राम मंदिर बाबरी ढांचा और मेरे विचार

राम मंदिर को लेकर संघर्ष बहुत पुराना है लेकिन जो मैंने अपने बोधकाल में देखा और समझा है उसपे अपनी एक समझ पैदा कर रहा हूँ।

तकनीकी तौर पर तो यह जमीन की एक टुकड़ा का मामला लगता है जिसके मालिकाना हक को लेकर एक लड़ाई है। जिसमें तकनीकी तौर पर न्यायालय को तथ्यों के आधार पर एक निर्णय लेना है। चूंकि अब यह एक दीवानी वाद का विषय बन गया है तो इसे अदालत के बाहर भी निपटाए जाने का विकल्प हमेशा खुला हुआ है।

लेकिन इस वाद विषय के व्यापक प्रभाव एवं क्षेत्र को देखते हुए यह सिर्फ एक जमीन का विवाद नहीं रहेगा। इस वाद विषय का निर्णय यदि आपसी समझौते से नहीं सुलझाया गया तो कोई भी निर्णय देश के सामाजिक आर्थिक धार्मिक राजनैतिक ढांचे पे व्यापक प्रभाव डालेगी और सामाजिक संरचना पे सैकड़ों साल तक असर पड़ेगा।

अब यदि मान लीजिये कि कोर्ट ने मालिकाना हक के तकनीकी आधार पर वहां मस्जिद बनाने का निर्णय दे दिया तो क्या यह विवाद खत्म हो जाएगा। क्या यह तब पहले से बड़ा विवाद नहीं बन जायेगा। क्या यह सबको विदित नहीं है कि हजारों साल से जमीन के मालिकाना हक को लेकर कितनी बार रिकॉर्ड विगत हजारों साल के शासन में यात्रा किए गए होंगे उसमें जन्मभूमि के मालिकाना हक भी किसी को हस्तांतरित हो सकते हैं, सिर्फ मालिकाना हक आज की तारीख में किसी के पास है इसका मतलब यह नहीं कि उस पे हजारों साल पहले वहां राम का जन्म नहीं हो सकता, तब तो जमीन के रेकॉर्ड रखने की आज की व्यवस्था और इस्लाम दोनो नहीं था। तो जमीन का मालिकान दूसरे के होने के बावजूद वहां राम जन्म भूमि होने की संभावना बनती है और जन्मभूमि की संभावना यदि तथ्यों के आधार पर कोर्ट में वास्तविक सिद्ध हो जाती है तो क्या सिर्फ मालिकान के आधार पर क्या वहां मस्जिद के निर्माण के आदेश से न्याय हो पायेगा। क्या विश्व भर के हिन्दू समाज इससे अपने आपको आहत नहीं महसूस करेगा। राम का क्या महत्व है यह तो पूरा विश्व  जानता है। रामायण तो हजारों साल से चली आ रही है। हिन्दू धर्म के दो ही अवतारी पुरुष श्री राम और श्री कृष्ण जिनके जन्म स्थान को मध्य काल में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने अपने बुतपरस्ती विरोध और उनके अपने धर्म की सुप्रीमेसी सिद्ध करने के लिए इस जन्मभूमि से छेड़छाड़ किया। औऱ यदि 100 करोड़ की वैश्विक आबादी वाले समाज के धर्म के आधार और ईश्वर के अवतार की जन्मभूमि सिद्ध होने के बाद भी यदि वहां मस्जिद बनाई जाती है और वहाँ नमाज पढ़ा जाता है तो क्या हिन्दू औऱ मुसलमान के बीच सामाजिक समरसता स्थापित की जा सकती है। इन सब प्रश्नों का समाधान भी न्यायालय को देखना होगा यह सिर्फ़ अब जमीन के टुकड़े के मालिकाना हक का विवाद नहीं है, यह अखंड भारत के अस्तित्व का भी विवाद बन सकता है।

हो सकता है कि कोर्ट का निर्णय आ जाये कि वहां मंदिर बने। ऐसे में मुस्लिम समाज पे पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करना जरूरी हो जाता है। यदि वहां मस्जिद बनाई गई थी तो लाजमी है कि वह बाबर के वक़्त ही बनाई गई होगी जैसा कि पब्लिक डोमेन में तथ्य है, मतलब उससे पहले वहां मस्जिद नहीं थी और यदि थी भी तो 400 वर्ष से ही रही होगी। 400 वर्ष से पूर्व वहां कुछ औऱ , और उससे पहले हजारों साल पूर्व वहां श्री राम का जन्म भी हो सकता है। मुस्लिम समाज का साकार ब्रह्म और बुतपरस्ती के उलट निराकार औऱ ईश प्रार्थना पे विश्वास है। मस्जिद उनके ईश्वर का निवास नहीं उनके ईश्वर की इबादत करने का एक स्थान है औऱ यह परिवर्तन शील भी हो सकता है। अरब में सार्वजनिक कार्यों हेतु कई बार मस्जिद का विस्थापन हो सकता है क्यों कि वहां प्राण प्रतिष्ठा जैसी कोई बात नहीं होती है, ठीक यही बात इस ढांचे पे भी लागू होती है। कई दशक से यह ढांचे के सिवा कुछ नहीं रह गया था। मुस्लिम समाज खुद इस बात की तुलना कर ले कि एक तरफ हिन्दू धर्म के आधार अवतारी ईश्वर का जन्मस्थान जिसे बदला नहीं जा सकता और दूसरे तरफ एक इबादत गाह जिसे हस्तान्तरित किया जा सकता है में उन्हें क्या निर्णय लिया जाना चाहिए। ये निर्णय उन्हें खुद करना चाहिए। मेरे निर्णय में जन्मस्थान यदि कोर्ट में सिद्ध हो जाता है तो मुस्लिम समाज को आगे आकर मन्दिर निर्माण में सहायक बनना चाहिए नही तो यह दो व्यापक समाज मे ईगो की लड़ाई का एक व्यापक आधार बन जायेगा जो एक अंतहीन स्थाई विवाद के रूप में बाहर आयेगा जिससे भारत राष्ट्र और विश्व भी खतरे में पड़ सकता है।

रही बात मुस्लिम समाज की इस शिकायत की, कि जिस तरह ढांचे को गिराया गया वह उनको सबक सिखाने औऱ चिढ़ाने जैसा था तो उन्हें यह बात समझनी पड़ेगी की यह उनको सबक सिखाने या चिढ़ाने के लिए नहीं हुई थी। यह उस समय के राजनैतिक वातावरण के कारण हुई थी। जब राजीव गांधी ने इसे जन्मभूमि मान कर ताला खुलवा दिया था तो आगे के जो मार्ग होने चाहिए थे वह इसी डायरेक्शन पे होने चाहिए थे। जब राजीव गांधी ने ताला खुलवा दिया था तो वहां मस्जिद सरंक्षण की थ्योरी को राजनैतिक फायदे के लिए हवा नहीं देना चाहिए था और उसके लिए मुस्लिम समाज की सहमति का प्रयास चालू करना चाहिए था, इसके उलट मुस्लिम समाज के वोटबैंक की एकजुटता का फायदा उठाने के लिए तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने वहाँ राम मंदिर सरंक्षण औऱ उसको आगे बढ़ाने की फिलॉसफी जिसे राजीव गांधी ने शुरू की थी की जगह मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पकड़ी और कारसेवकों पर गोली चलवा दी जिसके फलस्वरूप समाज दो हिस्सों में बंट गया और 6 दिसंबर को एक समाज की तरफ से ढांचे गिराने की घटना को तत्कालीन सरकार रोक नहीं पाई क्यों कि उसकी अपनी फिलॉसफी की वजह से वह कारसेवकों पर गोली नहीं चलाना चाहती थी और चलाया भी नहीं जाना चाहिए था, अगर भीड़ को रोकना था तो बहुत पहले रोकना था उस समय गोली चला के देश को एक बड़े संकट में डालने जैसा था। अब मुस्लिम समाज को इस घटना से बहुत आगे निकल जाना चाहिए क्यों कि वह घटना चाहे जैसी भी हो वह अल्लाह के शान में गुस्ताखी नहीं थी वह एक पुराने शासक के द्वारा बनाया गया एक ढांचा था औऱ उस शासक का प्रतीक था न कि अल्लाह का, अल्लाह ने तो प्रतीकों से दूर रहने की बात की है। वह एक शासक के द्वारा अल्लाह के नाम पर बेजा कई जगह सिर्फ पूर्व काल मे एक समाज पर सुप्रीमेसी और खुद के धर्म के विस्तार हेतु बनाया गया एक ढांचा था जो किसी भी तरह से इस्लाम के पवित्र स्थान जैसे कि मक्का मदीना है कि श्रेणी में नहीं आता है, जबकि हिंदुओं के लिए वह इसी श्रेणी में आता है, अतः सरकारों और शासन की गलती की परिणीति ऐसी होनी ही थी, इसके लिए उस समाज को स्वतः ही आगे आकर ऐसी गलतियों को समय के साथ सुधार लेना चाहिए था।

अब मौजूदा समय में सरकार से कहाँ गलती हो रहीं है वो बता रहा हूँ, दावा जमीन पर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का है और सरकार ज्यादे बातचीत शिया समुदाय से कर रही है। मेरे एक छोटे भाई समान मुस्लिम मित्र की माने तो सरकार यहीं गलती कर रहीं है। सुन्नी समाज भी चाहता है कि इस फैसले का समाधान हो जावे लेकिन जब जब शिया समुदाय आगे आता है, ये दूरी बना लेते हैं और खिलाफ हो जाते हैं। उसका कहना है कि शिया और सुन्नी के बीच का संघर्ष तो हजार साल से ऊपर का है, इस तथ्य को नकार के कैसे आगे बढ़ा जा सकता है, हजार साल से ज्यादे समय में भी इनके बीच विवाद खत्म नहीं हुई तो अब कैसे हो जाएगा। जब जब शिया समाज आगे आएगा यह ऐतिहासिक तथ्य है कि सुन्नी समुदाय पीछे हट जाएगा और उस फैसले के खिलाफ जाएगा। सरकार को इस महीन बात को ध्यान में रखकर ही इसका समाधान खोजा जा सकता है।

क्रमशः

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