नोटबन्दी बैंकिंग मनी और ब्लैक मनी



 

 

नोटबंदी और बैंकिंग मनी बनाम ब्लैक मनी


 

नवम्बर 2016 में हुए नोटबंदी का उल्लेख करते हुए अभी रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट आई है. वित्त वर्ष 2017-18 के लिए केंद्रीय बैंक की सालाना रिपोर्ट में यह बात कही गई है किनोटबंदी के बाद अमान्य घोषित की गई ५०० एवं १००० कीकरेंसी लगभग-लगभग 99.30 % रिजर्व बैंक के सिस्टम में वापस लौट चुकी है । ध्यान देने योग्य तथ्य है कि नोटबंदी की घोषणा पीएम मोदी के द्वारा 8 नवंबर 2016 को की गई थी,जिसके अनुसार  8 नवंबर की रात बारह बजे के बाद 500और 1000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीं होंगे थे। ये 500और 1000 रुपये के नोट उस समय बाजार में प्रचलित कुलकरेंसी के 86 फीसदी हिस्सा को कवर करते थे।

इसका मतलब यह है कि गैरकानूनी घोषित किए गए नोटों का एक काफी छोटा हिस्सा ही प्रणाली में वापस नहीं आ पाया बकिया आ गया. सरकार ने जो 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा करते हुए कहा था कि इसके पीछे मुख्य मकसद कालाधन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है, इसमें सरकार कितना सफल हुई कितना असफल हुई इस 99.30% को किन अर्थों में लेना है इसपर मैं आगे विवेचना करूँगा. इस प्रतिबंधित नोटों को गिनने में रिजर्व बैंक को भी काफी अधिक समय लगा. उस तत्कालीन समय में सरकार ने नोटबंदी की घोषणा के बाद लोगों को पुराने नोटों को जमा कराने के लिए50 दिन की सीमित अवधि उपलब्ध कराई थी जिसे बाद में बढ़ा के ३१ मार्च किया गया. 

नोटबंदी के समय मूल्य के हिसाब से 500 और 1,000 रुपये के 15.41 लाख करोड़ रुपये के नोट प्रचलन में थे. रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 15.31लाख करोड़ रुपये के नोट बैंकों के पास वापस आ चुके हैं. जिसका तात्पर्य है कि बंद नोटों में से सिर्फ 10,720 करोड़ रुपये ही बैंकों के पास वापस प्रणाली में नहीं आए हैं.  

नोटबंदी के बाद सरकार ने 500 रुपये के बंद नोट के स्थान पर नया नोट तो जारी किया है लेकिन 1,000 रुपये के नोट के स्थान पर नया नोट जारी नहीं किया गया है. इसके स्थान पर 2,000 रुपये का नया नोट जारी किया गया है. उस समयनोटबंदी को कालेधन, भ्रष्टाचार पर अंकुश तथा जाली नोटों पर लगाम लगाने के कदम के रूप में देखा जा रहा था.

यह तो हो गया रिज़र्व बैंक का सांख्यिकीय आंकड़ा जिसे आप हर जगह मीडिया में पढ़ और सुन रहें होंगे. यहाँ मैं विवेचना करूँगा की इन आंकड़ों को सरकार की असफलता और सफलता के दृष्टिकोण से कैसे आंकलन करेंगे. बैंकिंग मनी और ब्लैक मनी में बेसिक क्या अंतर है. क्या सारे बैंकिंग मनी ब्लैक मनी माने जायेंगे?

अगर सफलता की दृष्टि से देखा जाए तो 99.30% करेंसी का रिप्लेस हो जाना अक अभूतपूर्व सफलता मानी जा सकती है. क्यूँ की इतने बड़े देश में पूरी करेंसी बदलने का टारगेट 99.30 % सफल हो जाए तो लिमिटेड सेंस में मुद्रा परिवर्तन अभियान सफल ही माना जायेगा, ठीक वैसे ही जैसे शरीर में ब्लड कैंसर होने की दशा में पुराने ब्लड को हटाने के बाद 99.30% शुद्ध रक्त चढ़ गया. सरकार सफलता में यह मान सकती है की जो नकली नोट पुराने प्रिंटिंग कलर और डिजाईन के थे वही जमा नहीं हुए और नए कलर और डिजाईन लांच करने के साथ ही उस नकली नोट के प्रचलन की संभावनाओं को शत प्रतिशत ख़त्म कर दिया. वैसे नकली नोट गोदाम में या कहीं पड़े पड़े सिर्फ एक फैसले से ही ख़त्म हो गए और चूँकि वो नकली नोट थे तो किसी ने उसे बैंक में जमा नहीं कराया. उस पुराने नकली नोट बनाने के सभी कारखानों की डाई और मशीन भी सिर्फ इस एक फैसले से बेकार हो गई.

और अगर असफलता की दृष्टि से देखा जाए तो इस शुद्धिकरण की जो अवधि थी, समय का चयन था और मशीनरी की तैयारी थी वो पर्याप्त नहीं थी. रक्त शुद्धिकरण की प्रक्रिया की तरह मुद्रा शुद्धिकरण की प्रक्रिया में 99.30 % सफलता तो मिली लेकिन यह काफी पीड़ादायक अनुभव साबित हुआ. निर्णय के बाद पता चला की तैयारी वैसी नहीं हो पाई थी,शादी ब्याह और खेती का समय था, सरकार की तरफ से हालात को सँभालने के लिए कई बार नोटिफिकेशन लाने पड़े, तारीखों को बदलना पड़ा और लोगों की कतारें एटीएम के सामने कई दिनों तक लम्बी लम्बी लगी रहीं. शुरुवात में अस्पष्टता के कारण एक भगदड़ की स्थिति सी मच गई थी. मीडिया में खबर आई कि जल्दबाजी में प्रिंट किए नोट एटीएम में पहुँचने लगे और पता चला की कई नोट आधे प्रिंट हुए थे. लोग काम धंधा छोड़ के कई महीने इस मुद्रा परिवर्तन में ही लगे रहे जिस कारण से उस दौरान इकॉनमी सुस्त हो गई और जीडीपी प्रभावित हुई. कई एटीएम मशीन नए नोटों के हिसाब से केलीबेरेट नहीं हुए थे. कस्बों में प्लास्टिक करेंसी लायक या ऑनलाइन सौदे के लिए कोई इन्फ्रा नहीं मौजूद था. नोटबंदी वह हथियार था जिसे अंतिम अस्त्र के रूप में चलाना चाहिए था तब यह मारक होती अन्यथा यह अपना मारक शक्ति खो देती है और हुआ यही नोटबंदी ने अपना मारक शक्ति खो दिया, और उस समय देश की अर्थ व्यवस्था सुस्त हो गई।

नोटबंदी के बाद कई दावे किए गए थे और अनुमान भी लगायागया था कि लगभग 2 लाख रुपये जमा नहीं होंगेऔर यह सरकार का लाभ हो जाएगा जिसे फिर से अर्थव्यवस्था में लगा के उसे बूस्ट करदिया जाएगा, हालांकि यह भी नहीं हुआ और लगभग 99.30% पैसा बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गया.

यहाँ एक चीज स्पष्ट हो जानी चाहिए की बैंक में जमा पैसा ऐसा नहीं है की सफ़ेद हो गया, बैंक में जमा पैसा भी ब्लैक मनी हो सकता है सिर्फ होता यह है की वह नकदी व्यवस्था से निकलकर बैंकिंग व्यवस्था में आ जाता है और फिर अनुकूल समय देखके नकदी व्यवस्था में चला जाता है. जैसे आज भी आशंका व्यक्त की जाती है की सहकारी बैंको और चिट फंड में ब्लैक मनी जमा है जो की बैंकिंग मनी है.

आप ब्लैक मनी और नोटबंदी पे तमाम बहसें सुनी होगी, लेकिन शायद आपको मालूम नहीं है की ब्लैक मनी आयकर अधिनियम के कहीं परिभाषित नहीं है और तो और ब्लैक मनी सिर्फ आयकर अधिनियम तक ही सीमित नहीं है। बहुतों को लगता है की आयकर भर दिया तो ब्लैक मनी सफ़ेद हो जाएगी लेकिन वाकई में ऐसा नहीं है, ब्लैक मनी का मतलब कोई भी ऐसी आय जो देश के क़ानूनों के दायरे से बचा के की जाए, या यूं कहें की छुपा के की जाए और उसपे उपयुक्त सभी तरह के कर या उनमें से कोई एक कर न भरी जाए। अगर आपने कोई कमाई ऐसी की है जिसमें आपनेGST , अन्य कर या आयकर न भरा हो और इस कमाई को इनमें से किसी भी विभाग से छुपाया हो तो वह काला धन हो जाता है। कई बार ऐसा होता है की लोग कई कमाई पे आयकर तो भर देते हैं लेकिन GST नहीं भरते हैं इन सब टैक्स कि चोरी कर सकें ये सारी आय को काला धन कहा जाता है। इसलिए बैंकिंग मनी और ब्लैक मनी बिलकुल दो अलग चीजें हैं.

 

नोटबंदी जो था वो विदेशी काले धन के लिए नहीं था वह था घरेलू काला धन के लिए और वह भी घरेलू काले धन पर भी यह ज्यादे प्रभावकारी नहीं था यह प्रभावकारी था जाली नोटों के ऊपर।

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