NCLT को जानें


आजकल कॉर्पोरेट व्यापारिक हलकों में एनसीएलटी को लेकर काफी हलचल है और जबसे एनसीएलटी का गठन हुआ है और इसने काम करना शुरू कर दिया है तबसे परदे के पीछे से और आगे से कम्पनियों के अधिग्रहण जैसे मसले ज्यादे आने लगे हैं. कंपनियों के लेनदारों के हाथ में एक महत्वपूर्ण शक्ति आ गई है और वे भुगतान न होने की दशा में कंपनी को समापन तक अब पहले की अपेक्षा ज्यादे तेजी से ले जा सकते हैं यदि लेनदार का पैसा वापस न हो तो. आज के कॉर्पोरेट वातावरण में अब तो एनसीएलटी के मुक़दमे की बाढ़ आ गई है. कॉर्पोरेट के ऊपर कानून अब और सख्त से सख्त होता जा रहा है, हालाँकि इसके दुसरे पहलु भी हैं की बैक डोर से कम्पनियाँ दूसरी कम्पनियों को टेक ओवर करने की कोशिश करेंगी. कई जगह कम्पनियाँ खुद ही अपने ऑपरेशनल क्रेडिटर से अपने आपको नोटिस दिलवाती हैं और इस कड़े रेगुलेशन की आड़ में बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खाने की कोशिश भी करेंगी.
अभी हाल ही में एनसीएलटी ने कर्ज के भारी बोझ से दबी भूषण स्टील के लिए टाटा स्टील की 35,200 करोड़ रुपए की बोली को मंजूरी दे दी है और इस आदेश के माध्यम से टाटा स्टील ने भूषण स्टील का अधिग्रहण कर लिया है। मालूम हो कि भूषण स्टील पर 56 हजार करोड़ का कर्ज है.  ईस खबर के बाद पीएनबी को बड़ी राहत मिलने वाली है क्यूँ कि पंजाव नेशनल बैंक ही भूषण स्टील को लोन देने वाले बैंकों का ग्रुप लीडर था और खबरों के मुताबिक इसने भूषण स्टील को 5000 करोड़ का कर्ज दिया था। प्रक्रिया के तहत दिवालिया की कारवाई के दौरान लेनदारों की समिति ने जिसे सीओसी भी कहा जाता ने टाटा स्टील को एक सफल समाधान आवेदक के रूप में घोषित कर दिया था। हालाँकि भूषण स्टील के वर्तमान कर्मचारियों ने इस बोली का विरोध जताते हुए एक याचिका दायर की थी जिसे एन.सी.एल.टी. ने खारिज कर दिया था और एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। इसके साथ ही एलएंडटी की वह याचिका भी खारिज कर दी जिसमें उसने रेजोलुशन प्रोसेस में कर्ज वसूली में उसे उच्च प्राथमिकता देने की एनसीएलटी से अपील की थी। इसमें भी एनसीएलटी  ने एलएंडटी के ऊपर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है।
एनसीएलटी आज के अर्थ जगत की नई हलचल है और ऐसी कई बड़ी कंपनियों की खबरे अब हम लोगों को  सुनाई देंगी. कारवाई तो छोटी कंपनियों पे भी होंगी लेकिन वो ख़बरों के भाग नहीं होंगे. आइये इतने महत्वपूर्ण कानून के सम्बन्ध में हम जानते हैं इसकी पूरी प्रक्रिया क्या है जो आने वाले दशक में पुरे कॉर्पोरेट जगत को हिलाने वाली है और लेनदारों के हाथों में बड़ी शक्ति देने वाली है चाहे वो वित्तीय लेनदार हों या ऑपरेशनल लेनदार हों.
केंद्र सरकार ने कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत राष्ट्रीय कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल  जिसे एनसीएलटी भी कहते हैं   का गठन  01 जून 2016 से किया है। पहले चरण में कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने ग्यारह बेंच, नई दिल्ली में एक प्रमुख बेंच और नई दिल्ली, अहमदाबाद, इलाहाबाद, बेंगलुरु, चंडीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में दस बेंच स्थापित किए हैं। इन बेंच की अध्यक्षता एक अध्यक्ष और 16 न्यायिक सदस्यों और विभिन्न स्थानों पर 09 तकनीकी सदस्य करेंगे। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ( NCLT ) और नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ( NCLAT ) जैसी विशेष मंच की स्थापना देश में कंपनियों से संबंधित सभी विवादों / मुद्दों का निर्णय करने के लिए एक बड़ा बदलाव है। इन ट्रिब्यूनल का गठन कर कर सरकार ने एक सरल, तेज़ और अधिक सुलभ विवाद समाधान तंत्र प्रदान करने का प्रयास किया है।

वर्तमान में न्यायमूर्ति एमएम कुमार, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को एनसीएलटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। एनसीएलएटी, अपीलीय निकाय में एक अध्यक्ष और अधिकतम ग्यारह न्यायिक और तकनीकी सदस्य होंगे। न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को एनसीएलएटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। एनसीएलटी के किसी भी आदेश से पीड़ित व्यक्ति एनसीएलएटी में इसकी अपील कर सकता है। एनसीएलटी के गठन से पहले की कोई अपील जो सीएलबी के आदेशों के खिलाफ की गई और किसी संबंधित उच्च न्यायालय के सामने है तो वह उच्च न्यायालय के समक्ष जारी रहेगी और एनसीएलएटी में हस्तांतरित नहीं होगी ।
कॉर्पोरेट सुधार के लिए और एनसीएलटी को प्रभावी निर्णय लेने के लिए कंपनी अधिनियम के तहत इसे व्यापक शक्तियां दी गई हैं. इसके अनुसार  पुराने कंपनी अधिनियम, 1956 के मामले जो  कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष लंबित थे अब सब  एनसीएलटी में स्थानांतरित हो जायेंगे. किसी भी जिला न्यायालय या उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित सभी कार्यवाही चाहे वो मध्यस्थता की हो , समझौता की हो , अरेंजमेंट की हो, पुनर्निर्माण की हो या कंपनियों के समापन से संबंधित हों वो सब भी अधिसूचना जारी कर एनसीएलटी में स्थानांतरित कर दिया जाएगा. औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (BIFR) के समक्ष लंबित और बीमार औद्योगिक कंपनियों (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 (SICA) के तहत लंबित मामले के सम्बन्ध में भी अधिसूचना जारी कर इसे एनसीएलटी को संदर्भित किया जायेगा. साथ ही औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण (AAIFR) के अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष लंबित अपील या किसी भी अन्य कार्यवाही, जिसमें SICA के तहत लंबित मामले शामिल हैं, को भी एनसीएलटी को संदर्भित किया जाएगा.  अब कोई भी उत्पीड़न, कुप्रबंधन और समापन से सम्बंधित कार्यवाही अब NCLT के तहत ही होंगी.

दरअसल एनसीएलटी और एनसीएलएटी का गठन भारतीय कंपनियों के मामलों से संबंधित विवादों के तेज़ और कुशल समाधान प्राप्त करने की दिशा में एक एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार के द्वारा यह यह अपेक्षा की गई कि एक बार कंपनी अधिनियम और दिवालियापन संहिता के तहत सभी प्रासंगिक प्रावधान प्रभावी हो जाएंगे तो इसके द्वारा कंपनियों से सम्बंधित सभी विवादों और मसलों का समग्र समाधान प्रदान किया जा सकेगा, जिनमें  समापन, उत्पीड़न,कुप्रबंधन और दिवालियापन भी शामिल हैं। कंपनी से संबंधित विवादों से निपटने वाला एकमात्र मंच होने के नाते,  यह मंच ट्रिब्यूनल के ओवरलैपिंग या विरोधाभासी फैसलों की सम्भावना को भी ख़त्म करेगा और विवादों के समाधान में जो देरी होती है वह भी कम हो जायेगा , और कंपनी से सम्बंधित सभी तरह के मुकदमे के लिए यह वरदान साबित होगा।

हालाँकि एक धनात्मक सोच से यह एक सैद्धांतिक पहल की गई है आगे देखना रहेगा की व्यावहारिक धरातल पर यह कितना सफल रहेगा. मेरी जानकारी में तो कुछ ऐसे भी मामले भी आये हैं जिसमे एक लेनदार जिसका बहुत मामूली पैसा बकाया था और ज्यादा पुराना बकाया भी नहीं था उसने NCLT के कानूनों एवं प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हुए दूसरी कंपनी के खिलाफ NCLT से आदेश प्राप्त कर लिया.  दरअसल NCLT का निर्माण किया तो अच्छी नीयत से गया है लेकिन इसके दुरुपयोग होने की भी बड़ी सम्भावना है और जिसके कारण बहुत से मसले माननीय न्यायाधीशों के विवेक पर ही निर्भर होगा.

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