बेनामी की सूनामी

घरेलू ब्लैक मनी पे केंद्र सरकार अपना तीसरा बड़ा चाबुक लाने वाली है वह है बेनामी प्रॉपर्टी पे कारवाई. बेनामी प्रॉपर्टी पे सरकार क्या सोचती है और जन व्यवहार कैसा है और जो वाकई बेनामी प्रॉपर्टी के द्वारा कर चोरी करते हैं आइये उसको सबसे पहले समझते हैं, क्यूँ कि ऐसा अंदेशा है कि गुजरात चुनाव के बाद सरकार बेनामी संपत्तियों के खिलाफ बड़े एक्शन की तैयारी में है.

सबसे पहले समझते हैं की बेनामी संपत्ति क्या होती है मौजूदा कानून के हिसाब से. कानून में लिखा है कि "बेनामी संपत्ति" का अर्थ है वह संपत्ति जो कि बेनामी लेनदेन का विषय है और ऐसी संपत्ति से कोई आय या प्राप्ति है तो वह भी बेनामी संपत्ति कहलाएगी.

अब सवाल उठता है की यह बेनामी लेनदेन क्या है? बेनामी लेनदेन के बारे में कानून कहता है कि कोई भी सौदा या अरेंजमेंट जिसमे संपत्ति किसी के पास आती है लेकिन जिसके पास यह संपत्ति आती है वह इसका भुगतान नहीं करता है इसके जगह दूसरा कोई व्यक्ति इसका भुगतान करता है, और यह संपत्ति जो वर्तमान में एक व्यक्ति के पास है यह दरअसल वर्तमान या भविष्य में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसके फायदे के लिए ही है जिसने उसका भुगतान किया है न की जिसके नाम पे इसकी रजिस्ट्री हुई है, बेनामी सौदा कहलाएगी.

दरअसल यह कानून ऐसी बेनामी संपत्तियों के खिलाफ लाई गई है जो आज भी जमींदारों द्वारा या काले धन के चोरों द्वारा अपने नौकर चाकर के नाम पे खरीदी गई हैं. संपत्ति तो इन नौकर चाकर के नाम पे है लेकिन इसका पैसा और इसका एंजोयमेंट ये न करते हुए जो भुगतान किया होता है वह करता है.

कानून का उद्देश्य तो यही था लेकिन परिभाषा गढ़ते वक़्त इस बात का भी ख्याल रक्खा गया की भारतीय समाज में बहुत से ऐसे संपत्तियों के सौदे हैं जिसमें भुगतान कोई और करता है और मालिक कोई और रहता है जैसे पिता या माता द्वारा पुत्र पुत्री के लिए ली गई संपत्ति, पति द्वारा पत्नी के लिए ली गई या इसके उलट भी. इसलिए कुछ ऐसे सौदे हैं उन्हें बेनामी सौदे के दायरे से बाहर रक्खा गया है जैसे कि एक हिन्दू अविभाजित परिवार के द्वारा अपने कर्ता या सदस्यों के लिए ली गई संपत्ति जिसमे भुगतान हिन्दू अविभाजित परिवार के ज्ञात श्रोत से होता है. कई बार कुछ विशेष क़ानूनी कारणों से एक व्यक्ति किसी संपत्ति को धारण करता है जबकि उसका भुगतान वह नहीं करता है , वह कारण है ट्रस्टी, निष्पादक, पार्टनर, कंपनी के निदेशक, डिपॉजिटरी या डिपॉजिटरी अधिनियम के तहत एक डिपॉजिटरी के एजेंट के रूप में या कभी कभी केंद्र सरकार के किसी विशेष कानून के कारण बनी विशेष स्थिति के कारण संपत्ति को धारण करना, ऐसी संपत्तियों के धारक और यह सौदा बेनामी सौदा नहीं कहा जायेगा.

उसी प्रकार एक पति के द्वारा अपनी पत्नी के लिए या पत्नी के द्वारा अपने पति के लिए या उनके द्वारा अपने बच्चो के लिए ली गई संपत्ति बेनामी संपत्ति नहीं कहलाएगी. ठीक उसी तरह एक व्यक्ति अपने भाई बहन के नाम पे या ऊपर या नीचे की वंशावली में भी किसी के नाम पे संपत्ति खरीद सकता है वह बेनामी संपत्ति नहीं कहलाएगी बशर्ते वह व्यक्ति जिसने भुगतान किया हो वह संयुक्त मालिक हो अगर वह संयुक्त मालिक नहीं है और भाई बहन या वंशावली में किसी के नाम से खरीद दिया तो वह बेनामी संपत्ति कहलाएगी. इसके अलावा उन संपत्तियों के धारक को भी छूट दी गई है जिसके तहत भुगतान करने वाले व्यक्ति को कब्जे का अधिकार तो दिया गया है लेकिन किसी तकनीकी कारण वश अभी कब्ज़ा पुराने के पास ही है और इसका स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान हो गया है और संपत्ति की रजिस्ट्री हो गई है.

इसके अलावा कोई भी सौदा या अरेंजमेंट किसी भी संपत्ति के सम्बन्ध में काल्पनिक नाम से किये गए हों और उन नामों का कोई आस्तित्व न हो तो ऐसे सारे सौदे बेनामी सौदे कहलायेंगे और इन सौदों से अर्जित संपत्ति बेनामी संपत्ति कहलाएगी.

इसके अलावा कोई भी सौदा या अरेंजमेंट जिसके तहत एक संपत्ति के क़ानूनी मालिक को यह मालूम ही नहीं है की वह इस सम्पति का क़ानूनी मालिक है या यदि वह इनकार करता है की मैं इस संपत्ति का मालिक नहीं हूँ. ऐसे केस ज्यादे मिलेंगे जहाँ नौकर चाकर को मालूम नहीं है और उसके नाम से संपत्ति है तो यह बेनामी संपत्ति होगी’.

इसके अलावा कोई भी सौदा या अरेंजमेंट जिसके तहत भुगतान करने वाला व्यक्ति कौन है यह पता नहीं चल रहा है या वह काल्पनिक है भी बेनामी सौदा कहलायेगा. हालाँकि आज की तारीख में आयकर विभाग इस लाइन के आधार पर आयकर छापे में अस्पष्टीकृत जमा को भी बेनामी एक्ट के दायरे में लाने की कोशिश कर रहा है न की आयकर के तहत क्यूँ की बेनामी के पेनल एक्शन आयकर से कहीं ज्यादे कठिन है, और वर्त्तमान में ऐसे मुद्दों पे विशेषज्ञों के बीच इसपे मंथन चल रहा है कि छापों में अस्पष्टीकृत जमा बेनामी में आएगी या आयकर अधिनियम के तहत आएगी.

एक चीज यहाँ समझ लेना चाहिए की बेनामी संपत्ति में सिर्फ स्थाई संपत्ति ही नहीं आती है इसमें किसी भी प्रकार की संपत्ति चाहे वो चल या अचल, मूर्त या अमूर्त, भौतिक या अभौतिक, किसी भी तरह का राईट या कोई  ऐसा वैधानिक पेपर जो कोई अधिकार या मालिकाना हक़ प्रदान करता हो सब शामिल हैं. इस प्रकार से यह भ्रम निकाल देना चाहिए की यह सिर्फ जमीन जायदाद पे लागू होगा यह उन सब संपत्तियों जैसे की बैंक जमा कॅश गाडी जेवर कोई भी चल सामान जिसका की आप श्रोत बता न सके वह बेनामी संपत्ति कहलायेगा. यहाँ एक चीज समझ लेना चाहिए अगर कोई आयकर विभाग को न बताया गया क्रेडिट या जमा आयकर विभाग को  मिलता है और आपने उसका श्रोत बता दिया और वह श्रोत धारक का ही श्रोत है तो वह जमा सिर्फ आयकर कानून के तहत कारवाई में आएगी लेकिन यदि श्रोत आप नहीं बता पाए तो उसके बेनामी कानून के दायरे में भी आने की सम्भावना है जिसके क़ानूनी प्रावधान ज्यादे कड़े हैं और इसमें बैंक जमा, नकदी, जेवर, गाड़ी, जमीन, मकान जैसे कोई भी संपत्ति हो सकते हैं.

कड़े प्रावधानों के तहत ऐसी संपत्तियों के जब्तीकरण का प्रावधान है और इसके तहत जहां जब्ती का आदेश तहत दिया गया है, ऐसे में सभी अधिकार और टाइटल पूरी तरह से केंद्रीय सरकार में निहित हो जाएगी और इसकी कोई भी क्षतिपूर्ति भी सरकार द्वारा देय नहीं होगी किसी को भी। साथ ही कानून ने यह प्रावधान किया है कि यदि जानबूझकर कोई तीसरे व्यक्ति का नाम डालकर बेनामी कानून से बचना चाहता है तो उसके द्वारा की गई ऐसी व्यवस्था मान्य नहीं होगी और जब्तीकरण प्रभावी होगी.

इस कानून के तहत सिर्फ बेनामीदार को ही दोषी नहीं माना गया है जो कोई भी इस सौदे में शामिल है जैसे सम्पति का धारक, भुगतान करने वाला एवं अन्य व्यक्ति जिसके शह पे या जिसने इस सौदे के लिए इन्हें प्रेरित किया हो को भी दोषी माना गया है और ऐसे अपराध को गैर संज्ञेय अपराध माना गया है. ऐसे दोषी व्यक्ति को न्यूनतम एक वर्ष एवं अधिकतम सात वर्ष की सजा और संपत्ति बाजार मूल्य का २५% पेनाल्टी भी लगेगा जो कि जब्तीकरण के अतिरिक्त होगा. साथ ही साथ इस सम्बन्ध में यदि कोई भी व्यक्ति चाहे हो उपरोक्त तीनों में हो या ना हो कोई भी झूठी सुचना देता है उसे न्यूनतम ६ माह एवं अधिकतम पांच वर्ष की सजा और संपत्ति बाजार मूल्य का १०% पेनाल्टी लगेगा.

इस प्रकार आप देखेंगे की १९८८ में बने इस कानून को २०१६ में संसोधन के द्वारा बहुत ही प्रभावी बना दिया गया है और इसका दायरा बहुत बढ़ गया है. आम जनमानस के अब तक के कई ऐसे सौदें भी या संपत्तियां भी इसमें आ सकती है. संयुक्त परिवारों में तो ऐसा भी देखा गया है कि कई बार लोग अपने ससुराल में किसी के नाम पर संपतियां ले लेते हैं ताकि भाइ लोग हिस्सा न मांगे ऐसे सभी संपत्तियां अब बेनामी सौदे के दायरे में अब आ जाएगी.

लोगों को समय रहते इसपे जागरूक हो जाना चाहिए. एक चीज समझ लेना चाहिए देश का एक बड़ा वर्ग वेतन का आयकर रिटर्न भरता है जिसके साथ बैलेंस शीट नहीं जाती है और कई बार व्यक्ति बैलेंस शीट बिज़नस का आयकर में जमा करता है पैतृक संपत्ति के विवरण के साथ नहीं जमा करता है, ये सब संपत्तियां बेनामी में नहीं आएँगी यदि आपने इनके ज्ञात श्रोत को बता दिया और वह बेनामी कानून के तहत ये श्रोत स्वीकृत श्रोत हैं तो. सिर्फ आयकर विभाग को नहीं बताने से कोई संपत्ति बेनामी नहीं हो जाती है इसके लिए उसे बेनामी कानून के प्रावधानों के परीक्षण से गुजरना होगा ना की आयकर के.

 


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