मुम्बई की बाइयों को सलाम


मुंबई की बाइयों को सलाम
मुंबई की बाइयों को सलाम। अर्थ के बहस में कईयों को यह थोड़ा अटपटा लग सकता है, लेकिन जब इनके हुनर को रेखांकित किया जाएगा तो अंत में आप सलाम जरूर करेंगे की कैसे यह परिवार और देश की जीडीपी में योगदान करती हैं। जैसे मुंबई और देश विदेश में डब्बावालों को रेखांकित कर उनपे चर्चा और बहस होती है, इन पर भी होनी चाहिए। यह मुंबई का एक बड़ा असंगठित बाजार है जहां श्रम शक्ति सुबह 6 बजे से लेकर 11 बजे तक काम करती है फिर शाम 5 बजे से 8 बजे तक काम करती है, और यह निरंतर चलता रहता है। आज एक बाई यदि नॉर्मल क्षमता से सुबह 6 घर और शाम को 6 घर का काम करती है तो वह औसतन 12000 रुपये कमा लेती हैं, जो उन्हे आत्मनिर्भर बना उन्हे अपने पैरों पर खड़ा होने मे मदद करता है, और इस हुनर के लिए उन्होने अलग से कोई प्रशिक्षण नहीं लिया यह तो उनका नैसर्गिक हुनर था जिसे उन्होने कमर्शियल रूप दे दिया है, जबकि हम मे से कई ऐसे होंगे जो अपने नैसर्गिक हुनर को कमर्शियल रूप तो दे नहीं पाते और नए हुनर अर्जित नहीं कर पाते, ऐसे लोगों के लिए ये बाइयाँ बहुत बड़ी सीख हो सकती हैं। अभी कुछ दिन पहले मैं आश्चर्यचकित रह गया जब मेरी बीबी ने बताया की शाम को आने वाली बाई ने अपने बेटे को 25000 का मोबाइल गिफ्ट किया है। सुखद आश्चर्य के साथ मैंने पूछा कितना कमाती है तो पता चला की वह छोटे परिवार का एक टाइम के खाने बनाने का 2500 रुपए लेती है और ऐसे ऐसे उसने सुबह शाम मिला कर 10 घर पकड़े हैं तो हो गया न 25000 रुपये की मासिक आय। काम मे पारंगत इतना की खाना बनाने में 25 मिनट से ज्यादे वक़्त नहीं लगता है। और इस आय कमाने के लिए उसने कोई डिग्री या कमर्शियल पढ़ाई नहीं किया, उसने अपने नैसर्गिक हुनर को पहचाना और उसे वाणिज्यिक रूप दे दिया, जिससे उसका वह हुनर अब उसके लिए मूल्यवान हो गया। सुबह 7 से 10 उसको काम करना है और शाम को 5 से 8 बजे तक उसे काम करना है। बीच के 10 बजे से 5 बजे तक उसका अपना समय होता है जिसमें वह आराम भी करती है और अपने घर को भी समय देती है। बिलकुल पेशेवर औरतों की तरह उनका काम होता है। उनका काम तय करते वक़्त भी बातचीत करने का अंदाज़ भी बड़ा पेशेवराना होता है, बड़े बड़े सॉफ्टवेर इंजीनियर भी उतना पेशेवर नहीं होते जो घंटे का पैसा लेते हैं। अगर आप उनसे एक काम एक्सट्रा करा लो उसका भी वो चार्ज करती हैं, बाथरूम साफ करने का, फ़र्निचर साफ करने का काम आपने दे दिया तो उसका वह अलग से पैसे लेती हैं, कुछ तो प्रति रोटी पकाने का भी पैसा लेती हैं। इस अव्वल दर्जे की पेशेवर दक्षता जो कार्य कुशलता के साथ साथ मूल्य निर्धारण तक मे हैं उसपर सरकार एवं प्रबंध संस्थानों को ध्यान देना चाहिए। अपने कार्य के साथ साथ वह अपने परिवार, बच्चे, सास ससुर को भी मैनेज करती हैं। अगर मुंबई में बहुत सी कामकाजी महिलाएं समय पर काम पर जा पाती हैं उनमे इन बाइयों का भी योगदान हैं, और जो बहुत से पुरुष भी काम पर समय पर जा पाते हैं उनमें भी इन बाइयों का योगदान है। इनका महत्व तब पता चलेगा जब एक साथ मुंबई की बाईंया हड़ताल पर चली जाएँ तो मुंबई के कार्यालयों की कार्य उत्पादकता गिर जाएगी।
इसलिए यह इतना बड़ा और महत्वपूर्ण असंगठित बाजार है जिसपे सरकार और नीति नियंताओं को ध्यान देने की जरूरत है, देश की जीडीपी मे इनके मूल्यांकन को रेखांकित करने की जरूरत है जो प्रत्यक्ष रूप से वह कमाकर अपने पारिवारिक इंकम को बढ़ा देती हैं और मुंबई के कामकाजी पुरुषों और महिलाओं को समय पर कार्यालय पहुंचाने मे सहयोग देकर कार्य उत्पादकता बढ़ा कर देती हैं।
वाकई में देखा जाय तो यह महिला सशक्तिकरण की सबसे जीवंत एवं सटीक उदाहरण हैं। इनके जीवन चर्या, इनके कार्य कुशलता, इनके पारिवारिक प्रबंधन वित्त प्रबंधन ग्राहक प्रबंधन और प्राइस फ़िक्सेशन के बारे में देश के प्रतिष्ठित प्रबंध कॉलेजों में पाठ्यक्रम होने चाहिए। बिना नोटिस बोर्ड एवं फॉर्मल सर्कल के आपको एक क्षेत्र के बाइयों में एक ही रेट प्राप्त होगा, जो बताता है कि इनका अनौपचारिक सूचनातंत्र कितना मजबूत है। और एक बात जो मैंने पहले भी कही थी कि विश्व की सर्वोत्तम प्रबन्धक भारतीय स्त्री होती हैं। उनके घर चलाने के सारे कियाकलापों में प्रबंध के सारे गुण छिपे होते हैं जिसपे देश के प्रतिष्ठित प्रबंध कॉलेजों में शोध होने चाहिए और बहस होने चाहिए और इस सिद्धान्त और इसके प्रयोग को पाठ्यक्रम में शामिल करने चाहिए। यहाँ यह सवाल हो सकता है की भारतीय महिलाएं ही क्यूँ? तो इसका जबाब यही है की अपने जीवन काल में भारतीय महिलावों की संख्या ज्यादा है जो जीवन को संतुलित जीती जाती हैं और गृह प्रबंधन में ज्यादे रहती हैं। एक भारतीय स्त्री जिसे क्रय एवं खर्च प्रबंधन , संपत्ति प्रबंधन उत्पादन प्रबंधन वित्त प्रबंधन बचत का प्रबंधन मानव संसाधन प्रबंधक टाइम मैनेजमेंट इवैंट मैनेजमेंट ट्रैवल मैनेजमेंट से लेकर स्क्रैप मैनेजमेंट भी शानदार और सिद्धहस्त तरीके से करती हो वह सर्व श्रेष्ठ प्रबन्धक तो होगी ही। इसमें से कई महिलाएं तो इन सब के अलावा बाहर काम भी करती हैं और इस तरह दोनों काम सफलतापूर्वक करती हैं। देश के IIM एवं अन्य प्रबंध संस्थानों को भारतीय महिलावों पे एक पाठ्य क्रम भी चलाना चाहिए, यह बिरला ही है कि इतने प्रबंध के गुण विश्व में किसी एक व्यक्ति के पास हों।
सरकार को इनको सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना चाहिए जैसी सुरक्षा संगठित क्षेत्रों के कामगारों को दी जाती है। इनके पेंशन इनकी बीमा और सुसंगत श्रम क़ानूनों से वो सारे हक दिलाने चाहिए जिससे इनके कार्य और आय मे इजाफा हो और इन्हे सुरक्षा मिले। मुंबई के बाई का मॉडेल देश के अन्य हिस्सों मे लागू किया जा सकता है, इसे प्रोत्साहित किया जा सकता है जिससे जो कौशल और हुनर घर पर पड़ा हुआ है उसे कमर्शियल रूप दे दिया जाय और महिलाओं के साथ साथ परिवार को भी आत्मनिर्भर बनाया जाय। इस तरह के सनातन अर्थशास्त्र के अनुप्रयोग से देश की जीडीपी भी दुगुनी हो जाएगी, बचत कि वृद्धि होगी जो विनियोग को बढ़ावा देगा और प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ जाएगी।

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