क्या इन्कम टैक्स खत्म हो सकता है!

भारत के कर तंत्र में करों का कई तंत्र है यहाँ तक कि GST आने के बाद भी. सरकारें अपने राजस्व फायदे के लिए GST कके आने के बाद भी कुछ चीजें अभी भी वैट और उत्पाद शुल्क के दायरे में रक्खी हुई हैं, जिसमें आजकल पेट्रोल और डीजल आजकल चर्चा में है और कई अर्थशास्त्री इसे GST के दायरे में लाने की बात कर रहें हैं. कई बार वित्त मंत्री और सरकारी वित्त अधिकारीयों के द्वारा यह बयान आते रहते हैं कि अभी भी देश की एक बड़ी आबादी टैक्स नहीं दे रही है , जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है उपभोग के माध्यम से सरकार टैक्स तो हर उत्पाद पर ले ही रही है. कई लोग यहाँ तक की पिछले चुनाव से पहले रामदेव बाबा भी बोल रहे थे की आयकर ख़त्म कर बैंकिंग सौदा कर लगा देना चाहिए लेकिन यहाँ पर रिस्क है क्यूँ की ऐसे में नगदी सौदे प्रोत्साहित और बैंकिंग सौदे हतोत्साहित होंगे. और आयकर के को लेकर एक राय यह भी है कि यह प्रगतिशील कर प्रणाली है और अप्रत्यक्ष कर अप्रगतिशील कर प्रणाली है, बहुत लोगों को लगता है की आयकर एक सामाजिक न्याय व्यवस्था के हिसाब से सही कर व्यवस्था है अमीरों पे ज्यादे कर भार कम आय वालों पर कम आयकर भार. हालाँकि GST और उसमेंHSN कोड आने के बाद तो इस मुद्दे का पूरा समाधान किया जा सकता है. GST लागू करते वक़्त दैनिन्दिनी एवं मूलभूत वाली चीजों पर जब पहले से ही शुन्य GST लागू है और जैसे जैसे भोग विलास की वस्तुवों की तरफ बढ़ते हैं तो उच्च GST की दर पहले से ही है तो सामाजिक न्याय कर व्यवस्था के सिद्धांत जोGST में आ गई है तो फिर अलग से सामाजिक कर व्यवस्था के नाम पर आयकर रहे न रहे या यह कैसा रहे का पुनर्विचार तो अब सरकार को करना ही चाहिए.

हालाँकि सरकार के स्तर पर यह बहुत ही बड़ा साहसिक फैसला होगा लेकिन जब यह सरकार नोटबंदी और GST जैसे बड़े फैसले एक झटके में ले सकती है तो आयकर का पूरा फॉर्मेट बदलने का फैसला क्यूँ नहीं ले सकती है ? मेरे कुछ विचार हैं जो आज क्रांतिकारी लग सकते हैं, आज की सोच के उलट लग सकते हैं लेकिन विचार में नवाचार है, और वो यह है कि सरकार को आयकर को भी अब आपूर्ति अवधारणा पर लाना चाहिए,सरकार को वेतनभोगियों से आयकर नहीं लेना चाहिए साथ ही साथ उन मैन्युफैक्चरिंग में लगे हुए व्यक्तियों से तथा इस मैन्युफैक्चरिंग चेन के अंतिम सोर्स तक में लगे व्यक्तियों जैसे की फुटकर व्यापारी से टैक्स नहीं लेना चाहिए इन चेन में लगे व्यक्तिवों से टर्नओवर को ही आधार बनाकर कुछ प्रतिशत तर्कसंगत आयकर लगा देना चाहिए .

इसके लिए सरकार को आयकर के ५ हेड वेतन एवं व्यवसाय एवं पेशे से आय हेड का पूरी तरह से पुनर्गठन या समाप्त ही करना पड़ेगा. पूंजीगत लाभ , हाउस प्रॉपर्टी से आय एवं अन्य श्रोत से आय के हेड को सरकार यथावत रख सकती है. सैलरी हेड में सिर्फ उसी आय पे आयकर लेना चाहिए जो आय भारत में खर्च नहीं होने वाली हो और जिसे भारत से बाहर भेजा जाने वाला हो और इसके लिए कमाए गए वेतन से उस आय के भाग को टैक्स के दायरे में लाया जा सकता है यदि उनके उस भाग का विदेश में रेमिटेंस हो रहा हो और इसके लिए सरकार चाहे तो फोरेन रेमिटेंस प्रणाली को नियमित कर सकती है और फॉर्म १५CB में इसकी व्यवस्था कर सकती है.

मैन्युफैक्चरिंग में लगे हुए व्यक्तियों से तथा इस मैन्युफैक्चरिंग चेन के अंतिम सोर्स तक में लगे व्यक्तियों जैसे की उत्पादक वितरक थोक व्यापारी फुटकर व्यापारी को भी वर्तमान की आयकर व्यवस्था से से मुक्त कर देना चाहिए क्यूँ की इनके द्वारा किये जा रहे हर सौदे मतलब सप्लाई पे आप GST ले ही रहे हो और इसकी जगह टर्नओवर आधारित कुछ आयकर की प्रणाली लानी चाहिए जैसा की वर्तमान में कुछ सीमा तक की आय पर है इससे आयकर का सरलीकरण हो जायेगा और GST एवं आयकर एकरूप व्यवस्था में आ पाएंगे वह है सप्लाई आधारित कर व्यवस्था .

सरकार को आयकर की इस कमी की भरपाई करने के लिएGST एवं टर्नओवर आधारित टैक्स व्यवस्था पे ही सामजिक न्यायिक कर व्यवस्था को तर्कसंगत रूप में बैठाना चाहिए. आयकर का इन मदों में यह छूट विश्व में अपने आप में एक अनोखा छूट होगा और वैश्विक कंपनिया मेक इन इंडिया के लिए यहाँ निवेश करेंगी हालांकि ऐसी दशा में हमें GST निर्यात में भी लगानी पड़ेगी भले ही वो रियायती दर पे हो, इसकी भरपाई निर्यात करने वाला व्यक्ति अपने आयकर में प्राप्त हो रही छूट के माध्यम से निर्यात की जाने वाली वस्तुवों के दर में गिरावट कर के कर सकती है और विश्व बाजार में अपने प्रतिस्पर्धात्मक दर को बनाये रख सकता है. निर्यात की दशा में GST की एक विशेष दर भी रक्खी जा सकती है. विदेशी कंपनियों की दशा में यदि वह आय बाहर ले जाना चाहती हैं और भारत में यह खर्च नहीं होने वाली है तो उस आय पर भी ऐसी दशा में आयकर लगा देना चाहिए. कुल मिला के आज यह थोडा आश्चर्यजनक लग रहा है लेकिन यदि कर की प्रक्रियावों का सरलीकरण कर दिया जाय,एकरूप कर व्यवस्था वह है सप्लाई आधारित कर व्यवस्था तो हमें लगता है की ब्लैक मनी की भी समस्या को बड़े पैमाने पे साधा जा सकता है. और अंत में एक बात, सरकार जिस तरह नोटबंदी से पूर्व IDS जैसे बड़े एमनेस्टी स्कीम लाई थी उसे GSTलागू करने से पहले इसे लाना चाहिए था, अभी भी देर नहीं हुई है सरकार को इस बजट में पुराने सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष करों के लिए एक एमनेस्टी स्कीम लाना चाहिए, GST स्वीकार्यता की दर में अभूतपूर्व उछाल आएगा और सरकार की GST को लेकर बनाई गई मंशा भी पूरी होगी.

यह दौर यह सरकार और सरकार को दिया गया मैंडेट पिछले १९८९ के बाद अभूतपूर्व है, यह मौका है इस सरकार के पास कि इस मौके का अर्थव्यवस्था में इनोवेशन का चिंतन करे. भारत की जो नई इकनोमिक पालिसी हो वह पुरे विश्व के इकनोमिक पालिसी के लिए लिया गया एक नया स्टार्ट अप कदम हो. सरकार को सिर्फ देशवासियों को ही इनोवेशन के लिए नहीं आवाहन करना चाहिए अर्थव्यवस्था में भी नई चिंतन का समावेश करना चाहिए. खुद से प्रश्न करना चाहिए की  सिर्फ दो प्रकार के ही टैक्स क्यूँ प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर और प्रत्यक्ष कर में आयकर ही क्यूँ और आयकर में आय के ५ हेड ही क्यूँ. खुद से प्रश्न कर चिंतन करना चाहिए सरकार को तब जाकर देश टैक्स के प्रक्रियावों के इन मकडजाल से बच पायेगी. कहने को तो कह दिया गया की “एक देश एक कर” हो गया लेकिन कैसे?आप आयकर को इस नारे से बाहर क्यूँ रखते हैं? आप पेट्रोल डीजल और शराब को इस दायरे से बाहर क्यूँ रखते हैं? जब तक सभी प्रकार के करों को मिलाकर एक छतरी के नीचे नहीं लाया जायेगा तब तक एक देश एक कर हो ही नहीं सकता.

Comments