स्थानीय उद्यमिता विकास ही विकास का मूल मंत्र है


आजकल हैदराबाद में होने वाले ग्लोबल उद्यमिता समिट की हर जगह मीडिया में चर्चा है, उसमें इवांका ट्रम्प आ रही हैं और दीपिका पादुकोड ने आने से इनकार कर दिया इसकी ज्यादे चर्चा है. होता क्या है ऐसे कार्यक्रमों में जब हम अप्रासंगिक लोगो को या बहुत चर्चित प्रोफाइल को लाते हैं तो विचार मंथन का केंद्र विषय से भटककर उस चर्चित सेलेब्रिटी के आसपास चला जाता है. अच्छा ही हुआ दीपिका ने मना कर दिया वजह चाहे जो कुछ भी रहा हो. इस तरह के ग्लोबल उद्यमिता समिट में विश्व के उस उद्यमियों को मॉडल के रूप में बुलाना चाहिए जिनके जीवन एवं कर्म चरित्र से हमें सीख मिले, हमारा देश और उसके युवा उसके किये गए प्रयासों से प्रभावित हों उसे अपनाने की कोशिश करें और उनके अन्दर पॉजिटिव एनर्जी का संचार हो. उद्यमिता विकास में हमारे लिए धीरू भाई की स्टोरी ज्यादे अपीलिंग होगी , नारायण मूर्ति , महेंद्र सिंह धोनी और सचिन तेंदुलकर की स्टोरी ज्यादे प्रभावित करेगी लोगों की कैसे कोई सही और सामयिक निर्णय से सफल हो सकता है.

हमें ऐसे उद्यमियों को चुनना चाहिए जिन्हें विरासत में उद्यम नहीं मिला फिर भी वो आज उद्यम के शीर्ष पर है, यह भारतीय युवावों को ज्यादे अपील करेगी. इवांका ट्रम्प अपने परिवार में चौथी पीढ़ी की बिजनेसमैन हैं, लाजमी है की अगर कोई उदाहरण लायक चरित्र होगा वह उनके परिवार की पहली जनरेशन होगी. उद्यमिता समिट में हमेशा ऐसे जीवन चरित्रों को बुलाना चाहिए जिन्होंने पैतृक संपत्ति से नहीं खुद की अपनी काबिलियत से अपनी संपत्ति बनाई हो और व्यवसाय किया है.

भारत जैसे देश में उद्यमिता विकास इसलिए आवश्यक हो जाता है की यहाँ बहुत से प्रदेशों में युवा रोजगार का अर्थ सरकारी नौकरी या सिर्फ नौकरी ही मानता है और स्वयं के उद्यम की तरफ साहस नहीं कर पाता. आसपास का माहौल, परिवार की तरफ से दबाब उसको नौकरी की तरफ धकेलता है.

राज्य का और संस्थानों की एक सीमा है इसलिए लाजमी है की बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी नहीं मिलेगी और युवा निराश होंगे. इसके लिए आवश्यक है की सरकारें राज्यों में बड़ी संख्या में स्व-रोजगार एवं उद्यमिता विकास को बढ़ावा दें.

आज पूरा देश ग्लोबल समिट की तरफ ताक रहा है जबकि वक्त की जरुरत है स्थानीय उद्यमिता विकास की. आज भी गांवों में लोगों के पास अपना व्यवसाय चुनने के लिए पैसे का सपोर्ट नहीं है. निजी स्तर पर अगर व्याज पे पैसा लेते हैं तो उसके ब्याज के भरने से ही इनके धंधे की कमर टूट जाती है.

मैंने खुद देखा है सरकार तो योजनायें बहुत बनाती है लेकिन बैंक उसमें उतना सहयोग नहीं करते जितना अपेक्षित है. आज भी बैंकों के पास बहुत सी योजनायें हैं जिनका क्रियान्वयन अगर अच्छी तरह से की जाये , उनके ऋण का वितरण ही पात्रों को कर दिया जाये तो स्थानीय स्तर पे ही उद्यमिता की क्रांति आ जाएगी, लेकिन आज भी अपना बैंकिंग सेक्टर बहुत ही पुरातन विचारधारा का है. भले ही सरकार ने कहा है की किसी खास ऋण पे कोलेटरल प्रतिभूति नहीं लेनी है , मजाल क्या बैंक इसको मान लेवें. बहुत से से बैंक ऋण के लिए आवेदन करने वाले पात्रों को इतना दौडाते हैं की उसका चप्पल तक घिस जाता है. जितने का ऋण का आवेदन नहीं होता है उससे ज्यादे तो उससे सिक्यूरिटी मांग लेते हैं. कोलेटरल प्रतिभूति तो मांगते ही मांगते हैं ये साथ में लिक्विड सिक्यूरिटी भी मांगते हैं सोचने वाले बात है अगर उसके पास इतना पैसा होता तो उसे बैंक की क्या जरुरत थी.

ग्लोबल उद्यमिता समिट हैदराबाद में हो सकता है की देश विदेश से निवेशक आयें इंडस्ट्री के लीडर आयें वो भारत में आके भारत को समझना चाहते हों यहाँ पे होने वाले निवेशों में आ रही चुनौतियों को इस मंच के माध्यम से सरकार की और उनकी संस्थावों के सामने रखना चाहते हों इसका हम स्वागत करते हैं और इससे फायदा भी होगा लेकिन इसका फायदा ज्यादेतर  मेट्रो शहरों को  को होगा और खासकर मुंबई पुणे दिल्ली बैंगलोर और हैदराबाद को होगा.

आज के आधुनिक वेंचर कैपिटल निवेशक मुंबई पुणे दिल्ली बैंगलोर और हैदराबाद में ही अपना केंद्र बनाये हुए हैं और इस समिट के बाद भी यहीं बनाये रहेंगे. इन निवेशकों के द्वारा निवेश की जाने वाली राशि और इंस्ट्रूमेंट को भारत के छोटे शहरों में रहने वाले उद्यमी और युवा सुने नहीं होंगे और कई बार इन्हें विश्वास नहीं होता है की क्या कोई एक अच्छे आईडिया पर बिना सिक्यूरिटी बिना खेत गिरवी रखे करोड़ों रुपये दे सकता है. इनके लिए यह सुनना आज भी बड़ा आश्चर्यजनक होता है की एक नए आईडिया पे कोई कंपनी ऋण नहीं इक्विटी में निवेश करती है और वो भी इक्विटी ५०% से ज्यादे नहीं लेती है. दूरदराज के उद्यमी आज भी सीड फण्ड इन्वेस्टमेंट, एंजल फण्ड इन्वेस्टमेंट,प्राइवेट इक्विटी, OFCD CCD जैसे शब्द सुने नहीं होते हैं. आज भी उनके पास फण्ड के श्रोत यही बैंक और निजी महाजन रिश्तेदार और सेठ होते हैं जो पैसा तो लगाते हैं लेकिन सिक्यूरिटी लेकर अथवा उसकी ज्यादे से ज्यादे इक्विटी में भागीदार होके.

स्थानीय स्तर पे युवावों और नव उद्यमियों तक यह बात पहुंचाई जानी चाहिए की निवेश के अन्य श्रोत भी हैं आप सिर्फ बैंक पे निर्भर ना हो महाजन पे निर्भर ना हो. उनके इस आईडिया को और ऐसे आधुनिक निवेशकों को पास लाने का काम अब सरकार को करना चाहिए. जगह जगह सरकारों ने जो उद्यमिता विकास संसथान खुले हैं उनका मुख्य काम होना चाहिए कि वो स्टार्ट अप को सपोर्ट तो करें ही करें साथ में बाजार में वित्त पोषण के जितने मॉडल हैं इससे भी युवावों एवं नव उद्यमियों को जागरूक करते रहें. इस ग्लोबल उद्यमिता समिट को इसमें आने वाले निवेशक जब तक जिले स्तर पे नहीं जायेंगे तब तक यह एक खास क्षेत्र का क्लस्टर डेवलपमेंट होगा और फिर यह भारत में एक फोड़े का निर्माण करेगा जो आगे जाकर दर्द ही देगा.

 

सरकार को सोचना चाहिए किसी भी सपनों एवं नव आईडिया से लबरेज युवा के लिए दो भारत क्यूँ है ? एक भारत जो की छोटे शहरों और गांवों में बसता है जहाँ के युवा का सपना मुद्रा लोन, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, लोन, CC ODजैसे वित्तीय इंस्ट्रूमेंट से आगे सोच ही नहीं पाटा है और एक दूसरा भारत जो भारत के चुनिन्दा शहरों में रहता है जो धडाधड सीड फण्ड इन्वेस्टमेंट, एंजल फण्ड इन्वेस्टमेंट, प्राइवेट इक्विटी, OFCD, CCD, फर्स्ट सीरीज, सेकंड सीरीज जैसे वित्तीय मॉडल की बात करता है. कहाँ एक भारत में परंपरागत निवेशक के रूप में सिर्फ बैंक ही है और भारत के चुनिन्दा शहरों में बड़े बड़े निवेशक जो ऋण के अलावा बिना सिक्यूरिटी बिना ब्याज भार का भी अन्य वित्तीय मॉडल रखते हैं निवेश के लिए.

 सरकार को जिले स्तर के उद्यमिता विकास संस्थानों को बाहर की जगह टूर पे भेजना चाहिए ताकि वह उद्यमिता विकास के नए नए पहलु और तकनीक सीख के आये और नव उद्यमियों को बताएं की पूंजी ही सब कुछ नहीं है पूंजी सिर्फ एक पहलु है उद्यम का , दुनिया में ऐसे बहुत से खरबपति पड़े हैं जिनके पास खरबों रूपये हैं और जो आज भी ऐसे युवावों को ढूंढते हैं जिसके पास आईडिया हो और उसके पीछे करोड़ों रुपये लगाने के लिए तैयार रहते हैं. इस ग्लोबल उद्यमिता समिट के बाद सरकार का अगला लक्ष्य ऐसे निवेशकों का रूख भारत के छोटे शहरों जैसे की लखनऊ पटना जयपुर भोपाल देहरादून चंडीगढ़ में करने का होना चाहिए जहाँ के युवा के आँखों में सपने तो हैं लेकिन उन्हें मौजूदा वित्तीय मॉडल नहीं पता और इसमें स्थानीय स्तर पे सक्रिय उद्यमिता विकास सहायक हो सकते हैं, पूंजी की व्यवस्था कराना इनके मुख्य करिकुलम में होना चाहिए.

 

 

 

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