कैशलेस होते बैंक


भारत जैसा विशालकाय देश कैशलेस नहीं हो सकता है हाँ इसे लेसकॅश की तरफ ले जाया जा सकता है. हालाँकि सरकार जो जनता से उम्मीद कर रही थी कि वह कैशलेस की तरफ बढ़ेंगे अब वहीँ जनता की जगह बैंक ही कैशलेस हो गए हैं. पिछले हफ्ते देश के कई हिस्सों में इस नकदी संकट की खबर आई. छुटपुट खबर होती तो इसे नजरअंदाज किया जा सकता था लेकिन यह संकट बड़े पैमाने पर है जो इस बात की ओर इशारा करता है की असंगठित तौर पे मौसमी कोई ट्रेंड विकसित हो रहा है या यह संगठित तौर पर हो रहा है. दोनों ही कारणों में सरकार को मुस्तैद होना चाहिए था और इसके शुरुवाती संकेतों के बाद ही रिज़र्व बैंक एवं सरकारों को इसका भान होना चाहिए था. इस संकट का मोटामोटी पहलु यह है की बैंकों से निकासी ज्यादे है और बैंकों के पास जो नकदी आवक है वह जमा राशि एवं रिज़र्व बैंक की तरफ से कम है. नोटबंदी के बाद पता नहीं क्यूँ अब तक रिज़र्व बैंक ऐसी स्थिति से लड़ने की रणनीति नहीं बना पाया वह सोचनीय है, घटना के बाद SIT का निर्माण कर देना प्यास लगने के बाद कुंवा खोदने जैसा ही है.
सुनने में आ रहा है की २००० के नोट की निकासी ज्यादे और आवक कम है. यह स्थिति है तो संज्ञान लिया जाना चाहिए क्यूँ की आम आदमी २००० के नोट लेने में उतनी दिलचस्पी नहीं दिखाता है उसे २००० का नोट लेकर फुटकर के लिए भटकना पड़ता है उसके लिए ज्यादे डिमांड ५०० के नोट की है. २००० के नोट का ज्यादे निकासी होना मतलब कहीं न कहीं इसकी गड्डी बन रही है. इस गड्डी का इस्तेमाल हो सकता है कि कुछ काले धन वाली शक्तियां आगामी लोकसभा चुनाव में आसन्न नकद खर्चों को देखते हुए आज से ही २००० की गड्डी बनाकर उसका संचय शुरू कर दी हों. दूसरा कारण हो सकता है की इस मौसम के कृषि में भी नकदी का उपयोग ज्यादे होता है इसलिए लोग निकासी ज्यादे कर रहें हो और उसे बैंक में जमा नहीं करा रहें हैं. वैसे भी आज के दौर में बैंकों के पास पैसा जमा होने से बैंक अपने सुविधा शुल्कों को एकपक्षीय रूप से काट ले रही है कभी मेसेज भेजने के नाम पर तो कभी नकद निकासी और जमा के नाम पर. बैंक द्वारा इन शुल्कों के बढ़ोत्तरी के कारण भी पब्लिक अब बैंकों में जमा करने से कतरा रही है.
तीसरा कारण है विवाह का मौसम शुरू हो रहा है जिसमे बड़े पैमाने पर नकदी ही खर्च करते हैं उस कारण से भी लोग पहले से ही नकदी निकासी कर ले रहें हैं ताकि नकदी निकासी की जो सीमा है उसके कारण विवाह के समय कोई दिक्कत न हो. सरकार ने नोटबंदी के समय वादा किया था कि छोटे नोटों की आपूर्ति बढ़ाई जाएगी ताकि संकट ख़त्म हो। सरकार ने 200 रुपये के नए नोट जारी भी किए, लेकिन अभी भी उनकी संख्या कम है। 200 के नोटों के लिए 70 फ़ीसदी एटीएम तैयार नहीं यानि इन एटीएम मशीन को अपटेड किया जाना है जिसके कारण इसकी आपूर्ति बाधित हो रही है. सौ रुपये के जो पुराने नोट बैंकों में आ रहें हैं उसे बैंक इसलिए इस्तेमाल नहीं कर रहे कि ये नोट एटीएम में निकासी के वक़्त फंस जाते हैं। अभी एटीएम को 50 रुपये के लायक बनाया भी नहीं गया है जिसके कारण बैंक 2000 रुपये के नोट एटीएम में डाल रहे हैं, जो राशि के लिहाज से तो अधिक होते हैं, लेकिन संख्या में कम होते हैं। यदि लोगों को 600 की जरुरत है तो ५०० के दो नोट कुल 1000 की निकासी करते हैं  और 1200 रुपये की जरुरत है तो 2000 रुपये निकालने पड़ रहे हैं। इससे ज्यादा निकासी होने के कारण एटीएम जल्दी खाली हो जाते हैं। यह स्थिति नवंबर, 2016 में नोटबंदी के बाद से ही चल रही है, जिसे अभी तक रिज़र्व बैंक को संभाल लेना चाहिए था.
हालाँकि ख़बरों के मुताबिक देश में गहराते नकदी संकट के बीच मध्य प्रदेश के देवास जिले में स्थित प्रेस में नोटों की छपाई की रफ्तार अब पहले से बढ़ गई है. अभी तक यह दो पाली में नोट छपाई चल रहा था, लेकिन अब से तीनों पालियों में नोट छपाई का काम शुरू हो गया है ताकि नोटों की किल्लत को दूर किया जा सके. लेकिन यह देर से उठाया कदम है.
भारत जैसे देश में जो सरकार की मंशा है कैशलेस करने की वह संभव नहीं हो पायेगी क्यूँ की दैनिन्दिनी एवं यात्रा के कई खर्च ऐसे होते हैं जो व्यक्ति चाह के भी ऑनलाइन नहीं कर पाता है. आप मुंबई के लोकल ट्रेन में यात्रा कर रहें हों तो रस्ते में खाने पीने के लिए नकदी रखना ही पड़ेगा. ऑटो को पैसा देना, चाय वाले को देना छोटे परचून को पैसा देना आज भी सब जगह चलता है. आज के दौर में डिजिटल सौदे करने के लिए मोबाइल का चार्ज होना जरुरी है और यदि मोबाइल चार्ज नहीं हुआ तो आप डिजिटल सौदे नहीं कर सकते. दूसरा संकट मोबाइल में डाटा के अधिक इस्तेमाल से भी अधिकतर बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है और लोग ऑनलाइन सौदे नहीं कर पाते हैं और यात्राखर्च या छोटे छोटे खर्च नकदी में करते हैं.
साथ ही जो दूर दराज के गाँव है या छोटे कसबे हैं वह आज भी नकदी पे ज्यादे विश्वास करते हैं. अक्सर उनके यहाँ एटीएम बोल जाते हैं इसी परिस्थिति से बचने के लिए इस बार गाँव एवं कस्बों में भी नकद निकासी ज्यादे हुई है.
सरकार ने बयान जारी किये हैं और आश्वासन दिए हैं की एक हफ्ते में स्थिति नियंत्रण कर ली जाएगी और यदि ऐसा नहीं हो पाता है या यदि इस नकदी चुनाव माफिया जैसी कोई बात हुई तो संकट बड़ा हो सकता है. दूसरा अगर यह अफवाह लम्बा चलता है तो लोग सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से भी बिना जरुरत नकदी कोष बनाने लगेंगे और पुरे देश के बैंकों में नकदी संकट आ जायेगा. मई में स्थिति और भयावह हो जाएगी, इस माह  देश की एक बड़ी आबादी छुट्टियों में बाहर रहती है और कई जगह कॅश ही चलता है. यहाँ तक की ट्रेन के टीटी को पेनल्टी देना है तो कई टीटी के पास पेमेंट मशीन नहीं है कि कोई ऑनलाइन पेमेंट कर दे अभी भी मुंबई से बाहर जाने वाली ट्रेनों में यात्री पेनाल्टी नकदी में ही भर रहें हैं क्यूँ की प्लेटफार्म या ट्रेन के अन्दर ऑनलाइन पेमेंट की अभी वैसी व्यवस्था नहीं हो पाई है.
सरकार को यह आत्ममंथन करना पड़ेगा की उसके पास इसका अलर्ट पहले क्यूँ नहीं आया, बैंकों ने समय से सुचना नहीं दिया या रिज़र्व बैंक ने इस सुचना को गंभीरता से नहीं लिया. सरकार अभी देर से जागी है और विपक्षी पार्टियों द्वारा इसे वित्तीय इमरजेंसी बुलाने के बाद एक समिति बनाने की आवश्यकता महसूस हुई जो नकदी की जरुरत पे निगरानी रखेगी. सवाल यह है की नोटबंदी के बाद ही ऐसी समिति क्यूँ नहीं बनाई गई जाहिर है इसका बनाना यह प्रदर्शित करता इसके पहले ऐसा कोई सिस्टम नहीं था जो इसकी निगरानी कर सके. सरकार को अब तो दुरुस्त हो जाना चाहिए.

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