आसिफ़ा आसिफ़ा आसिफ़ा

लगभग एक महीने से मैंने न्यूज़ देखना ९०% कम कर दिया है कभी कभी रात के ९ बजे का बुलेटिन देख लेता हूँ नहीं तो ज्यादेतर अब अखबार के सहारे ही समाचार पढता हूँ जिसमें अब हैडलाइन एक दिन पुराणी होती है.
कुछ दिनों पहले आसिफ़ा की घटना का पता चला, फिर सूरत की घटना का पता चला फिर कई घटनाएँ सामने आने लगीं. दुःख और दर्द से मन भर गया. चाह के भी कुछ लिखना चाह रहा था नहीं लिखा, क्यूँ की क्या लिखूं? और किसके लिए लिखूं? लगभग पूरा फेसबुक घृणा और राजनीती से भर गया है. कोई इसे हिन्दू मुस्लिम के चहरे से देख रहा है तो कोई इसमें भी भाजपा और कांग्रेस ढूंढ रहा है. बेचारी आसिफ़ा और उस सूरत की अनाम लड़की को तो पता भी नहीं होगा की वह हिन्दू मुसलमान या बीजेपी कांग्रेस की प्रतिनिधि होने वाली है.

यह घटना और मसला न तो हिन्दू मुसलमान का मसला है न राजनीती का. यह मसला है हम कैसे कैसे शनैः शनैः विकृत होते जा रहें हैं. कभी आपने किसी जानवर को गैंगरेप करते हुए देखा है? नहीं न, दरअसल हम विकसित होते होते इतने हो गए की रिवर्स हो गए और जानवरों से भी गए गुजरे हो गए.

दरअसल यह शासन प्रशासन हिन्दू मुसलमान या बीजेपी कांग्रेस का मसला नहीं है यह मसला है इन्सान का शैतान बन जाने का, इसे न तो कोई राजनीती बनाता है न तो कोई धर्म सिखाता है. ये बीमार और विकृत मानसिकता वाले लोग हैं, जिन्हें आपको अपने आस पास ही चिन्हित करना होगा. ये सेक्स के रोगी हैं जो हैवानियत की सारी हदें पार कर जाते हैं.
सरकार नेता या व्यवस्था को कोसिये मत, समाज का और व्यक्ति का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करिए. जब हम इन्सान हो रहे थे तब सेक्स को ही रेगुलेट कर के विवाह संस्कार की नींव डाली गई थी जिससे श्रृष्टि नियमबद्ध तरीके से आगे बढ़ी और जिसके कारण हम मानव के रूप में हजारों साल से मानवीय रिश्ते में बंधे हुए जिन्दा हैं. सेक्स एक बहुत बड़ी उर्जा है जिसे हमारे सभ्यता के संस्थापकों से नियंत्रित कर के सभ्य समाज की स्थापना की थी . इस उर्जा को अगर आप पॉजिटिव रूप ने इस्तेमाल करोगे तो सभ्य समाज का निर्माण करोगे और श्रृष्टि आगे बढ़ेगी अन्यथा इसके नेगेटिव इस्तेमाल से इंसान शैतान बनता जाएगा. व्यर्थ की बहसों में पड़ने की बजाय एक समाज के रूप में हमें ऐसे चीजों की तरफ ध्यान देना होगा कि ऐसी क्या चीजें हैं जो व्यक्ति की इस उर्जा को नकारात्मकता की तरफ धकेल कर उसे शैतान बना रहीं हैं.

उसमें सबसे पहला कारण है पोर्न की उपलब्धता हर एक मोबाइल में होना. यह हर उस आदमी के पहुँच में है जो आपके बेटी या बेटा या महिला सदस्यों के संपर्क में हो. यह व्यक्ति कोई भी हो सकता है कोई करीब का आदमी, बगल वाले अंकल, चौकीदार, बस का ड्राईवर या चपरासी, कोई भी बोले तो कोई भी जिससे आपका बच्चा संपर्क करता है. ९०% व्यक्ति पोर्न देखने के बाद कुछ घंटे तक विकृत्त रहता ही है और उसमे से ५०% व्यक्ति की विकृति विक्षिप्तता की हद तक होती है और यदि उस संक्रमण काल में आपका बच्चा उनके संपर्क में आता है तो जोखिम ज्यादे है.

दूसरा सबसे बड़ा कारण है असंस्कारिक होना. व्यक्ति अगर संस्कारी होता है तो कोई भी ऐसा कार्य करने से पहले एक हिचक और संकोच सबसे पहले सामने आता है जो अपने आप में 80% केसों में ऐसे कृत्य की दर को कम कर देता है. अगर समाज में पुनः संस्कारों का निर्माण किया जाए तो हिचक और संकोच के माध्यम से ही ऐसी घटनावों पे काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है.

तीसरा सबसे बड़ा कारण है अधार्मिक होना. जब कोई व्यक्ति अधार्मिक होता है तो वह एक नियमबद्ध समाज से अपने आपको बाहर करता है उस समय यह एक बड़ा संक्रमण काल होता है जहाँ विरले व्यक्ति ही विघटन एवं अलगाव से पैदा हुई उर्जा का धनात्मक प्रयोग कर सकते हैं. दरअसल मनुष्य को मनुष्य होने का बोध कराने, उसे व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक रूप में मानव बन कर जीने केलिए बनाई गयी नियम संहिता ही धर्म है जब मनुष्य इससे अलग होता है तो पूरी बसी बसाई व्यवस्था से विद्रोह करता है  । धर्म के निर्माण में सेक्स, संस्कार और परिवार निर्माण पर भी बहुत कार्य हुआ है। जब व्यक्ति अधार्मिक होता है तो सबसे बढ़ा खतरा असंस्कारिक होने का होता है. संस्कारों के माध्यम से धर्म में बंधा इंसान एक बड़ी उर्जा को समाहित किये हुए होता है जिसे संस्कारों के माध्यम से इस बिखरी हुई ऊर्जा को योजनाबद्ध, मर्यादित एवं वैज्ञानिक तरीके से व्यवस्थित कर उसका धनात्मक प्रयोग कर के वहसभ्य समाज की स्थापना करता है। जब व्यक्ति इस बंधन से आज़ाद होता है तो सबसे बड़ा खतरा असंस्कारिक होना होता है और मुक्ति के उर्जा के विस्फोट का होता है. अधार्मिक होना तो चल जायेगा लेकिन यदि इसी विस्फोट काल में यही व्यक्ति अधार्मिक से असंस्कारिक हो जाता है तो खतरे बढ़ जाते हैं.

चौथा सबसे बड़ा कारण है इश्वर का भय नहीं होना. इश्वर का भय व्यक्ति को कोई भी अधार्मिक या असंस्कारिक कार्य करने से रोकती है. इश्वर का भय यदि होता तो चाहे वो भगवान् के मंदिर में हो या बाहर हो उसका यह भय उसे इस कार्य से रोकता. जबसे मनुष्यों के अन्दर से इश्वर का भय ख़त्म करने का कार्य शुरू हुआ या इश्वर के आस्तित्व को समाप्त करने का कार्य हुआ तबसे मानव जाति को एक अदृश्य शक्ति के भय से नियंत्रित करने की जो व्यवस्था थी उसमे क्षय हुआ. इश्वर से व्यक्ति जैसे ही भय को समाप्त करता है वैसे स्वतः ही धर्म का त्याग कर देता है और धर्म से उसका नाता टूट जाता है फिर वह न तो हिन्दू रह जाता है न तो मुसलमान रह जाता है. यदि वह हिन्दू या मुसलमान धार्मिक होता तो उसका इश्वर उसका अल्ला उसे ऐसे घृणित कार्य कैसे करने देता, इसका मतलब उस क्षण उस व्यक्ति ने जो ऐसा किया वह अधार्मिक असंस्कारिक और शैतान हो गया था उसने अपने धर्म का परित्याग कर ऐसा काम किया था.

पांचवा सबसे बड़ा कारण है हम एक अभिभावक के रूप में अपने बच्चों को वह संस्कार नहीं हस्तांतरित कर पा रहें हैं. एक माता पिता के रूप में हमारा फेल होना भी इस समाज के इस तरह से होने का कारण है. नहीं तो एक ही लड़की से बाप बेटा और भतीजा तीनों कैसे रेप करते. परिवार के रूप में जो संस्कार का बंधन था वो टूट रहा है. बच्चे नशे, टीवी और मोबाइल के आदि होते जा रहें हैं और हम उन्हें रोक नहीं पा रहें हैं. जरुरी नहीं सब बच्चे टीवी और मोबाइल से बिगड़ जाएँ लेकिन बिगड़ने के लिए जिस भूमि की आवश्यकता होती है उतना तो यह प्रोवाइड करा ही देते हैं ऐसे में यदि किसी बच्चे के मानसिक विकास में कुछ नेगेटिव तत्व होंगे तो वह ऐसे परिवरिश से भड़क कर विकृत रूप में सामने आ सकते हैं. बच्चा यदि नशा करता है या अभिभावक नशा करते हैं खुद या बच्चों के साथ तो ऐसे समाज में ऐसे खतरों के बढ़ने की ज्यादा सम्भावना रहती है.

कुल मिला के यही कहना है की ऐसे समाज के निर्माण के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं, हमें मुद्दों के लिए हिन्दू मुसलमान बीजेपी कांग्रेस जैसे बहाने बनाने बंद करना चाहिए. यह कुछ नहीं है मुद्दे और समाधान से अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए लोगो का ध्यान भटकाना है. आज एक नेता अलका लम्बा का भाषण सुन रहा था मैडम ऐसे कांड के बीच पीएम के पांच दौरों को चैलेंज कर रहीं थी. बहुत दुःख हुआ की व्यक्ति ऐसे गंभीर सामजिक विकृति वाले प्रश्नों के समाधान की जगह इसका इस्तेमाल अपनी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के लिए कर रहा है.

यह दौर आत्मचिंतन और आत्ममंथन का है इसके राजनीतिकरण से बचें.

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