स्मार्ट सिटी के पहलु


मौजूदा सरकार के लगभग ४ साल होने को हैं और लगभग सबको इन्तेजार है की स्मार्ट सिटी के रूप में किसी न किसी सिटी का फीता कट ही जायेगा. यह उत्सुकता अब अपने चरम पर है इसलिए आये जाने उस सपने को जब स्मार्ट सिटी का उद्घाटन होगा तो कैसा होगा. जहाँ तक सरकार द्वारा अपने स्मार्ट सिटी मिशन में बताये गए गाइडलाइन के हिसाब से जो कवरेज एवं अवधि की बात कही गई है वो है यह वर्तमान में भारत के १०० शहरों को कवर करेगा और इसकी अवधी तय की गई है पांच वर्ष जो की २०१५-१६ से लेकर २०१९-२० की अवधि है जिसमे अब बहुत ही कम समय बचा है.

हालाँकि इसके कई पहलु है उसमे सबसे बड़ा पहलु यह है कि जब भी आपको स्मार्ट सिटी के बारे में सोचना हो तो आप एक स्मार्ट हाउसिंग सोसाइटी के बारे में कल्पना कर लीजिये वही है स्मार्ट सिटी जहाँ आप अत्याधुनिक सुविधावों का इस्तेमाल करते हैं और तदनुसार भुगतान करते हैं, एक ऐसी व्यवस्था जो उन्नत हो स्मार्ट हो और निजी एवं सरकारी वित्त पोषित हो. जहाँ तक सुविधावों का सवाल है गाइड लाइन के हिसाब से निम्न सुविधाएँ तो होंगी ही पर्याप्त पानी की आपूर्ति निश्चित बिजली आपूर्ति स्वच्छता, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के साथ, कुशल शहरी गतिशीलता और सार्वजनिक परिवहन, किफायती आवास, मजबूत आईटी कनेक्टिविटी और डिजिटलीकरण, सुशासन, विशेषकर ई-गवर्नेंस और नागरिक भागीदारी, टिकाऊ पर्यावरण, नागरिकों की सुरक्षा और सुरक्षा, विशेष रूप से महिलाएं, बच्चों और बुजुर्ग, तथा स्वास्थ्य और शिक्षा, उर्जा प्रबंधन, न्यूनतम प्रदूषण, उच्च जीवन स्तर. मतलब सब कुछ सुन्दर सुन्दर होगा, स्मार्ट होगा, ज्यादेतर डिजिटल आधारित होगा ताकि समय की बचत हो चीजें स्मार्ट हों जिसका शाब्दिक अर्थ होता है तेज तर्रार हों. हालाँकि सरकार भी स्वीकार करती है की स्मार्ट सिटी की कोई एक परिभाषा नहीं है यह शहर देश काल परिश्थितियों के हिसाब से अलग अलग है. आप अपनी कल्पनावों में शुमार कर सकते हैं शहर में हर सुविधावों एवं सेवाओं का डिजिटलीकरण होगा, घर से निकलने से पहले आपकी सारी चीजें व्यवस्थित होंगी जैसे की आपकी पार्किंग, बाहर की कोई रियल टाइम सूचना, CCTV की उपलब्धता, साफ़ रोड साफ़ शौचालय, वाई फाई जोन और अन्य ऑनलाइन मोबाइल आधारित सुविधाएँ. चूँकि इसकी कोई परिभाषा नहीं है इसलिए समय के साथ इसकी कल्पना स्मार्ट दर स्मार्ट होती चली जाएगी.

स्मार्ट सिटी के क्रियान्वयन के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण पहलु है वह है इसके लिए एसपीवी कंपनी का निर्माण करना जो  सरकार कर रही है और कई शहरों के एसपीवी का निर्माण हो चूका है लेकिन इसके आगे का विकास अभी चौथे साल में दिख नहीं रहा है. स्मार्ट सिटी मिशन स्टेटमेंट और दिशानिर्देशों के मुताबिक, ये एसपीवी ही होंगे जो स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स की योजना उसका मूल्यांकन, अनुमोदन, रिलीज, क्रियान्वयन, प्रबंधन, संचालन, और मॉनिटर करेंगे। इस एसपीवी में जहाँ तक शेयर होल्डिंग का प्रश्न है वह है की इसमें राज्य/संघ राज्य क्षेत्र एवं स्थानीय निकाय का किसी भी हालत में शेयर होल्डिंग बराबर बराबर ही रहेगा और यदि इसमें कोई निजी सहभागिता होती है तो भी इन दोनों की सहभागिता बराबर बराबर ही रहेगी और कुल मिला के इतनी रहेगी जिससे की नियंत्रण इनके पास ही रहेगी. उदाहरण के तौर पर कोई निजी सहभागिता नहीं है तो राज्य/संघ राज्य क्षेत्र एवं स्थानीय निकाय की शेयरहोल्डिंग ५०:५० रहेगी लेकिन यदि कोई निजी भागीदार आता है तो यह ३०:३०:४० हो सकता है जिसमे ४० निजी भागीदार का हो सकता है.

सरकार को यह भी मालूम है कि इनके योगदान परियोजना लागत के कुछ भाग को ही पूरा कर पाएंगे इसलिए वित्त पोषण के लिए कुछ रास्तों के भी प्रावधान किए गएँ हैं जिसके माध्यम से स्मार्ट सिटी प्रबंधन अपना वित्त पोषण कर सकता है जिसमे से एक प्रमुख है सुविधावों के इस्तेमाल के बदले यूजर फीस देना मतलब स्मार्ट सिटी में स्मार्ट लिविंग महंगा होने वाला है और जो निजी भागीदार होगा उसका हित अपनी पूंजी एवं लाभप्रदता को सुरक्षित रखना भी होगा. इसके अलावा पीपीपी मॉडल, म्युनिसिपल बांड, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय ऋण,  राष्ट्रीय निवेश और इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड एवं अन्य सरकारी योजनाओं से पैसा इसके लिए निकालना.

यहाँ तक तो स्मार्ट सिटी मिशन सुन्दर लगता है लेकिन इसको लेकर कुछ चुनौतियाँ भी हैं जो समय समय पे बहस का कारण भी बनी हैं उसमे से पहली चुनौती है कि क्या क्या स्मार्ट शहर स्थानीय लोकतंत्र को दबा देंगी? वाजिब सवाल है क्यूँ की अधिकारों के डेलीगेशन के कारण यह भ्रम पैदा भी हो रहा है जिसे स्मार्ट सिटी के क्रियान्वयन ऑपरेशनल निर्णयन में स्वतंत्रता और स्वायत्तता देने के लिए दी गई हैं जिसमे से प्रमुख है नगर पालिका परिषदों के अधिकारों एवं दायित्वों का एसपीवी को डेलिगेट करना. एसपीवी का नेतृत्व तीन साल की एक निश्चित अवधि के साथ एक सीईओ की अध्यक्षता में किया जाएगा और केवल केंद्र सरकार द्वारा पूर्व अनुमोदन से ही इसे हटाया जा सकता है। दूसरी चिंता है कि एसपीवी के सीईओ को वही शक्तियां प्रदान करना जो सरकारी नियम एवं नगर अधिनियम के तहत स्थानीय निकाय को प्राप्त होती हैं जबकि यह सीईओ जनता द्वारा चुना नहीं है. तथा एक निजी भागीदारी वाली कंपनी विभिन्न संविदा या भागीदारी वाली या अन्य व्यवस्था सम्बन्धी निर्णय में भागीदार होगी. इन्ही सब कारणों से एक आशंका है कि डेमोक्रेटिक रूप से निर्वाचित शहर की सरकारें जिसे शहरी स्थानीय निकाय कहते हैं तथा जो संविधान के तहत औपचारिक मान्यता के साथ भारतीय राज्य नगरीय शासन अवधारना के महत्वपूर्ण घटक हैं,  वे कुछ हद तक स्मार्ट सिटी मिशन में दबी दबी सी लग रही हैं. हालाँकि स्मार्ट शहरों पर जो "संकल्पना नोट" प्रस्तुत की गई थी उनमे इन चुने हुए  इन निकायों को अधिक प्राथमिकता दी गई है लेकिन सभी स्थानीय सरकारें इससे ही संतुष्ट नहीं हैं क्यूँ की इन्हें अपने अधिकारों में अतिक्रमण के संकेत महसूस हो रहे हैं.और यह ऐसा इसलिए भी है कि एसपीवी को भी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में प्रवेश करने, सहायक कंपनियों को शामिल करने और परियोजना प्रबंधन सलाहकार नियुक्त करने का अधिकार है। इसलिए शहरी प्रशासन में निजी निवेशकों और परामर्शदाता कंपनियों का प्रभाव स्मार्ट शहरों से बढ़ने की संभावना है और यह कई लोगों के लिए चिंता का कारण होगा। बहुत से विचारकों की चिंता है कि  "एसपीवी को निवेशकों के रिटर्न की गारंटी देने और पर्याप्त कार्यशील पूंजी सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त वित्तपोषण पैदा करने की आवश्यकता होगी" निजी प्लेयर या वित्तीय संस्थान "एसपीवी में इक्विटी हिस्सेदारी भी प्राप्त करेंगे जो अधिकतम ४९ प्रतिशत तक बढ़ा सकते हैं"। इस तरह से सरकारें शहरी गरीबों, प्रवासियों और अल्पसंख्यक लोगों के लिए कल्याण को सुनिश्चित नहीं कर सकता है, अगर बुनियादी ढांचे के मामले में और इस तरह के बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्र को बुनियादी सेवा व्यवस्था में भागीदार बना ले तो।"

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