न्यूनतम विदेशी अधिकतम स्वदेशी

न्यूनतम विदेशी अधिकतम स्वदेशी
आज गिरते रुपये के आईने में न्यूनतम विदेशी और अधिकतम स्वदेशी की चर्चा में उस बिंदु पे बात करेंगे जिसे हम अनजाने में प्रतिदिन करते हैं लेकिन यह अहसास ही नहीं होता है कि अरे हम तो विदेशी वस्तु का इस्तेमाल कर रहें हैं और वह है पेट्रोलियम पदार्थ. आज जो रुपये का कमजोर होना जारी है और इस बार यह झटका टर्की के कारण ज्यादे लग गया है और इस बार के चुनौतीपूर्ण वैश्विक माहौल ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को आक्रामक रूप से हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर किया है ताकि रुपये में और मूल्यह्रास न हो। अप्रैल महीने में विदेशी मुद्रा भंडार 426 बिलियन डॉलर से गिरकर अगस्त में 403 बिलियन डॉलर पर आ गया है. अमेरिका और तुर्की के बीच जारी मौजूदा खींचतान के कारण उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी को नुकसान पहुँच रहा है, जिसके कारण भारतीय रुपये ने भी बीते दिनों 70 का स्तर पार कर लिया था और हाल फिलहाल इसमें मजबूती के आसार नहीं दिख रहें हैं। टर्की हालत के कारण जिन भारतीय कंपनियों के टर्की में निवेश थे उन्हें भी बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है.
दरअसल रुपये के कमजोर होने के प्रमुख कारणों में आयात का भुगतान होना है जिसमे आयल मुख्य रूप से हैं जिससे देश में विदेशी मुद्रा की कमी हो जाती है और चालू खाते का घाटा भी बढ़ जाता है. किसी रणनीति के तहत रुपये का अवमूल्यन अगर आरबीआई करती तो ठीक रहता और नियंत्रण में रहता लेकिन मौजूदा अवमूल्यन कमोबेश वैश्विक संकट के कारण पैदा हुआ है जो अनजाने में हमें भी प्रभावित कर रहा है. अगर इससे हमें लड़ना है तो सरकार और हमारे स्तर पर भी कुछ अनुशासन लाने पड़ेंगे तभी हम इस हालात से निपट सकते हैं. इसके लिए हमें न्यूनतम विदेशी और अधिकतम स्वदेशी के फार्मूले पे काम करना पड़ेगा. जो सबसे अधिक विदेशी वस्तु का उपयोग हम दैनिन्दिनी के जीवन में करते हैं वह है पेट्रोलियम पदार्थों का इस्तेमाल. हमें अपने स्तर पर अपनी दिनचर्या और जीवन शैली ऐसी बनानी पड़ेगी कि हम पेट्रोलियम पदार्थों का इस्तेमाल कम से कम करें. इसके लिए हम छोटी छोटी युक्तियाँ बना सकते हैं, और यदि इस तरह हमने २०% इंधन की लागत कम कर ली तो समझ लीजिये आपने देश का लगभग १०% तेल आयात बिल भुगतान कम कर दिया. ऐसी अनुशासन और बचत से सिर्फ आप अपना ही भला नहीं कर रहे हो इसी बहाने देश की भी सेवा हो जा रही है. इन छोटी छोटी युक्तियों में शामिल है कि सिर्फ यदि एक व्यक्ति को रूटीन से ऑफिस जाना है तो निजी कार का इस्तेमाल कम करना, सार्वजनिक वाहन का इस्तेमाल करना या बहुत से एप बेस्ड टैक्सी सर्विस हैं जो शेयर और पूलिंग सुविधा देते हैं उसका इस्तेमाल करना, इससे तीन आदमियों के ट्रिप पे अलग अलग खर्च होने वाला पेट्रोल की खपत एक ट्रिप के खपत पर पहुँच जाएगी. ऑफिस में अपनी कार को भी कार पूलिंग कांसेप्ट पर चलाना. आजकल हर सिग्नल पर ठहराव टाइम लिखा होता है ऐसे में कार का इंजन बंद कर देना. गाडी को अप टू डेट रखना ताकि उसकी डीजल पेट्रोल की खपत कम हो, ऐसे उपायों से आप अपना २०% पेट्रोल खर्च कम कर सकते हैं जो सीधे सीधे देश के आयात बिल को घटा सकता है.
इसके अलावा सरकार को भी इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन पर आक्रामक रवैया अपनाना चाहिए. सरकारी वाहनों को तो क्रमबद्ध तरीके से डीजल और पेट्रोल से हटाकर आवश्यक रूप से बिजली इलेक्ट्रिक व्हीकल के इस्तेमाल की नीति लानी चाहिए, इससे ही बड़े पैमाने पर तेल के खर्च को कम किया जा सकता है. हाल फिलहाल में भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार एकदम नया एवं प्राथमिक स्तर पर है । भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के मांग में वृद्धि की स्थिति यहाँ की पर्यावरण की स्थिति और ड्राइविंग पैटर्न के कारण पश्चिम की तुलना से अलग है। मेक इन इंडिया पर पूरी तरह से काम करते हुए भारत जैसे देश में इलेक्ट्रिक वाहन टेक्नोलॉजी को और सस्ता से सस्ता बनाने के लिए यहाँ निवेश की सम्भावना विशाल है और इसके लिए एक वास्तविक एवं सुसंगत सरकारी नीति की आवश्यकता है. हालाँकि हाल ही में सरकार की सक्रियता को ध्यान में रक्खे तो हम पाते हैं हैं कि इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्माण भारत में बड़े पैमाने पे शुरू होने जा रहा है और यह एक सुखद संकेत है. इनके निर्माण के साथ साथ इनके इन्फ्रा पर भी काम करना होगा, वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों की मूलभूत जरुरत यह है कि यह चार्ज कैसे होंगे और इसके लिए चार्जिंग स्टेशनों के मुद्दे को हल करना पड़ेगा और देश में चार्ज करने हेतु बुनियादी ढांचा , पीपीपी आधार पर स्थिर ग्रिड और स्पष्ट रेवेन्यु मॉडल के आधार पर अब काम करना पड़ेगा। सरकार इस के लिए सिफारिशें और एडवाइजरी जारी कर सकती है, लेकिन वह पुरे का पूरा बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं कर सकती है। चार्जिंग स्टेशनों का एक संभावित स्रोत पेट्रोल पंप या मेट्रो स्टेशन हो सकता है। इसे  रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों या जैव ईंधन द्वारा सुसज्जित और संचालित करने की भी आवश्यकता होगी ।नीति आयोग ने भी ने इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं को वित्तीय प्रोत्साहन देने और निजी स्वामित्व वाले पेट्रोल और डीजल इंधन वाला वाहनों को हतोत्साहित करने की सिफारिश की है। ये भारत की गतिशीलता, ऊर्जा और पर्यावरण की जरूरतों के लिए संभवतः दूरगामी कदम है और मौजूदा वाहनों के इंजन के धीरे धीरे अंत के रूप में हम इसे देख सकते हैं।
इस विकल्प के अलावा जिन जिन शहरों में साइकिल के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है वहां इसका बढ़ावा दिया जाना जरुरी है. पश्चिम की देशों के तर्ज पर यहाँ भी रेंट ए साइकिल का कांसेप्ट बड़े पैमाने पर लाना पड़ेगा. भारत के कुछ शहरों में रेंट ए साइकिल का कांसेप्ट अभी शुरुवाती स्तर पर है, लेकिन यदि इसे न्यूनतम विदेशी और अधिकतम स्वदेशी की तर्ज पर बड़े पैमाने पर लागू किया जाय तो एक बड़ी आबादी इससे अपने ऑफिस, मेट्रो स्टेशन या आसपास जे बाजार में जा सकती है है. यह दोहरा फायदा देगा, एक तो स्वास्थ्य तो ठीक ही करेगा दुसरे पेट्रोलियम प्रोडक्ट के उपयोग की कम करेगा.
जिनकी निगाहें अंतर्राष्ट्रीय राजनीती की तरफ है उन्हें यह भली भांति मालूम होगा की सऊदी अरब अब पहले से ज्यादे उदार और निवेश फ्रेंडली क्यूँ हो रहा है. विश्व और पर्यावरण में घट रही घटनाएँ बहुत सी ऐसी चीजें कर रही हैं जिसके कारण हो सकता है की २०३० तक आते आते दुनिया का आर्थिक स्वरुप ही बदल जाये और कई देशों की खाड़ी देशों पर तेल के लिए निर्भरता कम हो जाए. जब पूरी दुनिया इस पर काम कर रही है, खाड़ी देश भी उनके ऊपर आने वाले इस खतरे को भांप रहें हैं तो क्यूँ न हम इस अभियान के नायक बनें, आबादी के हिसाब से हम तो पेट्रोलियम पदार्थ ज्यादे प्रयोग करते हैं और यदि बचत भी करेंगे तो यह बड़ा बचत होगा. 
      

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