कस्बे भारत के विकास के केंद्र हों


भारत में क़स्बे शहर और गाँव के बीच की कड़ी हैं. एक ग्रामीण को जो नगरीय व्यवस्था की पहली झलक मिलती है वह नजदीक के क़स्बे में ही मिलती है. क़स्बा ही उनका शहर और उनका बाजार होता है. एक क़स्बे में आपको सब कुछ मिल जायेगा चाहे वो स्कूल कॉलेज हो, सिनेमा हाल हो या ईलेक्ट्रोनिक की दुकान हो. जिस तरह से बड़े शहरों और मेट्रो पे बोझ बढ़ रहा है ऐसी दशा में तंत्र को आबादी को क़स्बे में ही व्यवस्थित करने का प्रयास करना चाहिए. एक क़स्बे में पूरा एक जीवंत जीवन होता है, उसके एक एक गलियों का एक इतिहास होता है, संस्कृतियों को सहेज कर रखने की एक ललक होती है, और लोग आपस में एक दुसरे को जानते हैं और मिलनसार होते हैं. ट्रैफिक की कोई झंझट नहीं होती और शाम की चौकड़ी बहस उन्हें रात को अच्छी नींद और सुबह उन्हें तरोताजा बनाती है. कस्बों में रहने वाले लोग अक्सर समय से सोते हैं और समय से उठते हैं. ऐसे जगहों पर मानव संसाधन की उत्पादकता भी ज्यादे हो जाती है.    समय के ऐसे दौर में जब मेट्रो और बड़े शहरों में भीड़ बेतहाशा बढ़ रही है, शहरी दुर्व्यवस्था के साथ साथ शहरी गरीबी और अवसाद पूर्ण जीवन बढ़ रहा है ऐसे में इस बीमारी से बचने के लिए सरकार यदि कस्बों का विकास करती है तो इस बीमारी को बढ़ने से रोककर शहरों को बचाया जा सकता है. सॅटॅलाइट टाउन तो सिर्फ मेट्रो शहरों का एक विस्तार है इसके जगह देश भर में विस्तृत फैले कस्बों को आदर्श विकास का केंद्र बनायें तो देश का क्लस्टर आधारित विकास की बजाय सर्वांगीण विकास संभव है.  आज भी गांवों के लोग कस्बों पे ही निर्भर रहते हैं, एक क़स्बा कम से कम १०० गांवों को जोड़ता है और उनके लिए प्रमुख बाजार होता है, उनके व्यापार एवं अन्य कार्यों का मुख्य केंद्र होता है, वहां जीवन लायक सभी सुविधाएँ  होती है. शादी या किसी बड़े आयोजन की खरीददारी करनी हो तो अक्सर गाँव वाले की प्रथम प्राथमिकता बगल का क़स्बा ही होता है. इनकी एक अलग बाजार, साख एवं इकॉनमी की व्यवस्था होती है. कॅश फ्लो ज्यादेतर कृषि आधारित इकॉनमी पे आधारित होता है. यदि देश के रोजगार एवं विकास के केंद्र यहाँ स्थापित किए जाएँ तो कॅश फ्लो के बढ़ोत्तरी से गाँव एवं कस्बों का जीवन स्तर ऊँचा किया जा सकता है. यदि कस्बे में ही अच्छे जीवन स्तर की सुविधा , २४ घंटे बिजली, स्कूल कॉलेज,  मोबाइल इन्टरनेट एवं मल्टी स्पेअसिलैटी हेल्थ सेण्टर की सुविधा एवं मल्टीप्लेक्स विकसित किया जाय तो भारत का समेकित सर्वांगीण विकास हो सकता है और क़स्बे नागरिक विकास के केंद्र हो सकते हैं. कस्बों का गांवों के साथ प्राकृतिक जुडाव के कारण यदि आपने एक क़स्बे का विकास कर दिया इसका मतलब आपने १०० गांवों का विकास कर दिया और यदि आपने १० कस्बों का विकास कर दिया तो समझो १००० गांवों का विकास और एक शहर की भलाई कर दिया. पूरी जनसँख्या क्लस्टर की तरह एक जगह जमे होने की बजाय पुरे देश में समान अनुपात में बसी रहेगी. कस्बों के व्यापार बढ़ेंगे, युवा पलायन की जगह कस्बों में ही रहना पसंद करेंगे तो स्थानीय नागरिकों को युवा आबादी के साथ नई नई तकनीक का ज्ञान होगा. बूढ़े माँ बाप को अपने पुत्र और नाती पोतों के साथ रहने का सौभाग्य मिलेगा, अवसादपूर्ण जीवन का खात्मा होगा, ख़ुशी सुख और सौहार्द्र बढ़ने से यूथ की उत्पादकता दुगुनी बढ़ जाएगी. उनकी प्रति माह का घर किराया एवं अन्य शहरी आवश्यक खर्चों में जबरदस्त गिरावट आएगी जो उनके पास बचत फण्ड का निर्माण करेगी. इन बचत फंडों का वह बेहतर इस्तेमाल निवेश में कर सकते हैं जिससे अंतिम स्तर तक इकॉनमी में कॅश का फ्लो बढेगा, देश का जीडीपी बढेगा और देश मंदी से बाहर आ सकेगा, देश में रियल एस्टेट के प्राइस में जबरदस्त गिरावट आएगी और महंगाई पे नियंत्रण होगा. बहुत से अलिखित पारंपरिक वैज्ञानिक ज्ञान जो दादा दादी और पोतों के दूर होने के कारण नई पीढ़ी में हस्तांतरित नहीं हो पा रहें हैं वो सरकार के इस निर्णय से हस्तांतरण संभव हो पायेगा और भारत बौद्धिक ज्ञान का एक बड़ा भण्डार हो सकेगा. लोगों को स्वच्छ हवा, स्वच्छ भोजन एवं अपनों का साथ मिलेगा.  सरकार की जो स्मार्ट सिटी योजना शहरों के विकास को लेकर है उसे बदल कर स्मार्ट टाउन योजना कर देना चाहिए. एक विज़न डॉक्यूमेंट एवं दीर्घकालीन योजना के तहत वर्ष २०२२ तक १०० स्मार्ट सिटी की बजाय १००० टाउन विकसित करने का लक्ष्य रखना चाहिए फिर अगले ५ साल में फिर १००० टाउन विकसित करने का लक्ष्य रखना चाहिए. इन पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से सरकार पुरे देश में कस्बों के विकास का विस्तृत प्लान बना सकती है.

 

इससे सरकार भारत की ७०% आबादी जो गांवों में रहती है उसके लिए प्रत्यक्ष कुछ कर सकती है, हाँ इसके लिए यह भी जरुरी है कि नगर विकास के अलावा भारत सरकार की और राज्य सरकार की जो औद्योगिक एवं व्यवसायिक नीतियाँ हैं वह क़स्बा विकास को ध्यान में रख कर बने. इसके लिए भारत सरकार को नीति आयोग को एक लक्ष्य देना चाहिए की वह इस पर शोध कर एक विस्तृत दृष्टि पत्र बनाये, ताकि आबादी शहर की तरफ नहीं रोजगार के लिए कस्बों की तरफ ही जाए साथ ही वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट जैसी स्कीम को सफल बनाने के लिए इसके जड़ को कस्बों से जोड़े क्यूँ की भारत में जो भूमि से जुडी भावनात्मक लगाव है वह या तो उनके गाँव, कस्बों या क्षेत्रीय पहचान से है या तो देश से है जिलों से उतनी नहीं है. ईन प्रयासों से भारत को फिर से एक आपस में गहन लगाव एवं सर्वांगीण विकसित देश में बदला जा सकता है.

 

     

 

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