विलंबित ट्रेन की अग्रिम कमाई

विलम्बित ट्रेन की अग्रिम कमाई

आजकल मुंबई से और दिल्ली से उत्तर भारत की तरफ जाने वाली ट्रेनों में मारामारी मची है. रेलवे ने ट्रेन के टिकट ज्यादे काट दिए हैं और ट्रेन की उतनी क्षमता ही नहीं है की वह उतनी सवारियों को ले जा पाए. जब दिल्ली में एक ट्रेन में पटना जाने वाले अन्य ट्रेनों के भी सवारी चढ़ गए क्यूँ की उनकी ट्रेनें कई घंटे से लेट थी तो ट्रेन का एक डब्बा एक तरफ झुक गया और आरपीएफ को बल प्रयोग कर लोगों को डब्बों से उतरना पड़ा. दरअसल  दिल्ली मुंबई आने जाने वाली ट्रेनों का तो बहुत बुरा हाल है उसके ट्रेन और प्लेटफार्म और ट्रेन दोनों यात्रियों से भरे हुए हैं. दिल्ली और मुंबई स्टेशन के किसी भी ट्रेन या प्लेटफार्म पे चले जाइए यात्रियों की लम्बी लम्बी लाइन मिल जाएगी और लोगों ने चार महीने पहिले ही टिकट अग्रिम में बुक करा के रक्खी है.
लेकिन इस देर से चलने वाली ट्रेनों की संख्या में एक विभेद है, राजधानी ट्रेन या शताब्दी ट्रेन तो टाइम से चल रही हैं लेकिन जो ट्रेने पैसेंजर है या जनसाधारण ट्रेनें हैं उनके टाइम का वह मूल्य नहीं है. लगता है यह अघोषित तौर पे मान लिया गया है कि पैसेंजर जनसाधारण या अन्य मेल ट्रेनों से चलने वाले यात्रियों के समय का कोई मूल्य नहीं है. अभी हाल ही में सरकार ने हमसफ़र ट्रेन चलाई थी, टिकट थोड़ी महँगी है तो लोगों में यह उम्मीद जगी थी चलो कम से कम यह महँगी ट्रेन है यह तो समय से चलेगी लेकिन इसका भी बुरा हाल है, हमसफ़र ट्रेनें भी कई कई घन्टे की देरी से चल रही है.
किराये की बात अगर देखें तो किराया पूर्व की तुलना में कई गुना बढ़ गया है प्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष तरीके से. रेल एवं ट्रेन WIFI हो गए हैं लेकिन ट्रेनों का जो मुख्य काम है समय से और सुरक्षित चलना वो नहीं सुधरा है. आप गाँव साइड में कोई भी टैक्सी या टेम्पो चलाने वाले से पूछ लीजिये वो बताएगा की यदि तय सवारी से ज्यादे उसने बैठा लिए और RTO ने पकड़ लिया तो उसका चालान कट जाता है और इस व्यवस्था का फायदा उठाने के लिए पुलिस वाले को वह पैसा देता रहता है या बेगारी कई बार गाडी चलाता है, लेकिन यह घोषित और अघोसित नियम रेलवे पे लागू नहीं होता है. रेलवे जरुरत से ज्यादे टिकट भी काटता है और ओवरलोडिंग में जनरल डब्बा भर के ले जाता है और किसी भी अथॉरिटी को ओवरलोडिंग की पेनाल्टी नहीं देता है.
क्या आपको मालूम है ट्रेन अपनी सीट क्षमता से ज्यादे यात्री का टिकट इनकम कमाती है. और इसे आप किसी ट्रेन में यात्रा कर के देख सकते हैं ७२ सीट वाले स्लीपर क्लास में आपको १५० यात्री औसत दर में तो मिल जायेंगे और जनरल डब्बे में तो क्षमता से पांच गुने से भी ज्यादे.
आय कमाने के लिए रेलवे ने ऐसे ऐसे रस्ते बना रक्खे हैं की यात्रा के तनाव में टिकट कटाते वक़्त कुछ ज्यादे रुपये लग भी जाएँ तो आपको पता ही नहीं चलता है. जब आप कोई टिकट कटाते हैं और जब वेटिंग लिस्ट होने के कारण आपका टिकट कैंसिल हो जाता है तो भी आपको आपका पैसा पूरा नहीं मिलता है IRCTC कुछ न कुछ पैसा आपका काट लेता है. टिकट निरस्तीकरण के भी बहुत से नियम हैं जैसे टिकट आप जितना देर से निरस्त कराएँगे आप का पैसा निरस्तीकरण शुल्क के रूप में ज्यादे कटता है. अगर आपने ऑनलाइन टिकट बुक किया तो आपको सर्विस चार्ज देना है आपने टिकट कैंसिल कराया तो आपको पैसा कट के मिलेगा, आपने सुपर फास्ट ट्रेन का टिकट लिया तो आपको नार्मल ट्रेन से ज्यादे पैसा देना पड़ेगा भले ही देरी से चलने के कारण उस सुपर फ़ास्ट का कोई मतलब नहीं. लेकिन सवाल यह है कि जब ट्रेन समय के हिसाब से अलग अलग निरस्तीकरण का शुल्क लेती है जितना पहले निरस्त कराएँगे उतना कम पैसा काटेगा जितना देर से निरस्त कराएँगे तो ज्यादे पैसा कटेगा, ट्रेन जाने के   चार घंटे बाद अगर आप कनफर्म्ड टिकट निरस्त कराते हैं तो कुछ भी पैसा नहीं मिलेगा तो वह एडवांस में टिकट कटाने पे ग्राहकों को ब्याज क्यूँ नहीं देती है, लगभग लम्बी दुरी के ट्रेनों के टिकट ९०% एडवांस में ही बुक हो जाते हैं लाजमी है की वह पैसा रेलवे के पास एडवांस में आ जाता है जो उसके बैंक खाते में चला जाता है जिसपे रेलवे को ब्याज मिलता होगा. रेलवे को अग्रिम बुकिंग से जब इतना फायदा हो सकता है ब्याज के रूप में तो रेलवे इस फायदे को जनता को हस्तांतरित क्यूँ नहीं करती है? रेलवे कम से कम ऑनलाइन टिकट वालों को तो यह सुविधा ऑनलाइन वॉलेट के माध्यम से दे सकती है, यात्रियों के अग्रिम बुकिंग की राशि पे जो ब्याज की कमाई रेलवे को हुआ है वह तो रेलवे यात्रियों के वॉलेट बना के उनके वॉलेट में हस्तांतरित कर सकती है. ऑफ लाइन टिकट वाले अपने अग्रिम टिकट के ब्याज का क्लेम यात्रा के पश्चात TDR फाइल कर के ले ले यदि वो चाहें तो. और दूसरी बात यदि रेलवे ट्रेन के चार घंटे के बाद टिकट निरस्त कराने पे फुल रिफंड नहीं देती है तो ट्रेन यदि ४ घंटे से ज्यादे लेट है तो इसकी भरपाई वह यात्रा कर रहे यात्रियों को क्यों नहीं देती है? क्यूँ नहीं वह ऐसा सिस्टम लाती है जिसमे की यदि ट्रेन ४ घन्टे लेट हुई तो १0% ४ से ८ घन्टे लेट हुई तो २५% ८ से १२ घंटे लेट हुई तो ५०% और १२ घन्टे से ज्यादे लेट हुई तो १००% राशि उन यात्रियों को भी मिलेगा जो कन्फर्म टिकट लेकर यात्रा कर रहें हैं क्यूँ की विलम्ब  निरस्तीकरण की पेनाल्टी जब आप लगाते हैं, एडवांस टिकट पे ब्याज आप कमाते है तो विलम्बित ट्रेन पे हुए नुकसान क्यूँ यात्री खाते में इसकी भी जिम्मेदारी रेलवे को लेनी चाहिए. एक ट्रेन लेट होता है तो ऐसा नहीं है की सिर्फ ट्रेन लेट होता है यात्रा के रास्ते खर्च बढ़ जाते हैं, लोगों को खानपान पे अनावश्यक खर्च करने पड़ते हैं, छोटे छोटे बच्चों की परेशानी और दूध की समस्या बढ़ जाती है , जहाँ यात्रा में कुल ५०० खर्च होने होते हैं वहां खर्च १००० से ऊपर चला जाता है. किसी छात्र की परीक्षा या इंटरव्यू छूट जाता  है तो किसी का कोई फंक्शन होता है वह छूट जाता है, किसी का ऑफिस छूट जाता है तो किसी की मीटिंग छूट जाती है, सुपर फ़ास्ट का कोई मतलब नहीं राज जाता है, इस तरह इसमें सबका कुछ न कुछ मौद्रिक नुक्सान होता है तो क्यूँ न इस देर की भरपाई और हुए मौद्रिक नुकसान का हिस्सा रेलवे से लिया जाए अगर रेलवे ऐसा नहीं करती है तो यह एक प्रकार का अन्यायपूर्ण समृद्धि है जिसे अंग्रेजी में unjust enrichment कहते हैं इस सम्बन्ध में सरकार और जनता को सोचना चाहिए.

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