उच्च शिक्षा रोजगार और चपरासी

अभी माननीय सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट मैनेजमेंट का बहस चल ही रहा था की मीडिया में आई एक खबर काफी चौंकाने वाली थी. यह खबर थी मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिला कोर्ट में चपरासी के महज 57 पदों के लिए लगभग 60 हजार आवेदन आए थे। और इससे भी बड़ी चौंकाने वाली बात यह थी कि इस पद का मानदेय सिर्फ साढ़े सात हजार रुपए था,और अधिकतर उम्मीदवार योग्य शिक्षा से काफी ऊँचे पढ़े लिखे इंजीनियर, एमबीए और यहां तक कि पीएचडी डिग्रीधारी थे। इस आवेदन फॉर्म  की बिक्री से ही एक करोड़ 20 लाख की फीस प्राप्त हो गई. आवेदन करने वालों में से 80 प्रतिशत आवेदन ऐसे आये थे जिनकी शैक्षिक योग्यता १२ वीं स्नातक और स्नातकोत्तर थी जबकि चपरासी के लिए शैक्षणिक योग्यता निर्धारित थी 8वीं पास.

इतनी बड़ी संख्या में नौकरी के आवेदनों को देखकर जिला कोर्ट प्रशासन भी पसीना-पसीना हो रहा है, क्योंकि चपरासी के लिए शैक्षणिक योग्यता 8वीं पास रखी गई है। इसलिए सभी आवेदकों को स्क्रीनिंग और पर्सनल इंटरव्यू के लिए जज के सामने से गुजरना भी होगा जो एक बड़ी समय खपाऊ प्रक्रिया एवं बड़ी चुनौती है।

पता चला है कि इतनी बड़ी चयन प्रक्रिया से निपटने के लिए जिला कोर्ट ने 14 जजों की कमेटी भी गठित कर डी है। 28 जनवरी से उम्मीदवार की स्क्रीनिंग शुरू होगी। इस दौरान उम्मीदवार को मूल दस्तावेज व फोटो के साथ जज के सामने उपस्थित होना होगा। स्क्रीनिंग की मेरिट के बाद सेकंड राउंड में साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा। स्क्रीनिंग व साक्षात्कार में मिले अंकों को जोड़कर मेरिट लिस्ट तैयार की जाएगी, उसके आधार पर नौकरी मिलेगी। पूरी प्रक्रिया 18 फरवरी तक चलेगी। इस तरह आप पाएंगे कि 2857 आवेदकों की स्क्रीनिंग प्रत्येक जज को औसतन करनी होगी। 204 औसत आवेदक हर दिन एक जज के सामने से गुजरेंगे। यह पूरी जानकारी एक मीडिया रिपोर्ट से हमें प्राप्त हुई है लेकिन अन्य जगहों के अखबार को उठा के देखें तो ऐसी खबरे आपको मिल जाएँगी. एक दिन मैं भी अपने तहसील कार्यालय किसी काम से गया, तभी एक चपरासी मेरे पास आया एक्सक्युज मी और मे आई हेल्प यू बोलते हुए और पूछने लगा की क्या काम है. ज्यादा बात हुई तो पता चला जनाब एमएससी केमिस्ट्री है, मैंने पुछा की भाई जब एमएससी केमिस्ट्री हो तो चपरासी की नौकरी क्यूँ कर रहे हो, तो बोला उसने की भैया बेरोजगार था नौकरी नहीं मिल रही थी, यही पहली मिली तो पकड़ लिया. दूसरा उदाहरण लेता हूँ आप पूर्वांचल में चले जाइये आपको प्राइमरी स्कूल के कई बीटीसी टीचर मिल जायेंगे जो की MCA या MBA किए हुए हैं किए हुए हैं लेकिन सरकारी नौकरी का लालच उन्हें आईटी की नौकरी की जगह बीटीसी की टीचर बनाये हुए है. आज भी आप को कई लोग मिल जायेंगे जो सिर्फ इस लिए पढ़ते हैं कि जब तक नौकरी नहीं मिली है पढ़ लो LLB कर लो तो बीएड कर लो तो एमएससी कर तो PO की तैयारी कर लो. यह सब इसलिए कि आज भी अधिकांश युवावों को लगता है की शिक्षा का मतलब नौकरी और नौकरी का मतलब सरकारी नौकरी. महाराष्ट्र और गुजरात और दक्षिण के राज्यों की हालत थोड़ी बेहतर है क्यूँ की यहाँ का युवा अपनी शिक्षा को स्किल से जोड़ के पढता है. पढाई के साथ देश के और परिवार की इकॉनमी में अपना योगदान करता हुआ चलता है एक तरफा कई सालों तक पढता ही नहीं चलता है. अगर पढता है तो उसे पता रहता है कि कोई कोर्स क्यूँ कर रहा है और इससे उसको क्या मिलने वाला है सिर्फ समय बिताने के लिए महाराष्ट्र या गुजरात में कोई नहीं पढता है. जहाँ जहाँ यह समस्या है की MBA, एमएससी या पीएचडी के अभ्यर्थी चपरासी के लिए लाइन में हैं वहां समस्या यही है की शिक्षा ज्ञान या रोजगार के लिए नहीं ज्यादेतर केसों में अब क्या पढ़ ले अब क्या पढ़ लें और उचित मार्ग दर्शन के आभाव में ऐसा कर गए. शिक्षा का एकमेव मतलब होता है ज्ञान की प्राप्ति करना, गुणों की प्राप्ति करना ना कि केवल डिग्री की प्राप्ति कर लेना. अब आप सोचिये कोई पीएचडी धारी क्या चपरासी की नौकरी कर पायेगा क्या? क्या किसी बाबू को या अपने से जूनियर किसी व्यक्ति को पानी पिला पायेगा क्या. क्या जिस नौकरी को वह कर रहा है क्या वह उसके लिए मानसिक तौर पर तैयार है, क्या वह अपने पद और सरकार की जिम्मेदारियों के साथ न्याय कर पायेगा क्या. स्वाभाविक है नहीं कर पाने की सम्भावना ज्यादे है. और जब ऐसी भर्तियाँ हो जाएँगी तो यह एक नए तरह के सिस्टम में बदल जायेगा जहाँ मानव संसाधन ऐसे पोस्ट पे बैठ जायेगा जहाँ उसकी शैक्षिक योग्यता ज्यादे है और पोस्ट छोटा सरकारी कार्य की उत्पादकता एवं संस्कृति दोनों का ह्रास होगा. अभ्यर्थी को जब उसके शिक्षा के अनुकूल जॉब संतुष्टि नहीं मिलेगी तो या तो वह कार्य से विमुख होगा या इधर उधर से आय प्राप्ति की कोशिश करेगा और धीरे धीरे सरकारी व्यवस्था फिर ध्वस्त हो जाएगी. ऐसी समस्यावों को रोकने के लिए सरकार को दो चीज सर्वप्रथम करनी चाहिए. पहला कि रोजगार को परिभाषित करना चाहिए कि किसे रोजगार कहते हैं और इसके व्यापक परिभाषा में अपने रोजगार में लगे लोगों को भी शामिल करना चाहिए जो कि कोई भी स्किल वाला काम करते हों वह नाइ के काम से लेकर स्किल ड्राइविंग भी है. दूसरा अगर चपरासी की नौकरी का आवेदन है तो यह नियम लगा दें की इस अहर्ता से ऊपर के लोग आवेदन के लिए अयोग्य होंगे इससे दो फायदे होंगे पहला की उस पद के लायक और उसे अपना ही काम समझने वाला आवेदक मिलेगा तो उस पद की उत्पादकता बढ़ेगी और दूसरा जिस तकनिकी एवं प्रबंधकीय शिक्षा के लिए सरकार ने संसाधनों पे इतना खर्च कर के शिक्षा प्रदान की हो वह अभ्यर्थी उसका उपयोग उसी ट्रेड में करने की तब कोशिस करेगा और कहीं भी समायोजित होने का प्रयास नहीं करेगा. भारत के युवावों को भी शिक्षा का चयन और रोजगार के चयन में हड़बड़ी नहीं दिखानी चाहिए और जीवन में एक निश्चित उम्र तक इकॉनमी में योगदान करेंगे का मन भी बना लेना चाहिए पढाई और नौकरी की अंधी दौड़ में शामिल नहीं होना चाहिए. इससे असली रिसर्च और शिक्षक की नौकरी करने वाले वाले बच्चे रिसर्च करेंगे पीएचडी करेंगे लम्बी पढाई पढेंगे और बकिया स्किल वाली पढेंगे . कुल मिला के शिक्षा की फ़िल्टरिंग से मानव संसाधन का उत्पादन सुयोग्य होगा.

Comments

Shwetabh said…
शिक्षा का मतलब नौकरी और नौकरी का मतलब सरकारी नौकरी.....
ये एक ट्रेंड बना दिया है लोगो ने ...