कंस्ट्रक्शन, व्यापार और सरकार



कंस्ट्रक्शन, व्यापार और सरकार


 

हाल के दिनों में एनसीएलटी में मुकदमों की संख्या बढ़ रही है और लेनदार अपनी वसूली के लिए थोडा जल्दी जल्दी एनसीएलटी का दरवाजा खटखटा रहें हैं और देश का कॉर्पोरेट वर्ग खासकर के कंस्ट्रक्शन व्यापार वर्ग, इस तरह से इस एनसीएलटी कानून को लेनदार प्रयोग करने लगेंगे, इसके लिए तैयार नहीं था. अपने बकाये वसूली को लेकर आज का कंस्ट्रक्शन व्यापारी वर्ग किस तरह परेशान है, आइये उस पर आज चर्चा करते हैं, साथ ही चर्चा करते हैं सरकारी मशीनरी अपने बकाये की वसूली कैसे करते हैं और इसका हल कैसे निकाला जा सकता है.

साधारणतया एक कंस्ट्रक्शन बिजनेस में औसतन १०% लाभ माना जाता है, आयकर की अनुमानित आय योजना के तहत तो वह ज्यादेतर व्यापार पर ८% शुद्ध लाभ गणना करने को बोलती है. अतः हम सुविधा के लिए १०% तर्कसंगत लगता है उसे ही लाभ की दर मान लेते हैं. जब कंस्ट्रक्शन व्यापारी अपना माल बेचता है तो गणना की सुविधा हेतु मान लेते हैं लागत ९०% और लाभ १०%. इस बकाये की राशि पर १२% की दर से सालाना ब्याज का हिसाब रक्खें तो १% प्रति माह उसपे ब्याज की लागत जुड़ती जाती है. इसमें सामान्यतया २% टीडीएस कटने के बाद ९८% पेमेंट ही मिलना होता है,लगभग पेमेंट करने वाला ५% रिटेंशन काट के रखता है जो प्रोजेक्ट ख़त्म होने के लगभग ६ माह के बाद देने की पारम्परिक प्रथा बन गई है. मतलब अब उसे ९३% राशि उसके बैंक खाते में मिलनी होती है. यदि यह पैसा ३ माह के अंत में मिलता है तो उसकी लागत भी ब्याज जोड़ के ९३% हो जाती है मतलब कोई लाभ वाला हिस्सा उसे प्राप्त नहीं होगा मूलतः. यदि यह भुगतान ८ माह विलम्ब हुआ तो उसकी लागत ९८% हो जाती है मतलब ८% फिलहाल उसकी जेब से चला गया और यदि बकाया ८ माह से ज्यादा विलम्ब हो गया तो पूरा प्रोजेक्ट ही नुक्सान में चला जाता है और नुक्सान होने के कारण यदि हानि का आयकर रिटर्न होता भी है तो २% टीडीएस वाला हिस्सा रिफंड मिलेगा कई माह के बाद. यदि यह बकाया १० माह से ज्यादा है तो पूरा प्रोजेक्ट ही शुद्ध हानि में चला जायेगा, ९०% बेसिक कास्ट  एवं  १०% ब्याज की लागत और उसकी पूंजी शनैः शनैः ख़त्म होती जाएगी. कई लोग निजी उधारी ले लेते हैं दोस्त आदि से वहां ब्याज की दर तो कई बार २४% से ज्यादे रहती है, यहाँ यदि उसका बकाया ५ माह से ज्यादा रूक गया तो पूरा प्रोजेक्ट ही हानि में ५ माह में ही चला जायेगा. व्यापारी इस हानि से बचने के लिए फिर अपने लेनदारों का पेमेंट रोकता है जो उसे देना होता है,और इस तरह इस कंस्ट्रक्शन व्यापार की पूरी साइकिल ही पेमेंट दुष्चक्र में फंस जाती है.  

यहाँ आप देखिये उस सौदे के बिल पर दो व्यक्तियों को भुगतान पाना होता है, एक तो वह व्यापारी जिसने उस कार्य को सम्पादित किया है चाहे वो देनदार हो या लेनदार हो और दूसरा सरकार जो उस कंस्ट्रक्शन बिल पर GST एवं टीडीएस वसूलती है.

सरकार इस सौदे के बिल पर टीडीएस एवं GST की वसूली करती है. टीडीएस दोनों तरफ से वसूला जाता है, जिससे वह भुगतान प्राप्त करता है उसकी जिम्मेदारी होती है की अगले माह के ७ तारीख तक सरकार के हिस्से का टीडीएस कर जमा कर दे नहीं तो कानून के तहत बाध्यकारी ब्याज देय हो जायेगा और उसी तरह उस बिल को रेज करने वाले को अपने खर्च वाले हिस्से में लेनदार वाला टीडीएस भी अगले माह के ७ तारीख तक सरकारी खाते में जमा करना होता है. इस तरह टीडीएस के केस में सरकार ७ दिन से लेकर ३७ दिन तक ही लोच का छूट देती है अन्यथा इसके बाद बाध्यकारी ब्याज और ज्यादे देर हुआ तो पेनाल्टी और लेट फीस भी वसूलती है और कई बार जेल तक भेज देती है. GST के केस में उसे रेज किये गए बिल का क्रेडिट यूज करने के बाद जो राशि आती है उसे अगले माह के २० तारीख तक भुगतान करना होता है और जिस वेंडर के बिल का वह क्रेडिट ले रहा होता है उसे भी तो उसी २० तारीख तक GST भरना होता है, और यदि ऐसा नहीं होता है तो GST कानून के तहत बाध्यकारी ब्याज देय हो जायेगा. इस तरह GST के केस में सरकार २० दिन से लेकर ५० दिन तक ही लोच का छूट देती है अन्यथा इसके बाद बाध्यकारी ब्याज और ज्यादे देर हुआ तो पेनाल्टी और लेट फीस भी वसूलती है और GST कानून के तहत जेल जाने की नौबत आ सकती है.

इसी सौदे में जो व्यापारी के हिस्से वाला पेमेंट का भाग है उसे उस तरह की वसूली की सुविधा, इंफ्रास्ट्रक्चर जैसा कि सरकार के पास है वसूली के लिए नहीं उपलब्ध रहता है और वह अपने पेमेंट के लिए रगड़ता रहता है. समान अवसर और समान सुविधा व्यापारी को नहीं प्राप्त हो पा रही है. सरकार अपने हिस्से की वसूली तो समय से, और यदि विलम्ब हुआ तो ब्याज और पेनाल्टीमय कर ले रही है, लेकिन व्यापार के साथ ऐसी समान सुविधा नहीं है.

जैसा की आज बाजार की हालत हो गई और और लेनदार बकाये वसूली के लिए एनसीएलटी का दरवाजा खटखटाने लगे हैं. सरकार की मंशा भले ही एनसीएलटी व्यापारिक बकाये वसूली के एक अंतिम विकल्प के रूप में लाया गया है लेकिन अब तो लेनदार इसे प्राथमिक विकल्प के रूप में आजमा रहें हैं. बकाये को लेकर बाजार एक बड़े संकट का सामना कर रहा है.

सरकार को एनसीएलटी के पहले एक और बकाया वसूली योजना लानी चाहिए जैसे की नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट प्रभावी है. जिसके तहत व्यापारी अपने बकाये को डिस्काउंट कर सरकार को असाइन कर सकें और पैसा प्राप्त कर ले और यह सरकारी वसूली हो जाए. इस पर ब्याज की राशि लगाने का क़ानूनी प्रावधान कर दे, तथा सरकार ब्याज के साथ इसकी वसूली करे और व्यापारी को सरकारी वसूली इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधा मिल जाये. यदि सरकार इसे सरकारी वसूली का भाग नहीं बनाना चाहती है तो ३ माह से ऊपर बकाये पर अनिवार्य ब्याज का प्रावधान ला दे, जो की अभी फिलहाल वैकल्पिक है लेनदार और देनदार अपने व्यापारिक रिश्ते के आधार पर इसे तय करते हैं. जब यह ब्याज क़ानूनी और अनिवार्य हो जायेगा तो कोई भी भुगतान करने वाला अनावश्यक भुगतान नहीं रोकेगा. यदि इस प्रक्रिया में सरकार भी भुगतान करने वाली है तो उसे भी ब्याज देना पड़ेगा इससे वित्तीय जिम्मेदारी भी सुनिश्चित की जा सकेगी.   

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