शाश्वत अर्थशास्त्र

शाश्वत अर्थशास्त्र

शाश्वत अर्थशास्त्र को यदि हमें समझना है तो हमें सापेक्षता के नियम को समझना पड़ेगा. अर्थशास्त्र में सापेक्षता के नियम का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है । शाश्वत अर्थशास्त्र की मेरी समझ के अनुसार जब वह स्थैतिक से गतिमान की तरफ सफर करता है तो उसकी गतिमानता का मूल्यांकन सापेक्षता के नियम से ही होता है। पूरे ज्ञात या अज्ञात ब्रह्मांड मे जितने भी साधन है वो एक दूसरे के लिए तभी आर्थिक कारक होंगे जब उसके सापेक्ष उनका कोई मूल्य होगा अन्यथा सर्व संभावनाएँ होते हुवे भी , पूर्ण गतिमान होते हुवे भी अर्थशास्त्र के पैमाने मे नापना नहीं हो पाएगा, उनका मूल्य प्राप्त नहीं हो पायेगा हालांकि संभावनाएं और शक्तियाँ पूरी होंगी उस गतिमान कारक मे लेकिन सब स्थैतिक रूप में पड़ी होंगी।

इस विचार को मैं आपको कुछ बहुत ही रोचक उदाहरण से समझाता हूँ और ये उदाहरण भी मुझे एफ़एम पे अमिताभ बच्चन का एक ऍड सुनते हुवे आया था। गुजरात का प्रचार करते हुवे एक जगह अमिताभ बच्चन कहते हैं की गीर के जंगल मे शेर को देख के उनकी शिट्टी पिट्टी गुम हो गयी, इस ऍड को सुनते हुवे फिर मैं अर्थशास्त्र का खोजी हो गया और उसमे भी अर्थशास्त्र का महत्वपूर्ण पैमाने का नियम सापेक्षता का नियम ढूंढ लिया। मतलब शेर के सामने अमिताभ लाख चिल्लाएँ मैं अमिताभ , मैं ही अमिताभ बच्चन हूँ शेर के लिए इसका कोई मोल नहीं है। सर्व गतिमान, सर्व प्रतिभा सम्पन्न, सबसे मूल्यवान विश्व प्रसिद्द अमिताभ का शेर के सामने कोई मूल्य नहीं है, अमिताभ को मूल्य पाने के लिए उनके पास ऐसा साध्य रूपी सापेक्ष होना चाहिए जो उनका वाजिब मूल्य दे सके अन्यथा शेर के लिए अमिताभ मतलब कुछ नहीं, शेर के सामने ७० किलो मांस के लोथड़ा हैं वो सिर्फ और उस शेर के लिए उनका वही मूल्य है।

शाश्वत अर्थशास्त्र सापेक्षता के नियम के साथ संतुलन की भी बात करता है अर्थात विकास के पैमाने पे अगर सापेक्षता मे मूल्य का महत्व बढ़ता जाता है तो वो एक गोले की भांति एक दिन उसका मूल्य टॉप से गिरते हुवे शून्य होते जाता है। उदाहरण के लिए अमेरिका ने दुनिया को डराने के लिए और अपना आर्थिक दबदबा बनाने के लिए परमाणु बम बनाए, और अगर एक दिन उस परमाणु बम का उपयोग हो जाए और दुनिया मे कोई भी नहीं बचे सिवाय चंद अमेरिकियों के तो वो रह के और परमाणु बम ले के क्या करेंगे, न तो उनके परमाणु बम के या उनके उत्पादों का कोई खरीददार होगा और जो परमाणु बम के इस्तेमाल से पहले अति मूल्यवान माने जाते थे वो अब सापेक्षता के चरम पे मूल्य के दोहन के कारण बिना मूल्य के हो गए क्यों की सापेक्षता का चक्र घूम के फिर उसी बिन्दु पे आ गया जहां से 0 मूल्य की शुरुवात हुवी थी।

ठीक उसी तरह आप पर्यावरण का उदाहरण ले सकते है अंधाधुंध विकास की दौड़ मे पर्यावरण को इग्नोर किया जा रहा है ताकि प्रत्येक क्षेत्र अपने को सबसे शक्तिशाली और विकसित घोषित कर सके, एक दिन ऐसा आएगा जब सापेक्षता के चरम पे विकास चला जाएगा तो वहीं से उसकी उल्टी गिनती शुरू होगी और शुरू होगी महा जीव विनाश की फिर न तो जीव रहेंगे और न जन्तु और मानव और फिर अब तक किए गए विकास का उपभोग करने वाला कोई नहीं रहेगा और व्यक्ति सभयता के विनाश के कारण फिर अपनी यात्रा सभ्यता के शुरुवाती विकास से करेगा जहाँ जीरो अर्थशास्त्र से फिर शुरुवात होगी।

इसीलिए शाश्वत अर्थशास्त्र और उसके सापेक्षता के नियम का संतुलन और संतुलन बिन्दु का ज्ञान होना अति आवश्यक है और साधनों के स्थैतिकता से गतिमान की यात्रा मे सापेक्षता का चरम विंदु ही अर्थशास्त्र का चरम पड़ाव होता है।

उदाहरण स्वरुप मेरे पैतृक गाँव छितौनी बाजार उत्तर प्रदेश के पास एक नदी बहती है नारायणी, यह नदी अपने आवेग एवं बाढ़ के लिए प्रसिद्ध है। और इस नदी की उम्र हजारों साल होगी। पहले हमारे गाँव मे पक्के मकान नहीं होते थे तथा आसपास के गाँवों के मकान भी पक्के नहीं होते थे। हर साल नदी मे बाढ़ आती थी और अपने साथ ढेर सारा बालू लाती थी। जब तक पूरे क्षेत्र मे पक्के मकान नहीं थे किसी को उस बालू का मूल्य पता नहीं था, जबकि हजारों साल से वो बालू वहाँ बह के आता था और बह के चला जाता था। जब गाँव के लोग बाहर गए, पक्का मकान देखे फिर पता चला की पक्के मकान मे बालू की क्या उपयोगिता है। गाँव आने के बाद उन्होने अपने गाँव मे और गाँव के आसपास लोगों को पक्के मकान बनाने के लिए प्रेरित किया। इसका परिणाम ये हुआ की वहाँ पे बालू का व्यापार शुरू हो गया। तथा जो बालू सदियों या यूं कहें की हजारो साल से आती थी और बह के चली जाती थे उन्हे खुद और गाँव वालों को खुद उसका मूल्य पता नहीं था आज वो मूल्यवान हो गईं और आज वह गाँव और गाँव के लोगो के तरक्की का कारण है। उनकी आर्थिक स्थिति पूरी बदल गयी।

दरअसल सूचना एवं जानकारी के विकास ने अपने आसपास स्थैतिक तक पड़े संसाधनो को ऊर्जा युक्त बनाया और ये ऊर्जा पुंज ऐसा नहीं की विशेष प्रयोग के द्वारा पैदा किया गया। ये पहले से था बस न तो हमारी जरूरत और न हमारी दृष्टि ईसपे पड़ी, जब हमने अपनी जरूरत अपनी दृष्टि विकास किया हमारे साथ गाँव का भाग्य बादल गया। वाकई में अपने गाँव, समाज, देश के विकास के लिए बस हमे दृष्टि डालनी चाहिए की कौन सी संसाधन सुषुप्त पड़ी हुयी है।

दूसरा उदाहरण देता हूँ, आप सोच रहे होंगे की अँग्रेजी के 26 अक्षर और शाश्वत अर्थशास्त्र मे क्या संबंध है। वास्तव मे संबंध है और जहां तक मेरा मानना है शाश्वत अर्थशास्त्र के रहस्य को समझने के लिए ये सबसे बढ़िया उदाहरण है। आपने सुना होगा अमुक किताब हजारों मे बिकी, लाखों मे बिकी या करोड़ों मे बिकी । कभी आपने उन तीन तरह की किताबों को लेके पढ़ा है , नहीं पढ़ा है तो पढ़िये । और पढ़ने के बाद आप कोई ऐसा लेटर लाइये जो इस 26 लेटर A से Z के अलावा आता है। आप इन 26 लेटर के अलावा दूसरा लेटर नहीं पाएंगे। इसका अर्थ समझिए कि आप लेटर मतलब अक्षर तो वही 26 हैं लेकिन जब कोई कोई कलाकार व्यक्ति लेटर का ऐसा संयोजन करता है की वो शब्द बन जाते हैं और शब्दों का ऐसा संयोजन करता है वो अर्थपूर्ण वाक्य बन जाते हैं और उन लेखनियों से भावनाएँ बाहर आने लगती हैं तब उस लेखन से अर्थशास्त्र  पैदा होता है।

अब आप इसका अर्थशास्त्र से संबंध समझिए शाश्वत अर्थशास्त्र भी यही बात करता है की सब कुछ यहाँ मौजूद है बस उसका उचित संयोजन करने वाला चाहिए, साधन असीमित मात्रा मे मौजूद है हमे प्रयोग करना सीमित मात्रा मे आता है जिस दिन हमारी सूचनावों, ज्ञान एवं दृष्टि का विकास होता जाएगा हमारा, हमारे क्षेत्र और हमारे देश का अर्थशास्त्र विकसित होता जाएगा

सार में ब्रह्माण्ड में शाश्वत अर्थशास्त्र ही असली अर्थशास्त्र है बाकी सब उसके अनुप्रयोग हैं.

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