स्मार्टगांव विकास का सूत्र


हमारे देश की पहचान ग्रामीण देश की है जहाँ देश की ७०% आबादी निवास करती है और हमारे देश की समस्या पलायन की है जो गावों से शहरों की तरफ, यूपी बिहार उड़ीसा से गुजरात मुंबई और विदेशों की तरफ हो रही है. इसलिए देश के नीति निर्मातावों का फोकस स्मार्टगाँव विकसित होने पे होना चाहिए ना कि स्मार्ट सिटी विकसित करने पर. स्मार्ट सिटी एक तरफ शहरीकरण को बढ़ावा देगा दूसरी तरफ आबादी का बोझ शहरों पे बढ़ता जाएगा और गावं का गावं खाली होता जायेगा. जितनी शिद्दत और प्रचार से स्मार्ट सिटी पे फोकस किया जा रहा है अगर उसका आधा भी किया जाय तो देश विकसित हो जाएगा. वर्तमान में सरकारों के नगरीय सुविधा के विकास के मेनू में यह मुख्य विषय है ही नहीं की कैसे गाँव की ७०% आबादी को गांवों में ही रोका जाये, गाँवों को ही स्मार्ट बनाया जाए, वो  एक तरह से मान बैठीं हैं की उनका शहर में पलायन अवश्यम्भावी है इसलिए स्मार्ट सिटी पर तो लगातार काम हो रहा है ताकि लोग जब यहाँ बसे तो शहर पे भार न पड़े लेकिन गाँवो का विकास ऐसे करें की वही आबादी शहर पलायित ही न हो ऐसी प्लानिंग का अभाव है अभी. यह सत्य है की जब तक  सोचने का एंगल इस तरफ नहीं बदलेगा, देश गाँव और शहर की परिस्थितियां नहीं बदलेगी. शहर आबादी के दबाब से फट जायेंगे, गाँव बदहाल होते जायेंगे, युवावों के पलायन से उर्जाविहीन निश्तेज होते जायेंगे और बूढ़े मां बाप अच्छे हॉस्पिटल एवं पोते एवं बच्चों की आस में बुढ़ापा गुजारते रहेंगे.
आज वाकई में जरुरत है इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर के स्मार्ट गाँव का विकास , स्मार्ट विलेज मार्ट का निर्माण और औद्योगीकरण की शुरुवात गांवों से ही हो जो की वहां के इको सिस्टम के अनुकूल हो.
भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी देश में गाँवों की महत्ता को समझते हुए 'गांवों में उद्यमिता' विकसित करने के लिए IIT के स्टूडेंट का एक बार आवाहन किया था। उनका संदेश ग्रामीण भारत में ग्रामीणों द्वारा विकसित 'एक गांव, एक उत्पाद' और इसका विश्व स्तर पर आईआईटी के पूर्व छात्रों एवं पेशेवरों द्वारा प्रचार प्रसार एवं मार्केटिंग किया जाना था।
अभी हाल ही में यूपी एवं छत्तीसगढ़ के दो आईटी प्रोफेशनल ने भारत के गाँवो को स्मार्ट बनाने की सोची और इसके लिए www.smartgaon.com की स्थापना की और इसका मोबाइल एप भी बनाया.
इनमें से एक रजनीश यूपी के तौधकपुर जिला रायबरेली के निवासी हैं और कई वर्षों से अमेरिका के कैलिफोर्निया में सॉफ्टवेयर इंजिनियर हैं और दुसरे योगेश साहू दुर्ग छत्तीसगढ़ के हैं जो वर्तमान में मुंबई स्थित कंपनी माय एप सेंटर के फाउंडर हैं. सितम्बर २०१५ में जब रजनीश ने पीएम मोदी का अमेरिका के कैलिफोर्निया के सैप सेण्टर में भाषण सुना तो उनका एक वाक्य इन्हें प्रेरित कर गया कि विदेशों में भारत का ब्रेन ड्रेन नहीं है भारत का ब्रेन डिपाजिट है तभी से इन्होने स्मार्ट गाँव के कांसेप्ट पे काम करने की ठानी. इसमें साथ दिया उनके भारत के दोस्त योगेश शाहू ने. इन्होने एक गाँव कैसे स्मार्ट गाँव के रूप में विकसित किया जा सकता है  इसकी एक विस्तृत योजना बनाई और उसका एक मोबाइल एप भी बना डाला और प्रथम परीक्षण हेतु यूपी के रायबरेली जिले के गाँव तौधकपुर को. चुना जहाँ रजनीश के भाई कार्तिकेय शंकर बाजपेयी खुद प्रधान हैं. वहां पे इन्होने ग्राम प्रधान के सहयोग से २५ भोंपू साउंड एवं माइक लगा के एक सार्वजनिक

सुचना तंत्र बनाया ताकि कोई भी सूचना गाँव वालों को माइक के द्वारा प्रसारित किया जा सके, गाँव में जगह जगह २५ CCTV कैमरे भी लगाये और इसका मोनिटरिंग खुद ग्राम प्रधान को दे दिया. इसी    सार्वजनिक सुचना तंत्र   और CCTV के माध्यम से गाँव में लोगों को खुले में शौच से रोकने में भी बड़ी सफलता प्राप्त हुई साथ ही गाँव के लिए CDO एकं BDO के सहयोग से से ४८ घंटे में २४२ शौचालय बनाने का रिकॉर्ड भी बनाया. सरकार की सभी योजनावों को अपने इस एप पे लाये और लोगों को इससे जोड़ा. अपने www.smartgaon.com योजना के प्रयास के तहत इन्होने बीएसएनएल से बात की और बीएसएनएल ने गाँव के प्रमुख जगह पे WIFI जोन का निर्माण कराया, कुछ ग्रामीणों को मुफ्त में मोबाइल भी दिए गए ताकि लोग स्मार्ट गाँव एप डाउनलोड कर सरकार की सभी योजनावों के बारे में जान सकें और सरकार से संवाद भी कर सकें. इस एप में योजनावों के साथ साथ शिकायत प्रणाली भी इन्होने विकसित की है. गाँव को बाजार से कनेक्ट करने के लिए इसी एप पे उन्होंने विलेज मार्ट बनाया है उसके तहत कोई भी ग्रामीण अपनी उपज की सूचना एप पे देकर उसे विश्व बाजार में बेच सकता है, इस विलेज मार्ट के तहत यह स्मार्ट गाँव कांसेप्ट गाँव के किसानों एवं कारीगरों को विश्व बाजार से जोड़ने का कार्य कर रहा है.. ग्राम में शिक्षा के विस्तार के लिए इन्होने स्कूल में भी CCTV लगाये है जिससे स्कूल में सुरक्षा का माहौल हो और शिक्षा और मिड डे मील की तैयारी की निगरानी के साथ सफाई भी सुनिश्चित किया जा सके.  प्राप्त जानकारी के अनुसार स्कूल में इस तरह के विकास को देखते हुए आज इस स्कूल में ९५ बच्चे पढ़ते हैं जबकि यहाँ की संख्या पहले १८ थी. स्मार्ट गाँव की योजना के तहत डीएम CDO BDO एवं ग्राम प्रधान भाई के सहयोग से सारे ट्रांसफार्मर बदल दिए गए, १८ से २० घन्टे बिजली सुनिश्चित कराइ गई और गाँव में जगह जगह स्ट्रीट लाइट एवं डस्टबिन की भी व्यवस्था कराइ गई . इन सब कार्यों के वित्त प्रोत्साहन के लिए इस एप में इन्होने गाँव के विकास के एक एक टास्क के एक एक फीचर बनाये हैं जिसके तहत दूर बैठा कोई प्रवासी अगर अपने गाँव का सम्पूर्ण विकास करना चाहता हो तो सम्पूर्ण विकास या उसमे से कोई एक पार्ट करना चाहता है तो उतने ही भाग की फंडिंग कर सकता है और इस वेंचर के माध्यम से कार्य को सम्पन्न भी करा सकता है. बातचीत द्वारा पता चला की अमेरिका में ऐसे कई लोग हैं जो अपने अपने गाँव का विकास कराना चाहते हैं और अमेरिका क्या ऐसे बहुत से लोग अन्य देशों में या भारत के अन्य भागों में मिल जायेंगे जो अपने नेटिव प्लेस का विकास करना चाहते हैं.
भारत सरकार को इसके लिए अपने टैक्स सिस्टम में भी बदलाव करना चाहिए. वैसे भी हम जो टैक्स का पैसा जमा करते हैं वह जाता है ग्रामीण या ऐसे ही विकास खर्च में, तो क्यूँ नहीं सरकार यह कानून लाती है की अपने टैक्स का कम कम से २०% भाग करदाता अपनी मर्जी से अपने पसंद की योजनावों पे खर्च कर सकता है और इस खर्च राशि की छूट आय से कटौती में नहीं देकर सीधे कर में से कटौती देनी चाहिए क्यूँ की इसका सीधे एप्लीकेशन तो वहीँ हो रहा है जहाँ टैक्स संग्रह कर के सरकारें करती हैं, खाली २०% इच्छानुसार कर का निर्णय करदाता के हाथ में चला जायेगा. इससे क्या होगा नगर एवं गाँव के जो विकास के फण्ड होंगे वह बहुत ज्यादे तो इस तरह के कर से डायरेक्ट संग्रह से ग्राम या नगर के विकास के लिए आ जायेंगे और लोगों की लोकतंत्र में लोकतान्त्रिक वित्तीय भागीदारी हो जाएगी. यदि किसी फण्ड में योजना में ग्राम में या नगर में अनुमानित बजट से ज्यादे संग्रह हो जाता है तो इस अधिक राशि का निर्णयाधिकार सरकार तब अपने पास रख ले.
लब्बोलुवाब यह है की जनता देश में हो या विदेश में हो अपने गाँव या कसबे या नगर का विकास करना चाहती है मौजूदा टेक्नोलॉजी एवं लोकतान्त्रिक व्यवस्था के वित्त में लोकतान्त्रिक तरीके से उनके भागीदारी की व्यवस्था कर के सरकार इस विकास को सुनिश्चित कर सकती है, तब जाकर सही मायने में विकास होगा, पलायन रुकेगा, शहरों एवं मेट्रो से दबाब कम होगा पर्यावरण एवं पारिस्थिकीय संतुलन सही रहेगा और देश में में पारिवारिक एवं सामाजिक सौहार्द्र बढेगा और सरकार पेरिस समझौते में किये गए वादे को पूरी कर पायेगी और बड़े मात्रा में गाँवों के विकास के लिए विदेशी निवेश प्राप्त कर सकेगी. जरुरत है ऐसे जुनूनी लोग, टेक्नोलॉजी, ग्राम प्रधान CDO BDO डीएम की एक सिनर्जी एवं सरकार की दृढ इच्छा शक्ति की जिसकी एक झलक तोधाकपुर में दिखी.

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