रॉफेल अखिलेश योगी जी एवं अन्य मसले

मैंने मित्रता और व्यवहार बनाने में कभी भी विचारधारा पार्टी धर्म जाति की बात दिमाग मे नहीं लाई, कोई मेरा मित्र है या मेरा अच्छा परिचय है तो सिर्फ इसलिए है कि हम दोनों लोगों का पटता है, और किसी न किसी बिंदु पर हम सहमत होंगे, सारे नहीं, औऱ दोनों की एक दूसरे के प्रति शुभ चिंता होगी।

इधर कुछ मित्रों ने कहा आप फ़ेसबुक पे सब पर लिखते हो लेकिन रॉफेल पर नहीं लिखते हो, वहीं इसके उलट कुछ मित्रों ने कहा की आपके लेखन शैली में कांग्रेसपन झलकता है। अब एक ही लेखक को कोई बीजेपी की तरफ झुका मान ले रहा है क्यों कि मैं रॉफेल पे नहीं लिख रहा हूँ, और कोई कांग्रेस की तरफ झुका क्यों कि मैं तो कई मौकों पर सरकारी निर्णयों की समालोचना खुलेआम लिख देता हूँ।

एक मित्र काफी नाराज़ होकर फोन किए कि पंकज जी आपने  विवेक तिवारी के केस में योगी जी के निर्णय की अपने फेसबुक लेख में सराहना किया लेकिन वहीं जितेंद्र यादव के केस में आपने नहीं लिखा, आप ऐसे पक्षपाती मत बनिये, आप योगी जी की आलोचना भी लिखिए।

एक मित्र ने फोन कर के कहा कि अखिलेश योगी जी से कई गुना अच्छे हैं आप अखिलेश जी की तारीफ में फेसबुक पे नहीं लिखते हैं।

इसपे कुछ लिखने से पहले मैं स्पष्ट कर दूं कि फेसबुक की दुनिया में मैं अपने आपको बहुत ही साधारण लेखक पाता हूँ। और अगर इन सारे मित्रों ने सलाह दी है तो ये मेरे लिए बड़ी बात है। लेकिन मुझे नहीं लगता है मेरा लिखना या नहीं लिखना इतना प्रभाव छोड़ता होगा, क्या फर्क पड़ता है यदि मैंने नहीं लिखा तो।

रही बात रॉफेल पे लिखने की तो मैंने 2G और कोलगेट पे भी नहीं लिखा था, क्यों कि रॉफेल की तरह ये सब भी तकनीकी मसले थे और इन दोनो के दस्तावेजों तक मेरी पहुंच नहीं थी और रॉफेल के दस्तावेजों तक भी नहीं। ये तीनों मसले काफी तकनीकी हैं और पब्लिक डोमेन पे आलरेडी काफी बहस हो रही है। फिलहाल ये तीनों मसले दोषियों को सजा देने से ज्यादे पोलिटिकल माइलेज के लिए उठाए गए थे और आपको मालूम है कि 2G और CG का बाद में निर्णय क्या हुआ, इसलिए रॉफेल के बारे में मैं जल्दबाजी में नहीं पड़ना चाहता हूँ जब सारे दस्तावेज और जानकारी आ जायेगी तब लिखूंगा। हां लेकिन इसपे एक चीज कहूंगा कि यदि इस पर इतना हल्ला हो चुका है तो सरकार को इस पर गंभीर चिंतन कर संबित पात्रा के स्तर से आगे बढ़ के बिना टेक्निकल डिज़ाइन को बताए फैसले की प्रक्रिया को जितना कानूनन बताया जा सकता है उसको सार्वजनिक कर दे, कितना मूल्य वृद्धि तकनीकी कारण, डिज़ाइन चेंज और समय के कारण हुआ है बस इतना हेडिंग के साथ जानकारी दे देवे। अंदर तक बताने की जरूरत नहीं है और दोनों समय काल पे किए सौदों को पहले तुलनीय बनाये फिर तुलना करें। समान तराजू पे तुलनीय बनाये दोनो को पहले बिना इसके, इसका समर्थन या विरोध करना बस हल्ला मचाना ही होगा।

दूसरा विवेक तिवारी के बारे में योगी जी की तारीफ की और जितेंद्र यादव के बारे में नहीं लिखा तो सच बताऊं कई दिनों दिनों तक मैने न्यूज़ चैनल देखना बंद कर दिया था, इसलिए जितेंद यादव की घटना मुझे जब मेरे मित्र ने पूछा तो याद नहीं आई। बाद में मैंने इसे पढ़ा तो पाया मीडिया खबरों के अनुसार यह एक फेक एनकाउंटर का मसला था औऱ एक मीडिया ने कहा था कि यह आपसी रंजिश का मसला था और इसे फेक एनकाउंटर दिखा के मार देने का प्रयास था । दोनो घटनाओं में अंतर यही दिखा कि विवेक तिवारी के केस में पुलिस की SOP को न मानना और भ्रष्टाचार की आदत के कारण विवेक निर्दोष मारे गए और जितेंद्र के केस में पुलिस ने फेक एनकाउन्टर की आड़ में जितेंद्र  की जान लेनी चाही। आरोपी सभी गिरफ्तार हुए मुख्य आरोपी जेल में है। बात मुवावजे और इलाज खर्च की है यह बात उचित फोरम पे सरकार के पास उठाई जानी चाहिए, बिना इसपे राजनीति किए , जैसे स्पष्ट रूख कल्पना तिवारी ने उठाया था और  अरविंद केजरीवाल का मुंह बंद कराया था।  मेरा ऐसा मानना है कि सरकार जरूर सुनेगी।

तीसरा योगी जी और अखिलेश के तुलना की बात है तो अभी ये तुलना बेमानी है। अखिलेश ने 5 साल शासन पूरे किए किए हैं और योगी जी का अभी दूसरा साल है। अखिलेश अपने तीन साल में कोई खास सक्रिय नहीं माने जाते थे और कहा जाता था कि प्रदेश में तीन सीएम हैं, इस आधार पर योगी जी उनसे आगे हैं। चौथे साल में उन्होंने मेट्रो एवं आगरा एक्सप्रेस वे की बार बार दुहाई दी उस समय भी मैंने बार बार कहा था कि अखिलेश जी को चंद्र बाबू नायडू को ध्यान करना चाहिए, चंद्र बाबू ने हैदराबाद बसाया और गांव भूल गए और आधुनिक टेक प्रेमी सीएम होने के बावजूद चुनाव बुरी तरह हार गए। मैंने जैसे बुलेट ट्रेन को विकास का पैमाना नहीं माना तो मेरा मानना है मेट्रो भी विकास का पैमाना नही है, इसलिए मेटो , लखनऊ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश , इटावा सैफई के प्रति उनके लगाव को देखकर मैंने उनकी समालोचना की है। इसलिए इस पैमाने पर योगी जी से तुलना बेमानी है। योगी 1994 से राजनैतिक संघर्ष और 1997 से संसदीय राजनीति में हैं सो उनका राजनैतिक अनुभव अखिलेश से ज्यादे है, और जमीनी समझ के मामले में भी योगी जी उनसे आगे हैं। योगी जी और अखिलेश की एक मुख्यमंत्री के रूप में तुलना तब न्यायपूर्ण होगी जब योगी जी 5 वर्ष पूरी कर लें। और हालांकि उसमे भी योगी जी आगे निकल सकते हैं क्यों कि अखिलेश शुरूवाती 3 साल पापा और चाचा में उलझे रहे और अंतिम साल  भी इसी झगड़े में उलझे रहे जिसने उन्हें प्रभावित किया। हां अखिलेश के बारे में एक चीज प्रभावित करती है वह यह है कि वह सौम्य हैं मृदुभाषी हैं युवा हैं जोश हैं और लंबी पारी के घोड़े हैं।

बाकी और भी फोन आते हैं उसके बारे में यही कहना है कि मेरी भी एक क्षमता है सब विषय के बारे में नहीं लिख सकता हूँ। जब कभी समय मिलता है या कोई मुद्दा बहुत ही उद्देलित करता है तभी लिखता हूं और बाकी समय अपना काम करता हूँ, रोटी दाल का जो सवाल है,और फेसबुक रोटी नहीं देता।

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