संकट में NBFC

आये दिन हम लोग बैंकों के एनपीए, लोन बकायेदारों के फ्राड और विदेश भाग जाने की ख़बरें सुन रहें हैं इसी बीच बीते हफ्ते देश की बड़ी एनबीएफसी कंपनी डीएचएफएल के शेयरों का एकाएक गोते ने मार्किट को डरा दिया. आरबीआई वित्त मंत्रालय सेबी सब के कान खड़े हो गए हैं और इस समय भारत सरकार की गारंटी से चल रहे ILFS का संकट डराने वाला है. ILFS और उसकी सहायक कंपनियों की सम्मिलित बैलेंस शीट को देखें तो 31 मार्च 2018 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में कुल ऋण बकाये की राशि 91091 करोड़ है. और यह ऋण मूलतः बैंकों से , ऋण पत्रों और वाणिज्यिक पत्रों से लिया गया है. और ये ऋणदाता मुख्यतया सार्वजनिक क्षेत्रों से है जिनमें बैंक ज्यादे हैं, मतलब अगर आज ILFS पे संकट आ रहा तो निश्चित है इससे बैंकों पर संकट आएगा और बैंकों पर आएगा तो इकॉनमी भी संकट में आएगी. ILFS अभी संकट में है और इसे अभी नकदी संकट का सामना करना पड़ रहा है। नकदी संकट से आशय होता है ILFS ग्रुप पिछले कुछ समय से अपनी ऋण के लिए निश्चित की गई किश्तें नहीं चुका पा रहा है जिसे उसे अपने ऋणदाताओं को आवधिक तौर पर देना है । इस सोमवार को इस महीने यह तीसरी बार कमर्शल पेपर्स पर ब्याज चुकाने में असफल रही है और अगर खबरों की माने तो IL&FS को अगले छह महीनों में 3,600 करोड़ रुपये का किश्त चुकाना है।
नकदी संकट की समस्या में फंसे IL&FS ग्रुप के लिए संकट की घंटी तभी सुनाई पड़ने लगी थी जब उसके अंकेक्षक ने अपने रिपोर्ट में उसके कुछ सहायक कम्पनियों पर आ रहे गोइंग कंसर्न के संकट का हवाला दिया था साथ में NCLT में चल रहे  दिघी पोर्ट के केस के सम्बन्ध में अनिश्चितता सहित उसमे कई मुद्दों को उठाया था, कंपनी अभी इन संकटों का सामना कर ही रही थी कि तभी नीम पर करेला चढ़ा दिया सामने आई ब्लूमबर्ग न्यू एजेंसी की उस रिपोर्ट ने जिसमें सिडबी बैंक के हवाले से कहा गया कि उसने १००० करोड़ के ऋण के मामले में IL&FS के खिलाफ कंपनी नैशनल लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) में इन्सॉल्वंसी ऐप्लिकेशन फाइल किया है. बाहर आई ख़बरों के अनुसार कंपनी के सीईओ रमेश सी बावा तथा कुछ प्रमुख बोर्ड सदस्यों ने IL&FS से कथित रूप से कर्ज भुगतान में असफल रहने और कामकाज संचालन में आ रहे संकट के बीच अपना इस्तीफा दे दिया है। उनके अलावा, कंपनी के स्वतंत्र निदेशकों- रेणु चाल्लू, सुरिंदर सिंह कोहली, शुभलक्ष्मी पानसे और उदय वेद के साथ-साथ गैर-कार्यकारी निदेशक वैभव कपूर ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया। खबर यह भी आई कि एलआईसी के प्रबंध निदेशक हेमंत भार्गव ने IL&FS के गैर-कार्यकारी चेयरमैन पद ने भी इस्तीफा दे दिया है। इसी बीच वित्तीय संकट से जूझ रही कंपनी IL&FS ने अपने कर्मचारियों को लिखे एक सफाई पत्र में यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि यदि प्राधिकरणों के पास फंसा उसका रुपया समय से जारी कर दिया गया होता तो मौजूदा संकट खड़ा नहीं होता।

IL&FS का ज़्यादा पैसा सरकार के ही इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में लगा है। यदि यह डूब जाता है तो सरकार के तमाम प्रोजेक्ट पे संकट गहरा जायेगा। इन्फ्रा के क्षेत्र में हुआ यह है कि टोल टैक्स की वसूली का अनुमान ज़्यादा लगाया गया मगर उनकी वसूली उतनी नहीं हो पा रही है। इससे प्रोजेक्ट में पैसा लगाने वाली कंपनियां अपना लोन वापस नहीं कर पा रही हैं और परिणाम में इन्हें लोन देने वाली IL&FS भी अपना लोन वापस नहीं कर पा रही है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने भी IL&FS के संचालन के बारे में अपनी चिंताओं को व्यक्त किया था, जो तीन साल पहले अपनी रिपोर्ट में बताते भी थे कि वित्त कंपनी के शुद्ध स्वामित्व वाले फंड ख़त्म हो रहें है और IL&FS अधिक लीवरेज हो चुका था। आज के समय में सिडबी को ऋण के जरिये 1,000 करोड़ रुपये चुकाने में विफल होने के 45 दिनों के अन्दर IL&FS की रेटिंग ट्रिपल ए से घटाकर एक डिफ़ॉल्ट में डाल दिया गया। इस डिफॉल्ट स्टेटस की रेटिंग ने इक्विटी बाजार में आत्मविश्वास का भारी संकट बनाया और ऐसा संकेत दिया कि ज्यादातर गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (एनबीएफसी) को अब तरलता की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि IL&FS के बॉन्ड डिफॉल्ट से डेट म्युचूअल फंड्स का लाभ घट जाएगा, क्योंकि बॉन्ड के प्राइस अब गिरने लगे है. इस कारण से निवेशकों के मुनाफे में भी अब कमी देखने को मिल सकती है. अब तो हालात इतने बिगड़ गए हैं कि बाजार में इसके के बॉन्ड्स को अब तो खरीदार भी नहीं मिल रहे हैं. सूत्रों की माने तो डीएचएफएल के बॉन्ड सस्ते में इसलिए बिके क्योंकि इसके के बॉन्डस को खरीदने वाला कोई नहीं मिला था. इस समय IL&FS अगले 6 महीने तक बाजार में  कोई नया कमर्शियल पेपर नहीं ला सकती है. रिजर्व बैंक ने कंपनी की जांच शुरू कर दी है और ग्रुप को बाजार से नए कमर्शियल पेपर्स लेने पर भी रोक लगा दी है

IL&FS के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की हुई आपात बैठक में कंपनी को मौजूदा नकदी संकट से उबारने के तौर तरीकों पर विचार किया गया। समझा जाता है कि उसके सबसे बड़े शेयरधारक भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने कंपनी के आगामी राइट इशू में निवेश करने और कंपनी को कुछ कार्यशील पूंजी कर्ज देने पर सहमति जताई। IL&FS में सरकार की हिस्सेदारी 40.25 प्रतिशत है और एलआईसी की 25.34 प्रतिशत हिस्सेदारी है और बाकी भारतीय स्टेट बैंक, सेंट्रल बैंक और यूटीआई की भी हिस्सेदारी है। । कंपनी को अपने शेयरधारकों से 3,000 करोड़ रुपये की त्वरित पूंजी की आवश्यकता है। सरकार ने इस स्थिति से IL&FS बचाने के लिए भारतीय जीवन बीमा को बुलाया है। हाल के दिनों में जब आईडीबीआई पर NPA का बोझ बढ़ा तो भारतीय जीवन बीमा को बुलाया गया। अब सवाल यह उठता है LIC के भरोसे कितनी डूबते जहाज़ों को बचाया जायेगा, जनता के आरोग्य और जीवन पे आये संकटों से उनकी रक्षा करने वाली कंपनी यदि अब इन कंपनियों की रक्षा करने लगेगी तो कहीं एक दिन यही संकट में न आ जाये

IL&FS NBFC सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी है। NBFC सेक्टर पर बैंकों का लोन लगभग 496,400 करोड़ है और यदि यह सेक्टर डूबा तो बैंकों के से ही आये यह पैसे धड़ाम से डूब जाएंगे। आंकड़ों की माने तो मार्च 2017 तक यह आंकड़ा लगभग 3,91,000 करोड़ था। और जब एक साल में लोन 27 प्रतिशत बढ़ा तब जाकर भारतीय रिज़र्व बैंक चौकन्ना हुआ। सवाल यह है कि भारतीय रिज़र्व बैंक इतने दिनों से क्यूँ नहीं चौकन्ना था था। जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक ही इन सभी वित्तीय कंपनियों की निगरानी करता है। म्यूचुअल फंड का 2 लाख 65 हज़ार करोड़ लगा है बैकों का पैसा लगा है हमारे और आपके पेंशन और प्रोविडेंड फंड का पैसा भी इसमें लगा है। इतना भारी भरकम कर्ज़दार डूबेगा तो क़र्ज़ देने वाले, निवेश करने वाले सब के सब डूबेंगे और हम और आप भी डूबेंगे।

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