आप ने बीते 8 नवम्बर से इस 8 नवम्बर के बीच कई
बार ब्लैक मनी सुना होगा , नोटबंदी पे तमाम
बहसें सुनी होगी, लेकिन शायद आपको मालूम नहीं है की ब्लैक
मनी आयकर अधिनियम के कहीं परिभाषित नहीं है और तो और ब्लैक मनी सिर्फ आयकर अधिनियम
तक ही सीमित नहीं है। बहुतों को लगता है की आयकर भर दिया तो ब्लैक मनी सफ़ेद हो
जाएगी लेकिन वाकई में ऐसा नहीं है, ब्लैक मनी का मतलब कोई भी
ऐसी आय जो देश के क़ानूनों के दायरे से बचा के की जाए, या यूं
कहें की छुपा के की जाए और उसपे उपयुक्त सभी तरह के कर या उनमें से कोई एक कर न
भरी जाए। अगर आपने कोई कमाई ऐसी की है जिसमें आपने सेवाकर व्यापार कर, एक्साइज़ , अन्य कर या आयकर न भरा हो और इस कमाई को
इनमें से किसी भी विभाग से छुपाया हो तो वह काला धन हो जाता है। कई बार ऐसा होता
है की लोग कई कमाई पे आयकर तो भर देते हैं लेकिन सेवा कर या व्यापार कर नहीं भरते
हैं या तो इस तरह से भरते हैं कि इन सब टैक्स कि चोरी कर सकें ये सारी आय को काला
धन कहा जाता है।
हमारे यहाँ दो प्रकार के काला धन है पहला
घरेलू काला धन और दूसरा विदेशी काला धन। घरेलू काला धन भी दो प्रकार का है एक तो
वह जो जाने अनजाने में लोगो द्वारा कर नहीं भरा जा रहा है क्यूँ कि कर कानून
अव्यवहारिक है और दूसरा जो जान बूझ के नहीं भरा जाता है। जाने अनजाने में जो धन
काले धन कि श्रेणी में आ जाता है उसपे सरकार को विचार करना चाहिए, उदाहरण के तौर पर यदि मुंबई का कोई ऑटो वाला 822 रुपये प्रति दिन से
ज्यादे कि कमाई करता है तो उसकी आय टैक्स कि छूट सीमा से अधिक है तो उसे आयकर
रिटर्न भरनी चाहिए लेकिन वह नहीं भरता है , कानूनन वह भी अब
काले धन कि श्रेणी में आ गया लेकिन व्यावहारिक तौर पे देखेंगे कि उसे काले धन कि
श्रेणी में नहीं आना चाहिए। मुंबई में रहने के ही कम से कम एक औसत परिवार का चालीस
हजार प्रति माह खर्च है और वह यदि 480000 वर्ष का कमाता है तो वह टैक्स का पैसा या
टैक्स बचत के लिए निवेश का पैसा कहाँ से जमा कर पाएगा, अतः
इन व्यावहारिक दिक्कतों के कारण यदि कोई आयकर विवरणी नहीं भर पाता है तो उसे भी
कानूनन काला धन नहीं माना जाना चाहिए। कर क़ानूनों का इतना व्यवहारीकरण करना चाहिए
ताकि जनता का एक बड़ा वर्ग जो निर्दोष है वह आराम से रहे।
घरेलू काले धन मे वो प्रकार जो जान बूझ के
कमाया जाता है वह गलत है। इसमें शामिल है आयकर , सेवाकर या
अन्य क़ानूनों से बच बचा के कमाई करना और ईसपे टैक्स नहीं भरना। यह कमाई हो सकता है
कि वैध तरीके से कमाई गई हो या अवैध तरीके से कमाई गई हो,
लेकिन यदि जानबूझकर आपने किसी भी प्रकार के घरेलू कर क़ानूनों का पालन नहीं किया है
तो या काला धन हो जाएगा।
हालांकि कर क़ानूनों के बाहर भी अन्य क़ानूनों
में भी काला धन को परिभाषित नहीं किया गया लेकिन व्यावहारिक रूप में कोई भी आय जो
गैरकानूनी या अपराधिक तरीके से कमाई गई हो वह भी काला धन है भले ही आपने उस पर
सारे कर चुका दिए हों।
विदेशों में जो धन है उसकी भी एक जनरल अवधारणा
बनती है कि काला धन ही है लेकिन ऐसा नहीं है विदेशों में जमा सारा धन काला धन नहीं
हो सकता है हो सकता है कि यह धन किसी ने वैध तरीके से कमा के जमा कि है । इसीलिए
अगर कोई पैराडाइस या पनामा लीक में सिर्फ नाम आने से यह समझ ले कि वह काला धन होगा
तो यह जल्दबाज़ी होगी। अगर कोई विदेशी काला धन है और अगर यह सिद्ध हो जाए कि काला
धन है तो यह या तो हवाला के द्वारा बाहर भेजी गई होगी या बैंकिंग माध्यम का
इस्तेमाल कर लेकिन कर क़ानूनों का दुरुपयोग कर बाहर भेजा गया हो। विदेशों मे काला
धन कई बार आयात में गड़बड़ी कर कर भी भेजा जाता है। अतः अगर विदेशी काले धन को रोकना
है तो सरकार को प्रथम हवाला कारोबार, सरकारी विदेशी
खरीद को रोकना चाहिए। मेक इन इंडिया के तहत वाकई में रक्षा कंपनियों को भारत में
ही उत्पादन करने को कहना चाहिए और विभिन्न देशों से जो दोहरे कराधान के समझौते हुए
हैं उसकी समय समय पे समीक्षा करनी चाहिए। कई बार विभिन्न देशों से जो दोहरे कराधान
के समझौते हुए हैं उसके डिस्क्लोजर क्लाज के कारण हम फंस जाते हैं लेकिन साथ में
उस समझौते में यह भी क्लाज होता है कि यदि कोई कंपनी कर चोरी के लिहाज से इस
समझौते का इस्तेमाल करती है तब यह समझौता नहीं लागू होगा इसकी जगह घरेलू कानून
लागू होगा।
नोटबंदी जो था वो विदेशी काले धन के लिए नहीं
था वह था घरेलू काला धन के लिए और वह भी घरेलू काले धन पर भी यह ज्यादे प्रभावकारी
नहीं था यह प्रभावकारी था जाली नोटों के ऊपर। नोटबंदी से वो लक्षित उद्देश्य नहीं
प्राप्त किए जा सके जो सोच के इसको लागू किया गया था, यह एक बड़ा ही जल्दबाज़ी में लिया गया कदम था, नोट छप
के तैयार नहीं था, एटीएम का कलिबेरेशन ठीक नहीं था, कई बार नोट एक ही तरफ छप के चला आया था और 2000 के नोट छापने की जरूरत ही
नहीं थी, कुल मिला के कहें तो नोटबंदी की जरूरत ही नहीं थी।
नोटबंदी वह हथियार था जिसे अंतिम अस्त्र के रूप में चलाना चाहिए था तब यह मारक
होती अन्यथा यह अपना मारक शक्ति खो देती है और हुआ यही नोटबंदी ने अपना मारक शक्ति
खो दिया, और देश की अर्थ व्यवस्था सुस्त हो गई।
वास्तव में विमुद्रीकरण काला धन रोकने का अमोघ शस्त्र है, इसका
इस्तेमाल बहुत ही अंतिम विकल्प के तौर पर और पूर्ण नियंत्रण मे करना चाहिए। अगर
बाजार मे 2000 के नोट कि जगह 500 और 100-100 कि नोट
उतारते तो बहुत अच्छा होता। 2000 का नोट आज
भी बड़ी कठिनाई से चल रहा है अगर आपके पास 2000 है तो
सामने वाले के पास 1900 छुट्टा होगा तभी तो 2000 चलेगा यदि
आप 100 रुपये का खर्च करना चाहते हैं तो।
आज भी सिसवा निचलौल जैसे कई कस्बों मे तो स्वाइप मशीन
ही नहीं है वहाँ प्लास्टिक इकॉनमी कैसे चलेगी, अगर
फोर्स करके लाना ही था तो पहले समानान्तर व्यवस्था कर लेना चाहिए था ।
कस्बों में तो कई दिन तक व्यापार
ठप हो गया था। बड़े शहरों में तो 70% प्लास्टिक
सौदे होते हैं तो प्रभाव कम हैं, व्यापार का नुकसान कस्बों और गाँव में ज्यादे
हुआ था , जब 86% वाली पुरानी मुद्रा मृत हो गई हो , नई
मुद्रा कि आपूर्ति पर्याप्त नहीं हो तो
बताइये छोटे छोटे व्यापारी किस मुद्रा में व्यापार करते वो भी
तो 14% कि क्षमता से ही छुट्टा दे सकते थे अगर
86%
व्यापार बंद होगा और कस्बों मे तो यह 86% डेली यूज
वाली ही होती हैं तो आप समझिए कि लोगों कि वह जरूरतें कैसे पूरी हुई होंगी उस
दौर में ।
वास्तव में उस समय मशीन
कलिबेरेसन कि जरूरत ही नहीं थी सरकार को 500/1000 निरस्त
कर नए रंग का 500 का नया नोट और 100 के नोट
का रेप्लसेमेंट करते जो आम आदमी के काम आता और 500 के नोट
के कारण करेंसी क्र्यासिस नहीं आती और एटीएम भी 5 गुना
ज्यादे परफॉर्मेंस करता । 2000 के नोट को उस समय लाने कि
जरूरत नहीं थी। आम आदमी तो 100/50/500 के नोट
से ही काम चलाता था । 1000 तो काला धन वाले ही रखते थे। 2000 भी उन
जैसों के काम ही आएगा। उस दौर में मेरा
ड्राईवर 2000 का नोट 2 दिन ले
के घूमा खरीददारी नहीं कर पाया क्यूँ कि सामने वाले के पास छुट्टा ही नहीं था। 1000 का तो
छुट्टा मिलता ही नहीं था 2000 का कहाँ से मिलता।
86% करेंसी का मार्केट और पैरेलल इकॉनमी को एक झटके से खत्म करना वो भी
बिना तैयारी के महंगा सौदा साबित हुआ। सरकार को अपने इस कार्यकाल में या तो जीएसटी या तो नोटबंदी एक ही
बड़ा फैसला लेना चाहिए था शायद सिर्फ जीएसटी ही लेते तो ठीक था नोटबंदी व्यर्थ कि
कवायद साबित हुई।
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