राष्ट्रीय रोजगार रजिस्टर बने रोजगार डेटा हेतु

राष्ट्रीय रोजगार रजिस्टर और रोजगार डाटा

इस समय रोजगार के डेटा को लेकर एक बड़ा संशय बना हुआ है. कोई भी एजेंसी संस्था रोजगार के प्रमाणिक आंकड़े देने में सक्षम नहीं है. यहाँ तक की संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान माननीय प्रधानमंत्री को अनुमान के आधार पर आंकड़े पेश करने पड़े जिसे चुनौती भी दी जा सकती है क्यूँ की ये वास्तविक और प्रमाणिक नहीं है. रोजगार डाटा का यह संकट इसलिए और भी आया है की आजकल रोजगार के मायने और प्रकृति बदल गई है. लोग अब नौकरियों के अलावा स्वरोजगार और फ्रीलांसिंग पे ज्यादे काम कर रहें हैं. बड़ी बड़ी कम्पनियाँ रोल पर कर्मचारियों को रखने के बजाय कंसल्टेंसी पर रख रहीं है, इससे उनका पीएफ नहीं कट पा रहा है और ऐसे रोजगार का डाटा पीएफ डिपार्टमेंट के पास नहीं जा पा रहा है. कर्मचारियों के अलावा कम्पनियाँ भी आजकल अपने कर्मचारियों को अपने रोल पे रखने को इच्छुक नहीं है और ठेका पद्वति या कंसल्टेंसी पद्वति आजकल ज्यादे चलन में है. इसलिए सरकारी संस्थाओं जैसे की लेबर ब्यूरो या प्रोविडेंट फंड डिपार्टमेंट के आंकड़े अब उतने विश्वसनीय नहीं रह गए हैं.
आज देश के विकास के लिए सबसे मौलिक चुनौतियों में से एक है रोजगार का निरंतर उत्पादन, युवाओं की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है और यदि सबके हाथ को काम नहीं मिलेगा तो उनके गुमराह और भटकने की ज्यादे गुंजाईश है  । आज की तारीख में लगभग सभी अनुमान बताते हैं कि नई नौकरियों की संख्या नीचे की तरफ जा रही है, और हमारे पास कोई आधिकारिक डेटा नहीं है। और पिछले 10 सालों से, सरकारें जो कुछ भी डेटा दे रहीं हैं वास्तविक की जगह अनुमान पे देने की  कोशिश कर रही हैं।
हमें और सरकार को इन नंबरों को जानने की जरूरत इसलिए है क्योंकि देश का एक बड़ा हिस्सा रोजगारविहीन है योग्यता और कौशल की तुलना में छोटी मोटी नौकरियां कर रहा है, और हमारे पास नौकरी की गिनती का कोई विश्वसनीय रिकॉर्ड नहीं है, ताकि हम कोई नीति या कार्यवाही समय पर कर सकें.
पहले श्रम मंत्रालय विस्तृत रोजगार आंकड़े बताता था लेकिन पिछली सरकार ने इसे अनजाने में बंद कर दिया । वर्तमान सरकार ने श्रम ब्यूरो की वार्षिक रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण रिपोर्ट को भी बंद कर दिया है। माना कि श्रम ब्यूरो के सर्वेक्षण में विसंगतियां मौजूद थीं लेकिन वो ठीक की जी सकती थी जब तक की कोई नई विश्वसनीय प्रणाली स्वीकार नहीं की जा लिती थीं। सरकार को इस प्रक्रिया को त्यागने के बजाय, कमियों को सुधारना चाहिए था।
नौकरी डेटा का एक नया सेट इस समय नीति योग द्वारा तैयार किया जा रहा है और सितंबर में इसका डाटा  बाहर आने की उम्मीद है। इस तरह के डेटा सेट की पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना नीति आयोग के लिए भी एक लिटमस परीक्षण जैसा होगा। क्यूँ की रोजगार के मायने एवं प्रकृति का क्षेत्र बहुत बदल और व्यापक हो गया है. इस तरह के डेटा व्यापक होना चाहिए और पूर्णकालिक, अंशकालिक, स्वरोजगार, फ्रीलांसिंग आदि सभी डाटा को समाहित किए वाला होना चाहिए। चूंकि आजकल नौकरियां प्रकृति में बहुत तेजी से कर्मचारी बदल रहा है और स्थायी से  अस्थायी की तरफ बढ़ रहा है , इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि बताया गया डेटा निरंतर अन्तराल पर अपडेट किया जाता रहे। कई विकसित देशों ने नौकरी डेटा आंकड़े  देने की एक ठीक ठाक प्रक्रिया विकसित कर ली है जो हमारे लिए एक मानक के रूप में कार्य कर सकता है।
आजकल रोजगार के कई स्वरुप हैं, जैसे की कोई व्यक्ति यदि अपने हुनर के योग्य कोई कार्य करता है और उसमें उसे कार्य संतुष्टि मिल रही है तो उसे रोजगार की श्रेणी में शामिल कर लेना चाहिए. सरकार को रोजगार परिभाषित करते वक़्त इस अवधारणा से बाहर आ जाना चाहिए की अंतिम तौर पर नौकरी देने की गारंटी सरकार की है और शिक्षा का तात्पर्य नौकरी से है.
आजकल संस्थाएं कर्मचारियों को रोल की बजाय कंसल्टेंसी या ठेके पर यदि रख रहीं हैं तो सरकार को इस प्रवृत्ति का अध्ययन कर उस प्रकार समाधान बनाना चाहिए. पीएफ के कानून में एक निर्धारित संख्या २० कर्मचारियों के होने की वजह से कई संस्थाएं पीएफ की औपचारिकता से बचने के लिए अपने यहाँ रोल पर हमेशा २० से कम कर्मचारी रखती हैं. ऐसी दशा में सरकार को सुधार इस प्रकार करना चाहिए की संस्थाएं जो रोजगार देती हैं वो अपना रोजगार अपडेट करने के लिए उत्साहित हों और सरकार के पास अपने रोजगार का आंकड़ा दे, इसके लिए चाहे तो सरकार राष्ट्रीय रोजगार रजिस्टर जैसी एक योजना ला सकती है और इसे इंसेंटिव से कनेक्ट कर के लोगों को इस रजिस्टर में पंजीयन कराने के लिए प्रेरित कर सकती है. इसमें सभी तरह के रोजगार की श्रेणियां शामिल की जा सकती हैं तथा पंजीकृत व्यक्ति को सरकार की तरफ से कुछ दुर्घटना बीमा, कुछ सरकारी सुविधाएँ आदि का प्रोत्साहन देकर इसे व्यापक तौर पर तैयार कराया जा सकता है. इसे कर्मचारी खुद जाकर अपने आधार से वेरीफाई कर नेशनल रजिस्टर पर अपना रोजगार आंकड़ा दर्ज कर सकता है और सामयिक अंतराल पर अपडेट कर सकता है. अगर कोई व्यक्ति अपना डेटा नौकरी डॉट काम को दे सकता है तो नेशनल रोजगार रजिस्टर को भी दे सकता है. इस नेशनल रोजगार रजिस्टर को किसी भी तरह की रोजगार आधारित टैक्स के आंकड़े के लिए प्रयोग में नहीं लाया जाये जैसे की पीएफ या अन्य जिससे की संस्थाएं भी इसे अडॉप्ट करने में हतोत्साहित न हो. धीरे धीरे निजी और सरकारी नौकरियों में उन्ही को नौकरी पर रखने का नियम लाया जा सकता है जिनके पास नेशनल रोजगार नंबर होगा. और यह नंबर स्वरोजगार, फ्रीलान्स या नौकरी वाले जितने भी हैं सबके पास होगा. इस नंबर को रखने के कारण बीमा के अलावा भी उन्हें अन्य तरह की सहूलियतें भी दी जा सकती हैं, क्यूँ की यह नंबर सिद्ध करता है की राष्ट्रीय जीडीपी में यह क्रियाशील योगदान कर रहें हैं, इसलिए शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ सहूलियत का विस्तार कर इस प्रक्रिया को और आकर्षक बनाया जा सकता है.
सरकार को इस प्रक्रिया को एक आगे आकर उत्साहपूर्वक कार्य करना चाहिए. क्यूँ की एक प्रामाणिक डेटा सेट रीयल-टाइम रोजगार उत्पादन पर प्रकाश डालेगा और नीतियाँ बनाने में सहायक होगा और हम अपने मानव संसाधन का आंकलन सबसे सटीक कर पाएंगे जो की भारत की शक्ति है। यह डाटा डिटेल और कुशलता की हर श्रेणी और अनुभव जैसे आंकड़े के साथ होने के कारण संस्थाओं द्वारा भी नौकरी प्रदान करने के लिए एक आधार आंकड़े के रूप में कार्य कर सकता है. जब नौकरी डॉट काम या मोंस्टर जैसी कम्पनियाँ ऐसे आंकड़े रख सकती हैं तो सरकार क्यूँ नहीं. 

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