भविष्य इलेक्ट्रिक वाहनों का ही है

भविष्य इलेक्ट्रिक वाहनों का ही है

जिनकी निगाहें अंतर्राष्ट्रीय राजनीती की तरफ है उन्हें यह भली भांति मालूम होगा की सऊदी अरब अब पहले से ज्यादे उदार और निवेश फ्रेंडली क्यूँ हो रहा है. विश्व और पर्यावरण में घट रही घटनाएँ बहुत सी ऐसी चीजें कर रही हैं जिसके कारण हो सकता है की २०३० तक आते आते दुनिया का आर्थिक स्वरुप ही बदल जाये. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके प्रयास आ रहें हैं. वैश्विक सम्मलेन हमेशा से ही वैश्विक मुद्दे पे होते रहें हैं जिनमे की प्रमुख एजेंडा होता है पर्यावरण एवं पृथ्वी पे जीवन की रक्षा.

दिल्ली में स्मोग कितना खतरनाक रूप ले चुका है इसका उदाहरण आप कोटला मैदान पे हो रहे क्रिकेट मैच से ले सकते हैं जहाँ दोनों टीम के खिलाडी प्रदुषण के कारण एक अंतर्राष्ट्रीय मैच में उल्टियाँ कर रहे थे. समय रहते अगर हम पर्यावरण की तरफ ध्यान नहीं दिए तो अचानक से डायनासोर की तरह हमारा आस्तित्व ही संकट में आ जायेगा.

भारत ने राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा, वाहनों के प्रदूषण और घरेलू विनिर्माण क्षमताओं के विकास के मुद्दों को हल करने के लिए 2013 में 'राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (एनईएमएमपी) 2020'  की अवधारणा पे काम किया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे हुए पेरिस समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए, भारत सरकार ने 2030 तक बिजली के वाहनों में एक बड़ा बदलाव करने की योजना बनाई है। ई-कॉमर्स कंपनियों, रेवा इलेक्ट्रिक कार कंपनी (आरईसीसी) जैसी भारतीय कार निर्माताओं और ओला जैसी भारतीय ऐप-आधारित परिवहन नेटवर्क कंपनियों ने अगले दो दशकों में इलेक्ट्रिक कारों के अधिक इस्तेमाल करने पर काम कर रहीं हैं।

भारत का मौजूदा वायु गुणवत्ता सूचकांक हमें बताता है कि भारत के कई शहरों में हवा अब स्वस्थ नहीं रह गई है। आज शोर और प्रदूषण से प्रभावित कुछ भारतीय शहरों में रहने वाले लोग बुरी तरह से प्रभावित हैं। कुछ भारतीय शहरों में तो दुनिया का सबसे खराब शोर और वायु प्रदूषण का स्तर है, और ऑटोमोबाइल से सम्बंधित वायु प्रदूषण इसके प्रमुख कारणों में से एक रहा है।ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित पहलुओं के हल के लिए ऑटोमोबाइल क्षेत्र में बड़े पहल एवं बदलाव की आवश्यकता है जो कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर दे। साथ ही साथ जीवाश्म-ईंधन आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भरता को कम करने की आवश्यकता भी है भारत को। 2014-15 के लिए भारत के कच्चे तेल का आयात 112 अरब डॉलर था जो कि लगभग 7,00,000 करोड़ रुपये के बराबर था आज पर्यावरण रक्षा के साथ साथ इस बजट को भी कम करने की आवश्यकता है. भारत इस दिशा में काम करके क्लीन मोबिलिटी सलूशन को आगे बढ़ाते हुए एक ग्लोबल प्रोवाइडर बन सकता है।

बड़ी तेजी के साथ गाड़ियों की बिक्री ने पर्यावरण की चिंताओं को और बढाया है. अब वक़्त आ गया है की आक्रामक तौर पर इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित किया जाये.

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार एक नया एवं शुरुवाती स्तर पर है । यहाँ इलेक्ट्रिक वाहनों के मांग में वृद्धि यहाँ कि पर्यावरण की स्थिति और ड्राइविंग पैटर्न के कारण पश्चिम की तुलना में अलग है। इसलिए भारत जैसे देश में इलेक्ट्रिक वाहन टेक्नोलॉजी को और सस्ता से सस्ता बनाने के लिए निवेश की सम्भावना विशाल है। इसके लिए एक वास्तविक एवं सुसंगत सरकारी नीति की आवश्यकता है. हाल ही में सरकार की सक्रियता को ध्यान में रक्खे तो हम पाते हैं हैं कि इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्माण भारत में बड़े पैमाने पे शुरू होने जा रहा है.

वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों की मूलभूत जरुरत की ये चार्ज कैसे होंगे के लिए चार्जिंग स्टेशनों के मुद्दे को हल करने के लिए और देश में चार्ज करने हेतु बुनियादी ढांचा , पीपीपी आधार पर स्थिर ग्रिड और स्पष्ट रेवेन्यु मॉडल के आधार पर अब काम किया जा रहा है। सरकार इस के लिए सिफारिशें और एडवाइजरी जारी कर सकती है, लेकिन वह पुरे का पूरा बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं कर सकती है। इसके लिए सभी को एक साथ आना पड़ेगा और एक ही लक्ष्य की ओर काम करना पड़ेगा। चार्जिंग स्टेशनों का एक संभावित स्रोत पेट्रोल पंप या मेट्रो स्टेशन हो सकता है। हालांकि इसे  रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों या जैव ईंधन द्वारा सुसज्जित और संचालित करने की आवश्यकता होगी वरना,  क्लीन एनर्जी एवं पर्यावरण रक्षा का पूरा उद्देश्य खो जायेगा क्यूँ की इलेक्ट्रिक वहां भी उत्सर्जन मुक्त नहीं है, जब तक कि यह अक्षय ऊर्जा से बिजली नहीं ले रही है।

मौजूदा बाजार के संकेतों को देखें तो पाएंगे की वोल्वो द्वारा की गई घोषणा कि 2019 तक केवल इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड वाहनों का निर्माण ही करेगा,  के बाद बहुत से लोग मानते हैं कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का वक़्त आ गया है। भारत में प्रमुख कंपनियां अब इस दिशा में सोचने लगी हैं क्यूँ की जिस तरह से वैश्विक समझौते हो रहें हैं सरकारें इस दिशा में कदम उठा रही हैं हो सकता है की २०३० तक सडकों में सिर्फ प्रदुषण मुक्त गाड़ियाँ दिखें और उसकी अगुवाई इलेक्ट्रिक वाहन करें.

विश्व बाजार में तेजी से विकसित होने वाले इस परिदृश्य में सोलर पावर डेवलपर्स और लिथियम आयन बैटरी के निर्माताओं ने भी अभी से प्रयास शुरू कर दिया है। भारत के नवरत्न कंपनियों जैसे कि एनटीपीसी लिमिटेड, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) और पावर ग्रिड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, देश के इस अनिश्चित लेकिन आशान्वित और उभरती हुई इस नव ऊर्जा की सम्भावना और परिदृश्य में प्रासंगिक रहने के लिए अभी से सोचना शुरू कर दिया है।

ऊर्जा कंपनियों के लिए नए आकर्षक क्षेत्र के रूप में चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थापना एक लाभप्रद एवं बड़ी संभावना है,  जिसका वो अनुमान लगाते हैं कि लगभग 90 बिलियन यूनिट्स (बीयू) बिजली की अनुमानित आकर्षक बाजार क्षमता है भविष्य में जो वक़्त के साथ बढती जाएगी।

इलेक्ट्रिक वाहनों में इजाफों के कारण उम्मीद है कि वे बिजली की कमर्शियल मांग बढेंगी जिसका भुगतान ज्यादे तेज होगा और लाभपूर्ण होगा और इससे भारत की घाटे में चल रही बिजली की परिसंपत्तियों की भी हालत सुधर जाएगी। बिजली की मांग में आने वाली कमर्शियल दाम की तेजी से इन तनावग्रस्त ऊर्जा क्षेत्र परियोजनाओं की वित्तीय व्यवहार्यता को भी सुधार करने में मदद मिलेगी।

वैसे भी भारत अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश है , और हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की दिशा में काम कर रहा है और वैश्विक जलवायु परिवर्तन समझौते के तहत 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के 175 गीगावाट को प्राप्त करने की योजना बना रहा है जिसमे से 100 गीगावाट सौर उर्जा से आने वाला है।

भारत में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली के वाहनों द्वारा पूरी की जाने की भी सम्भावना है जिसमे उर्जा का संग्रहण क्षमता बढ़ा के दिन के दौरान उत्पन्न सौर ऊर्जा को बैटरी में संग्रहित करने की योजना है।

नीति आयोग ने भी ने इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं को वित्तीय प्रोत्साहन देने और निजी स्वामित्व वाले पेट्रोल और डीजल इंधन वाला वाहनों को हतोत्साहित करने की सिफारिश की है। ये भारत की गतिशीलता, ऊर्जा और पर्यावरण की जरूरतों के लिए संभवतः दूरगामी कदम है और मौजूदा वाहनों के इंजन के धीरे धीरे अंत के रूप में हम इसे देख सकते हैं। "इलेक्ट्रिक वाहनों के आगमन से तेल और गैस का इस्तेमाल को रोकने में मदद मिलेगी और यह कई उपयोगों में तेल का विकल्प भी होगा और भारत के चालू खाते के घाटे को कम करेगा"।

बिजली चलाने वाले वाहनों को जल्दी अपनाने की योजना क्रियान्वयन के लिए भारत में इस काम को EESL ( Energy Efficiency Service Limited )  को काम सौंपा गया है जो कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहन खरीद के लिए टेंडर निकाल रही है जिससे की इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार में एक किक मिले । EESL का व्यापार मॉडल इन वाहनों को सरकार और उसकी एजेंसियों को लीज पर देने का है।

बड़ा कदम उठाते हुए भारतीय ऑटो उद्योग को सितंबर में ही सरकार ने चेतावनी दे दी है कि वे गैर-प्रदूषणकारी वैकल्पिक ईंधन पर चलने वाले वाहनों के उत्पादन पर स्विच करें।

फिलिपिन्स, स्विस और कई चीनी कम्पनियाँ भारत में ईवी चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की योजना बना रही हैं. वर्तमान में, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा लिमिटेड ही देश में पूरी तरह से इलेक्ट्रिक कार बेच रही है, जबकि मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड और टोयोटा मोटर कॉर्प सहित अन्य ने हाइब्रिड संस्करणों की पेशकश की है।

2030 तक भारत को एक अखिल विद्युत यात्री वाहन बाजार बनाने के लिए सरकार की हालिया घोषणा के बाद इलेक्ट्रिक वाहनों की चर्चा केंद्र में आ गई है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स को एक साहसिक वक्तव्य दिया, जिसमें "कोई भ्रम वैकल्पिक वाहन ईंधन में स्विच करने के लिए भारत सरकार के दृढ़ संकल्प के बारे में, "मैं ऐसा करने जा रहा हूं, चाहे आप इसे पसंद करें या नहीं। और मैं आपको नहीं पूछना चाहता हूं। मैं इसे बुलडोज़ कर दूंगा"। चूंकि सरकार अक्षय ऊर्जा स्रोतों में तेजी देखने को भी उत्सुक है, इसलिए यह व्यापक रूप से उम्मीद है कि सौर ऊर्जा - विशेष रूप से छत के ऊपर सौर चार्जिंग साइटों को पावर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

कुल मिला के सरकारें और बाजार और अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है और अब आगे वाने वाला भविष्य बिजली वाहनों का ही है.

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