विकास से ज्यादे सरवाईवल जरुरी

 


मेरे एक मित्र थे, उनकी विकास की गति बहुत तेज थी और लगातार विकास करते करते और विकास करने की धुन में वो अपने खुद के और अपने परिवार दोनों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते थे, और एक दिन पता चला कि उन्हें कैंसर की बीमारी हो गई है और इसके पता चलने के ३ माह के अन्दर उनकी मृत्यु हो गई. इस कहानी के द्वारा मैं यह बताना चाहता हूँ कि विकास जरुरी है लेकिन उससे ज्यादे जरुरी है विकास की गति क्या हो इसको समझना, लगातार तेज गति से दौड़ने से हार्ट अटैक भी आ सकता है, विकास की दौड़ यदि छोटी हो तो बहुत तेज दौड़ना न्यायसंगत हो सकता है लेकिन यदि विकास की दौड़ लम्बी हो तो बीच बीच में आराम और सांस लेने के लिए रुकना भी पड़ सकता है, कभी कभी धीमा भी चलना पड़ता है दौड़ाने की जगह तब जाकर आप्रकार विकास की दौड़ यदि मैराथन हो तो जीत सकते हैं.


ठीक यही नियम देश के विकास की दौड़ पर लागू होती है, ठीक है यह जरुरी है की देश विकास करे लेकिन यह जन मानस की सहूलियत और अनुकूलन के हिसाब से होना चाहिए. कई बार ऐसा लगे की जनमानस कुछ निर्णयों से परेशान हो रही है या उसका सांस फूल रहा है तो कुछ समय के लिए रूक कर ठहर कर माहौल के अध्ययन के लिए ही सही विकास के आगे सरवाईवल को प्राथमिक कर देना चाहिए. आज पेट्रोल और डीजल के दाम तेजी से बढ़ रहें है डॉलर के मुकाबले रूपया घटता ही जा रहा है और इसका कारण अन्तराष्ट्रीय मार्किट और तुर्की की घटना बताई जा रही है. लेकिन यदि तेल के मूल्यों में वृद्धि के लिए अन्तराष्ट्रीय मार्किट ही वजह मान लें तो क्या यह जरुरी है की इस मार्किट से उपजे दबाब का सारा लोड आप जनता पर ही डाल के वसूल लें, वह सारा लोड सरकार खुद ले सकती है या यह लोड जनता के साथ शेयर कर सकती है , पूरा लोड जनता पे अगर डाल देंगे तो जनता त्राहिमाम त्राहिमाम करेगी ही , जो आजकल हो रहा है, हर व्यक्ति पेट्रोल डीजल के बढ़ते मूल्यों से परेशान है बेचैन है और बहुत धैर्य से उनके मन मष्तिष्क के अवचेतन भाग में इस वृद्धि का दबाब बैठता जा रहा है और आज जनता सरवाईवल  के लिए संघर्ष कर रही है, हो सकता है की २०१९ में सरकार को सरवाईवल के लिए संघर्ष करना पड़े.


पेट्रोल और डीजल का जो प्राइसिंग सिस्टम है , ऐसा नहीं है कि उसमे तेल के बैरल की कीमत का ही सिर्फ भाग है उसमे ८८% तो सरकार का भाग है और इस भाग को नियंत्रित करना तो सरकार के हाथ में है , सरकार इसको कम कर के जनता का लोड इस वाले भाग को थोड़ा कम कर सकती है और इसकी भरपाई सरकारी खर्च में कटौती कर कर या कम प्राथमिकता वाले विकास के प्रोजेक्ट या जिन प्रोजेक्ट को थोडा समय लेकर किया जा सकता है को थोडा रूक कर करने से इस झटके को खुद भी बर्दाश्त कर सकती है और जन मानस के लिए भी बर्दाश्त योग्य बना सकती है. उत्पाद शुल्क और वैट को कम करना सरकारों के हाथ में हैं यहाँ तेल कंपनियों का नुकसान अंतर्राष्ट्रीय मार्किट का कीमत जैसी कोई चीज नहीं आती है यहाँ सरकार के हिस्से में जो प्रयास है उसी को कर दे तो फौरी राहत मिल जाएगी , बाजार को थोड़ा ऑक्सीजन मिल जायेगा और थोड़ा सोहताने के बाद फिर बाजार उठ खड़ा होगा और अपनी पूरी उर्जा से दौड़ उठेगा. ध्यान देने योग्य बात है की इसी देश के अन्दर एक राज्य गोवा में पेट्रोल के मूल्य कम है, आखिर जब गोवा में तेल के मूल्य कम हो सकते हैं तो पुरे देश में क्यूँ नहीं? गोवा को आधार बना कर सरकार से तो यह सवाल किया ही जाना चाहिए.


टैक्स की कटौती के अलावा चालू खाते और बैलेंस ऑफ़ पेमेंट को नियंत्रित करने के लिए सरकार को नीति के तौर पर भी बहुत कुछ करना पड़ेगा, मसलन पेट्रोल और डीजल की खपत कम कर इसके वैकल्पिक श्रोतों को बढ़ाना पड़ेगा. एक त्रिवर्षीय योजना के तहत सरकार चाहे तो शहरों में चल रही एप बेस्ड कारों ओला एवं उबेर एवं अन्य टैक्सी कारों एवं ऑटो को एक समय सीमा के अन्दर मौजूदा फ्लीट को इलेक्ट्रिक कार में परिवर्तन करने का नियम ला दे और जो नए लाइसेंस शहरी टैक्सी के लिए बनाये जा रहें हैं उन्हें इलेक्ट्रिक व्हीकल होने पर ही लाइसेंस दिए जाएँ ऐसा नियम ला सकती है. इन एप बेस्ड कारों के अलावा आम जन मानस को भी इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने के लिए थोडा   और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिसके अन्दर डीजल और पेट्रोल गाड़ियों की बिक्री को हतोत्साहित किया जाना भी हो सकता है ताकि पब्लिक इन गाड़ियों की जगह इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने की तरफ मुड़े. अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां हमारे नियंत्रण में नहीं है, हर बार सरकारी खजाने पे दबाब नहीं डाल सकते है तो दूर दृष्टि वाली योजनायें लानी पड़ेंगी.


संसद में एक बार माननीय वित्त मंत्री ने कहा था  कि सरकार ने अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न उपाय किये है जिनमें विनिर्माण, उत्पादन और परिवहन के लिए ठोस उपाय, साथ ही साथ अन्य शहरी और ग्रामीण बुनियादी ढांचे,विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नीति में व्यापक सुधार और विशेष कपड़ा उद्योग के लिए पैकेज आदि आदि है. उनके अनुसार सरकार ने2017-18 बजट में विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न उपायों की घोषणा भी की थी जिसमें बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने के लिए किफायती आवास के लिए बुनियादी ढांचे की स्थिति, राजमार्ग निर्माण के लिए उच्च आवंटन और तटीय कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित किया गया था। "राजमार्ग के विकास के लिए, भारतमाला परियोजना शुरू की गई है आदि आदि. हालाँकि सरकार के प्रयास तो ऊपर से ठीक दिखाई दे रहें हैं लेकिन ये सब दीर्घकालिक हैं, इकॉनमी को अभी तुरंत दर्द निवारक इंजेक्शन चाहिए क्यूँ की नोटबंदी और GST जैसे दो बड़े सुधार रुपी ऑपरेशन एक के बाद एक हो गए हैं और अगर इसके बाद इस पेट्रोल और डीजल का डोज दिया जायेगा तो जनता को परेशानी होगी ही. इकॉनमी को अगर स्लो डाउन से बचाना है तो सबसे पहले समझना होगा की दिक्कत क्या है. पूंजीवादी अर्थशास्त्र की बजाय सरकार को सामाजिक न्यायिक अर्थशास्त्र पे ध्यान देना पड़ेगा अर्थव्यवस्था के जैविक कारक को कितना लाभ हस्तांतरण हो रहा है वह भी देखना पड़ेगा. सिर्फ अपने खजाने को देखने की जगह अब सरकार को जनता के खजाने में घटोत्तरी न हो इसको भी देखना पड़ेगा. कहीं ऐसा न हो की ऊपर के विकास वाले लिस्ट के लिए हम जनता के खजाने को ही ख़त्म करते जाएँ और एक दिन जनता अच्छे दिनों की आस में सड़क पर आ जाए, सरकार को समझना पड़ेगा कि जनता को आज जिन्दा रहना जरुरी है तभी वह कल आने वाले अच्छे दिन को देख पायेगी नहीं तो वह हमारे उस दोस्त की तरह दम तोड़ देगी.

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