पेट्रोल डीजल का अर्थशास्त्र



पेट्रोल डीजल इकोनॉमिक्स


 

पेट्रोल डीजल के इकोनॉमिक्स को समझने से पहले जान लें की इनकी कीमतों को कौन कौन प्रभावित करता है. साधारणतया इनकी कीमत को क्रूड आयल एवं अन्य पेट्रोलियम प्रोडक्ट की अन्तराष्ट्रीय कीमतें, डालर के मुकाबले रूपए का मूल्य , आतंरिक मुद्रा स्फीति, डीलर का कमीशन, केंद्र सरकार का एक्साइज और राज्य सरकार का वैट. क्रूड आयल एवं अन्य पेट्रोलियम प्रोडक्ट की अन्तराष्ट्रीय कीमतों के अलावा रुपये का अवमूल्यन जिसके फलस्वरूप डॉलर के मुकाबले ज्यादे रुपये का भुगतान करना पड़ता है और आतंरिक मुद्रास्फीति भी कच्चे तेल की लागत  चाहे घरेलू हो या आयातित यह पेट्रोलियम उत्पादों के वितरण और रिफाइन करने की लागत को प्रभावित करता है. और जब भी रुपये का अवमूल्यन होता है, तो अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का होना लाजमी है और हो सकता है कि कीमतों पे नियंत्रण के कारण मुद्रास्फीति का सटीक प्रभाव थोडा देरी से पता चले लेकिन कुछ समय पश्चात तो पता चलता ही है। रुपए में अवमूल्यन की वजह से, डालर के मुकाबले ज्यादे रुपये भुगतान के कारण कच्चे तेल की कीमत बढ़ जाती है। इसलिए पेट्रोल, डीजल, केरोसिन, एलपीजी और सभी पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि हो जाती है। पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों में वृद्धि के साथ कार मालिकों , टैक्सी एवं बस परिचालन की लागत बढ़ जाती है। कार मालिकों को तो लागत में वृद्धि होने पर उतनी परेशानी नहीं होती है। लेकिन टैक्सी एवं बस परिचालन पेट्रोल एवं डीजल की लागत बढ़ने के कारण इसे सहन नहीं कर पाता है और भाडा बढ़ा देते हैं।डीजल की कीमत बढ़ने से तो पूरे माल परिवहन उद्योग भी प्रभावित होते हैं । किसानों की सिंचाई लागत बढ़ जाती है और कृषि उत्पाद या तो महंगे हो जाते हैं या अगर सप्लाई उनकी ज्यादे है कृषि कीमतें बढ़ नहीं पाती हैं तो किसानों को भारी नुकसान होता है. माल ढुलाई लागत बढ़  जाने के कारण किराना एवं  सब्जियों की लागत भी बढ़ जाती है और यह बढ़ोत्तरी यह भारत में गृहिणी और सभी मतदाताओं को प्रभावित करता है।जहाँ तक एलपीजी और केरोसिन  की बात है इनकी कीमत में बढ़ोतरी तो आम आदमी पर सीधे पड़ती हैं। थर्मल पॉवर के द्वारा जहाँ बिजली पैदा होती हैं वह या तो कोयला से होती है या पेट्रोलियम पदार्थ से यदि पेट्रो कीमतें बढती हैं तो यह बिजली की लागतों को भी प्रभावित करती है , यही बिजली बड़े बड़े कारखानों में भी प्रयोग होती है, अल्मुनियम के कई कारखानों में तो बिजली की लागत कच्चे माल की लागत से ज्यादे होती है, अतः जब बिजली की लागत बढ़ेगी तो आम उपभोक्ता के अलावा उद्योगों को भी प्रभावित करने लगती है और अलमुनियम स्टील यां अन्य उत्पाद महंगे होने लगते हैं. जब भी देश में मुद्रास्फीति बढती है, भारत के भीतर उत्पादन की लागत बढ़ जाती है। इसलिए एक निर्यातक को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में मुश्किल होती है। वह इसकी भरपाई करने के लिए लॉबी बना के  रुपए के अवमूल्यन का प्रयास करता है ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पादों का मूल्य सस्ता हो जाय और वह निर्यातक प्रतिस्पर्धा कर सके। चूँकि सरकार और RBI की प्राथमिकता निर्यात वृद्धि और ज्यादे से ज्यादे विदेशी मुद्रा के भारत में आगमन को लेकर के होती है तो वह इस तर्क से सहमत हो जाते हैं और आर्थिक सुधार के कदम के तौर पर वो रुपये का अवमूल्यन करते जाते हैं. और अवमूल्यन पुनः मुद्रास्फीति का कारण बन जाता है फिर वे और अधिक अवमूल्यन चाहते हैं। और फिर यह चक्र चालू होते होते और आगे चलता जाता है, और देश धीरे धीरे धीरे धीरे पेट्रो प्राइस एवं मुद्रा स्फीति के दुश्चक्र में फंसता चला जाता है. और सभी कीमतें बढ़ती चली जाती हैं . उद्योगपति और व्यापारी अपने उत्पादों की कीमतों में वृद्धि करने लगते हैं। संगठित श्रमिक महंगाई भत्ता में वृद्धि के लिए मांग करते हैं। असंगठित निजी क्षेत्र और कैजुवल श्रमिक पीड़ित का हाल बुरा हो जाता है। किसान और गृहणियां महंगाई और खर्चे से परेशान होती चली जाती हैं. उपरोक्त अर्थशास्त्रीय फैक्टर के अलावा जो सबसे अधिक पेट्रो मूल्यों को प्रभावित करता है वह है सरकार द्वारा लगाया जाने वाला कर. चूँकि पब्लिक डोमेन में दिल्ली की पेट्रो कीमतों को लेकर ही टैक्स के आंकड़े उपलब्ध हैं इसलिए उसे ही आधार बना के आपको सरकारी टैक्स का कितना योगदान है इन कीमतों में वह बताता हूँ. 

विवरण

पेट्रोल कीमत


डीजल कीमत


क्रूड आयल की लागतप्रति बैरल

४९३० रुपये प्रति बैरल


४९३० रुपये प्रतिबैरल


१ बैरल में लीटर

१५९ लीटर


१५९ लीटर


क्रूड आयल की लागत प्रति लीटर

३१


३१


अन्य प्रत्यक्ष लागतें

५.९३


८.७८


तेल रीफाइन के बादलागत

३६.९३


३९.७८


केंद्र सरकार का एक्साइज

१९.४८


१५.३३


राज्य में डीलर को लागत

५६.४१


५५.११


डीलर का कमीशन प्रति लीटर

३.६२


२.५२


वैट से पहले की लागत

६०.०३


५७.६३


राज्य के वैट एवं सेस

१६.२१


९.९१


खुदरा मूल्य

७६.२४


६७.५४


 ७६.२४रुपये तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमत है मुंबई में यह तो ८५ के बराबर है मतलब यहाँ राज्य सरकार के कर ज्यादे लगें हैं इनमें.  2017 के अंत से भारत में पेट्रोल को ईथनॉल  के साथ मिला के बेचा जा रहा है बीन इथेनॉल एक प्राकृतिक ईंधन है जो चीनी और स्टार्च से बना है और यह बिना किसी बदलाव के पेट्रोल के साथ बहुत अच्छी तरह से मिश्रित किया जा सकता है और इसमें कोई प्रदूषण सम्बंधित विशेष सामग्री नहीं है। हालाँकि मसला है की जिस एथेनाल की लागत ४१ रुपये के आसपास पड़ती है उसे पेट्रोल में मिला के पेट्रोल की दर से बेचा जा रहा है मतलब जो पेट्रोल आप ७६.२४ रुपये का खरीद रहें हैं उसमे तो आप कुछ एथेनाल की मात्र पेट्रोल की दर से खरीद रहें हैं. एथेनाल के प्रयोग से पेट्रो दरें कम की जानी चाहिए थी. अब तो पेट्रो कीमतों को लेकर सार्वजनिक विरोध शुरू हो गया है लेकिन न तो सरकारें सुन रही हैं और न ही इसे GST के दायरे में ला रही हैं. वर्तमान में पेट्रोल के कुल लागत के करीब ८८% सरकारें एक्साइज एवं वैट एवं सेस के रूप में ले ले रहीं है. यदि GST इनपे लागू हो जाता है तो GST की अधिकतम दर ४०% लगाने के बाद भी पेट्रोल ५६.७७ रुपये प्रति लीटर एवं डीजल रूपये ५९.२२ प्रति लीटर हो जायेगा. इसे आप निम्न टेबल से समझ सकते हैं.

वर्तमान में टैक्स के बाद खुदरा मूल्य


कुल लागत

40.55

42.30

कुल टैक्स

35.69

25.24

वर्तमान में खुदरा मूल्य

76.24

67.54

वर्तमान में टैक्स कर भार दर

88%

60%

GST के बाद का अनुमानित खुदरा मूल्य


कुल लागत

40.55

42.30

महत्तम GST @ ४०%

16.22

16.92

GST के बाद खुदरा मूल्य

56.77

59.22

GST कर भार दर

40%

40%

    पेट्रो की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के लगातार गिरावट के बावजूद सरकार ने इस लाभ को जनता को हस्तांतरित न करते हुए पेट्रो की कीमतों को लगभग स्थिर रखते हुए सरकारी पेट्रो कर एक्साइज वैट बढाती चली गई जिससे सारा फायदा सरकार के खाते में चला गया. आप देखेंगे तो पाएंगे की 2013-14 और 2016-17 के बीच तीन गुना से अधिक पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क के माध्यम से केंद्र सरकार का राजस्व बढ़ा है और इसी अवधि के दौरान, वैट के माध्यम से राज्य सरकार के राजस्व में भी थोड़ी वृद्धि हुई है। खबरों के मुताबिक २०१३-१४ में पेट्रो एक्साइज के रूप में जहाँ ७७९८२ करोड़ सरकार ने लिए वहीँ २०१६-१७ में सरकार ने २४२६९१ रुपये लिए, मतलब क्रूड आयल की कीमतों की कमी को सरकार ने अपने फायदे खाते में ले लिया इसके पीछे उसकी मंशा चाहे जो रही हो लेकिन अब क्रूड आयल के रेट बढ़ने के कारण देश दुष्चक्र में फंसने वाला है. सरकार को या तो अब GST के दायरे में इसे लाना चाहिए या आयल पूल अकाउंट डेफिसिट सिस्टम को फिर से प्रभावी बनाना चाहिए.    

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