं बन पा रहा है तो वो इसलिए की हमने इन्हें विस्मृत किया है, दशहरे में जितनी ख़ुशी और उत्सव हम रावण का पुतला जलाने में लगाते हैं अगर उतनी ख़ुशी और एनर्जी हम राम की मूर्ति और उनके श्रीलंका से प्रस्थान की यात्रा में लगाते और दीपावली में अयोध्या आगमन पर लाकर उत्सव को उसकी ऊंचाई देते तो ज्यादे अच्छा होता. यह २० दिन श्री राम को जानने समझने और अगली पीढ़ी में  ज्ञान हस्तांतरित करने में जाता.

श्री राम का मंदिर बनवाना है तो सबसे पहले सबके घर में श्री राम का मंदिर स्थापित कराना पड़ेगा. संख्या ज्यादे नहीं है जिनके घर श्रीराम जानकी का मंदिर हो, कम संख्या है, और प्रति दिन की जो पूजा पद्वति है जैसे की भजन चालीसा आरती और मन्त्र उसमें भी श्री राम के पूजा प्रक्रिया का थोडा अभाव है. जब तक हम उन्हें अपने घर में अपने प्रति दिन के पूजा अनुष्ठान में शामिल नहीं करेंगे तब तक मंदिर के लिए हमारा आग्रह और उस आग्रह का दबाब परिलक्षित नहीं होगा.

जैसे आज़ादी के समय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सांगठनिक शक्ति को बनाने और लोगों को एक सूत्र में जोड़ने के लिए गणपति पूजा की स्थापना की है जिसे सिर्फ सार्वजनिक पंडालों में ही नहीं लोगों के घरों घरों में स्थापित किया गया जिसके कारण महाराष्ट्र का हर व्यक्ति चाहे वो जिस धर्म का है वो गणपति से एक कनेक्ट महसूस करता है. वह कनेक्ट हमें श्रीराम को लेकर पैदा करना पड़ेगा. जब तक हमारे दिलों में हमारे घरों में श्री राम का कनेक्ट हम पैदा नहीं करेंगे तब तक ऐसे ही संकट आते रहेंगे.

अयोध्या को अब एक और लोकमान्य तिलक चाहिए.

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