पृथ्वी गैलेक्सी भारांक एवं भार संतुलन प्रक्रिया


इसे सिर्फ कल्पना मान के ही पढ़ें, बहुत ज्यादे दिमाग न लगायें. मेरी ऐसी कल्पना है की इस गैलेक्सी में हर ग्रह एक दुसरे से चुम्बकीय आकर्षण से एक लड़ी में बंधे हुए इस अंतरिक्ष में लटके हैं. इस चुम्बकीय आकर्षण में लटकने में उस ग्रह के कुल भार की भी एक भूमिका है और इस चुम्बकीय लड़ी में उस भार की एक अधिकतम एवं लघुतम स्वीकार्यता है जिसे आप ग्रह भारांक भी कह सकते हैं . अगर उस ग्रह का भारांक परिवर्तित होता है तो निश्चित ही चुम्बकीय लड़ी की परिस्थिति भी चेंज होगी, ग्रह जिसमें पृथ्वी भी है अपना कक्षा छोड़ सकती है और भारांक में बहुत ज्यादे बदलाव होने पर कहीं जा के टकराव भी हो सकता है.
पृथ्वी में जीवों ( वनस्पति, जंतु जिसमें मानव भी है ) में भार वृद्धि एक समयचक्र में पाई जाती है. निषेचन काल से लेके जीवन के अंतिम पड़ाव तक जीवों में भार वृद्धि होती है. उदाहरण के तौर पर आज से २००० साल पहले मान लीजिये पृथ्वी की आबादी १० करोड़ थी और औसत भार ५० किलो था तो पृथ्वी पे मानवों का भार ५०० करोड़ था आज मानवों की संख्या ८०० करोड़ है तो मानवों का भार ४०००० करोड़ हो गया मतलब पृथ्वी पे इस ३९५०० करोड़ किलो की भार वृद्धि हुई इंसानों के कारण. इन इंसानों के शरीर में जो भार वृद्धि होती है ० ग्राम से ५० किलो तक आखिर उनके शरीर में भार वृद्धि कहाँ से होती है. मेरा मानना है की शरीर के वृद्धि में जो भी कारक लगते हैं वह एक रसायन या पदार्थ होता है अगर शरीर का भार बढ़ता है तो वह भार वृद्धि प्रकृति से ही शरीर लेता है इसलिए एक जगह प्रकृति में भार कम होता है और दूसरी जगह जीवों में भार बढ़ता है इसलिए पृथ्वी का भार संतुलन बना रहता है इसे हम “पृथ्वी भार संतुलन प्रक्रिया” कह सकते हैं. कालांतर में दूसरा कारण है की अगर मानवों की संख्या बढ़ी तो पेड़ पौधों के भार में बड़ी कमी आई और पृथ्वी का भार संतुलन बना रहा.
अगर जीवों में भार वृद्धि उपरोक्त “पृथ्वी भार संतुलन प्रक्रिया” के कारण नहीं है तो खतरे की घंटी है यदि पृथ्वी का भार भारांक से ज्यादे हो जायेगा ऐसी दशा में पृथ्वी अपनी कक्षा छोड़ सकती है, अगर ऐसा हुआ तो पृथ्वी के जीवों पे संकट आ जायेगा.

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