शहर दर शहर हो भिन्न आय कर

कभी आपने सोचा है की आयकर की दर भारत में असमानता पैदा करती है. दावा करने वाले तो करते हैं की यह प्रगतिशील कर व्यवस्था है इसलिए यह अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था से काफी अच्छी है जो ज्यादे कमाएगा उसे ज्यादे कर देने होंगे,अप्रत्यक्ष कर की तरह सभी से वसूली नहीं जाएगी. लेकिन क्या आपको पता है कि भारत जैसे विशालकाय देश जहाँ आय एवं जीवनस्तर की भिन्नताएं व्यापक रूप में मौजूद हों वहां मौजूदा आयकर प्रगतिशील और न्यायसंगत नहीं कही जाएगी. उदाहरण के तौर पर दो मित्र हैं एक मित्र गोरखपुर जैसे शहर में १२ लाख रुपये का वेतन पाता है और दूसरा मुंबई जैसे शहर में भी वही वेतन १२ लाख पाता है. गोरखपुर वाले मित्र का मासिक खर्च निम्न प्रकार है. मकान का किराया १२००० रुपये घर खर्च १८००० रुपये २ बच्चों की स्कूल फीस ५००० रुपये मासिक मेडिकल खर्च १००० रुपये गाडी का पेट्रोल ४००० रुपये बिजली खर्च २०००  रुपये टेलीफोन खर्च १००० रुपये अन्य खर्च १०००० रुपये कुल खर्च ५३००० रुपये मासिक मतलब सालाना खर्च ६३६००० रुपये हैं. मान लीजिये दोनों मित्रों की आयकर छूट की स्कीम एक जैसी हो सिवाय HRA क्लेम के तो लगभग गोरखपुर वाले मित्र को १२०००० टैक्स देना पड़ेगा और कुल आउटफ्लो ७५६००० और बचत ४४४००० रुपये होगी . अब लीजिये वहीँ मुंबई वाले मित्र का खर्च, वह निम्न प्रकार होगा. मकान का किराया ४०००० रुपये घर खर्च ३०००० रुपये २ बच्चों की स्कूल फीस २०००० रुपये मासिक मेडिकल खर्च २००० रुपये गाडी का पेट्रोल १०००० रुपये बिजली खर्च ४०००  रुपये टेलीफोन खर्च १००० रुपये अन्य खर्च १५००० रुपये कुल खर्च १२२००० रुपये मासिक मतलब सालाना १४६४००० खर्च. इसमें उसको टैक्स देना पड़ेगा थोड़ी HRA की ज्यादे छूट पकड़ के ११०००० अब कुल आउटफ्लो होगा १५७४००० रुपये एवं इनफ्लो होगा १२००००० लाख रुपये सिर्फ अभी इसमें से तो पीएफ एवं अन्य कटौतियां पकड़ी ही नहीं जा रहीं हैं. यहाँ आप देखेंगे कि मुंबई वाले मित्र के पास कोई बचत ही नहीं बच रही है , यहाँ तक की आयकर देने के लिए भी उसे ऋण का सहारा लेना पड़ रहा है. अब यहाँ तो बचत की बात ही छोड़िये उसके ऊपर तो ऋण चढ़ गया ३७४००० रुपये का. अब बताइए समान नौकरी समान वेतन समान जीवन स्तर’जीने पर एक मित्र को सालाना ४४४००० रूपया बचत हो रहा है वहीँ दुसरे मित्र के सर पर हर वर्ष ३७४००० रुपये का कर्जा चढ़ता जा रहा है जिसमे एक हिस्सा कर देने में खर्च हो रहा है. कहने का लब्बोलुवाब यह है की वर्तमान की आयकर की एक समान प्रभावकारी दर पुरे देश में भारत जैसे विशालकाय एवं विभिन्न्तावों से भरे देश के लिए न्यायसंगत नहीं है. जो आयकर की दर और छूट आप गोरखपुर या उस जैसे अन्य छोटे शहरों को दे रहें हैं वही दर या छूट आप मुंबई या मुंबई जैसे बड़े शहरों को नहीं दे सकते है. मुंबई और मुंबई जैसे बड़े शहरों के करदातावों के लिए जिनके मूलभूत खर्च का स्तर छोटे शहरों से कई गुना ज्यादे हों वहां आप को इन बड़े शहरों के लिए कोई मानक कटौती जैसे व्यवस्था या रियायत दर वाली कर दर लगानी पड़ेगी. रियायत दर वाली कर व्यवस्था अगर आपके लिए कठिन लग रही है तो आप जीवन स्तर खर्च सूचकांक के हिसाब से आय में से एक निश्चित राशि की मानक कटौती दीजिये मुंबई के निवासियों को और इस जैसे अन्य शहरी निवासियों को. शहर दर शहर यह मानक कटौती आप निश्चित करिए, और इसका कुछ रास्ता भी निकालिए ताकि इसका गलत इस्तेमाल भी न होने पाए, साथ में यह मानक कटौती  सिर्फ वेतनभोगी करदातावों के लिए नहीं दीजिये आप सभी तरह के आय के मद में दीजिये, तब जा के भारत का आयकर की व्यवस्था न्यायसंगत हो पायेगी.

अभी इस वित्तीय वर्ष से सरकार कंपनी करदातावों के लिए आयकर की उच्च दर की रियायती व्यवस्था लेकर आ रही है जिसके तहत ५० करोड़ से नीचे बिक्री वाली वाली कंपनियों को आयकर की दर २५% हो जाएगी. लेकिन यह भी न्यायसंगत नहीं है. एक व्यक्ति जो की एकल व्यवसाय या साझेदारी फर्म बना के व्यापार करता है और जिसका व्यापार ५० करोड़ से कम है को ज्यादे कर की दर है बनिस्पत उसके जो कॉर्पोरेट फॉर्म में है. उदाहरण के तौर पर यदि दो व्यापारी हैं और दोनों एक ही क्षेत्र में व्यापार करते हों दोनों के टर्नओवर ५० करोड़ रुपये हैं और दोनों की आय १० प्रतिशत मतलब ५ करोड़ रुपये हैं तो कंपनी वाले को जहाँ एक करोड़ २५ लाख टैक्स देने पड़ेंगे वही गैर कंपनी वाले को एक करोड़ ४८ लाख टैक्स लगभग देने पड़ेंगे मतलब २३ लाख रूपये ज्यादे. यह असंगत बड़ा है . यह अप्रत्यक्ष रूप से पुरे देश को कॉर्पोरेट रूप में धकेलने के रूप में लिया जायेगा,जो कि न्यायसंगत नहीं है. सरकार को छूट अगर बिज़नस सेगमेंट को देनी ही है तो सारे बिज़नस सेगमेंट को देनी चाहिए जो चाहे वो कॉर्पोरेट हो या नहीं हो. एक ही कानून के अन्दर धारावों की व्यवस्था व्यक्ति के स्वरूपों के आधार पर पक्षपातपूर्ण नहीं होनी चाहिए अगर दोनों लाभ के उद्देश्य से काम कर रहें हो तो.

हालाँकि अब आयकर को भी जल्द से जल्द इसी बजट में बदलने की प्रक्रिया को तेज कर फिर से एकदम नए प्रारूप का जमीनी हकीकत और व्यावहारिकता के हिसाब से लाना चाहिए. कब तक १९६१ में बने इस वर्तमान आयकर अधिनियम को प्रोविजो एवं संसोधनों के माध्यम से चलाते रहेंगे. नया आयकर समय की मांग है, जब GST जैसा बड़ा टैक्स रिफार्म जल्दी से आ सकता है वैसे में आयकर में भी बड़ा बदलाव आना चाहिए.
साथ में जब गार है कर चोरी को पकड़ने वाला उसे भी व्यावहारिक करें ताकि उसे लागू किया जा सके. सरकार जब जब गार लागू करने की बात करती है उद्योग जगत और शेयर मार्किट रियेक्ट करता है. ऐसे समय में जब हम ७० वर्ष की परिपक्वता को प्राप्त कर चुके हैं दोनों स्तर पर सरकार के और नागरिक एवं करदाता के तौर पे तो कोई नए कानून को लाने पर शेयर मार्किट एवं करदाता को भय नहीं आये ऐसा कानून सरकार को बनाना चाहिए.
कुल मिला के यह सेकंड लास्ट बजट है मोदी सरकार का इसका अगला बजट चुनाव से पहले होगा अतः परंपरा के हिसाब से सरकारें अंतिम सत्र के बजट में ज्यादे अर्थव्यवस्था को सुधार करने वाले फैसले नहीं लेती सिवाय लोकलुभावन फैसलों के इस हिसाब से २०१८ का बजट बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है क्यूँ की इस सरकार से इकॉनमी को सुधार करने की नीयत से बड़े फैसले लिए जाने की बड़ी संभावनाएं है. मेरी सलाह में तो आयकर इस इस असमानता को दूर किया जाये जीवन स्तर खर्च सूचकांक के आधार पर मानक कटौती या किसी अन्य माध्यम से शहरी क्षेत्र के करदातावों को कुछ राहत दी जाये ताकि वह इस असमानता का शिकार न हों. अगर आयकर अधिनियमों के काम लायक जीवन स्तर खर्च सूचकांक नहीं तैयार है तो सरकार को आयकर को ध्यान में रखते हुए फाइनेंस एक्ट में ही प्रतिवर्ष जीवन स्तर खर्च सूचकांक आयकर हेतु पब्लिश की जानी चाहिए.

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