अफ्रीका से भारत : हिन्दू तीर्थाटन की असीम संभावनाएं



अफ्रीका टू भारत : हिन्दू तीर्थाटन की असीम संभावनाएं


 

आजादी के बाद जब भारत निर्माण का कार्य शुरू हुआ तब से पता न जाने क्यूँ पर्यटन विकास की दृष्टि भारत के मौलिक स्वरुप को ध्यान में रखकर नहीं बनी. धर्मनिरपेक्ष के गलत व्याख्या के कारण अभी तक इस देश के मौलिक पर्यटन अपनी आकर्षण शक्ति के बूते ही लोगों को खिंच रहें हैं. भारतीय मौलिक रूप से धार्मिक होते हैं और उनकी पर्यटन की जो भी योजना बनती है वो लगभग यात्रा के माध्यम से तीर्थों का दर्शन ही होती है. धर्मनिरपेक्ष संविधान के पालन के हिसाब से सरकारों को धर्म से सम्बंधित प्रश्नों पर न्यूट्रल रहना है, निरपेक्ष रहना है यह मौलिक अर्थ था धर्मनिरपेक्षता का,सत्ता का धर्मशून्य होना या धर्म से विमुख होना नहीं था.

संविधान का उद्देश्य था की शासन के दौरान यदि कोई ऐसा प्रश्न आता है तो उसमें शासक को, जिसका कि अपना भी कोई धर्म होगा, उससे प्रभावित हुए बिना, निरपेक्ष भाव से उन प्रश्नों का समाधान करना होगा. शासन दर्शन के रूप में शासन धर्मों के प्रति निरपेक्ष रहेगा और किसी के प्रति उसका पक्षपातपूर्ण रवैया नहीं रहेगा. इसका मतलब यह कतई नहीं था की शासन धर्म के प्रश्न पे मौन रहेगा, या उसकी नीतियों में धार्मिक सन्दर्भ की कोई विषयवस्तु है जो विकास के लिए आवश्यक है, तो वह इसे सेक्युलर के चश्मे से नजरंदाज करेगा. दुर्भाग्य से अब तक शासन को सेक्युलर का मतलब यही समझाया गया है. अगर सरकार सेक्युलर थी तो एक धर्म विशेष की यात्रा विदेश में स्थित हज को प्रायोजित क्यूँ करती थी ? उसे राजकीय आर्थिक कोष से सब्सिडी क्यूँ देती थी ?यह भारत के पर्यटन की कीमत पर सऊदी के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने जैसा था, यह निर्णय तो संविधान के सेक्युलर कसौटी पे तो न्यायोचित नहीं था ? आपने एक धर्मविशेष को राष्ट्र के आर्थिक कोष से आर्थिक सहायता प्रदान की जबकि शासन को यहाँ निरपेक्ष होना था.यदि आपको यह निर्णय लेना था तो सभी पक्षों के लिए भी ऐसे ही निर्णय लेना था तब जाकर निरपेक्षता बनी रहती. भारत सरकार की तरफ से अब हज सब्सिडी ख़त्म होने के बाद वह दो ही यात्रा को सरकारी सहायता से संपन्न कराती है एक तो सऊदी में स्थित हज यात्रा तो दूसरा चीन में स्थित कैलाश मानसरोवर यात्रा. संजोग देखिये दोनों यात्रायें जिसे सरकार प्रोत्साहित कर रही है, वह विदेशी धरती की यात्रा है.

सरकार घरेलु धार्मिक पर्यटन पे बड़ा ही सुरक्षात्मक रहती है. सरकार को भारत में स्थित घरेलु धार्मिक पर्यटन की असीम संभावनाओं पे विशेष ध्यान देना चाहिए क्यों की यह भारत एवं भारत के लोगों के मूल स्वभाव एवं इको सिस्टम के अनूकुल है . आज भी भारतीय जनमानस महाकाल की दर्शन यात्रा, अयोध्या की १४ कोसी या पंचकोसी यात्रा, सावन की कांवड़ यात्रा, पंढरपुर की यात्रा, तिरुपति बाला जी की यात्रा,रामेश्वरम की यात्रा, कनक दुर्गा की यात्रा, ज्योतिर्लिंग की यात्रा, साईं बाबा की यात्रा, वृन्दावन एवं द्वारिका की यात्रा,चारो धाम की यात्रा, वैष्णो देवी यात्रा के नाम पर ही घर से निकलता है. भारतीयों की यह यात्रा दर्शाता है की भारत के मूल में धार्मिक पर्यटन ही है जिस पर सरकारों को काम करना चाहिए. ऐसी जगहों पे जहाँ घरेलू भारतीय टूट पड़ते हैं उन्हें विदेशी पर्यटकों के बीच में भी प्रचारित प्रसारित करना चाहिए.

अंग्रेजों के काल में भारत से बड़ी संख्या में भारतीयों का पलायन अफ्रीका एवं वेस्टइंडीज के देश , मॉरिशस, फिजी,गुयाना, सूरीनाम आदि देशों में हुआ था. उस समय संवाद के सूत्र विकसित नहीं होने के कारण गए लोग रामायण एवं महाभारत को अपने स्मृतियों में संजो के लेकर गए और इसे उन्होंने अपने आने वाले पीढ़ियों में हस्तान्तरण किया. वहां का हर बच्चा बच्चा जानता है की भारत में अयोध्या है जहाँ श्री राम का जन्म हुआ था, मथुरा है जहाँ श्री कृष्ण का जन्म हुआ था. इन जगहों का नाम सुनते सुनते ही वह बड़ा हुआ है. और उन सब के मन में यह लालसा रहती है की जिसे वो बचपन से सुन रहें हैं उसे वो भारत आकर प्रत्यक्ष देखें.

गिरमिटिया भारतीयों के द्वारा बसाया हुआ एक देश है मॉरिशस है जहाँ लोग अपनी संस्कृति हिन्दू पौराणिक कथाओं के माध्यम से बचाए हुए हैं. वहां से प्रतिवर्ष हजारों लोग भारत की यात्रा अपने पुरखों की तरफ लौटने के भाव से करते हैं. वहां के लोगों के मन के प्रति यहाँ के प्रति बड़ी श्रद्धा है. अभी हिन्दू हाउस मॉरिशस का एक यात्रा दल श्री विषम रामधुन के नेतृत्व में भारत आया हुआ है जो भारत में बचपन से सुने पौराणिक शहरों का दर्शन करेगा और अपने पुरखों के माहौल को महसूस करने गोरखपुर भी जायेगा. पिछले दिनों मॉरिशस से ही वहां की एक प्रगतिशील महिला कुंजुल कमला अपने साथ ४ महिलाओं का दल लेकर उन्हें भारत के पौराणिक शहर घुमाने लाई थी, बातचीत के दरम्यान उन्होंने बताया कि इन भारतीय मूल के लोगों के मन में एक बार भारत आकर इसे देखने की इच्छा है. कुंजुल कमला भारत की पौराणिक पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए मॉरिशस एवं अन्य अफ्रीकन कंट्री के लिए एक उद्यम के अवसर के रूप में संभावनाएं तलाश रहीं है. मॉरिशस की एक और महिला राज्यश्री जो तेलगु समाज से हैं उनका प्रयास तिरुमाला के तिरुपति का एक मंदिर या संपर्क शाखा मॉरिशस में खोलने का है ताकि प्रतिवर्ष मॉरिशस से हजारों लोग सुगमता से तिरुपति दर्शन को कर सकें. एक कार्यक्रम के दौरान मैंने मॉरिशस में देखा की तिरुमाला के पहाड़ियों और बालाजी के दर्शन का विडियो और उसकी कहानी देख कर लोग भावविभोर हो गए थे.

अफ्रीका एवं वेस्टइंडीज के ऐसे बहुत से देश हैं जहाँ गिरमिटिया भारतीयों का पलायन हुआ है, वहां के लोगों के स्मृतियों में भारत और इसके चरित्र नायक और उनके जगह रचे बसे हुए हैं, सबने अपने और बच्चों के नाम हिन्दू नाम की तरह रखे हुए हैं, कोई रामगुलाम है तो कोई रामधुन तो कोई रामचरण और राज्यश्री, सबके मन में भारत आकर इसे देखने की इच्छा है, भारत सरकार को बस इस अवसर की पहचान कर एक्शन लेने भर की देरी है, हिन्दू पर्यटन के नाम पर विदेशों से खासकर अफ्रीका, वेस्टइंडीज, मॉरिशस, फिजी,सूरीनाम, गुयाना, इंडोनेशिया, थाईलैंड से प्रतिवर्ष करोड़ों यात्री भारत यात्रा कर सकेंगे. अब तो श्रीलंका भी रामायण के केन्द्रों को ध्यान में रखकर अपने यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देने में लगा है और इस वर्ष श्रीलंका का पर्यटन भारत से ज्यादे रहा है. अब भारत सरकार को विदेशीं तीर्थयात्रियो के पर्यटन उद्योग की दृष्टि से इस पर त्वरित ध्यान देना चाहिए, इससे भारत न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत होगा इसकी राजनैतिक स्थिति भी मजबूत होगी.

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