सीट बेल्ट बांध ले, इकोनॉमी हिलने वाली है

जब कभी आप हवाई जहाज की यात्रा कर रहे होते हैं तो अक्सर टर्बुलेंस आने पर आपको यह आवाज सुनाई देती होगी की मौसम ख़राब होने की वजह से सीट बेल्ट बांध लें, ठीक यही हाल इकॉनमी का है, अभी बड़ा संकट आने वाला है और इस वक़्त सबको सतर्क होकर अपनी सीट बेल्ट बाँध लेना चाहिए मतलब चौकन्ना होकर सधे कदमों से अपनी निजी और व्यवसायिक निर्णयों को अमली जामा पहनाना चाहिए.
अबकी नवम्बर घरेलु नोटबंदी तो नहीं होने वाली लेकिन अन्तराष्ट्रीय परिदृश्य जिस तरह से बदल रहा है अन्तराष्ट्रीय नोटबंदी जैसे ही हालात हो जायेंगे. तुर्की स्थित सऊदी वाणिज्य दूतावास के अन्दर हुई वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की दुर्दांत हत्या के बाद उपजे हालात अब अन्तराष्ट्रीय बाजार और करेंसी दोनों को प्रभावित करने वाले हैं. अमेरिका ने इस घटना को बड़े ही गंभीरता से लिया है और सऊदी को गंभीर परिणाम भुगतने की चुनौती भी दी है. अमेरिका का पहले ही इरान से झगड़ा चल रहा है और 5 नवम्बर को एक डेडलाइन दी है उसके बाद यदि किसी देश ने ईरान से व्यापार किया तो उसे अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा. भारत का पूरा तेल व्यापार सऊदी और ईरान से जुड़ा है. ईरान के मैटर में हालाँकि भारत ने कहा है कि वह अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन नहीं करेगा लेकिन यू.एस. वित्तीय प्रणाली से जुडी हुई कंपनियां दंड के लिए उत्तरदायी हो सकती हैं यदि वे अमेरिकी प्रतिबंधों अनुपालन नहीं करती हैं। अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी राऊटर के अनुसार भारत का सबसे बड़ा बिजनेस ग्रुप रिलायंस ग्रुप संयुक्त राज्य अमेरिका की वित्तीय प्रणाली पर काफी निर्भर है और वह ज्यादे जोखिम लेना पसंद नहीं करेगा, वह अपने तेल और दूरसंचार कारोबार को अमेरिका में कुछ सहायक कंपनियों के मार्फ़त संचालित करता है और वह जोखिम के मद्देनजर  तेहरान से तेल आयात बंद कर सकता है। वैश्विक बीमा कंपनियों ने पहले से ही ईरान के साथ व्यापार करने के बारे में चेतावनी दी है, जबकि कुछ शिपिंग लाइनों ने कहा है कि वे ईरान के लिए नई बुकिंग नहीं करेंगे। संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईरान के साथ व्यापार करने वाली यूरोपीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है।

खाड़ी देशों की इन परिस्थितियों से भारत भी अछूता नहीं रहने वाला, अभी कुछ दिन पहले तुर्की करेंसी संकट ने हमें परेशान किया अब नवम्बर में ईरान और सऊदी संकट हमें परेशान करने वाला है. ईरान द्वारा तेल की आपूर्ति पर प्रतिबन्ध लगने के बाद यदि सऊदी पर भी प्रतिबन्ध लग जाता है तो विश्व बाजार में तेल की मांग ज्यादे और उपलब्ध आपूर्तिकर्ताओं की संख्या कम हो जाएगी, तेल के मूल्य बड़े ही तेजी से ऊपर चले जायेंगे जो अब तक के मूल्य से काफी ऊपर हो सकते हैं, डॉलर का एक बड़ा भाग इसके पेमेंट में जाने वाला है यदि भारत ने अपने पूर्ण परिवर्तनशील रुपये को भुगतान का माध्यम नहीं बनाया तो, हालाँकि सभी आपूर्तिकर्ताओं देश को रुपए में भुगतान के लिए तैयार करना एक कठिन और लम्बी प्रक्रिया होगी जिसमें लगने वाले समय को देश बर्दाश्त नहीं कर पायेगा. डीजल पेट्रोल के दाम और बढ़ जायेंगे, डॉलर और महंगा होता चला जायेगा और चालु खाते का घाटा बढ़ता जायेगा. इस संकट को भारत सरकार भी रोक नहीं सकती है क्यूँ की यह अन्तराष्ट्रीय घटनाओं के कारण पैदा हुई है सिवाय सुरक्षात्मक कदम उठाने के जिसके तहत, तेल का भुगतान अधिकतम भारतीय करेंसी में करने के लिए तैयार करना, भारत से हो रहे तेल निर्यात को रोकना, अनावश्यक आयात पे प्रतिबन्ध लगाना और देशवासियों को अधिकतम स्वदेशी के लिए अपील करना. यहाँ सरकार से के साथ हमें भी सीट बेल्ट रूपी सुरक्षात्मक उपाय करने पड़ेंगे ऐसे खर्च करने पड़ेंगे जहाँ आयातित वस्तु या तेल का इस्तेमाल ज्यादे होता हो अन्यथा महंगाई और मंदी की मार झेलनी पड़ेगी.

घरेलु मोर्चे पर भी परिस्थितियां संतोषजनक नहीं नॉन बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की हालत ख़राब है, ILFS की घटना ने पुरे वित्तीय जगत को हिला दिया है, इनके द्वारा लिए गए फंड जो कमर्शियल पेपर के माध्यम से लिए गए थे उनमे से बहुतों की परिपक्वता तिथि नजदीक आ गई है और वो आगे तरलता संकट का सामना करने वाले हैं. रीफाइनेंसिंग के कारण बैंकों की जोखिम का एक बड़ा हिस्सा नॉन बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा वहन कर लिया जाता था जिससे बैंकों पे भी जोखिम का भार कम पड़ता था और नॉन बैंकिंग वित्तीय कंपनियों जोखिम भरे क्षेत्रों को भी पैसा देते जा रहे थे जहाँ अधिकतर सरकारी बैंक हाथ खींच ले रहे थे. नॉन बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की इस मौजूदा संकट के कारण बैंक, लघु एवं मध्यम उद्यम, रियल एस्टेट और शेयर मार्किट पे संकट आने वाला है जिसमे पूरा देश चपेट में आ सकता है और देश को नवम्बर २०१६ के बाद एक बार फिर तरलता संकट का सामना कर पड़ सकता है.

अन्तराष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिदृश्य को देखते हुए शेयर मार्किट से विदेशी संस्थागत निवेशक भी बड़ी मात्रा में पैसे निकालने लगे हैं जिससे शेयर मार्किट ऊपर नीचे हो रहा है. बहुत सी प्राइवेट इक्विटी फर्मों ने एहतियात का रूख अपना लिया है, जिससे फंडिंग और निवेश की गति मंद पड़ गई है. अन्तराष्ट्रीय संकट और अमेरिकी और यूरोपियन करेंसी के प्रभुत्व से अपने आपको प्रभावित होने से रोकने के लिए एशियन करेंसी की मजबूतीकरण पर काम करना पड़ेगा और इसके लिए भारत चीन जापान और कोरिया को एक मंच पर आकर साझा रणनीति बनाकर सोचना पड़ेगा. घरेलु मोर्चे में बैंकिंग मोर्चे पर RBI को आगे आना पड़ेगा बैंकों को लोन प्रोफाइलिंग को संतुलित करने ले लिए दिशा निर्देश लाना पड़ेगा जिसके तहत SME और निर्माण इकाइयों को वित्तीय लोन सुनिश्चित करने पड़ेंगे, होम लोन बढ़ाते हुए , पर्सनल लोन को हतोत्साहित करते हुए इन्फ्रा लोन को उत्साहित करना पड़ेगा, लोन देने से पूर्व कागज और कंपनियों की बाकायदा अच्छे से जांच करना पड़ेगा ताकि  बैंकों का NPA भी न बढे. NPA रिकवरी और NCLT के लिए प्रभावकारी योजना बनाये, और NPA के वर्गीकरण को भी मौजूदा व्यवसायिक तराजू पर तौल के बदलने का प्रयास करे ताकि सनसनीखेज ख़बरों से बाजार न हिले, जब सामान्य बाजारू हालात में ६ माह में पैसे आ रहें है तो ९० दिन में NPA का नॉर्म बाजार के हिसाब से थोडा अव्यवहारिक है.             

तुर्की, इरान, सऊदी अरबिया , नॉन बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की हालत, विदेशी संस्थागत निवेशक की निकासी, शेयर मार्किट के उतार चढ़ाव को देखते हुए जो संकट आगे आने वाला है, इसके लिए देश के वित्तीय संस्थाओं, सरकार और जनता को भी कमर कसना पड़ेगा.

       

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