टैक्स यूज में नागरिक विवेकाधिकार


कर प्रयोग विवेकाधिकार एक नया विचार है और मेरा मानना है कि इसकी पहली शुरुवात भारत में होनी चाहिए. भारत जैसे विशाल देश और त्रिस्तरीय सरकार की व्यवस्था में यह सहकारी संघवाद और जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करेगा और देश के वित्तीय प्रशासन में जन सहभागिता बढ़ाएगा, लोग अपने गाँव, नगर, राज्य, पसंद की योजनावों को वित्त पोषण कर सकते हैं और सरकार भी किसी योजना विशेष के लिए इनका आवाहन कर सकती है.

भारत सरकार को इसके लिए कर ढांचे में नागरिक कर प्रयोग विवेकाधिकार ( Tax Use Discretion )  की शुरुवात करनी चाहिए. नागरिक टैक्स यूज विवेकाधिकार से देश में नागरिकों की लोकतंत्र में प्रत्यक्ष वित्तीय भागीदारी हो जाएगी और टैक्स का संग्रह बढ़ जायेगा. वर्तमान कर ढांचे में जो टैक्स का पैसा जमा होता है उसके प्रयोग को लेकर जो विवेकाधिकार होता है वह सरकारों के पास होता है. सरकारें इसे अपने विवेक के अनुसार सरकारी योजनावों और खर्चों में वितरण करती है. अगर इन पैसों के वितरण में नागरिक सहभागिता बढ़ा दी जाये उन्हें खुद उनके खुद के टैक्स के हिस्से से कुछ भाग यदि खुद के पसंद की योजनावों में टैक्स के द्वारा वित्त पोषित करने की अनुमति दी जाए तो लोग ख़ुशी ख़ुशी ज्यादे टैक्स देंगे और टैक्स सहभागिता भी बढ़ेगी . सरकार यदि यह कानून लाती है कि नागरिक अपने टैक्स का २०% या ऐसा ही कुछ निश्चित प्रतिशत भाग अपनी मर्जी से अपने स्थानीय पंचायत में या पसंद की सरकारी योजनावों पर खर्च करें और इस खर्च राशि की छूट आय से कटौती में नहीं देकर जो वर्तमान में 80G की है के बजाय सीधे कर में से कटौती मिले क्यूँ की इसका सीधे प्रयोग तो वहीँ हो रहा है जहाँ टैक्स संग्रह कर के सरकारें अपने विवेकाधिकार से करने ही वाली थीं, तो इससे वित्तीय लोकतंत्र का ढांचा और मजबूत होगा और करदाता कर देने के सम्बन्ध में ज्यादे से ज्यादे उत्साही रहेगा.

इसका सबसे अधिक फायदा पंचायतों को मिलेगा चाहे वो ग्राम पंचायत हो, नगर पंचायत हों या नगर निगम हो. पंचायती राज के वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति होगी और सुराज और स्वराज दोनों अवधारणा फलीभूत होगी. इस प्रणाली से नगर एवं गाँव के जो विकास के फण्ड होंगे वह बहुत ज्यादे तो इस तरह के कर के प्रत्यक्ष संग्रह से आ जायेंगे. यदि कोई नगर पालिका अपने नगर के अन्दर कोई विकास कार्य स्वीकृत कराती है तो उसे फण्ड के लिए केवल राज्य वित्त या केंद्र वित्त का मुंह नहीं देखना पड़ेगा, वह अपने नागरिकों को इस कर प्रयोग विवेकाधिकार के इस्तेमाल की अपील कर इसके माध्यम से नगर विकास के लिए आवश्यक फण्ड इकठ्ठा कर सकती है. यदि नागरिक ही कुछ अपने नगर का विकास कराना चाहते हैं जैसे की सीवर सिस्टम का निर्माण, पार्क का निर्माण, पेयजल की व्यवस्था आदि आदि, तथा वह कार्य नगर पालिका के सामान्य सदन से मंजूर हो जाता है तो नागरिक खुद अपने कर प्रयोग विवेकाधिकार के तहत टैक्स इकठ्ठा कर अपने नगर पालिका की पसंदीदा योजनाओं लिए अंशदान कर सकते हैं. यही फार्मूला हर तरह के पंचायत स्तर पर आजमाया जा सकता है.

यहाँ यह गौर करने वाली बात है की एक करदाता के तौर पर इस कर में विवेकाधिकार की छूट की सीमा कुछ निश्चित प्रतिशत ही होनी चाहिए, जैसे यदि किसी नागरिक ने ५००० कर प्रयोग विवेकाधिकार के तहत आयकर दिया लेकिन वर्ष के अंत में यदि उसका टैक्स हुआ १०००० रुपये और निश्चित मान्य कर प्रतिशत कर प्रयोग विवेकाधिकार के तहत २०% ही है तो जो ३००० करदाता ने ज्यादे दे दिया है या तो उसपर विवेकाधिकार सरकार का हो जाए उस नगर पालिका या उस योजना में यह ३००० करदाता का व्यक्तिगत अंशदान माना जाए और सरकार इसपे नागरिकों को क्या सहूलियत देना चाहे उसपे अलग से सोच सकती है जैसे इस अधिक भाग को सामान्य आयकर माने या 80G के तहत छूट देवे. यदि उस नगर पालिका के लिए इकठ्ठा अंशदान उसके अनुमानित बजट से ज्यादे हो जाता है तो जो ज्यादे भाग हो उसपर विवेकाधिकार फिर सरकार का हो जाएगा और यह फंड वह पंचायत सरकार को हस्तांतरित करेगी फिर यह राशि सरकार अपने विवेकाधिकार से देश के लिए पुनः खर्च तंत्र में डालेगी. इस तरह २०% या ऐसी कोई स्वीकृत प्रतिशत टैक्स करदाता के स्थानीय पंचायत या इच्छानुसार खर्च भी हो जायेगा और 80% सरकारों की मर्जी के अनुसार खर्च हो जायेगा.

ठीक यही व्यवस्था अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था GST में भी लागू की जा सकती है. पंजीकृत व्यापारी कुछ निश्चित प्रतिशत अपने पसंद की अपनी नगर की योजनावों पसंदीदा सरकारी योजनाओं में प्रत्यक्ष भुगतान कर इसे GST भुगतान की गणना में शामिल कर लेंवें. GST के केस में करदाता द्वारा अपने अंतिम कर गणना से अधिक भुगतान करने की सम्भावना नहीं आएगी क्यूँ की करदाता द्वारा कर का भुगतान कर की गणना के पश्चात ही होता है, आयकर में ऐसी सम्भावना आती है क्यूँ की वहां करदाता आयकर की अंतिम गणना के अनुसार नहीं अग्रिम कर की गणना के हिसाब से टैक्स भरता है और विवरणी एकदम लास्ट में भरता है जबकि GST में विवरणी और टैक्स एक साथ होता है लगभग.

नागरिक नगर एवं गाँव के अलावा अपने इच्छित सरकारी फण्ड एवं योजना में भी निवेश कर सकता है.
सरकार को ही किसी विशेष योजना के लिए फण्ड चाहिए तो सेस की जगह वह इस विधि से इस रेंज में उपलब्ध स्लैब में नागरिकों से अपील कर सकता है की नागरिक अपना कर प्रयोग विवेकाधिकार का इस्तेमाल सरकार की इस योजना के लिए करें.

यह योजना अंतिम स्तर तक लोकतंत्र को मजबूत करेगी और व्यवस्था को जबाबदेह बनाएगी. नागरिकों के अन्दर लोकशाही की भावना विकसित होएगी. अबतक नागरिक अपने चुने हुए नगर प्रतिनिधियों से जबाब और हिसाब नहीं मांग पाता था क्यूँ की नगर के वित्त पोषण में वह अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार था. पहले वह कर प्रत्यक्ष कर के माध्यम से राज्य एवं केंद्र सरकार के पास जमा करता था. राज्य सरकार और केंद्र सरकार फिर अपने स्तर पे अपनी प्राथमिकतावों की लिस्ट बनाती थीं फिर बजट के माध्यम से फण्ड को निर्गत करती थीं और यह फण्ड कई चैनलों से होते हुए फिर नगर प्रशासन के पास आता था जिसमें इस फंड के लीकेज की पर्याप्त सम्भावना भी होती थी. नागरिकों के अन्दर भी वह भावना नहीं आ पाती थी की नगर के जो कार्य हो रहें हैं वह दरअसल उन्ही के पैसे से हो रहें हैं. जब उनके सामने उनके द्वारा दिए गए पैसे से प्रत्यक्ष किए जाने वाले काम का विवरण होगा तो वह हिसाब किताब से लेकर कार्य की गुणवत्ता तक जागरूक रहेंगे, खर्च का निगरानी तंत्र बढ़ेगा, भ्रष्टाचार ख़त्म होगा, क्यूँ की उन्हें पता होगा की इस अमुक कार्य में उनका डायरेक्ट पैसा लगा है. वह अधिकारीयों से लेकर चुने हुए प्रतिनिधियों तक को जबाबदेह बनायेंगे और खुद भी जबाबदेह बनेंगे, उन्हें यहाँ यह पता रहेगा की यह पैसा सरकार नहीं दे रही है यहाँ पैसा खुद उन्ही का लगा है.
      


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