गंगा गांव एवं गाय का अर्थशास्त्र

अभी कुछ दिन पहले मथुरा में उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि गांव, गौ और गंगा को बचाए बिना देश नहीं बच सकता। देखने में तो यह बड़ा ही साधारण सा पारम्परिक बयान लग रहा है, विपक्ष तो इसे साम्प्रदायिकता से जोड़ के देखेगा तो कोई इसे राजनैतिक बयान बताएगा. जबकि यह बयान विशुद्ध रूप से मानव जीवन की सच्चाई है वो भी तब से जब से इंसानों ने अपने आपको खांचों में बाँट नहीं लिया था तब से. गंगा गाँव और गाय एक शब्द श्रृंखला नहीं है यह मानव की सामाजिक एवं पारिवारिक इन्सान बनने की एक श्रृंखला है इसीलिए इसे सिर्फ हिंदुत्व से जोड़ के नहीं देखा जा सकता है यह शब्द श्रृंखला एक जीवन पध्वती की तरफ इशारा करती है जिसने इस भू भाग पे मानव जीवन को एक सामाजिक प्राणी के रूप में स्थापित किया. आज का मानव समाज इस शब्द श्रृंखला में छुपे निहितार्थ का ऋणी है. जब हम वन मानुष से मानव बन रहे थे तो हम नदियाँ ढूंढ रहे थे हमें गंगा उस काल में उसी नदी का प्रतीक है, नदियों के किनारे बस्तियों का निर्माण होने लगा . नदी किनारे बस्तियां होने से जीवन यापन एवं परिवहन आसान होते थे, पानी, खाने, नहाने आदि की कई सुविधाएँ थी जो बिना मूल्य मिलती थी. यही बस्तियां कालांतर में गाँव के रूप में परिभाषित हुई और लोग समूह में रहना और कृषि एवं पशुपालन करना शुरू किये. कृषि एवं पशुपालन के लिए जो सबसे उपयोगी जानवर इन्हें मिला वह थी गाय. गाय सिर्फ इन्हें कृषि में ही सहायता नहीं करती थी यह इन्हें दूध भी देती थी, गोबर भी देती थी और कई मायनों में बहुपयोगी थी. यह मानव जीवन को स्थापित संतुलित एवं पारिवारिक एवं सामाजिक इकाई रूप में विस्तार के लिए एक आवश्यक अंग हो गई. उस काल में प्रकृति प्रदत्त चीजें ही जीवन का आधार होती थी इसलिए जीवन में इसे सरंक्षित कर एवं इश्वर एवं धार्मिक त्योहारों से कृषि एवं गाय को जोड़कर इनके प्रयोग को नियमित किया गया. तत्कालीन समय में जीवन के प्रवाह के लिए जो जो चीजें आवश्यक थी उसे इश्वर एवं धार्मिक त्योहारों से जोड़ा गया इसीलिए सूर्य चन्द्र भगवान हैं, नदियों को माँ का दर्जा दिया गया, गाय को माँ का दर्जा दिया गाय, गो मुख में इश्वर का वास बताया गया ताकि मानव इश्वर एवं धार्मिकता के कारण इसे सरंक्षित करे और जीवन में इसे धारण करे. गाय पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं के साथ स्थायी कृषि का एकमात्र आधार था। वास्तव में, उस समय सोने की तुलना में गाय को अधिक माना जाता था और गौपालन तत्कालीन अर्थव्यवस्था का मुख्य संसाधन था।

मौजूदा सन्दर्भ में जिस सूत्र वाक्य के रूप में इसे योगी आदित्यनाथ ने बोला है उसे हलके में न लेते हुए उसपे मंथन होना चाहिए. भारत के सन्दर्भ में यह और भी प्रासंगिक हो जाता है क्यों कि हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र ग्रामीण है। देश की आबादी का 60 प्रतिशत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करता है। इसलिए, कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इस लिहाज से गाय भारत के लोगों के लिए एक संपत्ति है। गाय के गोबर का इस्तेमाल भारतीय किसानों के लिए ईंधन और उर्वरक के स्रोत के रूप में किया जाता है। यह सब आर्गेनिक और उच्च उपज देने वाली फसलों के उत्पादन में भी सहायक है। पौष्टिकता की बात करें तो भारतीय गाय का दूध सबसे पौष्टिक पाया जाता है। गाय, एक स्तनपायी होने के कारण उसे अपने बछड़ों के लिए जो दूध मिलता है वह यह लोगों के कल्याण के लिए अपने दूध को हमारे साथ साझा करती है। आज हम दूध के कई रूप में प्रयोग करते हैं जैसे की दही, क्रीम, मक्खन, और कई सारे खाद्य पदार्थ बना सकते हैं। क्रॉस प्रजनन के कारण आज हमारे पास गाय के दो प्रकार के दूध हैं ए 1 और ए 2 . ए २ प्रकार के दूध में जो प्रोटीन होता है वह वैसा ही होता है जैसा माँ का दूध होता है इसलिए  गाय को मां या गौ माता की स्थिति समाज में दी गई है।

 

इतिहास में झांके तो जब मुगल भारत आए, तो उनके पास बकरी-ईद पर बकरियों और भेड़ों की बलि चढ़ाने की परंपरा थी। गाय उनके लिए नया जानवर था क्योंकि वहाँ अरब देशों में कोई गाय थी ही नहीं। धीरे-धीरे,  उन्होंने गाय का बलिदान करना शुरू कर दिया लेकिन बाद में लगभग सभी मुगल शासकों ने सिर्फ औरंगजेब को छोड़कर गायों की हत्या को रोक दिया क्यूँ कि उन्हें गाय की महत्ता का पता चल गया था। तथ्यों की माने तो आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर ने तो इसे इतना मूल्यवान माना कि गाय की हत्या पर प्रतिबंध ही लगा दिया था।

 

मुगलों के बाद जब अंग्रेज भारत आये तो उन्होंने भारतीय समाज का शासन कैसे करें की दृष्टि से अध्ययन किया और उन्होंने इसके केंद्र में यहाँ की कृषि और गाय को मुख्य रूप में पाया. उन्होंने अपने अध्ययन में पाया की भारत वर्ष की इकॉनमी पूरी तरह से गाय , कृषि एवं गुरुकुल की शिक्षा पर आधारित है. ब्रिटिश गवर्नर रोबर्ट क्लाइव ने भारत की कृषि प्रणाली पे काफी गहन अध्ययन कर यहाँ पे शासन करने के फोर्मुले का इजाद किया. उन्होंने अपने चालक बुद्धि से यह पता लगा लिया कि गाय ही भारतीय कृषि का आधार है और भारत में गाय की सहायता के बिना कृषि हो नहीं सकती और और भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि को तोड़ने के लिए गाय को टारगेट करना आवश्यक है.

एक अध्ययन के अनुसार भारत में पहला स्लॉटर हाउस  सन 1760 में कोलकाता में शुरू हुआ, जिसमें प्रति दिन लगभग 30,000 भारतीय गायों को मार दिया जाता  था,  कहा जाता है की एक वर्ष में कम से कम एक करोड़ गायों का तब क़त्ल हुआ था। गौ मांस का इस्तेमाल ब्रिटिश सैनिकों द्वारा भोजन के रूप में या इसे इंग्लैंड में कारोबार के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। तब बीफ भारत में ब्रिटिश का मुख्य भोजन बन गया। इस कारण से तत्कालीन समय में भारतीय कृषि को एक बड़े कृषि एवं आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था. इस संकट से उबरने के लिए तब  रासायनिक उर्वरकों के माध्यम से  व्यावसायिक खेती और इसके व्यापार को शुरू किया गया। अपने इस हमले के द्वारा अंग्रेजों ने भारत के आर्थिक मूल पे तगड़ी चोट कर भारत की पूरी आर्थिक व्यवस्था को नष्ट कर दिया।

 

जो लोग गाय पे या इस बयान पे इतना बहस करते हैं दरअसल वह  जीवित गाय के अर्थशास्त्र को समझने में विफल रहते हैं। एक जीवित गाय एक मृत गाय की तुलना में अपने बहुमूल्य उत्पादों के मार्फ़त अपने बीफ के मूल्य की तुलना में 100 गुना अधिक पैसे कमा सकती है। सिर्फ एक गाय एक एकड़ जमीन को उपजाऊ कर सकती है। अगर कोई किसान उर्वरकों पर खर्च किए गए कुल धन का एक-तिहाई हिस्सा गाय पे खर्च दे तो वह उच्च उपज देने वाली फसलों का उत्पादन कर सकता है और यह गुणवत्ता और मात्रा के मामले में दोहरे उत्पाद मूल्य के बराबर हो सकता है। जो लोग न्यूट्रीशन वैल्यू के लिए हवाला देते हैं उन्हें मालूम होना चाहिए की सोया में इससे ज्यादा न्यूट्रीशन वैल्यू है.

 

ग्रामीण भारत में गायों का उपयोग, ऑर्गेनिक्स खेती को  को बढ़ावा देने,  रसायनों से छुटकारा पाने , पैसे बचाने,  किसानों की ख़ुशी, उनके बच्चो का पोषण ,  और बाजार में बेहतर उत्पादन मूल्य प्राप्त करने में सहायक हो सकता है। गोसंवर्धन के साथ साथ गोमूत्र, पंचगव्य और गाय के गोबर पर रिसर्च कर कीटनाशक व अन्य वस्तुएं बनाने की दिशा में काम किया जा सकता है। गाय को ऊर्जा के श्रोत के रूप में भी देखा जाना चाहिए क्यूँ की गाय से दूध, दही के साथ - साथ गैस का भी उत्पादन किया जा सकता है।

अंत में यही कहना चाहूँगा कि अगर हमें अपने देश की इकॉनमी को बढ़ावा देना है तो हमें देश के ७० प्रतिशत आबादी पे फोकस करना होगा जिसके पास आज की तारीख में छोटे जोत ही ज्यादे हैं. गौ पालन के माध्यम से ऐसे सीमांत परिवारों को बढ़ावा देना होगा जिससे इसके बहुपयोगी होने के कारण वे इसका बहुआयामी लाभ उठा सकते हैं, कुपोषण से खुद एवं अपनी संतानों को बचा सकते है और यही गाय ग्रामीण भारत के अर्थव्यवस्था की मुख्य इकाई हो सकती है.  

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