Economic Survey Vs Budget



देश में मीडिया में आम जनमानस में कभी आपने इकोनोमिक सर्वे को लेकर उतनी उत्सुकता देखी है क्याजितनी उत्सुकता और चर्चा आप बजट को लेकर देखते हैं. दरअसल सबसे अधिक बहस और मीडिया में जगह इकोनोमिक सर्वे का ही होना चाहिए. बजट तो अगले वर्ष की एक रूप रेखा होती है और वह ज्यादे करदातावों और सरकारी मशीनरी के लिए महत्वपूर्ण होती है ताकि वो अपने आय और उसपे लगने वाले कर के भार और मशीनरी अपने खर्चे की योजना बना सके. अब तक जैसे बजट पेश होता आ रहा है वो जैसे लगता है की बजट ही सरकार के पिछले साल का लेखा जोखा हैजबकि लेखा जोखा तो इकोनोमिक सर्वे है जिसपे ज्यादे चर्चा होना चाहिए.

इकनोमिक सर्वे और बजट भी मेरे ख्याल से आगे पीछे एक साथ पेश करने की जरुरत नहीं है क्यूँ की बजट के मीडिया ग्लैमर के कारण इकनोमिक सर्वे पे ठीक से बहस नहीं हो पाती है और देश हमेशा आगे के बजट में ही उलझा रहता है. जब आप देश की एक एक वाणिज्यिक फर्म से सालाना आर्थिक चिटठा हिसाब किताब मांगते हैंउस सालाना हिसाब किताब का कई बार आप स्क्रूटिनी भी कराते हैं तो ऐसी व्यवस्था देश के हिसाब के साथ होनी ही चाहिए. पहली बार ऐसी सरकार आई है जिसे इतना बड़ा बहुमत मिला है उसे बजट और सर्वे पेश करने के सारे तरीके में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहिए चाहे वो हलुवा खिलाने को लेकर के हो या बजट की तारीख को लेकर हो. 

मेरे ख्याल से जो पुरे देश का वित्तीय वर्ष हो उसी आधार पे इकनोमिक सर्वे भी लेना चाहिए. देश के व्यापार के आंकड़े तुलनात्मक अध्ययन के लिए प्रभावकारी और विश्वसनीय रहेंगे. इसके लिए वित्तीय वर्ष को जनवरी से दिसम्बर भी कर देना चाहिए यह विश्व के अधिकतम देशों के वित्तीय वर्षों से संगत भी रहेगा और सरकार को बजट १ दिसम्बर को पेश करना चाहिए ताकि जनवरी से फण्ड का हस्तांतरण समय से सभी विभागों को हो जाये और वार्षिक परफॉरमेंस पे वार्षिक रिपोर्ट जो की इकनोमिक सर्वे के रूप में है उसे १ नवम्बर को पेश करना चाहिए और उसकी कालावधि १ जुलाई से ३० जून रखनी चाहिए इससे वार्षिक परफॉरमेंस के एनुअल रिपोर्ट इकोनोमिक सर्वे पे ज्यादे गंभीर और प्रभावकारी चर्चा हो सकेगी और उसी आधार पर संसद में मंथन के बाद अगले महीने पेश हो रहा बजट भी प्रभावशाली हो सकेगाइसके लिए विशेष सत्र के प्रावधान करने पड़ें तो सरकार को करना चाहिए.

जब आप यह आर्टिकल आप पढ़ रहें होंगे तब तक देश में इकोनोमिक सर्वे एवं बजट दोनों पेश हो चुके होंगेऔर आपको पता चल चुका होगा कि यह कितना सपनों का बजट है. हालाँकि इकोनोमिक सर्वे में सरकार ने स्पष्ट कर दिया है है कीभारत को केवल दो सचमुच के टिकाऊ इंजन-निजी निवेश और निर्यात की ताकत पर ही तेजी से आर्थिक विकास करने के लिए काम जारी रखने की मंशा है,इसलिए इस बजट में आप निवेश प्रोत्साहन और एक्सपोर्ट इन्फ्रा के प्रोत्साहन के कदम ज्यादे दिखेंगे। सरकार छोटी और मझोली कंपनियों के लिए निवेश प्रोत्साहनों की घोषणा कर सकती है और स्पष्टपारदर्शी और स्थिर कर व नियमन माहौल बनाने पर जोर देने की सम्भावना है। जैसा की आप जानते हैं किअर्थव्यवस्था में निवेश का सूचक 'सकल स्थिर पूंजी निर्माणहोता है जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में बताया जाता है। 2003 में जीएफसीएफ26.5 प्रतिशत था और बढ़ते हुए 2007 में 35.6 प्रतिशत पर पहुंच गया था ।लेकिन बीते  2017 में यह  घटकर पुन: लगभग २००३ के स्तर 26.4 प्रतिशत के स्तर पर आ गया। जब निवेश में एक प्रतिशत अंक की गिरावट आती है तो विकास दर 0.4 से 0.7 प्रतिशत तक नीचे आ ही जाती है इसीलिए 2007-08 से 2015-16 के दौरान निवेश में गिरावट की वजह निजी क्षेत्र के निवेश का स्तर कम होना है और इसी कारण 'सकल स्थिर पूंजी निर्माणका कम होनाहै। ऐसे में सरकार इस बजट में निवेश को बढ़ाने के लिए ढांचागत क्षेत्र को प्रोत्साहित करनेकारोबार की प्रक्रिया सरल बनाने और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के उपाय किए जा सकते हैं।

सरकार ने भारत व्यापी GST लागू कर दिया है और अभी हाल में खबरआई की देश को यह पहली बार पता चला है की राज्यों का निर्यात मेंप्रतिशत ज्यादे है है जब की यह आंकड़ा पहले नहीं था अतः सरकार इसबार निर्यात को लेकर काफी आक्रामक बजट लाएगी खासकर कृषिनिर्यात को लेकर. सरकार की मंशा सहकारी संघवाद पे काम करने कोहै और उपभोग आधारित इस नई कर व्यवस्था में सरकार को पहले बारउपभोग के आधार पर पता चलेगा की अमुक राज्य के नागरिक उपभोगके माध्यम से कर के रूप में कितना योगदान करते हैं और यह आंकड़ागहराई स्तर पे जाते जाते जिला स्तर पर भी उपलब्ध होगा जिससे इसबार सरकार को जिलावार योजना बनाने में भी सहूलियत रहेगी. आनेवाली खबरों के मुताबिक  विकास में ऐसे पिछड़े जिलों का जिनका औसत विकास दर से कम है उनका विकास दर से समन्वय बिठाने के लिए सरकार इस बजट में अतिरिक्त संसाधन मुहैया करा सकती है।जैसी खबरें आ रही हैं इसके लिए  ‘डिस्टिक्ट एक्शन प्लान’ भी बनाए जा रहें हैं और अलग-अलग पैमाने पर समयबद्ध लक्ष्य तय कर इनकी रैंकिंग भी की जाएगी। और इनके रियल टाइम मॉनिटरिंग का काम टाटा ट्रस्ट एवं बिल गेट्स फाउंडेशन को सौंपा गया है।

सरकार ने ऐसे 115 जिलों को चुन भी लिया है जो विकास के मामले में पूरे देश से पीछे रह गए हैं। ईसके लिए संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों को इन जिलों का प्रभारी अधिकारी भी नियुक्त किया गया है। नीति आयोग एवं सम्बंधित मंत्रालयों को भी इन जिलों की जिम्मेदारी सौंपी गई है और सभी मंत्रियों के निजी सचिवों को  इस पर विशेष ध्यान रखने को कहा गया है। एक योजना की राशि दुसरे पे ना खर्च हो इसको लेकर शायद सरकार कुछ कुछ प्रतिबन्ध भी लगाने वाली है। ताकि इस राशि को केवल उन्हीं जिलों में इस्तेमाल हो पाए.

इस पेश हो रहे बजट में आम करदाता भी टकटकी लगाये देख रहा होगाउम्मीद है की सरकार करमुक्त आय की सीमा ३ लाख कर दे हालांकि इससे कोई ज्यादे फायदे की उम्मीद नहीं है क्यूँ की  वैसे भी इस स्लैब की दर ५% ही है सरकार को दरअसल ५ लाख तक की सीमा तक के आय को करमुक्त कर इस आय तक कमाने वाले को रिटर्न से भी मुक्त कर देना चाहिए. टैक्स स्लैब को पांच लाख१० लाख और २० लाख से ज्यादे कर तीन स्लैब बनाना चाहिए. साथ ही जो वेतन भोगी जिनका टीडीएस काटा जाता है और जो अपने आय की समस्त जानकारी अपने नियोक्ता को दे ही देते हैं उनको आयकर रिटर्न विवरणी भरने से मुक्त कर देना चाहिए जब तक की उनकी कोई अन्य आय न हो जो कि वह बता न पायें हो क्यूँ की नियोक्ता तो उनकी आय की पूरी जानकारी लेकर ही तो टीडीएस काट रहा है इसलिए विवरणी भरने की क्या जरुरत. साथ ही आम करदाता सरकार से मेडिकल खर्च किराया खर्च और बीमा खर्च की मौजूदा लिमिट बढ़ाना चाहता है.

कॉर्पोरेट वर्ल्ड की चाहत रहेगी कि कार्पोरेट टैक्स की दर और घटाई जाए,MAT को कम किया जाये और DDT को ख़त्म किया जाये. हालाँकि इसमें सेDDT तो ख़त्म होनी ही चाहिए या एक सीमा तक का लाभांश DDT मुक्त होना ही चाहिए.

इन सब के अलावा मैं तीन मुद्दे और उठाना चाहता हूँ । पहला जैसे नोटबंदी से पहले IDS जैसी स्कीम आई थी तब भारतव्यापी GST लागू करने से पहले या अब सारे इनडाइरेक्ट टैक्स के लिए वन टाइम एमनेस्टी स्कीम क्यों न लाया जाये। जब तक पुरानी कर प्रक्रिया को क्लीन एग्जिट नही देंगे GST को पूर्णतया अडॉप्ट करने में समस्या होगी।

दूसरा इनकम टैक्स में एक अनुमानित आय की एक स्कीम है जिसके तहत करोड़ तक टर्नओवर में व्यापारी 8% लाभ घोषित कर उसपे आने वाला आयकर भर सकता है और उसके ख़र्चे की कोई जांच पड़ताल नही होगी। यदि वह 8% से कम आय घोषित करना चाहता है तो ऑडिट करा लें। फुटकर व्यापार के लिए यह प्रतिशत 5% है। अगर औसत निकालें तो टैक्स लगभग टर्नओवर के 1.5% से2.४% के आसपास पड़ेगा और जब GST आने के बाद एक व्यवसाय के टर्नओवर को सत्यापित करने की जिम्मेदारी एक सरकारी मशीनरी ले ही रही है तो उसी टर्नओवर को आधार मानकर बिना किसी करोड़ की लिमिट के,  2% इनकम टैक्स भी वसूल ले। स्क्रूटिनी का झंझट ही खत्म। अब तो व्यापार में हर चीज का HSN कोड है उसी हिसाब से प्रगतिशील आयकर दर टर्नओवर के साथ वसूल लें। कम GST वाले पे कम आयकर का दर और ज्यादे पे ज्यादे। इसको लागू करने के बाद सैलरी पे आयकर ख़त्म ही कर देनी चाहिए क्यों कि खर्च के माध्यम से वसूल ही रही है सरकार । हां यदि वह वेतनभोगी विदेश में पैसा भेज रहा है मतलब भारत मे खर्च नही होने वाली तो उसपे भेजते समय टैक्स लगा लें।

तीसरा मनरेगा की राशि वर्गीकरण कर के इसे बढ़ा देवें. सरकारी कार्यों में मनरेगा मजदूरों के इस्तेमाल को बढ़ावा देते हुए शहरी रोजगार के दिन और राशि को ग्रामीण रोजगार के दिन और राशि से बढ़ा देवें ताकि शहरों में मजदूरी संकट को कम किया जा सके और मनरेगा का इस्तेमाल सम्पति निर्माण में हो सके.

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