इस्लाम मस्जिद औऱ उनके ईश्वर

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इस मसले पर मैं कई दिन से लिखना चाह रहा था लेकिन इसके सार्वजनिक प्रभाव को लेकर उतना कॉन्फिडेंस नहीं आ रहा था, इसलिए लिखने से बच रहा था। अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसपर टिप्पणी कर दी है तो इस पर चर्चा करता हूँ।

जहां तक इस्लाम को मैं समझता हूँ वे निराकार ब्रह्म के उपासक है न कि साकार। इसलिए उनके ईश्वर की कोई साकार आकृति जैसी कोई चीज नहीं है औऱ ईश्वर एवम मोहम्मद साहब की तस्वीर तक कि मनाही है, किसी ने अगर मोहम्मद साहब की तस्वीर जैसे कि फ्रेंच अखबार शार्ली ऐब्दो ने एक बार कर दी थी तो उसके दफ्तर पर हमला कर दिया गया था और 7 नवंबर 2015 के इस हमले में 12 लोगों की मृत्यु और 11 घायल हुए थे।

इनके ईश्वर को साकार रूप में प्रस्तुत करने को लेकर इनका एक स्पष्ट मत है कि ऐसा इन्हें मनाही है औऱ ये निराकार ब्रह्म के उपासक और बुतपरस्ती के खिलाफ हैं। और जब ये बुतपरस्ती के खिलाफ हैं तो यह अपनी उपासना पद्वति में किसी भी साकार आकार के खिलाफ हैं। इनका मस्जिद जो प्रायः ईंट गारे मिट्टी सीमेंट का बना होता है, अपने आप में एक आकार है और एक स्वीकृत आकृति हर जगह है जो साकार की अवधारणा को लिए हुए है और चूंकि साकार की अवधारणा इस्लाम खारिज करता है, इसलिए मस्जिद इस्लाम का आवश्यक अंग नहीं है। यह सुविधा और सुरक्षा के लिहाज से एक प्रार्थना स्थल है जहां निराकार ईश्वर की इबादत की जाती है। इसी आधार पर बाबरी मस्जिद का ढांचा जो कि सिर्फ एक ढांचा था, इनके लिये ईश्वर के प्रतीक केंद्र के रूप में नहीं हो सकती है, हाँ ये अलग बात है कि अगर ये उसे ईगो के रूप में मुद्दा बनाते हैं तो बना सकते हैं, लेकिन इनके धर्म की कसौटी पे एक ढांचे को ईश्वर से जोड़ देना इनके धर्म में मनाही है। इसलिए मेरा मानना है कि ईगो के लिये भले ही मुस्लिम बाबरी ढांचे के लिए लड़ें लेकिन इनके धार्मिक उसूलों की कसौटी पे इनकी लड़ाई हराम है और नाजायज है और इनकी कसौटी पे अधर्म की श्रेणी में आएगी।

साथ ही आज रवीश के प्राइम टाइम में रविश का इस पर फाइनल टिप्पणी सुन रहा था जो किसी कुलपति से बहस के बाद उन्होंने निष्कर्षित किया था वो यह कि आज की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी मस्जिद पर ही नहीं मंदिर और चर्च पे भी लागू हो सकती है। इस तर्क से मैं असहमत हूँ। मुसलमान निराकार ब्रह्म की उपासना के लिए उस स्थान का उपयोग करता है उसके अनुसार उसके ईश्वर का न तो रूप है न उसकी प्राण प्रतिष्ठा है और इस पृथ्वी पर ना तो कहीं उसका निवास स्थल है। जबकि प्रचलित  हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जो साकार ब्रह्म के उपासक हैं , उनके लिए  ईश्वर का एक रूप होता है जो मूर्ति या तस्वीर के रूप में भी हो सकता है, उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है , मतलब उन्हें साकार जीव के रूप में मान्यता दी जाती है और फिर उनका निवास निश्चित की जाती है । मंदिर क्या है, यही निवास है और चूंकि निवास है तो दीवाल होंगे ही, छत होगा ही। अतः प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति वाले मन्दिर साकार उपासना पध्वति वाले हिन्दू धर्म की मूल मान्यताओं और उसके आवश्यक अंग है , इसे आज के सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी जो कि मस्जिद के बारे में था के समकक्ष नहीं खड़ा किया जा सकता। कमोबेश हिन्दू मंदिरों की तरह चर्च की भी स्थिति है क्यों कि वहां ईसामसीह की मूर्ति होती है, जिसके लिए दीवाल और छत भी आवश्यक हो सकता है।

अतः व्यापक परिप्रेक्ष्य में मेरा मानना है कि बाबरी ढांचे की लड़ाई जो मुसलमान इन जनरल लड़ रहे हैं वह ईगो की लड़ाई लड़ रहें हैं और यह धार्मिक लड़ाई है ही नहीं। औऱ कानूनी तकनीकी तौर पर तो अदालत का मानना है कि यह पूरी तरह से डिस्प्यूट ऑफ लैंड का मसला है ना कि हिन्दू मुसलमान का।

क्रमशः...........

Comments

Unknown said…
सहमत आपके विचार से 👍